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भारत का जलवायु वित्त वर्गीकरण

Lokesh Pal July 28, 2025 03:21 16 0

संदर्भ

भारत का जलवायु वित्त वर्गीकरण प्रारूप देश की विशिष्ट जलवायु चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहा है।

जलवायु वित्त वर्गीकरण क्या है?

  • जलवायु वित्त वर्गीकरण एक ऐसी प्रणाली है, जो यह वर्गीकृत करती है कि अर्थव्यवस्था के किन हिस्सों को स्थायी निवेश के रूप में विपणन किया जा सकता है।
  • यह मानकीकृत नियमों और दिशा-निर्देशों के एक समूह को संदर्भित करता है, जो कंपनियों और निवेशकों को पर्यावरण संरक्षण तथा जलवायु संकट से निपटने के लिए प्रभावशाली निवेश के संबंध में सूचित करता है।
  • जिन देशों ने वर्गीकरण विकसित किया है, उनमें दक्षिण अफ्रीका, कोलंबिया, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, कनाडा, मैक्सिको और यूरोपीय संघ शामिल हैं।

भारत का जलवायु वित्त वर्गीकरण

  • जारीकर्ता: केंद्रीय आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय (भारत सरकार)
  • इसका लक्ष्य ‘हरित’ या जलवायु-संरेखित आर्थिक गतिविधियों की स्पष्ट परिभाषा और वर्गीकरण करना, जलवायु वित्त एकत्रित करना तथा ग्रीनवाशिंग जैसी भ्रामक प्रथाओं को रोकना है।
  • उद्देश्य: नीति निर्माताओं, निवेशकों और वित्तीय संस्थानों को जलवायु-संबंधित क्षेत्रों तथा प्रौद्योगिकियों की पहचान एवं वित्तपोषण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना।
  • लागू: यह उन प्रौद्योगिकियों, उपायों, परियोजनाओं और गतिविधियों पर लागू होता है, जो भारत के नेट जीरो तथा जलवायु लचीलापन लक्ष्यों के साथ संरेखित हैं।
  • एक “जीवंत दस्तावेज” के रूप में निर्मित, इसे समय-समय पर अद्यतन किया जाता है ताकि यह उभरती राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप बना रहे।

फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताएँ

क्षेत्रीय विस्तार और जलवायु कार्रवाई क्षेत्र

  • जलवायु कार्रवाई को तीन स्तंभों में विभाजित किया गया है:-
    • शमन
    • अनुकूलन
    • संक्रमण (सख्त से सरल कार्रवाई वाले क्षेत्रों पर केंद्रित)।
  • पहचाने गए क्षेत्र
    • बिजली, गतिशीलता, भवन
    • कृषि, खाद्य और जल सुरक्षा
    • भारी उद्योग (जैसे, सीमेंट, लोहा, इस्पात)

गतिविधियों का वर्गीकरण

  • जलवायु सहायक गतिविधियाँ
    • स्तर 1: ऐसी गतिविधियाँ, जो उत्सर्जन को पूरी तरह से रोकती हैं या एक सीमा से आगे उत्सर्जन को कम करती हैं।
    • स्तर 2: ऐसी गतिविधियाँ, जो उत्सर्जन की तीव्रता को कम करती हैं या उन मामलों में दक्षता को बढ़ावा देती हैं, जहाँ पूर्ण उत्सर्जन संभव नहीं है। इनमें अभी भी कुछ उत्सर्जन हो सकता है, लेकिन सुधार के स्पष्ट मार्ग दिखाई देते हैं।
  • संक्रमणकालीन सहायक गतिविधियाँ: उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जहाँ पूर्ण उत्सर्जन में कटौती फिलहाल व्यावहारिक नहीं है।

मसौदा ढाँचे से जुड़े प्रमुख मुद्दे

  • स्वदेशी दृष्टिकोण का अभाव: ऐसा प्रतीत होता है कि यह मसौदा यूरोपीय संघ के वर्गीकरण जैसे अंतरराष्ट्रीय मॉडलों से उधार लिया गया है और इसमें भारत के संदर्भ में पर्याप्त अनुकूलन नहीं किया गया है।
  • अनुचित क्षेत्रीय ध्यान
    • कम उत्सर्जन वाले क्षेत्रों को शामिल करना: कृषि, खाद्य और जल सुरक्षा जैसे क्षेत्रों को बिना किसी औचित्य के प्राथमिकता दी जाती है।
    • उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों की उपेक्षा: ऊर्जा उत्पादन, परिवहन, रसायन, सीमेंट, प्लास्टिक, विनिर्माण एवं रियल एस्टेट जैसे उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों को पर्याप्त प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
  • स्पष्ट मानदंड का अभाव: केंद्रीय क्षेत्रों को चुनने के लिए कोई वैज्ञानिक या डेटा-समर्थित तर्क नहीं।
  • अस्पष्ट अवधारणाएँ: “जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियाँ” और “सार्वजनिक परामर्श” जैसे अपरिभाषित शब्द।
  • कमजोर शासन और संस्थागत ढाँचा: भारत के संघीय ढाँचे के बावजूद, कोई शासन तंत्र परिभाषित नहीं है।
  • कोई अंतर-क्षेत्रीय एकीकरण नहीं: विभिन्न क्षेत्रों के बीच संबंधों और उपभोक्ता व्यवहार के प्रभाव को नजरअंदाज करता है।
  • अनुपयुक्त दृष्टिकोण: बिना मापदंड के गुणात्मक और मात्रात्मक विधियों का दुरुपयोग।
  • समता और न्याय के सिद्धांतों की उपेक्षा: श्रम अधिकारों, मानवाधिकारों या कमजोर समुदायों पर प्रभाव जैसे सामाजिक पहलुओं का एकीकरण नहीं।
  • मापनीय मापदंड का अभाव: प्रभाव आकलन या ‘थर्ड पार्टी’ सत्यापन के लिए कोई प्रणाली नहीं।
  • आधुनिकीकरण पर अत्यधिक जोर: उच्च-तकनीकी समाधानों का उपयोग करके कृषि में जलवायु लचीलेपन को बढ़ावा दिया जाता है, जबकि देशी ज्ञान, किस्मों और पारंपरिक प्रथाओं की अनदेखी की जाती है।

समग्र पुनरावलोकन के लिए सिफारिशें

  • जलवायु वित्त के लिए उच्च-उत्सर्जन क्षेत्रों पर पुनः ध्यान केंद्रित करना।
  • कृषि जैसे उत्सर्जन-संवेदनशील और उत्पादक क्षेत्रों को संक्रमणकालीन दबाव से मुक्त किया जाना चाहिए।
  • विज्ञान, स्वदेशी प्रणालियों और तृतीय-पक्ष सत्यापन पर आधारित मानकों तथा सिद्धांतों को परिभाषित करना।
  • एक ऐसी शासन संरचना स्थापित करना, जिसमें राज्य सरकारें और स्थानीय हितधारक शामिल हों।
  • संवेदनशील आबादी की सुरक्षा के लिए ESG और सामाजिक समानता के विचारों को शामिल करना।

यूरोपीय संघ का सतत् वित्त वर्गीकरण

  • एक वर्गीकरण प्रणाली, जो यह परिभाषित करती है कि किन आर्थिक गतिविधियों को पर्यावरणीय रूप से सतत् माना जा सकता है।
  • इसका उद्देश्य उन गतिविधियों की ओर निवेश का मार्गदर्शन करना है, जो यूरोपीय संघ के जलवायु लक्ष्यों, विशेष  रूप से वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन को प्राप्त करने में मदद करें।
  • “हरित” के रूप में किसकी गणना की जाती है, इसके लिए स्पष्ट मानक निर्धारित करके ‘ग्रीनवाशिंग’ से निपटने का प्रयास किया गया है।
  • यह वर्गीकरण तीन प्रकार के हरित निवेशों को परिभाषित करता है
    • महत्त्वपूर्ण योगदान: ऐसी गतिविधियाँ, जो जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में सीधे तौर पर मदद करती हैं (जैसे- पवन ऊर्जा फार्म)
    • सक्षमकारी गतिविधियाँ: अन्य हरित प्रयासों का समर्थन (जैसे- नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण)।
    • संक्रमणकालीन गतिविधियाँ: पूरी तरह से सतत् नहीं, लेकिन औद्योगिक औसत से अधिक स्वच्छ (जैसे- सख्त मानदंडों के तहत गैस और परमाणु ऊर्जा गतिविधियाँ)।

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