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भारत की अनुकूलित कूटनीति ( India’s customized diplomacy)

Samsul Ansari January 01, 2024 03:43 294 0

संदर्भ 

हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने वर्ष  2024 की गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के रूप में नहीं आने का फैसला किया।

संबंधित तथ्य

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति का निर्णय भारत-अमेरिका संबंधों में एक चुनौतीपूर्ण चरण को इंगित करता है।
    • ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत न आने के लिये कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया है। साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति का भारत न आने का निर्णय हाल में अमेरिका द्वारा भारत पर एक अमेरिका में रह रहे एक सिख अलगाववादी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाने के तुरंत बाद आया है।
  • इस बदलाव के कारण भारत को 27 जनवरी, 2024 के लिए निर्धारित क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन (Quad Leaders summit) को रद्द करना पड़ा, क्योंकि अमेरिका की अनुपस्थिति में अन्य सदस्यों, ऑस्ट्रेलिया और जापान की इस सम्मेलन में  भाग लेने की संभावना न  के बराबर थी।

भारत की कूटनीति का विकास

  • विदेश नीति का उद्देश्य:: एक सफल भारतीय विदेश नीति भारत के मूलभूत लक्ष्यों को साकार करने के लिए अनुकूल  बाहरी परिस्थितियों का निर्माण करती है, अर्थात्  अपनी भौतिक सुरक्षा और इसकी निर्णायक स्वायत्तता की रक्षा करना, अपनी आर्थिक समृद्धि और तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाना और वैश्विक मंच पर अपने प्रभुत्त्व को मज़बूत करने के लक्ष्य को साकार करना।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Alignment Movement-NAM): भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी यात्रा  की शुरुआत “गुटनिरपेक्ष आंदोलन” के तहत  रणनीतिक रूप से स्वायत्त रहकर की थी।
    • भारत, जो कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक सदस्य भी था, शीतयुद्ध के दौरान दो दशकों से अधिक समय तक अपने फैसले पर दृढ़ रहा और शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्त्व में दोनों प्रमुख सुरक्षा गठबंधनों में से किसी भी तरफ शामिल नहीं हुआ।
  • नए अवसर: 20वीं सदी में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनने से लेकर समय के साथ वैश्विक व्यवस्था में हो रहे परिवर्तनों के साथ भारतीय विदेश नीति में व्यापक बदलाव देखने को मिले।
  • नया दृष्टिकोण: भारतीय विदेश नीति के रणनीतिक यथार्थवाद और आर्थिक व्यावहारिकता की और बढ़ने के साथ ही  भारत ने धीरे -धीरे पश्चिमी देशों और उसके सहयोगियों तक पहुँच बनाना शुरू कर दिया।
  • भारत के पास अब सत्ता के कई ध्रुवों के साथ मजबूत संबंध है, साथ ही यह अभी भी किसी एक शक्ति गुट के अत्यधिक बाहरी प्रभाव के बिना अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए हुए है।
  • उद्देश्यों की प्राप्ति :  इसके लिए भारत को विदेश में तीन विभिन्न स्तरों पर संलग्न होने की आवश्यकता है:
    • उपमहाद्वीप और इसकी निकटतम परिधि के भीतर।
    • अंतरराष्ट्रीय प्रणाली का मध्यवर्ती स्तर, जिसमें विभिन्न मध्यवर्गीय शक्तियाँ हैं।
    • विश्व की  महाशक्तियों के साथ

भारत की कूटनीति का महत्त्व

  • राजनयिक संतुलन (Diplomatic Balancing): भारत सभी प्रमुख शक्तियों के साथ अच्छे संबंध सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है। 

भारत और मध्य शक्तियाँ (Middle Powers)

  • संबंध सुधार: अधिकांश प्रमुख मध्य शक्तियों के साथ भारत के संबंधों में प्रभावी सुधार देखा गया है।
  • भारत-जापान संबंध: जापान के साथ भारत की साझेदारी भारत में बढ़ते जापानी निवेशों, परिवहन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में तकनीक का प्रसार , संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के समर्थन में इसकी साझेदारी और चीन के साथ बदलता हुआ अंतर-एशियाई संतुलन बनाने में इसका सहयोग दर्शाता है कि मध्य शक्तियों के साथ भारत के संबंध अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • यूरोपीय देशों के साथ संबंध: फ्रांस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम के साथ भारत के संबंध अपने आर्थिक और तकनीकी विकास को बढ़ाने में भारत के उद्देश्यों का समर्थन करते हैं।
  • भारत और खाड़ी देश: संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब तक भारत की राजनयिक  पहुँच स्थिर ऊर्जा आपूर्ति और विदेशी निवेश के नए स्रोतों की खोज के साथ पाकिस्तान के लिए खाड़ी देशों के पारंपरिक समर्थन को सीमित करने जैसे उद्देश्यों से भी प्रेरित है।
  • हिंद-प्रशांत संबंध : हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भीतर सिंगापुर, इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों कारणों से महत्त्वपूर्ण साबित हुए हैं, चीन के बारे में साझा चिंताओं के कारण वियतनाम का महत्त्व भी बढ़ रहा है।

  • संयुक्त राज्य अमेरिका-रूस संतुलन: चीन की बढ़ती आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखता है। भारत CAATSA के माध्यम से अमेरिकी प्रतिबंधों की संभावना के बावजूद, S-400 रूसी मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद जैसे बड़े रक्षा सौदे में शामिल होकर रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित  करने में सफल रहा  है।
  • वर्ष 2017 में, अमेरिका ने रूस, उत्तर कोरिया और ईरान से गहरे संबंध रखने वाले देशों को आर्थिक प्रतिबंधों से दंडित करने के लिए CAATSA कानून को पारित किया था।
  • बदलती विदेश नीति: भारत विदेश नीति के मामलों में अपनी पिछली झिझक को दूर कर रहा है और नियम आधारित, लोकतांत्रिक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए साहसपूर्वक साझेदारी तैयार कर रहा है।
  • उदाहरण के लिए, वैश्विक परिणामों को आकार देना: स्वतंत्रता के बाद अपने 75वें वर्ष में, व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की केंद्रीयता आज अच्छी तरह से स्थापित है, और वह अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में अग्रणी भूमिका निभाना चाहता है ताकि वह वैश्विक परिणामों को आकार दे सके।
  • आर्थिक संतुलन: भारत सरकार कई गठबंधनों में अपनी भागीदारी बढ़ाई है, उदाहरण के लिए- भारत ने अमेरिकी नेतृत्व वाली हिंद-प्रशांत आर्थिक समृद्धि ढाँचे (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity-IPEF) और रूस के पूर्वी आर्थिक मंच में रुचि दिखाई है।
  • रूसी तेल खरीदना: पश्चिमी दबाव के बावजूद, भारत ने इस साल के पहले नौ महीनों में रियायती रूसी तेल का आयात करके लगभग $2.7 बिलियन की बचत की। 
  • राजनीतिक संतुलन: राजनीतिक स्तर पर, भारत हाल के वर्षों में क्वाड (QUAD) के साथ-साथ ब्रिक्स (BRICS), शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organization-SCO) और अन्य साझेदारियों के साथ काम करने की कोशिश कर रहा है।
  • भारत पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित G20 को चीन द्वारा स्थापित क्षेत्रीय देशों के SCO समूह के साथ संतुलित कर रहा है।
  • यूक्रेन और इजरायल, जिन पर अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर हमला किया गया है, के प्रति भारत के अलग-अलग व्यवहार को इस संतुलन की राजनीति से समझा  जा सकता है।
  • उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने हमास के आतंकवादी हमले के बाद इजरायल को अपने  पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया है, जबकि भारत ने यूक्रेन के आक्रमण के लिए रूस की निंदा करने से इनकार कर दिया था।
  • रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना: भारत अपने रणनीतिक हितों को संतुलित करने की कोशिश में संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस दोनों के साथ सैन्य अभ्यासों में शामिल होता  है।
  • ग्लोबल साउथ का समर्थन : भारत अपने G20 अध्यक्षता के दौरान पूरे विश्व में ग्लोबल साउथ (Global South) के हितों के एक मजबूत प्रवक्ता के रूप में उभरा है।
    • दिल्ली में आयोजित G-20 शिखर सम्मेलन से पहले और अपनी अध्यक्षता की शुरुआत में, भारत ने 125 देशों की भागीदारी के साथ पहली बार वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन  का आयोजन किया, भारत ने ग्लोबल साउथ से सबसे अधिक संख्या में अतिथि देशों को आमंत्रित करके दिल्ली शिखर सम्मेलन को सबसे समावेशी बना दिया।

भारत की कूटनीति के सामने चुनौतियाँ

  • चीन का बढ़ता प्रभुत्त्व: चीन, भारत के लिए सीधा सैन्य खतरा है, (विशेषकर लद्दाख में हाल के सीमा विवादों के आलोक में)। संयुक्त राष्ट्र जैसे स्थापित अंतरराष्ट्रीय संगठनों और एशिया अवसंरचना विकास बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank -AIIB) जैसे नए संस्थानों में चीन का प्रभाव उसे बहुपक्षीय मंचों पर भारतीय हितों और लक्ष्यों में बाधा डालने का अवसर देता है।
    • चीन का पाकिस्तान के साथ गठजोड़ और अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ गहरे होते रिश्ते तथा चीन की बढ़ती आर्थिक एवं सैन्य शक्ति एक जटिल चुनौती पेश करती है।
  • भारत और मध्य शक्तियाँ: प्रशांत एशिया तक भारत की पहुँच लड़खड़ा गई है, क्योंकि इसकी आर्थिक नीतियों ने इस क्षेत्र के साथ वाणिज्यिक एकीकरण को रोक दिया है।
    • उदाहरण के लिए, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी ( Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) से बाहर निकलने के कारण भारतीय आर्थिक चिंताओं ने भारत को पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन द्वारा उत्पन्न रणनीतिक खतरों को कम करने के लिए प्रासंगिक बनने से रोक दिया।
  • कूटनीतिक संतुलन की सीमाएँ: भारत प्रतिबंधों से बचने और अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अलग-अलग रास्ते खोजता है, लेकिन यह लंबे समय तक काम नहीं कर सकता है। एक समय के बाद भारत की यह कूटनीतिक बढ़त खत्म हो सकती हैं और आने वाले वर्षों में भारत को दोनों में से किसी का पक्ष लेना पड़ सकता है, चाहे वह रूस या पश्चिम के साथ हो।
  • विश्वसनीय भागीदारों की कमी: एक ऐसा राष्ट्र, जो सभी के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखता है, उसके लिये अनिश्चितता के समय में विश्वसनीय सहयोगियों की कमी हो सकती है।
    • QUAD,BRICS और SCO जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समूहों में भारत एक बाहरी व्यक्ति के रूप में खड़ा है, क्योंकि प्रमुख सदस्य देश भारत की तुलना में एक-दूसरे के साथ अधिक मजबूत संबंध प्रदर्शित करते हैं।
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता: क्षेत्र में स्थिर और सहयोगात्मक संबंध बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है, जैसा कि विभिन्न ऐतिहासिक और राजनीतिक कारकों के कारण नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश सहित पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों में देखा जाता है।

आगे की राह

  • वैश्विक राजनीति को आकार देना: भू-राजनीतिक दुनिया में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, जैसा कि इसकी SCO अध्यक्षता और वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी से प्रमाणित है। अपनी रणनीतिक स्थिति और बढ़ती आर्थिक शक्ति के साथ, भारत वैश्विक राजनीति के भविष्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • संवाद का मंच उपलब्ध कराना: रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद पहली बार, रूस, पश्चिमी राष्ट्र और अमेरिका रायसीना वार्ता (Raisina Dialogue) और G20 बैठक के दौरान बातचीत में शामिल हुए।
    • भारत ने राष्ट्रों के लिए एक विशेष मंच प्रदान किया, संवाद की सुविधा प्रदान की और इस क्षेत्र में और विश्व स्तर पर शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए देश की प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया।
  • वैश्विक शासन में सुधार: ताइवान पर चीन की आक्रामकता, अजरबैजान और आर्मेनिया के विवाद, यूक्रेन-रूस संघर्ष, इजरायल-हमास संघर्ष आदि जैसे संकटोंको सँभालने में UNSC की अक्षमता एक वैश्विक चिंता का विषय है। इसके आलोक में तत्काल UNSC सुधार की वकालत करने वाले कई समूहों के हिस्से के रूप में, अफ्रीका और भारत इस सुधार प्रयास का नेतृत्व कर सकते हैं।
  • चीन समस्या का सामना: संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ घनिष्ठ तालमेल के साथ चीन के प्रति भारत की नीति को आगे बढ़ाना चीन के उदय की चुनौती से निपटने का प्रभावी विकल्प हो सकता है।
    • चीन के साथ गुटनिरपेक्षता, तटस्थता या संरेखण (Alignment) रणनीति संभवतः भारत के हितों की पूर्ति नहीं करेगी क्योंकि चीन की शक्ति, भौगोलिक निकटता और नीतियाँ पहले से ही भारत की सुरक्षा और वैश्विक हितों के लिए एक स्पष्ट खतरा दर्शाती हैं।
  • इसके लिए, QUAD समूह चीन उभार को मैत्रीपूर्ण, सौम्य और गैर-शत्रुतापूर्ण तरीके से संतुलित करने के साधन के रूप में कार्य कर सकता है।

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