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भारत की ब्लू इकोनॉमी

Lokesh Pal August 04, 2025 02:37 17 0

संदर्भ

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय नेभारत की ब्लू इकोनॉमी में परिवर्तन: निवेश, नवाचार और सतत् विकास’ शीर्षक से एक श्वेत-पत्र जारी किया।

  • उद्देश्य: वर्ष 2035 तक आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए निरंतर निवेश, अनुसंधान और महासागर नवाचार के माध्यम से भारत की समुद्री संसाधन क्षमता को उजागर करना।

ब्लू इकोनॉमी के बारे में

  • ‘ब्लू इकोनॉमी’ को आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और रोजगार के लिए समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग के रूप में परिभाषित किया जाता है, जबकि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित रखा जाता है।
  • इसमें मत्स्य पालन, नौवहन, तटीय पर्यटन, नवीकरणीय ऊर्जा, समुद्री जैव प्रौद्योगिकी और खनिज संसाधन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।

वर्ष 2035 तक का रोडमैप

  • रणनीतिक निवेश: मत्स्यपालन, बंदरगाह, तटीय पर्यटन और अपतटीय नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता देना।
    • व्यवहार्य, लॉन्च के लिए तैयार परियोजनाओं की एक स्पष्ट निवेश पाइपलाइन विकसित करना।
  • संस्थागत समन्वय: नियामक चुनौतियों से निपटने और अनुमोदन में तेजी लाने में निवेशकों की सहायता के लिए एक ब्लू इन्वेस्टमेंट हेल्पडेस्क स्थापित करना।
  • परियोजना पूर्णता, सृजित रोजगार और अर्जित राजस्व जैसे प्रमुख मानकों की निगरानी के लिए वार्षिक प्रगति डैशबोर्ड शुरू करना।
  • सतत् विकास और पर्यावरण संरक्षण: सुनिश्चित करना कि निवेश स्थिरता लक्ष्यों, जैसे वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन, समुद्री संरक्षण और जलवायु परिवर्तन शमन, के अनुरूप हों।

भारत की ‘ब्लू इकोनॉमी’ के प्रमुख घटक

  • मत्स्यपालन और जलीय कृषि: भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है, जिसकी वैश्विक मत्स्य उत्पादन में लगभग 8% हिस्सेदारी है।
    • भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1% और कृषि सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 5% का योगदान देता है।
    • विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे तटीय राज्यों में, 14 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
  • समुद्री परिवहन और नौवहन: भारत में 13 प्रमुख बंदरगाह और 200 से अधिक छोटे बंदरगाह हैं, जो मात्रा के अनुसार, भारत के लगभग 95% व्यापार का संचालन करते हैं।
    • सागरमाला कार्यक्रम: इसका उद्देश्य बंदरगाहों का आधुनिकीकरण, तटीय नौवहन को बढ़ावा देना और बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण का विकास करना है।
  • समुद्री पर्यटन: तटीय राज्य (जैसे- गोवा, केरल, अंडमान और निकोबार) समुद्र तटों, प्रवाल भित्तियों और समुद्री जैव विविधता का लाभ उठाते हैं।
    • क्रूज पर्यटन, जल क्रीड़ा और पारिस्थितिकी पर्यटन की संभावनाएँ।
    • चुनौतियाँ: पर्यावरणीय क्षरण, बुनियादी ढाँचे का अभाव और नियामक बाधाएँ।
  • अपतटीय ऊर्जा

ब्लू हाइड्रोजन, स्टीम मेथेन रिफॉर्मिंग का उपयोग करके प्राकृतिक गैस से उत्पादित हाइड्रोजन है, लेकिन इसमें कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (carbon capture and storage- CCS) प्रौद्योगिकी का भी महत्त्वपूर्ण उपयोग किया गया है, ताकि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम किया जा सके।

    • नवीकरणीय ऊर्जा: अपतटीय पवन ऊर्जा की संभावना (जैसे- गुजरात और तमिलनाडु तट)।
      • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता।
    • तेल और गैस: कृष्णा-गोदावरी और मुंबई हाई बेसिन में अन्वेषण।
    • ब्लू हाइड्रोजन और समुद्री आधारित कार्बन कैप्चर प्रणालियाँ उभरते क्षेत्र हैं।
  • समुद्री जैव प्रौद्योगिकी: समुद्र आधारित औषधियों, जैव ईंधनों और जैविक पदार्थों पर ध्यान केंद्रित।
    • वर्तमान योगदान सीमित है, लेकिन नवाचार और अनुसंधान एवं विकास की उच्च संभावनाएँ हैं।
  • तटीय अवसंरचना और सामुदायिक विकास: सागरमाला के अंतर्गत तटीय आर्थिक क्षेत्रों (Coastal Economic Zones- CEZ) का विकास।
    • तटीय समुदायों के लिए कौशल विकास और आजीविका कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना।

भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी का महत्त्व

  • रणनीतिक स्थान और समुद्री संसाधन: भारत की तटरेखा 11,098 किलोमीटर लंबी है और इसका अनन्य आर्थिक क्षेत्र 24 लाख वर्ग किलोमीटर का है।
    • यह प्रचुर प्राकृतिक संसाधन प्रदान करता है, जिससे भारत एक समुद्री महाशक्ति बन गया है।
  • आर्थिक विविधीकरण: यह सतत् मत्स्यपालन, तटीय पर्यटन, अपतटीय नवीकरणीय ऊर्जा, समुद्री जैव प्रौद्योगिकी और गहरे समुद्र में अन्वेषण जैसे क्षेत्रों के माध्यम से विविधीकरण को बढ़ावा देता है, जिससे समग्र आर्थिक विकास में योगदान मिलता है।
  • रोजगार सृजन और आजीविका: लगभग 1.4 करोड़ लोग तटीय गतिविधियों पर निर्भर हैं।
    • इनमें मत्स्यन, पर्यटन और नौवहन शामिल हैं, जो कई समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण आजीविका प्रदान करते हैं।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: समुद्री संसाधनों का सतत् उपयोग समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने में मदद करता है, जिससे अत्यधिक मत्स्यपालन, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

ब्लू कार्बन तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों में संचित और संगृहीत कार्बन को संदर्भित करता है।

समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas- MPA) ऐसे निर्दिष्ट क्षेत्र हैं, जहाँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों और उनकी जैव विविधता की रक्षा के लिए मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है।

    • ब्लू कार्बन और समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas- MPA) जैसी पहल संरक्षण प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और भू-राजनीतिक प्रभाव: एक सशक्त ‘ब्लू इकोनॉमी’ समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देती है।
    • यह शिपिंग लेन को सुरक्षित करने और भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने में मदद करती है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) और वैश्विक नेतृत्व के लिए समर्थन: महासागरों के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिए संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य 14 (SDG 14) के साथ सामंजस्य बिठाते हुए, राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction- BBNJ) समझौते जैसी ब्लू इकोनॉमी पहलों में भारत का नेतृत्व वैश्विक समुद्री संरक्षण प्रयासों का समर्थन करता है।
  • तकनीकी और नवाचार केंद्र: समुद्री प्रौद्योगिकियों में निवेश नवाचार को बढ़ावा देता है।
    • भारत समुद्री जैव प्रौद्योगिकी, अपतटीय ऊर्जा और महासागर निगरानी में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बन सकता है।

केस स्टडी और सर्वोत्तम अभ्यास

  • ओडिशा में समुद्री शैवाल की खेती: समुदाय आधारित समुद्री शैवाल की खेती 10,000 से अधिक तटीय परिवारों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाती है।
    • समुद्री शैवाल की खेती आय प्रदान करती है और अत्यधिक मत्स्यन एवं जलवायु परिवर्तन के कारण घटते मत्स्य भंडार के प्रभाव को कम करती है।
    • इसके 10 लाख हेक्टेयर तक विस्तार की उम्मीद है, जिससे संभावित रूप से 10 लाख हरित रोजगार सृजित होंगे।
  • कोच्चि का स्मार्ट बंदरगाह परिवर्तन: बंदरगाह संचालन को अनुकूलित करने, संसाधनों के उपयोग में सुधार लाने और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने, स्थिरता को बढ़ाने और जहाजों के प्रतीक्षा समय को कम करने के लिए डिजिटल ट्विन तकनीक का उपयोग किया गया है।
  • अलंग (गुजरात) में पोत भंजन उद्योग: अलंग के पोत भंजन यार्ड एक स्थायी, चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल में बदल गए हैं।
    • इस्पात और लौहरहित धातुओं को पुन: उपयोग के लिए पुनर्प्राप्त किया जाता है, और खतरनाक कचरे का प्रबंधन हांगकांग अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मानकों के अनुसार किया जाता है।
  • अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह (Andaman & Nicobar Islands- ANI): पारिस्थितिकी पर्यटन, सामुदायिक भागीदारी और पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित सतत् पर्यटन पहलों ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह को स्थायी तटीय तथा समुद्री पर्यटन के लिए एक आदर्श बना दिया है, जिससे लगभग 5,000 रोजगार सृजित हुए हैं।

भारत की ब्लू इकोनॉमी के लिए प्रमुख सरकारी पहल और रणनीतियाँ

  • सागरमाला कार्यक्रम, 2015: बंदरगाह-आधारित विकास को बढ़ावा देना, बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण करना, तटीय नौवहन को बढ़ावा देना और तटीय समुदायों का विकास करना।
    • इसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक बंदरगाह क्षमता को 3,300 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) तक बढ़ाना है।
    • कनेक्टिविटी में सुधार, तटीय आर्थिक क्षेत्रों (Coastal Economic Zones- CEZ) के विकास और लॉजिस्टिक लागत को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • समुद्री लॉजिस्टिक में क्रांति लाने के लिए अंतर्देशीय जलमार्गों और तटीय नौवहन को बढ़ावा देना।
  • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY): मत्स्यपालन क्षेत्र के सतत् और उत्तरदायी विकास को बढ़ावा देना।
    • सतत् जलीय कृषि, आधुनिक मत्स्यपालन तकनीकों, कोल्ड चेन अवसंरचना और निर्यात वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करना।
    • तटीय समुदायों, विशेष रूप से 1.6 करोड़ मछुआरों और मत्स्यपालकों का समर्थन करना।
  • डीप ओशन मिशन: भारत के EEZ और महाद्वीपीय शेल्फ के भीतर गहरे समुद्र के संसाधनों का अन्वेषण और दोहन करना।
    • 5 वर्षों में ₹4,077 करोड़ के बजट के साथ वर्ष 2021 में शुरू किया गया।
    • इसमें खनिजों, जैव विविधता और निर्जीव संसाधनों के गहरे समुद्र में अन्वेषण के लिए समुद्रयान कार्यक्रम शामिल है।
  • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030: यह पहल बंदरगाह अवसंरचना के आधुनिकीकरण, शिपिंग और लॉजिस्टिक्स में सुधार एवं हरित शिपिंग जैसी सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
    • इसका उद्देश्य भारत की समुद्री क्षमता और वैश्विक व्यापार संपर्क को बढ़ाना है।
  • ओ-स्मार्ट (महासागर सेवाएँ, मॉडलिंग, अनुप्रयोग, संसाधन और प्रौद्योगिकी): महासागर अनुसंधान, सतत् संसाधन उपयोग और पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बढ़ावा देना।
    • महासागर अवलोकन, प्रौद्योगिकी विकास और पूर्वानुमान सेवाओं (जैसे- मौसम, मत्स्य क्षमता) पर केंद्रित।
    • सजीव और निर्जीव समुद्री संसाधनों के सतत् दोहन का समर्थन करता है।
    • समुद्री शैवाल की कृषि और मैंग्रोव संरक्षण को बढ़ावा देता है।
  • राष्ट्रीय मत्स्य पालन नीति-2020: मत्स्य संपदा के सतत् उपयोग के लिए ब्लू ग्रोथ पहल को बढ़ावा देना।
    • सतत मत्स्य प्रबंधन, अत्यधिक मत्स्यपालन से निपटने और मत्स्य भंडार के स्वास्थ्य में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना।
    • मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (Fisheries and Aquaculture Infrastructure Development Fund- FIDF) के माध्यम से बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन करता है।
  • ब्लू इकोनॉमी 2.0: एक एकीकृत, बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण के माध्यम से सतत् विकास को आगे बढ़ाना।
    • वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में घोषित, पुनर्स्थापन, तटीय जलीय कृषि और समुद्री-कृषि पर केंद्रित।
    • पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन, जलवायु-अनुकूल गतिविधियों और सतत् मत्स्यपालन पर जोर देता है।
    • सरकार, उद्योग और नागरिक समाज के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management- ICZM): आजीविका में सुधार करते हुए तटीय और समुद्री संसाधनों का संरक्षण।
    • सतत् तटीय विकास, जैव विविधता संरक्षण और सामुदायिक कल्याण पर केंद्रित।
    • तटीय पर्यटन और बुनियादी ढाँचे के विकास को समर्थन।
  • ब्लू इकोनॉमी पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स: सतत् ब्लू इकोनॉमी के विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
    • समुद्री अनुसंधान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सतत् प्रथाओं में संयुक्त पहल को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2020 में स्थापित किया गया।
    • मत्स्यपालन, नवीकरणीय ऊर्जा और समुद्री सहयोग पर केंद्रित।
  • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति (2015): भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट अपतटीय पवन क्षमता विकसित करने के लक्ष्य के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा का दोहन करना है।
    • यह नीति अपतटीय पवन फर्मों के विकास और भारत के नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में उनके एकीकरण का समर्थन करती है।
  • बहुधात्विक पिंडों का अन्वेषण: भारत सरकार को मध्य हिंद महासागर बेसिन (Central Indian Ocean Basin- CIOB) से बहुधात्विक पिंडों (Polymetallic nodules) के अन्वेषण के विशेष अधिकार प्राप्त हैं।
    • समुद्र तल में बहुधात्विक पिंड, बहुधात्विक सल्फाइड और कोबाल्ट-समृद्ध मैंगनीज क्रस्ट पाए जाते हैं।
    • भारत की अनुमानित बहुधात्विक पिंड संसाधन क्षमता 380 मिलियन टन है, जिसमें 4.7 मिलियन टन निकल, 4.29 मिलियन टन ताँबा, 0.55 मिलियन टन कोबाल्ट और 92.59 मिलियन टन मैंगनीज शामिल हैं।

अंतरराष्ट्रीय गठबंधन

  • अंतरराष्ट्रीय ब्लू कार्बन पहल: तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण और पुनर्स्थापन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मैजिकल मैंग्रोव – ज्वाइन द मूवमेंट’ मैंग्रोव संरक्षण के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • एलायंस फॉर ब्लू नेचर: यह महासागर संरक्षण क्षेत्रों को आगे बढ़ाने के लक्ष्य के साथ एक अंतरराष्ट्रीय सहयोग है।
  • ग्लोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट: इसका उद्देश्य मत्स्यन और समुद्री परिवहन उद्योगों को प्लास्टिक-मुक्त दुनिया से संक्रमण में सहायता करना है।
  • लंदन कन्वेंशन: अपशिष्ट और अन्य सामग्रियों के निर्वहन से समुद्री प्रदूषण को रोकने हेतु वर्ष 1972 का एक कन्वेंशन।
  • वैश्विक कार्य कार्यक्रम (Global Programme of Action- GPA): इसका उद्देश्य समुद्री पर्यावरण को भूमि-आधारित गतिविधियों से बचाना है।

अन्य पहल

  • दक्षिण-पूर्व एशियाई पहल: तटीय संरक्षण और विकास को आवास और पारिस्थितिकी संरक्षण के साथ संतुलित करने के लिए, ‘ब्लू बुनियादी ढाँचे का विकास’ और ‘प्रकृति के साथ निर्माण क्रियाएँ’ जैसी तकनीकों को अपनाया जा रहा है।
  • एक स्वास्थ्य मॉडल: यह पारिस्थितिक तंत्र, कृषि, वन्यजीव और शहरी वातावरण को लोगों और पर्यावरण के कल्याण के लिए एक ही दृष्टिकोण में एकीकृत करता है।
  • जैव विविधता विजन, 2050: वर्ष 2050 के लिए जैव विविधता विजन, जैव विविधता के महत्त्व, संरक्षण, पुनर्स्थापन और विवेकपूर्ण उपयोग का आह्वान करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र का 30X30 लक्ष्य: वर्ष 2030 तक पृथ्वी के कम-से-कम 30% हिस्से की सुरक्षा करना।

ब्लू इकोनॉमी परिवर्तन हेतु आवश्यक कदम

  • निवेश तंत्र: निजी निवेश आकर्षित करने के लिए ब्लू बॉण्ड, व्यवहार्यता अंतर निधि (Viability Gap Funding- VGF) और मिश्रित वित्त साधनों का उपयोग।
    • बंदरगाह आधुनिकीकरण और अपतटीय पवन ऊर्जा जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-private partnerships- PPP) आवश्यक है।
  • शासन और संस्थागत ढाँचा: क्षेत्रों को प्राथमिकता देने और निवेश आकर्षित करने के लिए एक स्पष्ट, कार्यान्वयन योग्य योजना के साथ एक राष्ट्रीय ब्लू इकोनॉमी निवेश रणनीति।
    • अनुमोदनों को सुव्यवस्थित करने और शासन में सुधार के लिए ब्लू इकोनॉमी पर अंतर-मंत्रालयी समन्वय परिषद (Inter-Ministerial Coordination Council on Blue Economy- IMCCBE) की स्थापना।
  • क्षमता निर्माण और कौशल विकास: बंदरगाह रसद, अपतटीय पवन रखरखाव और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में 50,000 श्रमिकों को प्रशिक्षित करने के लिए वर्ष 2028 तक नेशनल ब्लू स्किल्स प्रोफ्रम।
  • अनुसंधान और नवाचार: समुद्री स्थानिक नियोजन, ब्लू कार्बन और महासागर अवलोकन में डेटा-संचालित समाधानों को आगे बढ़ाने के लिए एक ब्लू इकोनॉमी अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है।

भारत की ब्लू इकोनॉमी में चुनौतियाँ

  • खंडित शासन: 25 से अधिक मंत्रालय और विभाग अलग-अलग कार्य करते हैं, जिससे मंजूरियों में देरी होती है और नीतियाँ एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं।
  • पर्यावरणीय क्षरण: भारत के तटीय मत्स्य भंडार का 80% या तो पूरी तरह से दोहन हो चुका है अथवा फिर अत्यधिक दोहन हो चुका (Fully Exploited or Overexploited- FAO) है।
    • मन्नार की खाड़ी में प्रवाल विरंजन बढ़ रहा है।
    • समुद्री प्लास्टिक कचरा 0.6 मिलियन टन/वर्ष (केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय) से अधिक है।
  • तकनीकी कमियाँ: भारत में स्वदेशी गहरे समुद्र में संचालित पनडुब्बियों और समुद्र के नीचे खनन तकनीक का अभाव है।
    • कोल्ड चेन की कमियाँ समुद्री निर्यात को प्रभावित करती हैं।
  • कम निजी निवेश: ‘ब्लू सेक्टर’ सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 4% का योगदान करते हैं, लेकिन उन्हें बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण का 1% से भी कम प्राप्त होता है  (नीति आयोग, 2023)।
    • उच्च जोखिम समुद्री शैवाल की कृषि और इको-टूरिज्म में निवेशकों के विश्वास को सीमित करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: भारतीय तट के आस-पास समुद्र का स्तर 3.3 मिमी./वर्ष की दर से बढ़ रहा है (INCOIS)। इससे पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे निचले इलाकों वाले राज्यों को खतरा है।
    • महासागरीय अम्लीकरण प्रवाल स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: छोटे मछुआरों के पास औपचारिक ऋण तक पहुँच का अभाव है; मत्स्यपालन में महिलाओं को प्रायः भुगतान नहीं किया जाता है।
    • राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड के आँकड़ों के अनुसार, कृषि क्षेत्र में फसल कटाई के बाद के कार्यबल में 70% महिलाएँ संलग्न जिनका पारिश्रमिक अत्यंत कम है।
  • आँकड़े और मानचित्रण की कमी: उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले समुद्री आँकड़ों का अभाव समुद्री स्थानिक नियोजन (Marine Spatial Planning- MSP) को सीमित करता है।
    • भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र का केवल 20% ही संसाधनों के लिए पर्याप्त रूप से मानचित्रित किया गया है।

आगे की राह 

  • एकीकृत शासन तंत्र: नीतियों और अनुमोदनों को सुव्यवस्थित करने के लिए ब्लू इकोनॉमी पर एक अंतर-मंत्रालयी समन्वय परिषद (Inter-Ministerial Coordination Council on Blue Economy- IMCCBE) की स्थापना करना।
  • ब्लू फाइनेंसिंग’ को बढ़ावा देना: बंदरगाहों, अपतटीय पवन ऊर्जा और इको-टूरिज्म (जैसे- कोच्चि बंदरगाह मॉडल) में निवेश आकर्षित करने के लिए ब्लू बॉण्ड, व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का उपयोग करना।
  • कौशल विकास और समावेशन: तटीय क्षेत्रों में महिलाओं और युवाओं पर केंद्रित नेशनल ब्लू स्किल्स कार्यक्रम (लक्ष्य: वर्ष 2028 तक 50,000 श्रमिकों को प्रशिक्षित करना) शुरू करना।
  • समुद्री अनुसंधान एवं विकास और मानचित्रण को मजबूत करना: महासागर निगरानी, ब्लू कार्बन और समुद्री स्थानिक नियोजन (Marine Spatial Planning- MSP) उपकरणों में नवाचार को आगे बढ़ाने के लिए एक ब्लू इकोनॉमी अनुसंधान केंद्र की स्थापना करना।
  • सतत् आजीविका को बढ़ावा देना: जलवायु-रोधी आय के लिए समुदाय-आधारित शैवाल की खेती (जैसे, 10,000 से अधिक तटीय परिवारों वाला ओडिशा मॉडल) का विस्तार करना।
  • अपतटीय नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार: नेट जीरो उत्सर्जन को बढ़ावा देने और ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने के लिए भारत के वर्ष 2030 के 30 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करना।
  • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas- MPA) का विस्तार: जैव विविधता की रक्षा और सतत् पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए MPA (जैसे- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में) के प्रवर्तन को मजबूत करना।

निष्कर्ष

भारत की ब्लू इकोनॉमी में सतत् आर्थिक विकास को गति देने, लाखों रोजगारों सृजित करने तथा वर्ष 2035 तक भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने की अपार क्षमता है। एकीकृत नीतियों और नवाचार के माध्यम से शासन, पर्यावरण और तकनीकी चुनौतियों का समाधान करके, भारत सतत् महासागर विकास में एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर सकता है।

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