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भारत की घटती प्रजनन दर

Lokesh Pal April 06, 2024 06:33 538 0

संदर्भ

लैंसेट (Lancet) रिपोर्ट ने बताया कि भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) वर्ष 2050 में गिरकर 1.29 हो जाएगी, जो 2.1 की प्रतिस्थापन सीमा से काफी नीचे है।

संबंधित तथ्य

  • लैंसेट का अनुमान एक जटिल जनसांख्यिकीय मॉडलिंग पर आधारित है, जो वैश्विक स्तर पर रोग अध्ययन के हिस्से के रूप में 204 देशों से एकत्र किए गए आँकड़ों पर आधारित है।

लैंसेट अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • वैश्विक रुझान
    • कुल प्रजनन दर (TFR) के विभिन्न चरण: वर्ष 1950 एवं 2021 के बीच, वैश्विक कुल प्रजनन दर (TFR) आधे से अधिक कम हो गई, जो वर्ष 1950 में प्रति महिला लगभग 5 बच्चों से घटकर वर्ष 2021 में 2.2 बच्चे हो गई।

    • भविष्य का अनुमान: इस रिपोट में अनुमान लगाया गया है कि निरंतर वैश्विक गिरावट जारी रहेगी और वर्ष 2050 (लगभग 76% देशों में TFR प्रतिस्थापन सीमा से नीचे होगा) तक अनुमानित वैश्विक कुल प्रजनन दर (TFR) 1.83 एवं वर्ष 2100 (लगभग 97% देशों में TFR प्रतिस्थापन सीमा से नीचे होगा) तक 1.59 हो जाएगी।
  • उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र के कुल प्रजनन दर (TFR) में क्षेत्रीय बदलाव
    • वर्ष 1950 में, वैश्विक स्तर पर शिशु जन्मों का एक-तिहाई दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया एवं ओशिनिया में था। वर्ष 2011 के बाद से, यह आँकड़ा  उप-सहारा अफ्रीका में स्थानांतरित हो गया है, जो वर्ष 1950 में 8% से बढ़कर वर्ष 2021 तक लगभग 30% हो गया है।
  • भारत में रुझान
    • कुल प्रजनन दर (TFR) के विभिन्न चरण: भारत में, कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 1950 में 6.18 थी, जो वर्ष 1980 में गिरकर 4.60 हो गई और बाद में वर्ष 2021 तक घटकर 1.91 हो गई है।
    • भविष्य के अनुमान
      • वर्ष 2050 तक, भारत में प्रत्येक पाँच में से एक व्यक्ति 60 वर्ष से अधिक उम्र का होगा, जो वर्तमान में चीन के सामने आने वाली जनसांख्यिकीय चुनौतियों के समान उम्र बढ़ने वाली आबादी की ओर संक्रमण का संकेत है।
      • इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UN Population Fund- UNPF) की ‘इंडिया एजिंग रिपोर्ट’ में भी अनुमान लगाया गया था कि भारत में बुजुर्गों की संख्या वर्ष 2022 में 149 मिलियन से दोगुनी से अधिक होकर सदी के मध्य तक 347 मिलियन हो जाएगी।
      • जनसांख्यिकीय बदलाव (Demographic Shift): भारत के दक्षिण एवं पश्चिमी राज्यों में अलग-अलग TFR दरें उत्तर भारतीय राज्य की तुलना में तेजी से कम हो रही हैं।

कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR)

  • अपना प्रजनन जीवन पूरा करने वाली प्रति महिला जीवित जन्मों की संख्या, यदि प्रत्येक उम्र में उसका बच्चा पैदा करना वर्तमान आयु-विशिष्ट प्रजनन दर (आमतौर पर 15-49 वर्ष) को दर्शाता है।

प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता (Replacement level fertility)

  • यह प्रजनन क्षमता का वह स्तर है, जिस पर एक जनसंख्या स्वयं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रतिस्थापित करती है। विकसित देशों में, प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता को प्रति महिला औसतन 2.1 बच्चों की आवश्यकता के रूप में लिया जा सकता है।

NFHS-5, 2019-21

  • कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 2015-16 में 2.2 से घटकर वर्ष 2019-21 में 2.0 हो गई है।
  • राज्यों के अनुसार अधिकतम TFR वाले राज्य: बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखंड (2.26) एवं मणिपुर (2.17)।

भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारक

  • आर्थिक विकास: आर्थिक विकास की तीव्र गति, विशेष रूप से वर्तमान सदी के शुरुआती वर्षों से, भारत में TFR में गिरावट का एक प्रमुख कारण है।
    • इसके अलावा, अंतर-पीढ़ीगत धन हस्तांतरण की गतिशीलता एवं रहने तथा बच्चे के पालन-पोषण से जुड़े बढ़ते खर्च, पति-पत्नी को बड़े परिवारों को चुनने से हतोत्साहित कर सकते हैं।
  • कम मृत्यु दर: शिशु और बाल मृत्यु दर कम होने से बुढ़ापे में सहायता के लिए बड़े परिवार की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पहल जैसे गर्भ निरोधकों की उपलब्धता एवं परिवार कल्याण कार्यक्रम तथा सफल टीकाकरण अभियानों के बारे में जागरूकता में वृद्धि ने बच्चों के अस्तित्व के आश्वासन एवं छोटे परिवार के आकार को बनाए रखने में योगदान दिया है।
  • महिला सशक्तीकरण: महिलाओं की शिक्षा और कार्य भागीदारी दर में वृद्धि का जनसांख्यिकीय परिवर्तन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
    • महिला साक्षरता दर में प्रगति एवं कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने महिलाओं को परिवार नियोजन के बारे में अधिक जानकारीपूर्ण निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाया है।
  • सामाजिक विकास: आवास स्थितियों में सुधार और वृद्धावस्था सुरक्षा प्रणाली घटती TFR में अन्य योगदान कारक के रूप में हैं।
    • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बदलते परिप्रेक्ष्य: शहरी क्षेत्रों में, महिलाओं में बच्चे के पालन-पोषण को अनिवार्य के बजाय वैकल्पिक के रूप में देखने की प्रवृत्ति है एवं कुछ महिलाएँ गोद लेने जैसे विकल्प तलाश रही हैं। इसी तरह की प्रवृत्ति भारत के ग्रामीण हिस्सों में भी उभर रही है, जो परिवार नियोजन के प्रति सामाजिक मानदंडों एवं दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देती है।
  • उच्च तनाव वाली जीवन शैली और आहार पैटर्न: उच्च तनाव वाली जीवन शैली और आहार पैटर्न वाले शहरी क्षेत्रों में बाँझपन के मामलों का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात देखा जा रहा है और आर्थिक सुरक्षा के तौर पर एक गतिहीन रोजगार का जोखिम बढ़ रहा है।
    • मोटापा, तनाव, धूम्रपान और पर्यावरण प्रदूषण सहित कारक भारत में प्रजनन दर में गिरावट में योगदान करते हैं।
      • शोध से पता चलता है कि पिछले दशक में सामान्य प्रजनन दर में 20% की गिरावट आई है, जिससे लगभग 30 मिलियन व्यक्ति प्रभावित हुए हैं।

भारत के लिए गिरती प्रजनन दर का महत्त्व

  • त्वरित आर्थिक विकास: TFR में तेजी से गिरावट, निर्भरता दर में गिरावट और आबादी में कामकाजी वयस्कों की एक बड़ी हिस्सेदारी है, जिससे समग्र अधिशेष आय होती है, जो आर्थिक विकास को गति दे सकती है और सकारात्मक अंतर-पीढ़ीगत हस्तांतरण को जन्म दे सकती है।
    • भारत के लिए निर्भरता अनुपात (कार्यशील आयु की आबादी के प्रतिशत के एक अंश के रूप में युवा एवं बूढ़े) के वर्ष 2011 में 13.8 से बढ़कर वर्ष 2036 में 23 हो जाने का अनुमान है।
  • श्रम उत्पादकता में वृद्धि: जनसांख्यिकीय परिवर्तन का आने वाले वर्षों में तीन चैनलों के माध्यम से और श्रम उत्पादकता में वृद्धि के माध्यम से कई राज्यों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • जनसंख्या वृद्धि में गिरावट से प्रति व्यक्ति के हिसाब से उपलब्ध पूँजी संसाधनों और बुनियादी ढाँचे की मात्रा में वृद्धि होगी।
    • प्रजनन दर में कमी से बच्चों की शिक्षा एवं कौशल विकास के लिए संसाधनों के स्थानांतरण की अनुमति मिलेगी, जिससे श्रम उत्पादकता में और वृद्धि होगी।
    • जनसंख्या वृद्धि में गिरावट से जनसंख्या का आयु वितरण बदल जाएगा और जनसंख्या में श्रम बल का अंश बढ़ जाएगा, हालाँकि सीमित अवधि के लिए, जिससे समग्र अर्थव्यवस्था के विकास में तेजी आएगी।
  • शिक्षा गुणवत्ता में सुधार: TFR में गिरावट से स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या में गिरावट आएगी, जैसा कि केरल जैसे राज्यों में पहले से ही हो रहा है। इससे राज्य द्वारा अतिरिक्त संसाधन खर्च किए बिना शैक्षिक परिणामों में सुधार हो सकता है।
  • महिलाओं की अधिक भागीदारी: प्रजनन दर में गिरावट के साथ, बच्चों की देखभाल के लिए कम समय की आवश्यकता होगी और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी।
    • कार्यबल में महिलाओं की कम भागीदारी के लिए जिम्मेदार एक प्रमुख कारक उस उम्र में बच्चों की देखभाल में उनकी व्यस्तता है, जब उन्हें श्रम बल में होना चाहिए। उदाहरण: दक्षिणी राज्यों में मनरेगा रोजगार में महिलाओं की बड़ी हिस्सेदारी
  • बेहतर कामकाजी स्थितियाँ: दक्षिणी राज्यों और गुजरात एवं महाराष्ट्र (जिनमें प्रजनन दर कम है) जैसे औद्योगिक रूप से विकसित राज्यों को उत्तरी राज्यों से सस्ता श्रम प्राप्त हुआ।
    • पिछले कुछ वर्षों में TFR में गिरावट के परिणामस्वरूप कामकाजी परिस्थितियों में सुधार, प्रवासी श्रमिकों के लिए वेतन भेदभाव का उन्मूलन और संस्थागत सुरक्षा उपायों के माध्यम से प्राप्त राज्यों में सुरक्षा प्रणाली में सुधार देखा जा रहा है।
  • क्षेत्रीय विकास और शहरीकरण: प्रजनन दर में गिरावट अक्सर शहरीकरण और क्षेत्रीय विकास के साथ होती है और वृद्धि एवं विकास को जन्म देती है।
    • इसके अलावा, शहरीकरण बुनियादी ढाँचे के विकास, कनेक्टिविटी और आवश्यक सेवाओं तक पहुँच को बढ़ावा देता है और समग्र उत्पादकता को बढ़ाता है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता: प्रजनन दर में गिरावट के साथ, देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिए अधिक संसाधन विकसित करने होंगे और इसके परिणामस्वरूप देश में आर्थिक स्थिरता और विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • पर्यावरण स्थिरता: प्रजनन दर में गिरावट के साथ, भूमि, जल और अन्य संसाधनों पर दबाव कम होगा और पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी योगदान मिलेगा।

भारत के लिए गिरती प्रजनन दर की चुनौतियाँ

  • कार्यशील आयु जनसंख्या की कमी: जनशक्ति की कमी देश के विकास एवं प्रगति में बाधा उत्पन्न करेगी।
    • उदाहरण: कामकाजी उम्र की कम आबादी श्रमिकों की कमी का कारण बन सकती है और आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकती है, जैसे चीन की कामकाजी उम्र की आबादी 40 मिलियन से अधिक हो गई है।
  • बुजुर्ग आबादी में वृद्धि: उन पर आर्थिक निर्भरता और स्वास्थ्य देखभाल सुविधा का बोझ बढ़ रहा है।
    • उदाहरण: वर्ष 2050 तक, भारत की 20% से अधिक आबादी वरिष्ठ नागरिक वाली होगी, इससे वृद्धावस्था देखभाल, सहायता और स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित चुनौतियाँ पैदा होंगी।
  • अपरिवर्तनीय प्रवृत्ति: विकसित देशों के ऐतिहासिक आँकड़ों से पता चलता है कि एक बार जब प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर जाती है, तो इस प्रवृत्ति को उलटना बेहद मुश्किल हो जाता है।
    • जापान प्रजनन दर में गिरावट के प्रभावों का अनुभव करने वाला पहला देश था। बढ़ते निर्भरता अनुपात के कारण 1990 के दशक के बाद से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि लगभग शून्य हो गई है और देश को बढ़ती सामाजिक सुरक्षा लागतों को पूरा करने के लिए वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • रचनात्मक क्षमता में कमी: गिरती प्रजनन क्षमता मानव जाति की रचनात्मक क्षमता को कम कर सकती है।
    • एक पेपर ‘आर्थिक वृद्धि का अंत? घटती जनसंख्या के अनपेक्षित परिणाम’, (The End of Economic Growth? Unintended Consequences of a Declining Population) में स्टैनफोर्ड के अर्थशास्त्री का तर्क है कि गिरती प्रजनन क्षमता मानव जाति की रचनात्मक क्षमता को कम कर सकती है।
    • मानव रचनात्मकता तकनीकी उन्नति और उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए नए विचार जन्म देती है, जो अभी तक कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी करने में सक्षम नहीं है।
  • विषम लिंग अनुपात और लैंगिक असंतुलन: निम्न प्रजनन स्तर लिंग अनुपात और लैंगिक समानता को प्रभावित कर सकता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव: जनसंख्या में गिरावट से सैन्य बलों में शामिल आबादी में भी कमी आएगी और सैन्य शक्ति प्रभावित होगी, जिसका असर राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी पड़ेगा।
  • पात्रता कार्यक्रमों के वित्तपोषण में कठिनाइयाँ: कम कामकाजी उम्र की आबादी के कारण सरकारों को कर संग्रह कम हो सकता है और बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर असर पड़ सकता है।
  • भावनात्मक संकट: बुजुर्गों के लिए जीवन के अंत में देखभाल का संकट उनके लिए अपर्याप्त देखभाल करने वालों के कारण के रूप में उभरेगा।

विश्व स्तर पर प्रजनन क्षमता में वृद्धि हेतु कुछ देशों द्वारा अपनाई जा रही नीतियाँ

  • जर्मनी अधिक पैतृक अवकाश और लाभों की अनुमति देता है।
  • डेनमार्क 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के लिए स्टेट-वित्तपोषित IVF  प्रदान करता है।
  • हाल ही में हंगरी ने IVF क्लीनिकों का राष्ट्रीयकरण किया है।
  • पोलैंड दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिता को मासिक नकद भुगतान देता है।
  • रूस माता-पिता को उनके दूसरे बच्चे के जन्म पर एकमुश्त भुगतान करता है।

आगे की राह

  • सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संबंधी प्रावधान सुनिश्चित करना: भारत में घटती TFR  के साथ, बढ़ती बुजुर्ग आबादी के लिए पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल लाभ सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
    • बढ़ती बुजुर्ग आबादी के साथ, एक किफायती सामाजिक सुरक्षा प्रणाली प्रदान करने की आवश्यकता है, जो बुजुर्गों को पेंशन प्रदान करे और उनकी दैनिक जरूरतों एवं चिकित्सा खर्चों का ध्यान रख सके।
    • जीवन प्रत्याशा में सुधार, वृद्धों की समस्याओं और बीमारी के बढ़ते बोझ से अंतर्संबंधित है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की माँग में वृद्धि होगी। अवसर का अधिकतम लाभ उठाने के लिए भारत को इन चुनौतियों को स्वीकार करना होगा।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश को अधिकतम करना: 1.9 पर, भारत का TFR वर्तमान में प्रतिस्थापन दर से नीचे है और UNPF गणना के अनुसार, देश की कामकाजी आयु की आबादी का हिस्सा 2030 के दशक के अंत में और 2040 के दशक की शुरुआत में चरम पर होगा।
    • नीति निर्माताओं को भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को अधिकतम करने के लिए इस विश्लेषण को ध्यान में रखना चाहिए, जैसा कि चीन ने 1980 के दशक के अंत से लेकर पिछले दशक के शुरुआती वर्षों तक किया था।
  • कौशल विकास: कौशल की कमी को दूर करने, ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और बढ़ती बुजुर्ग आबादी के कौशल का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के अवसर पैदा करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच कौशल विकास यह सुनिश्चित कर सकता है कि आधुनिक रूप से बढ़ते क्षेत्रों में श्रम की कोई कमी नहीं है। अधिकांश वृद्धिशील कार्यबल पारंपरिक गतिविधियों के खत्म होने की क्रमिक प्रक्रिया से अन्य तकनीकी क्षेत्रों की तरफ स्थानांतरित होगा।
  • रोजगार पैटर्न का विविधीकरण: अच्छे वेतन वाले औपचारिक क्षेत्र पर ध्यान देने के साथ कृषि क्षेत्र के बाहर नौकरियों के सृजन की आवश्यकता है।
    • कार्यबल को कृषि से उद्योगों और सेवाओं में स्थानांतरित करने से क्षेत्रीय वितरण में संतुलन स्थापित  होगा।
  • उच्च शिक्षा पर ध्यान: भारत को जनसांख्यिकीय लाभ उठाने हेतु तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित किए जाने चाहिए।
    • माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की तत्काल आवश्यकता है, जहाँ ड्रॉप-आउट दर बहुत अधिक है।
  • जनसांख्यिकीय बदलाव के आयाम को समझना: भारत के राज्यों में अलग-अलग TFR  दरें एक और चिंता का विषय है। पहले से ही संकेत मिल रहे हैं कि दक्षिण भारत और पश्चिम भारत के हिस्सों में उत्तर भारत की तुलना में आबादी तेजी से वृद्ध हो रहे हैं। नीति निर्माताओं को इसके सभी आयामों में जनसांख्यिकीय बदलाव को समझने और इन बदलाव के लिए तैयार रहने के लिए पर्याप्त नीतियाँ बनाई जानी चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार में निवेश: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के उपयोग में वृद्धि और TFR में गिरावट के साथ, ऑटोमेशन और AI चुनौती का मुकाबला करने और बढ़ती आबादी की उत्पादकता में सुधार करने की आवश्यकता है।
    • भारत में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) उपचार की माँग बढ़ रही है, IVF बाजार वर्ष 2030 तक 3.7 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • यह सहायक प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं और नीतियों की आवश्यकता को दर्शाता है।

निष्कर्ष

एशियाई विकास बैंक द्वारा तैयार ‘एशिया 2050 रिपोर्ट’ में भविष्यवाणी की गई है कि 21वीं सदी एशिया की है, जिसमें भारत वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। क्योंकि भारत कार्यबल के क्षेत्रीय और स्थानिक पुनर्वितरण, कौशल विकास और महिलाओं की कार्य भागीदारी दर में वृद्धि और आबादी में कामकाजी आयु समूह की घटती हिस्सेदारी की भरपाई पर जोर देता है।

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