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“भारत का संविधान: हमारी सभ्यतागत लोकाचार का जीवंत प्रतिबिंब”

Lokesh Pal June 17, 2025 03:47 62 0

संदर्भ

इस बात से अवगत होने की आवश्यकता है, कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि गहन अखिल भारतीय विचार-विमर्श का परिणाम है। यह पूरे राष्ट्र की सामूहिक बुद्धिमता एवं विविध आकांक्षाओं को दर्शाता है।

संविधान सभा में प्रमुख नेता

  • राजेंद्र प्रसाद: संविधान सभा के अध्यक्ष।
  • एच. सी. मुखर्जी: उपाध्यक्ष।
  • डॉ. बी. आर. अंबेडकर: प्रारूप समिति के अध्यक्ष।
  • बी. एन. राव: संवैधानिक सलाहकार, जिन्होंने पहला मसौदा तैयार किया।

तीन वर्षों का गहन संवैधानिक विचार-विमर्श

  • संविधान वर्षों की बहस एवं दूरदर्शिता का परिणाम है। यह केवल एक नियम पुस्तिका नहीं है, बल्कि भारतीय सभ्यता का दर्पण है।
  • इतिहासकार ग्रैनविले ऑस्टिन ने भारतीय संविधान सभा को “सूक्ष्म जगत में भारत” कहा, जो विविध विचारधाराओं को दर्शाता है।
  • संविधान सभा ने अगस्त 1946 से 26 जनवरी 1950 तक कार्य किया। संविधान को 26 जनवरी को अपनाया गया एवं उस पर हस्ताक्षर किए गए, जिसे अब हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।

संविधान के लिए प्रारंभिक आह्वान

  • वर्ष  1933: V.K. कृष्ण मेनन द्वारा संविधान का विचार प्रस्तुत किया गया।
  • वर्ष 1936: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लखनऊ में औपचारिक रूप से इसकी माँग की।
  • वर्ष 1940: अगस्त 1940 में ब्रिटिश स्वीकृति मिली, जिसके परिणामस्वरूप कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा के चुनाव हुए।
  • वर्ष 1946: संविधान सभा के लिए चुनाव जुलाई 1946 में आयोजित हुए, जो सार्वभौमिक मताधिकार के माध्यम से नहीं बल्कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व का उपयोग करके प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा संपन्न कराए गए थे।
    • इसमें 93 देशी रियासतों एवं 4 ब्रिटिश मुख्य आयुक्तों (दिल्ली, अजमेर, कूर्ग, बलूचिस्तान) के नामांकित सदस्य भी शामिल थे।
  • संविधान सभा की अंतिम स्थिति: संविधान सभा में 299 सदस्य व्यापक विचारधारा वाले थे जिनमे रूढ़िवादी, प्रगतिवादी, मार्क्सवादी, हिंदू पुनरुत्थानवादी और इस्लामी विचारधारा वाले सदस्य शामिल थे।
    • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 208 सीटें (69%) एवं मुस्लिम लीग ने 73 सीटें प्राप्त की।
    • इस चुनाव के बाद, मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया एवं राजनीतिक स्थिति बिगड़ गई। 
    • अलग राष्ट्र की घोषणा पर, मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया, लेकिन इसके 73 सदस्यों में से 28 ने इससे दूरी बनाने का विकल्प चुना। 
    •  संविधान सभा के 114 सत्र 2 वर्ष, 11 महीने एवं 18 दिनों में आयोजित किए गए थे।

संविधान सभा में प्रमुख बहसें

  • सार्वभौमिक मताधिकार: कई सदस्यों का मानना ​​था कि भारतीय जनता मताधिकार के लिए तैयार नहीं थी।
    • नेहरू ने आलोचकों के सामने इसका बचाव करते हुए कहा, ‘किसान की आवाज एक प्रोफेसर की आवाज जितनी ही कीमती है।’
    • इसने सहभागी लोकतंत्र की नींव रखी एवं सभी नागरिकों को सशक्त बनाया।
  • रियासतों का एकीकरण: सरदार वल्लभभाई पटेल ने कूटनीति एवं दृढ़ता के साथ रियासतों के भारतीय संघ में एकीकरण का नेतृत्व किया। इसने विलय पत्र, जनमत संग्रह के माध्यम से 560 से अधिक विविध संस्थाओं का एक ही राष्ट्र में राजनीतिक एकीकरण सुनिश्चित किया।
    • हैदराबाद जैसी एकीकृत रियासतों ने ब्रिटिश प्रांतों के साथ मिलकर भारतीय संघ का गठन किया।
    • बाद में, इन राज्यों को वर्ष 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के साथ भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया, जो एक एकीकृत ढाँचे के भीतर सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान को दर्शाता है।
  • संघवाद एवं आपातकालीन शक्तियों का उपयोग: इस बात पर बहस हुई कि एक मजबूत केंद्र बनाया जाए या मजबूत राज्य परिणामस्वरुप एक संतुलित दृष्टिकोण को अपनाया गया।
    • आपातकालीन शक्तियाँ केंद्र को दी गईं एवं असाधारण स्थितियों में उनके  प्रयोग का  निर्देश दिया गया।
  • भाषाई राज्य: हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाया गया, न कि राष्ट्रीय भाषा।
    • संविधान सभा ने तुरंत भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन न करने का फैसला किया। इसके बजाय, इसने स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक एकीकरण एवं राष्ट्रीय स्थिरता को प्राथमिकता दी।
    • इस मुद्दे को स्थगित कर दिया गया एवं बाद में राज्य पुनर्गठन आयोग (वर्ष 1953) के माध्यम से संबोधित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष  1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम बना, जिसने राज्यों को मुख्य रूप से भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया।
  • अधिकार बनाम निदेशक सिद्धांत: संविधान सभा ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, जिससे मौलिक अधिकारों को न्यायोचित एवं कानूनी रूप से लागू किया जा सके, जबकि निदेशक सिद्धांतों को गैर-न्यायोचित रखा गया, लेकिन ये शासन के लिए आवश्यक तथा राज्यों के नैतिक कर्तव्य थे।
    • इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के साथ सामंजस्य स्थापित करने की दृष्टि परिलक्षित हुई।
  • आरक्षण एवं सामाजिक न्याय: संविधान सभा ने सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने एवं ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित समुदायों के उत्थान के साधन के रूप में विधायिकाओं, रोजगार तथा शिक्षा में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को अपनाया।
    • डॉ. भीमराव अंबेडकर ने SC/ST आरक्षण के लिए दृढ़ता से तर्क दिया, असमानता की उपेक्षा के परिणामों की चेतावनी दी।
    • अंबेडकर ने जोर देकर कहा कि “जो लोग असमानता से पीड़ित हैं, वे लोकतंत्र की संरचना को नष्ट कर देंगे”।
  • धर्मनिरपेक्षता: संविधान सभा में हिंदू सांस्कृतिक मान्यता की माँग की गई थी। लेकिन लंबी बहस के बाद, आम सहमति यह थी कि गणतंत्र सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करेगा।

संविधान को अपनाना

  • 26 नवंबर 1949 को, विश्व का सबसे लंबा संविधान पारित किया गया, जिसमें 395 अनुच्छेद, आठ अनुसूचियाँ एवं 22 धाराएँ थीं। 
  • यह इसके निर्माताओं की प्रतिबद्धता को दर्शाता है एवं 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हो गया। 

संविधान निर्माण में महिलाओं की भूमिका 

  • संविधान निर्माण में 17 महिलाओं ने भाग लिया, जिनमें शामिल हैं: दुर्गाबाई देशमुख, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित, कमला चौधरी। 
    • उनकी उपस्थिति ने लैंगिक-संवेदनशील एवं समावेशी प्रावधानों को आकार देने में मदद की। 

दक्षिण भारत से उल्लेखनीय योगदान 

  • प्रारूप तैयार करने में दक्षिण भारतीय बुद्धिजीवियों का प्रभुत्व
    • प्रारूप तैयार करने वाली समिति में अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, गोपाल स्वामी अयंगर, एन. माधव राव, टी. टी. कृष्णमाचारी शामिल थे। 
    • पट्टाभि सीतारमैया ने सदन समिति की अध्यक्षता की। 
    • वी. टी. कृष्णमाचारी बाद में संविधान सभा के दूसरे उपाध्यक्ष बने। 
    • संवैधानिक सलाहकार BN राव भी दक्षिण भारत से संबंधित थे।

निष्कर्ष 

संविधान राष्ट्र की सामूहिक सभ्यतागत बुद्धिमत्ता को दर्शाता है जैसे कि ‘एकम सत विप्रा बहुधा वदंति’, धार्मिक सहिष्णुता जैसा कि अशोक के शिलालेखों आदि में वर्णित है एवं प्रस्तावना गणतंत्र की आत्मा का प्रतीक है।

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