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भारत का डीप टेक स्टार्टअप इकोसिस्टम

Lokesh Pal April 12, 2025 02:40 14 0

संदर्भ

हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने स्टार्टअप महाकुंभ के दूसरे संस्करण में भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र की अत्यधिक आलोचना की।

संबंधित तथ्य

  • उन्होंने स्टार्टअप्स से कम मूल्य वाले उपक्रमों (खाद्य वितरण, त्वरित वाणिज्य) से उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों (सेमीकंडक्टर, रोबोटिक्स, डीप-टेक) में स्थानांतरित होने का आग्रह किया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत का उपभोक्ता-केंद्रित स्टार्टअप परिदृश्य उन्नत विनिर्माण, एआई और ईवी में चीन के रणनीतिक निवेश के साथ है, जिसका अर्थ है कि भारत वैश्विक नवाचार दौड़ में पिछड़ रहा है।

डीप टेक क्या है?

  • डीप टेक या डीप टेक्नोलॉजी, प्रौद्योगिकी की एक श्रेणी को संदर्भित करता है, जो उन्नत वैज्ञानिक खोजों और जटिल इंजीनियरिंग नवाचारों पर आधारित है।
  • ये आसान समाधान नहीं हैं, इसके बजाय, यह दीर्घकालिक, शोध-संचालित नवाचार के माध्यम से समाज, उद्योग या प्रकृति में मूलभूत चुनौतियों का समाधान करता है।
  • ये मुख्य रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन, कंप्यूटर इमेजिंग और वीआर जैसी नई या मौजूदा उभरती हुई तकनीकों पर आधारित हैं।
    • उदाहरण: प्राकृतिक आपदाओं या आणविक इमेजिंग तकनीकों से संबंधित एआई, जो बीमारी या बीमारी की प्रवृत्ति की पहचान करती है।

डीप-टेक स्टार्टअप क्या है?

  • डीप-टेक स्टार्टअप एक ऐसी कंपनी है, जिसका उद्देश्य विज्ञान या उन्नत इंजीनियरिंग पर आधारित सफल नवाचारों का व्यावसायीकरण करना है।
  • यह सामान्य डिजिटल या उपभोक्ता-केंद्रित स्टार्टअप से इस अर्थ में अलग है कि यह केवल व्यावसायिक मॉडल नवाचार पर निर्भर नहीं करता है, बल्कि अत्याधुनिक, मूल तकनीकों का उपयोग करके वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने पर निर्भर करता है।
  • पारंपरिक स्टार्ट-अप के विपरीत, डीप-टेक उपक्रम व्यापक अनुसंधान और विकास की माँग करते हैं, लंबे विकास चक्रों की आवश्यकता होती है और विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के माध्यम से कार्य करते हैं।

स्टार्टअप महाकुंभ के बारे में

  • स्टार्टअप महाकुंभ एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसमें स्टार्ट-अप, यूनिकॉर्न, सूनिकॉर्न, निवेशक, औद्यौगिक नेतृत्त्वकर्त्ताओं और पारिस्थितिकी तंत्र के हितधारकों को एक साथ लाया जाता है।
  • पहला संस्करण (वर्ष 2019): 500 से अधिक स्टार्टअप, निवेशक और औद्यौगिक नेतृत्त्वकर्ताओं ने भाग लिया।
  • स्टार्टअप महाकुंभ का दूसरा संस्करण 3 से 5 अप्रैल, 2025 तक भारत मंडपम, नई दिल्ली में संपन्न हुआ।

भारत में डीप-टेक स्टार्ट-अप की स्थिति

  • डीप-टेक इकोसिस्टम: भारत अब 3,600 ऐसे स्टार्ट-अप के साथ वैश्विक स्तर पर शीर्ष 9 डीप-टेक इकोसिस्टम में 6वें स्थान पर है।
    • नैसकॉम के अनुसार, भारत के 4,000 डीप-टेक स्टार्ट-अप ने वर्ष 2024 में 1.6 बिलियन डॉलर आकर्षित किए, जो वर्ष-दर-वर्ष 78 प्रतिशत की वृद्धि है।
  • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT)-मान्यता प्राप्त डीप-टेक स्टार्ट-अप (2023): भारत में DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त 10,000 से अधिक डीप-टेक स्टार्ट-अप हैं, जो AI, रोबोटिक्स, सेमीकंडक्टर, बायोटेक और स्पेस टेक जैसे क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं।
  • भारतीय स्टार्ट-अप फंडिंग में डीप-टेक की हिस्सेदारी: डीप-टेक स्टार्ट-अप भारत के कुल स्टार्ट-अप फंडिंग का केवल ~5% हिस्सा हैं, जो चीन (~35%) जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।
  • वैश्विक डीप-टेक बाजार अनुमान: AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और सिंथेटिक बायोलॉजी में सफलताओं के कारण डीप-टेक क्षेत्र 2030 तक वैश्विक स्तर पर $3 ट्रिलियन से अधिक होने का अनुमान है।
  • क्वांटम कंप्यूटिंग बाजार का दृष्टिकोण: क्वांटम कंप्यूटिंग के वर्ष 2027 तक $7.6 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जो 48.1% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है।
  • ‘सिंथेटिक बायोलॉजी’ विकास आधारित पूर्वानुमान: ‘सिंथेटिक बायोलॉजी’ आधारित बाजार के 28.3% CAGR से बढ़ने की उम्मीद है, जो वर्ष 2032 तक $116 बिलियन तक पहुँच जाएगा।
  • वर्ष 2025 में स्टार्ट-अप IPO संबंधी गतिविधि: डीप-टेक उपक्रमों सहित 23 भारतीय स्टार्टअप वर्ष 2025 में IPO के लिए तैयारी कर रहे हैं, जो उभरते क्षेत्रों में निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।

भारत के लिए डीप-टेक का महत्त्व

  • रणनीतिक आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत): राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी संप्रभुता के लिए डीप टेक महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत की विदेशी निर्मित सेमीकंडक्टर (90% से अधिक आयात) पर भारी निर्भरता आपूर्ति संबंधी कमी पैदा करती है।
    • माइंडग्रोव (भारत की पहली RISC-V चिप) और गुजरात में टाटा-PSMC की $11B चिप फैब जैसे स्वदेशी उपक्रम इस निर्भरता को कम करने का लक्ष्य रखते हैं।
    • रक्षा क्षेत्र में, iDEX और प्रौद्योगिकी विकास निधि AI-आधारित निगरानी और स्मार्ट युद्ध सामग्री बनाने वाले स्टार्ट-अप का समर्थन करते हैं।
  • भारत की विकासात्मक चुनौतियों का समाधान: डीप-टेक स्टार्ट-अप जटिल, भारत-विशिष्ट चुनौतियों का समाधान कर रहे हैं।
    • स्वास्थ्य सेवा में AI: Qure.ai तथा निरमाई (Niramai) जैसे स्टार्ट-अप कम लागत वाली तपेदिक दवा और स्तन कैंसर की जाँच हेतु AI का उपयोग करते हैं।
    • स्पेसटेक: स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉसमॉस जैसे स्टार्ट-अप इसरो के सहयोग से स्वदेशी लॉन्च वाहन विकसित कर रहे हैं।
    • एग्रीटेक: फसल, जैसे स्टार्ट-अप जलवायु-अनुकूल खेती में छोटे किसानों की सहायता के लिए AI और IoT का उपयोग करते हैं।
  • आर्थिक विकास और वैश्विक निर्यात क्षमता: डीप-टेक उच्च-राजस्व, IP-आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
    • भारत के डीप-टेक स्टार्टअप ने पिछले पाँच वर्षो में 10 बिलियन डॉलर से अधिक की राशि जुटाई है, हालाँकि अभी भी यह कुल स्टार्ट-अप फंडिंग का <5% है।
    • वैश्विक डीप-टेक बाजार के वर्ष 2030 तक 3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • अगर सही नीतियों का समर्थन मिले तो भारत के पास बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने का अवसर है।
    • जनरल एआई जैसे डीप टेक इनोवेशन द्वारा वित्त वर्ष 2030 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 1 ट्रिलियन डॉलर जोड़ सकते हैं।
    • निर्यात के लिए तैयार क्षेत्रों में क्वांटम क्रिप्टोग्राफी (क्यूएनयू लैब्स), रोबोटिक्स (एडवर्ब) और मेडिकल डिवाइस (सिगटुपल) शामिल हैं।
  • वैज्ञानिक और अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र विकास: डीप-टेक दीर्घकालिक वैज्ञानिक उत्पादन और पेटेंटिंग को बढ़ावा देता है।
    • राष्ट्रीय डीप-टेक स्टार्ट-अप नीति (National Deep Tech Startup Policy- NDTSP 2023) का उद्देश्य संस्थागत संबंधों और CSR-संचालित अनुसंधान के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना है।
    • क्रिस्परबिट्स (जीन एडिटिंग) जैसे आईपी-समृद्ध स्टार्टअप भारत को जैव-नवाचार पाइपलाइन बनाने में सहायता कर रहे हैं।
  • वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा: डीप-टेक भारत को न केवल सेवा प्रदाता के रूप में, बल्कि प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी बनने में भी मदद कर सकता है।
    • इंडियाएआई, नेशनल क्वांटम मिशन और इंडो-US iCET जैसी पहलों के माध्यम से भारत वैश्विक स्तर पर नवाचार में सक्रिय रूप से निवेश कर रहा है।
    • डीप-टेक कूटनीति (जैसे- UAE, यू.एस. और जापान के साथ तकनीकी गलियारे) ज्ञान महाशक्ति बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा को दर्शाती है।
  • सामाजिक समानता और सार्वजनिक भलाई: गहन तकनीकी समाधान प्रायः मुख्य विकास लक्ष्यों को संबोधित करते हैं।
    • सार्वजनिक सेवा वितरण में AI: पीएम गति शक्ति, ई-कोर्ट और पीएम-किसान डेटाबेस में उपयोग किया जाता है।
    • सटीक कृषि, कम लागत वाली निदान और आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली (जैसे- भू-स्थानिक तकनीक का उपयोग) सीधे ग्रामीण और कमजोर आबादी को लाभ पहुँचाती है।
    • डिजिटल इंडिया जेनेसिस जैसी पहल का उद्देश्य टियर-2/3 शहरों और हाशिए के समुदायों से डीप-टेक स्टार्टअप का समर्थन करना है।
  • भविष्य के लिए तैयार कार्यबल विकास: डीप टेक STEM शिक्षा, कौशल और उन्नत अनुसंधान प्रशिक्षण की माँग को बढ़ाता है।
    • भारत में प्रति मिलियन केवल 255 शोधकर्ता हैं, जो चीन (1200+) या OECD देशों (4000+) से बहुत कम है।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 इस अंतर को भरने के लिए टिंकरिंग लैब, इनोवेशन हब और AI शिक्षा को बढ़ावा देती है।
    • सार्वजनिक-निजी शोध सहयोग (जैसे- ISRO-सोशल अल्फा स्पिन प्लेटफॉर्म) छात्रों और नवप्रवर्तकों को व्यावहारिक शोध अनुभव प्रदान करते हैं।

भारत के डीप-टेक इकोसिस्टम में चुनौतियाँ

  • अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार में कम निवेश: भारत अनुसंधान एवं विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% से भी कम खर्च करता है, जबकि चीन में यह 2.4% तथा अमेरिका जैसे देशों में 3.5% है।
    • निजी क्षेत्र की UAE भागीदारी सीमित है – भारत का 55% से अधिक अनुसंधान एवं विकास सार्वजनिक वित्त पोषित है, जबकि OECD देशों में यह ज्यादातर निजी क्षेत्र द्वारा संचालित है।
    • इससे गहन विज्ञान आधारित नवाचार की सीमित पाइपलाइन और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी पेटेंट कम होते हैं।
  • फंडिंग गैप: भारत के प्रयास, जैसे कि 10,000 करोड़ रुपये का इंडियाएआई मिशन और डीप-टेक के लिए फंड ऑफ फंड्स, तुलनात्मक रूप से बहुत कम हैं, वर्ष 2014-2024 तक कुल तकनीकी निवेश 160 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जबकि चीन का निवेश 845 बिलियन डॉलर है।
    • यह फंडिंग गैप जटिल समस्याओं से निपटने के लिए स्टार्टअप को रोकता है।
  • कम प्रारंभिक चरण और दीर्घकालिक पूँजी (Patient Capital): अधिकांश भारतीय डीप-टेक स्टार्ट-अप प्रारंभिक चरण, जोखिम-सहनशील फंडिंग तक पहुँचने के लिए संघर्ष करते हैं।
    • भारतीय इकोसिस्टम बड़े पैमाने पर उपभोक्ता तकनीक या त्वरित-रिटर्न मॉडल को प्राथमिकता देता है, जबकि डीप-टेक के लिए लंबी इन्क्यूबेशन अवधि (5-10 वर्ष) की आवश्यकता होती है।
    • लगभग 98% डीप-टेक स्टार्ट-अप फंडिंग विदेशी स्रोतों से आती है, जिससे ‘आईपी फ्लिपिंग’ और बाहरी नियंत्रण का जोखिम होता है।
  • कमजोर बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) ढाँचा: स्टार्ट-अप को पेटेंट अनुमोदन में देरी, एल्गोरिदम/सॉफ्टवेयर पेटेंटिंग पर स्पष्टता की कमी और आईपी अधिकारों के खराब प्रवर्तन का सामना करना पड़ता है।
    • डीप-टेक इनोवेटर्स के लिए कोई सिंगल-विंडो आईपी सपोर्ट नहीं है; कानूनी जटिलता पेटेंट फाइलिंग को हतोत्साहित करती है।
    • नतीजतन, भारत वैश्विक पेटेंट फाइलिंग में 7वें स्थान पर है, लेकिन पेटेंट-से-व्यावसायीकरण रूपांतरण में पिछड़ गया है।
    • भारत ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (Global Innovation Index- GII) 2023 में 40वें स्थान पर है।
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर और टेस्टबेड तक सीमित पहुँच: अधिकांश स्टार्ट-अप के पास विश्व स्तरीय प्रयोगशालाओं, प्रोटोटाइपिंग उपकरण, सिमुलेशन टूल और परीक्षण वातावरण तक पहुँच की कमी है।
    • वैज्ञानिक उपकरणों, सेंसर तथा माइक्रोकंट्रोलर पर उच्च आयात शुल्क भी हार्डवेयर-भारी डीप-टेक स्टार्टअप के लिए लागत बढ़ाते हैं।
    • सार्वजनिक संस्थान अक्सर अपने बुनियादी ढाँचे तक साझा पहुँच की अनुमति नहीं देते हैं।
  • प्रारंभिक चरण के नवाचार में ही “वैली ऑफ डेथ (Valley of Death)” चरण का सामना: दीर्घकालिक पूँजी की कमी के कारण डीप-टेक स्टार्ट-अप को प्रारंभिक प्रमाण-अवधारणा के बाद “वैली ऑफ डेथ (Valley of Death)” चरण का सामना करना पड़ता है।
    • भारत में अधिकांश फंडिंग ‘लेट-स्टेज कंज्यूमर’ टेक स्टार्टअप की ओर झुकी हुई है।
    • इस अंतर को पाटने में मदद के लिए दीर्घकालिक पूँजी (Patient Capital) के कुछ स्रोत (जैसे, टेक बॉण्ड, सीएसआर फंड, डीप-टेक विशिष्ट एफओएफ) उपलब्ध हैं।
  • फ्रंटियर टेक्नोलॉजीज में प्रतिभा और कौशल अंतर: भारत में प्रति मिलियन लोगों पर केवल 255 शोधकर्ता हैं, जबकि चीन में 1,200 और विकसित देशों में 4,000+ हैं।
    • अकादमिक-उद्योग सहयोग कमजोर है; PhD और पोस्टडॉक पारिस्थितिकी तंत्र वाणिज्यिक नवाचार से अलग हैं।
    • भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 24,000 PhD स्नातक तैयार होते हैं, जो विज्ञान और इंजीनियरिंग में प्रगति को बढ़ावा देते हैं।
    • हालाँकि, देश ने वर्ष 2024 में IPR रॉयल्टी में $14.3 बिलियन का भुगतान किया, जबकि केवल $1.5 बिलियन की कमाई हुई, जो एक महत्त्वपूर्ण अंतर को उजागर करता है।
  • नीति विखंडन और समन्वय की कमी: कई मंत्रालय (DST, MeitY, DRDO, MoE, MoHFW) ओवरलैपिंग उद्देश्यों और अलग-अलग पोर्टलों के साथ समानांतर योजनाएँ चलाते हैं।
    • निवेश, नीतिगत प्रोत्साहन या वैश्विक गठजोड़ के समन्वय के लिए कोई केंद्रीकृत डीप-टेक मिशन कार्यालय नहीं है।
  • विविधता और समावेशन का अभाव: भारतीय डीप-टेक स्टार्टअप्स में से 15% से भी कम का नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया जाता है, और टियर-2 और टियर-3 क्षेत्रों से प्रतिनिधित्व अभी भी नवजात है।
    • अधिकांश इनक्यूबेशन और फंडिंग बंगलूरू, हैदराबाद तथा NCR  जैसे शहरी टेक हब में केंद्रित है।

डीप-टेक स्टार्टअप्स को समर्थन देने वाली सरकारी पहल

  • प्रौद्योगिकी विकास निधि (Technology Development Fund – TDF)– वर्ष 2016 से परिचालन में
    • DRDO द्वारा संचालित यह फंड रक्षा संबंधी प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए स्टार्टअप्स और MSME को प्रति परियोजना 10 करोड़ रुपये तक प्रदान करता है।
  • रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (Innovations for Defence Excellence- iDEX) – वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया
    • रक्षा मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित, iDEX, डिजाइन चुनौतियों और स्टार्ट-अप अनुदानों के माध्यम से दोहरे उपयोग वाली रक्षा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए स्टार्ट-अप्स को वित्तपोषित करता है।
  • भारत सेमीकंडक्टर मिशन (India Semiconductor Mission- ISM) – वर्ष 2021 में लॉन्च किया जाएगा
    • 76,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ, ISM सेमीकंडक्टर फैब्स, डिस्प्ले फैब्स, कंपाउंड सेमीकंडक्टर इकाइयों और डिजाइन-लिंक्ड प्रोत्साहन (design-linked incentives- DLI Scheme) का समर्थन करता है।
  • ड्रोन के लिए PLI योजना – वर्ष 2021 में शुरू की गई
    • स्थानीय डीप-टेक हार्डवेयर स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने के लिए मूल्य संवर्द्धन पर 20% तक लाभ के साथ ड्रोन और ड्रोन घटक निर्माताओं को प्रोत्साहित करता है।
  • स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (Startup India Seed Fund Scheme- SISFS) – वर्ष 2021 में शुरू की गई
    • डीप-टेक डोमेन सहित शुरुआती चरण के स्टार्ट-अप को ₹20 लाख तक की सीड फंडिंग और ₹50 लाख तक की फॉलो-ऑन फंडिंग प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्टअप नीति (National Deep Tech Startup Policy- NDTSP) – मसौदा वर्ष 2023 में जारी किया जाएगा
    • भारत की पहली डीप-टेक-विशिष्ट नीति का उद्देश्य R&D समर्थन, IP सुधार, साझा बुनियादी ढाँचे और नियामक स्पष्टता के माध्यम से एक संप्रभु नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
    • अंतिम नीति अधिसूचना के लिए लंबित है।
  • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (National Quantum Mission- NQM) – वर्ष 2023 में लॉन्च किया जाएगा
    • ₹6,000 करोड़ आवंटित किए जाने के साथ, NQM क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम सेंसिंग, क्वांटम संचार और क्वांटम प्रौद्योगिकियों में राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्रों का समर्थन करता है।
  • राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (National Research Foundation- NRF) -वर्ष 2023 में स्वीकृत
    • NEP 2020 के तहत ₹50,000 करोड़ के निकाय के रूप में योजना बनाई गई है, जो पाँच वर्षों में शिक्षाविदों, स्टार्ट-अप और उद्योग के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान तथा विकास को उत्प्रेरित करेगा।
  • डिजिटल इंडिया जेनेसिस (इनोवेटिव स्टार्टअप के लिए जेन-नेक्स्ट सपोर्ट) – वर्ष 2023 में घोषित
    • इसका उद्देश्य टियर-2 और टियर-3 शहरों के 10,000 टेक स्टार्टअप को डीप-टेक और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए फंडिंग, कौशल और बुनियादी ढाँचे तक पहुँच प्रदान करना है।
  • इंडियाएआई मिशन – वर्ष 2024 में स्वीकृत
    • ₹10,371 करोड़ की सहायता से, यह मिशन एआई कंप्यूट इन्फ्रास्ट्रक्चर, ओपन-सोर्स फाउंडेशनल मॉडल, स्किलिंग, स्टार्टअप सपोर्ट और एआई आधारित पब्लिक प्लेटफॉर्म का समर्थन करता है।

वैश्विक सहयोग

  • भारत-UAE भागीदारी: भारत और UAE सक्रिय रूप से रणनीतिक डीप-टेक भागीदारी का निर्माण कर रहे हैं। AI, स्पेस टेक, बायोटेक और फिनटेक में सहयोग उभर रहा है।
    • व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) (वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित) IMEC कॉरिडोर के माध्यम से 5G परिनियोजन सहित व्यापार, निवेश और डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विकास की सुविधा प्रदान करता है।
  • अमेरिका के साथ iCET: iCET का लक्ष्य क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा, 5G/6G और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सरकारों, व्यवसायों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है।

भारत के डीप-टेक स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए आगे की राह

  • सार्वजनिक और निजी अनुसंधान एवं विकास निवेश को बढ़ावा देना: अनुसंधान एवं विकास (GERD) पर सकल व्यय को वर्तमान <0.7% से बढ़ाकर अगले 5 वर्षों में GDP का कम-से-कम 1.5% करना।
    • भारित कर कटौती, CSR अनुसंधान अधिदेश तथा R&D से जुड़े खरीद अनुबंधों के माध्यम से निजी क्षेत्र के UAE को प्रोत्साहित करना।
    • वैश्विक स्तर पर, चीन (2.4%) और दक्षिण कोरिया (4.8%) जैसे देशों ने दर्शाया है कि कैसे उच्च UAE तीव्रता तकनीकी सफलताओं को प्रेरित करती है।

दीर्घकालिक पूँजी (Patient Capital) से तात्पर्य ऐसे निवेश से है, जो त्वरित वित्तीय प्रतिफल की अपेक्षा दीर्घकालिक मूल्य सृजन और सतत विकास को प्राथमिकता देते हैं।

प्रारंभिक चरण और दीर्घकालिक पूँजी (Patient Capital) का प्रयोग करना: डीप-टेक फंड ऑफ फंड्स (Fund of Funds- FoF) का विस्तार करना तथा टेक्नोलॉजी इम्पैक्ट बॉण्ड और इनोवेशन क्रेडिट गारंटी जैसे विशेष वित्तपोषण उपकरण बनाना।

    • इजरायल के योजमा कार्यक्रम और यूरोपीय संघ के EIC एक्सेलेरेटर से प्राप्त सीख यह दर्शाते हैं कि किस प्रकार दीर्घकालिक पूँजी (Patient Capital) ‘वैली ऑफ डेथ’ (Valley of Death)’ चरण को समाप्त करती है।
  • आईपी ​​व्यवस्था और तकनीकी व्यावसायीकरण को मजबूत करना: तेजी से फाइलिंग, एल्गोरिदम पेटेंट स्पष्टता और अंतरराष्ट्रीय आईपी संरेखण के लिए एकीकृत डीप-टेक आईपी सहायता डेस्क की स्थापना करना।
    • शैक्षणिक संस्थानों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कार्यालयों (Technology Transfer Offices- TTO) के माध्यम से पेटेंट-से-व्यावसायीकरण ढाँचे को बढ़ावा देना।
  • बुनियादी ढाँचे तक पहुँच में सुधार: स्टार्ट-अप के लिए सब्सिडी युक्त पहुँच के साथ प्रोटोटाइपिंग, सिमुलेशन और पायलट परिनियोजन के लिए राष्ट्रीय साझा बुनियादी ढाँचा नेटवर्क का निर्माण करना।
    • हार्डवेयर इनोवेटर्स के लिए लागत बाधाओं को कम करने के लिए R&D-ग्रेड उपकरणों और AI/IoT घटकों के लिए आयात शुल्क राहत का विस्तार किया जाना चाहिए।
    • फ्राँस के ‘डीपटेक फाउंडर्स’ और जर्मनी के फ्राउनहोफर इंस्टिट्यूट जैसे मॉडल मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
  • टैलेंट पाइपलाइन और अकादमिक-स्टार्टअप लिंकेज विकसित करना: पीएचडी-इंडस्ट्री फेलोशिप, पोस्टडॉक उद्यमिता अनुदान को बढ़ाना तथा सुधारित मूल्यांकन मेट्रिक्स के माध्यम से फैकल्टी स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण के लिए, डीप टेक में इजरायल की सफलता आंशिक रूप से विश्वविद्यालयों और उद्योग के बीच निर्बाध प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से उत्पन्न हुई है।
    • भारत के पहले राष्ट्रीय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म AIRAWAT की हाल ही में स्थापना प्रगति दिखाती है, लेकिन भारत को ऐसी दर्जनों पहलों की आवश्यकता है।
  • एकीकृत डीप-टेक गवर्नेंस आर्किटेक्चर का निर्माण करना:  DST, MeitY, DRDO, MoE तथा MoHFW में योजनाओं के समन्वय के लिए एक राष्ट्रीय डीप-टेक मिशन कार्यालय स्थापित करना।
    • इस निकाय को फंडिंग प्रवाह की निगरानी करनी चाहिए, विनियामक अनुमोदन को सुव्यवस्थित करना चाहिए और एकल खिड़की के तहत वैश्विक भागीदारी का समन्वय करना चाहिए।
  • क्षेत्रीय समावेशन और विविधता को बढ़ावा देना: टियर-2/3 शहरों से महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों और स्टार्ट-अप के लिए विशिष्ट कोटा के साथ डिजिटल इंडिया जेनेसिस का विस्तार करना।
    • इनक्यूबेटरों को कम सेवा वाले भौगोलिक क्षेत्रों से भागीदारी बढ़ाने के लिए स्थानीय भाषा में सलाह, फील्ड लैब और क्षेत्रीय IP समर्थन प्रदान करना चाहिए।
  • वैज्ञानिक जोखिम उठाने की संस्कृति को बढ़ावा देना: भारत को एक सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता है, जो वैज्ञानिक जोखिम उठाने का जश्न मनाए।
    • एलन मस्क और जेन्सन हुआंग जैसे नाम पश्चिम में घर-घर में प्रसिद्ध हो गए हैं, जबकि भारत के उद्यमी मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर और सेवाओं से संबंधित हैं।

निष्कर्ष 

भारत एक सेवा-संचालित तकनीकी केंद्र से वैश्विक डीप-टेक लीडर बनने के लिए एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है। अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देकर, दीर्घकालिक पूँजी का प्रयोग करके और समावेशी नवाचार को बढ़ावा देकर, भारत न केवल आर्थिक विकास के लिए बल्कि रणनीतिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक प्रभाव के लिए भी डीप-टेक का उपयोग कर सकता है।

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