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भारत का डेयरी क्षेत्र

Lokesh Pal October 01, 2025 03:00 23 0

संदर्भ

पिछले दस वर्षों में देश में दुग्ध उत्पादन में 63% से अधिक की वृद्धि हुई है, जो 146 मिलियन टन से बढ़कर 239 मिलियन टन से अधिक हो गया है।

भारत के डेयरी क्षेत्र के बारे में

  • उत्पादन में वैश्विक नेतृत्व: भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है, जो वैश्विक आपूर्ति में लगभग 25% का योगदान देता है। दुग्ध उत्पादन वर्ष 2014-15 में 146.3 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 239.3 मीट्रिक टन हो गया।
    • यह देश के पशुधन संसाधनों और किसान-संचालित सहकारी समितियों के मजबूत आधार को दर्शाता है।

  • प्रति व्यक्ति उपलब्धता: पिछले एक दशक में भारत में प्रत्येक व्यक्ति के लिए दुग्ध की उपलब्धता में तेजी से वृद्धि हुई है।
    • प्रति व्यक्ति आपूर्ति में 48% की वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2023-24 में 471 ग्राम/व्यक्ति प्रतिदिन से अधिक हो गई। यह वैश्विक औसत से लगभग 322 ग्राम/व्यक्ति प्रतिदिन से कहीं अधिक है।
  • आर्थिक आधार: डेयरी क्षेत्र राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 5% का योगदान देता है, जिससे यह सबसे बड़ा कृषि उत्पाद बन जाता है।
    • यह 8 करोड़ से अधिक किसानों, जिनमें से कई लघु एवं सीमांत हैं, को आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है।
  • सहकारी डेयरी नेटवर्क की क्षमता: भारत में सहकारी डेयरी क्षेत्र व्यापक और सुव्यवस्थित है।
    • वर्ष 2025 तक, इसमें 22 दुग्ध संघ, 241 जिला सहकारी संघ, 28 विपणन डेयरियाँ और 25 दुग्ध उत्पादक संगठन (Milk Producer Organisations- MPO) शामिल हैं। कुल मिलाकर, ये लगभग 2.35 लाख गाँवों को शामिल करते हैं और 1.72 करोड़ डेयरी किसान इनके सदस्य हैं।

  • महिला-केंद्रित उद्यम: डेयरी कार्यबल का लगभग 70% हिस्सा महिलाएँ हैं और 48,000 से अधिक महिला-नेतृत्व आधारित सहकारी समितियाँ ग्राम स्तर पर संचालित होती हैं, जो डेयरी को समावेशी विकास और सशक्तीकरण के एक वाहक के रूप में स्थापित करती हैं।
    • महिलाओं द्वारा संचालित श्रीजा दुग्ध उत्पादक संगठन को महिलाओं को सशक्त बनाने में अपने अग्रणी कार्य के लिए शिकागो में विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय डेयरी महासंघ द्वारा प्रतिष्ठित डेयरी नवाचार पुरस्कार प्रदान किया गया।

गोजातीय आबादी में वृद्धि

  • भारत में 303.76 मिलियन (गाय, भैंस, मिथुन, याक) की विशाल गोजातीय आबादी है, जो डेयरी उत्पादन और कृषि में सूखे की रोकथाम दोनों का आधार है।

  • इसके अलावा, 74.26 मिलियन भेड़ और 148.88 मिलियन बकरियों का, विशेष रूप से शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में, महत्त्वपूर्ण योगदान हैं।
  • वर्ष 2014 और वर्ष 2022 के बीच, भारत में गोजातीय उत्पादकता (किग्रा./वर्ष) में 27.39% की वृद्धि की, जो विश्व में सर्वाधिक है। इस दौरान भारत ने चीन, जर्मनी और डेनमार्क जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए 13.97% की वैश्विक औसत वृद्धि से कहीं अधिक वृद्धि की है।
  • उत्पादकता वृद्धि में सरकारी योजनाओं की भूमिका: यह वृद्धि ‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ (Rashtriya Gokul Mission- RGM) जैसे कार्यक्रमों का परिणाम है, जो गोजातीय प्रजनन, आनुवंशिक उन्नयन और नस्ल उत्पादकता वृद्धि पर केंद्रित है।
    • ‘पशुधन स्वास्थ्य रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ (Livestock Health Disease Control Programme- LHDCP) ने मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयों (MVUs) के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा की पहुँच का विस्तार किया है, जो किसानों के घर पर ही रोग निदान, टीकाकरण, उपचार, छोटी-मोटी सर्जरी और विस्तार सेवाएँ प्रदान करती हैं।
  • पारंपरिक और आधुनिक प्रथाओं का एकीकरण: इसके अतिरिक्त, स्थायी पशुधन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए आयुर्वेद को आधुनिक पशु चिकित्सा पद्धतियों के साथ एकीकृत किया जा रहा है।
    • एथनो-वेटरिनरी मेडिसिन (Ethno-Veterinary Medicine- EVM) एंटीबायोटिक प्रतिरोध से निपटने के लिए एक लागत-प्रभावी, पर्यावरण-अनुकूल विकल्प के रूप में उभर रही है। ‘बोवाइन मैस्टाइटिस’ के उपचार में इसका सफल उपयोग सिंथेटिक दवाओं पर निर्भरता को कम करने और अधिक स्वस्थ तथा अनुकूलित डेयरी प्रणालियों के निर्माण क्षमता को दर्शाता है।

भारत में डेयरी क्रांति का क्रमिक विकास और प्रमुख पहलें

  • NDDB की स्थापना (वर्ष 1965): किसानों को उत्पादक संघों में संगठित करने के अमूल सहकारी मॉडल को दोहराने के लिए गुजरात के आनंद में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board-NDDB) की स्थापना की गई थी।
    • इसने भारत में किसान-केंद्रित, सहकारी-नेतृत्व वाले डेयरी पारिस्थितिकी तंत्र की नींव रखी।
  • ऑपरेशन फ्लड – डेयरी क्रांति (वर्ष 1970): वर्ष 1970 में वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में शुरू किए गए ‘ऑपरेशन फ्लड’ ने देश भर में आनंद-पैटर्न सहकारी समितियों का निर्माण किया, जिससे ग्रामीण उत्पादकों को शहरी उपभोक्ताओं के साथ जोड़ा गया।
    • इससे भारत दुग्ध की कमी वाले देश से विश्व में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बन गया और बाद में NDDB को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान (वर्ष 1987) घोषित किया गया।

  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन (Rashtriya Gokul Mission -RGM): इसे वर्ष 2014 में शुरू किया गया और ₹3,400 करोड़ के परिव्यय के साथ वर्ष 2025 में संशोधित किया गया, राष्ट्रीय गोकुल मिशन स्वदेशी नस्ल के संरक्षण, गोजातीय आनुवंशिक उन्नयन और उत्पादकता वृद्धि पर केंद्रित है।
    • यह कृत्रिम गर्भाधान (AI) नेटवर्क का विस्तार करता है, ‘सीमन सेंटर’ को सुदृढ़ करता है, और ‘सेक्स-सॉर्टेड सीमन’ (sex-sorted semen) और बुल प्रोडक्शन (Bull Production) को बढ़ावा देता है। इसके कार्यान्वयन से पिछले दशक में दुग्ध उत्पादन में 63.56% और प्रजनन में 26.34% की वृद्धि हुई है।

  • कृत्रिम गर्भाधान एवं राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम (NAIP): वर्तमान में, 33% प्रजनन योग्य गोजातीय पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से कवर किया जाता है, जबकि शेष गोवंशीय पशुओं पर निर्भर हैं।
    • NAIP के तहत, किसानों के घर जाकर निःशुल्क कृत्रिम गर्भाधान सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। अगस्त 2025 तक, NAIP ने 9.16 करोड़ पशुओं को कवर किया और 14.12 करोड़ गर्भाधान किए, जिससे 5.54 करोड़ किसानों को लाभ हुआ।
  • उन्नत प्रजनन प्रौद्योगिकियाँ: उत्पादकता को और बढ़ाने के लिए, 22 IVF प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं और 10.32 मिलियन से अधिक ‘सेक्स-सॉर्टेड सीमेन’ का उत्पादन किया गया है, जिनमें से 70 लाख खुराकों का उपयोग पहले ही किया जा चुका है।
    • ये उपाय अधिक बछियों (मादा) के जन्म और दुग्ध की आपूर्ति में दीर्घकालिक वृद्धि सुनिश्चित करते हैं।

  • मैत्री तकनीशियन: ग्रामीण भारत में बहुउद्देशीय कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (मैत्री) योजना ग्रामीण युवाओं को तीन महीने का प्रशिक्षण देती है और पशु चिकित्सा उपकरणों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • वर्तमान में 38,700 से अधिक मैत्री संस्थान घर के द्वार पर प्रजनन और पशु चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, जिससे वैज्ञानिक पशुधन प्रबंधन तक अंतिम लक्ष्य तक पहुँच सुनिश्चित होती है।
  • संतति परीक्षण और नस्ल गुणन: चूँकि दुग्ध एक लैंगिक रूप से सीमित गुण है, इसलिए संतति परीक्षण के माध्यम से मादा पशुओं के दुग्ध प्रदर्शन का मूल्यांकन करके उच्च गुणवत्ता वाले साँडों के चयन की प्रक्रिया सुनिश्चित की जाती है, जिससे नस्ल सुधार और दुग्ध उत्पादन में दीर्घकालिक वृद्धि संभव होती है।
    • वर्ष 2021-24 के बीच, 3,747 संतति-परीक्षणित साँडों का उत्पादन किया गया और 132 नस्ल गुणन फार्मों को मंजूरी दी गई, जिससे गुणवत्तापूर्ण पशुओं तक पहुँच में सुधार हुआ।
  • NDDB डेयरी सेवाएँ और MPO: MPO ने 23 दुग्ध उत्पादक संगठनों (MPO) को सहायता प्रदान की है, जिनमें 16 महिलाओं द्वारा संचालित MPO शामिल हैं, जो सामूहिक रूप से 35,000 गाँवों में 12 लाख उत्पादकों को सशक्त बनाते हैं।
    • ये MPOs भारत के डेयरी क्षेत्र के समावेशी विकास मॉडल को मजबूत करते हैं।
  • श्वेत क्रांति 2.0 (वर्ष 2024-29): सहकारी समितियों का विस्तार करने के लिए एक नई पंचवर्षीय योजना, जिसका लक्ष्य 75,000 नई डेयरी सहकारी समितियाँ बनाना और 46,422 मौजूदा सहकारी समितियों को सशक्त बनना है।
    • वर्ष 2028-29 तक, सहकारी समितियों द्वारा दुग्ध की खरीद 1007 लाख किलोग्राम/दिन तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • यह बायोगैस उत्पादन, जैविक खाद और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों में संलग्न सहकारी समितियों के माध्यम से स्थिरता और चक्रीयता को भी एकीकृत करता है, साथ ही मृत पशुओं की त्वचा, हड्डियों और सींगों का प्रबंधन करके अपशिष्ट-मूल्य का उपयोग भी करता है।

NDDB ने देश भर में प्रमुख सरकारी कार्यक्रमों को लागू करके इस मिशन को आगे बढ़ाया है। राष्ट्रीय डेयरी योजना चरण-I और राष्ट्रीय गोकुल मिशन जैसी पहलों ने किसानों को केंद्र में रखा है और सहयोग को मूल सिद्धांत बनाया है। राष्ट्रीय डेयरी योजना चरण-I को उल्लेखनीय सफलता मिली और इसे ‘अत्यधिक संतोषजनक’ रेटिंग मिली, जो विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं को दी जाने वाली सर्वोच्च रेटिंग है।

भारत में डेयरी क्षेत्र का महत्त्व

  • पोषण सुरक्षा: दुग्ध लगभग संपूर्ण आहार है, जो कुपोषण और प्रछन्न भूख को दूर करने के लिए अत्यंत आवश्यक है और मध्याह्न भोजन तथा एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) जैसी योजनाओं का समर्थन करता है।
    • इन पोषण कार्यक्रमों में डेयरी की आपूर्ति बच्चों और महिलाओं के लिए प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का सेवन सुनिश्चित करती है।
  • दैनिक ग्रामीण आय: मौसमी फसलों के विपरीत, डेयरी दैनिक आय का प्रवाह प्रदान करती है, जिससे किसानों को जलवायु और बाजार के तनावों से सुरक्षा मिलती है।
  • रोजगार सृजन: यह क्षेत्र उत्पादन, प्रसंस्करण, रसद और विपणन में व्यापक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित करता है।
    • यह गरीबी उन्मूलन के साधन के रूप में कार्य करता है, भूमिहीन और सीमांत किसानों को स्थिर नकदी प्रवाह प्रदान करता है और उन्हें मौसम आधारित फसल तनावों से बचाता है।
  • निर्यात क्षमता: मूल्य संवर्द्धन (पनीर, प्रोबायोटिक्स, शिशु फार्मूला) के साथ, डेयरी उद्योग विदेशी मुद्रा आय और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ा सकता है।
    • हालाँकि, भारत को विश्व व्यापार संगठन की व्यापार बाधाओं, SPS मानकों और ब्रांडिंग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिए वैश्विक बाजारों का प्रभावी ढंग से दोहन करने के लिए नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।

भारत के डेयरी क्षेत्र के लिए चुनौतियाँ

  • कम उत्पादकता: बड़ी गोजातीय आबादी के बावजूद, भारत का औसत दुग्ध उत्पादन इजरायल और न्यूजीलैंड जैसे वैश्विक नेतृत्वकर्ताओं की तुलना में बहुत कम है, जिससे दक्षता सीमित हो जाती है।
    • इसका कारण खंडित लघु-धारक मॉडल, देशी नस्लों की कम आनुवंशिक क्षमता और अपर्याप्त पोषण एवं स्वास्थ्य सेवा है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: शीतलन संयंत्रों, शीत शृंखलाओं और प्रसंस्करण इकाइयों की कमी के कारण दुग्ध खराब होता है तथा पोषण गुणवत्ता में कमी आती है, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • भारत का केवल 20-22% दुग्ध औपचारिक क्षेत्र में संसाधित होता है (जबकि यूरोपीय संघ/अमेरिका में यह 90% से अधिक है), जो एक कमजोर मूल्य शृंखला को दर्शाता है।
  • चारे की कमी: भारत में हरे चारे की 12-15% और सूखे चारे की 25% कमी है, जिससे उत्पादकता कम होती है और लागत बढ़ती है।
    • साइलेज निर्माण, हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन और दोहरे उद्देश्य वाली फसलें ऐसे अपर्याप्त रूप से उपयोग किए जाने वाले समाधान हैं, जो पशुपालन में चारे की उपलब्धता और पोषण सुरक्षा को सशक्त बना सकते हैं।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में मजबूत सहकारी समितियों के विपरीत पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में सहकारी ढाँचे कमजोर हैं, जिससे दुग्ध उत्पादन और ग्रामीण विकास में क्षेत्रीय असमानताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
  • रोग भार: खुरपका-मुँहपका रोग (FMD) और ‘लंपी स्किन डिजीज’ जैसे प्रकोप पशुधन उत्पादकता को अधिक कम कर देते हैं और किसानों का नुकसान बढ़ा देते हैं।
  • जलवायु संबंधी हानि: मवेशियों से होने वाले आँत्र किण्वन से भारत के कृषि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 55% हिस्सा होता है। बढ़ती गर्मी का दबाव, जल की कमी और चरम मौसम स्थिरता की चुनौतियों को और बदतर बना रहे हैं।
  • बाजार में अस्थिरता: बढ़ती इनपुट लागत (चारा, स्वास्थ्य सेवा) और वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव किसानों की आय और बाजार स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
  • शासन और संस्थागत मुद्दे: दुग्ध में मिलावट: मिलावट संबंधी घोटाले, विशेषकर असंगठित क्षेत्र में, केवल तकनीकी कमियों का परिणाम नहीं हैं, बल्कि नैतिक उल्लंघनों का प्रतीक हैं।
    • ये न केवल उपभोक्ता स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करते हैं, बल्कि डेयरी उद्योग के प्रति विश्वास को भी क्षति पहुँचाते हैं और इसे पोषण के प्रमुख स्रोत के रूप में अपनी मूल भूमिका निभाने में बाधित करते हैं।

सतत् एवं नवीन डेयरी विकास के लिए वैश्विक पहल एवं साझेदारियाँ

  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) और UNEP डेयरी कार्यक्रम: स्थायी पशुधन प्रथाओं, कम कार्बन युक्त डेयरी और पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देते हैं।
  • ग्लोबल डेयरी प्लेटफॉर्म (Global Dairy Platform- GDP): पोषण समर्थन, जलवायु-अनुकूल डेयरी और नवाचार साझेदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय डेयरी महासंघ (International Dairy Federation- IDF): वैश्विक डेयरी मानक निर्धारित करता है, अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देता है और भारत के श्रीजा MPO जैसे नवाचारों को मान्यता देता है।

सतत् और प्रौद्योगिकी-संचालित डेयरी प्रणालियों में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • यूरोपीय संघ – स्थिरता प्रोत्साहन: यूरोपीय संघ की सामान्य कृषि नीति (CAP) सब्सिडी को स्थायी डेयरी उत्पादन, उत्पादों की ट्रेसेबिलिटी और कम कार्बन तीव्रता के साथ जोड़ती है, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता तथा खाद्य सुरक्षा दोनों को बढ़ावा मिलता है।
  • न्यूज़ीलैंड – फोंटेरा मॉडल: किसान-स्वामित्व वाली फोंटेरा सहकारी संस्थाएँ जलवायु-अनुकूल चरागाह प्रबंधन पर जोर देते हुए उत्पादकों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करती हैं।
  • इजरायल: ICT-सक्षम निगरानी, ​​वैज्ञानिक आहार और चयनात्मक प्रजनन का उपयोग करके एक गाय द्वारा लगभग 12,000 लीटर दुग्ध प्रतिवर्ष का उत्पादन करता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका – प्रौद्योगिकी-संचालित डेयरी: स्वचालित दुग्ध प्रणाली, IoT-आधारित पशु स्वास्थ्य निगरानी और आनुवंशिक सुधार कार्यक्रमों को अपनाती है।
  • नीदरलैंड और डेनमार्क – कोल्ड चेन नेतृत्व: एकीकृत ‘फार्म टू कंज्यूमर’ कोल्ड चेन और डिजिटल लॉजिस्टिक्स प्रणाली उच्च गुणवत्ता और ट्रेसेबिलिटी सुनिश्चित करते हुए दुग्ध आपूर्ति शृंखला की दक्षता और विश्वसनीयता को सुदृढ़ बनाती हैं।
  • केन्या और पूर्वी अफ्रीका – सामुदायिक शीतलन केंद्र: सौर ऊर्जा चालित शीतलन केंद्र और सहकारी-आधारित मॉडल दुग्ध की बर्बादी को कम करते हैं और लघु किसानों को सशक्त बनाते हैं।
    • ग्रामीण दुग्ध की हानि को कम करने के लिए ऐसे सामुदायिक स्तर के शीतलन केंद्रों की स्थापना की जा सकती है।

डेयरी को पोषण, समानता और जलवायु से जोड़ने वाले संवैधानिक और सतत् विकास ढाँचे

  • अनुच्छेद-47 – पोषण कर्तव्य: राज्य को पोषण और जन स्वास्थ्य के स्तर को बढ़ाने का निर्देश देता है, जो सीधे दुग्ध की पोषण संबंधी भूमिका से संबंधित है।
  • अनुच्छेद-39(b) – न्यायसंगत वितरण: दुग्ध और पशुधन जैसे संसाधनों के सर्वजन हिताय वितरण का आह्वान करता है।
  • अनुच्छेद-51A(g) – मौलिक कर्तव्य: नागरिकों पर पर्यावरण संरक्षण का दायित्व थोपता है, जो सतत् डेयरी उद्योग के लिए प्रासंगिक है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 2 (भुखमरी उन्मूलन): डेयरी भूख और कुपोषण को समाप्त करने में योगदान देती है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता): महिलाओं के नेतृत्व वाली सहकारी समितियाँ लैंगिक समावेशिता और सशक्तीकरण को मजबूत बनाती हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्य 12 (जिम्मेदार उपभोग): कुशल दुग्ध प्रबंधन और इसकी कम बर्बादी सतत् खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देती है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई): जलवायु-अनुकूल डेयरी मेथेन उत्सर्जन को कम करती है और अनुकूलित प्रणालियों की स्थापना करती है।

आगे की राह

  • आनुवंशिक सुधार और उत्पादकता: कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination-AI) कवरेज को 33% से बढ़ाकर 70% करना, IVF प्रयोगशालाओं और ‘सेक्स-सॉर्टेड सीमेन’ का विस्तार करना, और गोजातीय उत्पादकता बढ़ाने के लिए देशी नस्लों को बढ़ावा देना।
  • बुनियादी ढाँचा विकास:पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि को कम करने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए PMKSY और कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के तहत शीतलन संयंत्रों, शीत शृंखलाओं, प्रसंस्करण केंद्रों और चारा प्रणालियों को मजबूत करना।
  • महिला-केंद्रित और समावेशी मॉडल: स्थिर आय और समावेशी ग्रामीण विकास के लिए स्वयं सहायता समूहों (SHG), दुग्ध उत्पादक संगठनों (MPO) और महिलाओं के नेतृत्व वाली सहकारी समितियों को सशक्त बनाना।
  • जलवायु अनूकुल और सतत् प्रथाएँ: पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए चारा विविधीकरण, जल-कुशल फसलों, बायोगैस संयंत्रों और चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल को बढ़ावा देना।
  • डिजिटल आधुनिकीकरण: दक्षता, पारदर्शिता और खेत-स्तरीय प्रबंधन में सुधार के लिए मवेशियों के स्वास्थ्य निगरानी हेतु IoT, दुग्ध की ट्रेसेबिलिटी के लिए ब्लॉकचेन और रोग पूर्वानुमान के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • क्षेत्रीय एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के लिए पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में डेयरी सहकारी समितियों को मजबूत बनाना और वैश्विक बाजार में अग्रणी बनने के लिए पनीर, प्रोबायोटिक्स, शिशु दुग्ध पाउडर और जैविक डेयरी निर्यात में विविधता लाना।
  • अनुसंधान, नवाचार और साझेदारी: ICRA-NDRI, NDDB और पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों के माध्यम से टीका अनुसंधान एवं विकास, आहार प्रौद्योगिकी, पशु आनुवंशिकी में निवेश करना तथा प्रौद्योगिकी, ब्रांडिंग एवं ‘दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और डेयरी कूटनीति का लाभ उठाना।
  • मिलावट पर अंकुश (पोषण संबंधी सुधार): FSSAI विनियमन, मोबाइल परीक्षण इकाइयों और ग्राम स्तर पर डिजिटल निगरानी को सशक्त करना। जन स्वास्थ्य, उपभोक्ता विश्वास और सुरक्षित भोजन के अधिकार की रक्षा के लिए मिलावट के प्रति शून्य सहिष्णुता लागू करना न केवल एक तकनीकी आवश्यकता है, बल्कि एक नैतिक कर्तव्य भी है।

निष्कर्ष

भारत का डेयरी क्षेत्र पोषण, आजीविका और सशक्तीकरण को दर्शाता है, जो अनुच्छेद-47 और 39(b) के अनुरूप है। ऑपरेशन फ्लड से लेकर श्वेत क्रांति 2.0 तक, किसान सहकारी समितियाँ, महिलाओं की भागीदारी और वैज्ञानिक नवाचार ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को एक स्थायी, समावेशी तथा विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी खाद्य प्रणाली में परिवर्तित कर सकते हैं।

  • ‘जैसा कि डॉ. वर्गीज कुरियन ने कहा, ‘डेयरी एक जीवनशैली है, न कि केवल एक व्यवसाय’, उन्होंने खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास और सामाजिक समानता में इसकी केंद्रीय भूमिका को रेखांकित किया।

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