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भारत का रक्षा विनिर्माण क्षेत्र

Lokesh Pal May 16, 2025 03:19 13 0

संदर्भ

ऑपरेशन सिंदूर ने मुख्य रूप से स्वदेशी हथियार प्रणालियों का उपयोग करके सटीक तथा बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान संचालित करने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित किया।

ऑपरेशन सिंदूर

  • भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 25 भारतीय पर्यटक और एक नेपाली नागरिक मारे गए थे, जिसके प्रत्युत्तर में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया था।
  • भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में नौ आतंकी बुनियादी ढाँचे स्थलों पर सटीक हमले किए।
  • इन लक्ष्यों में बहावलपुर, मुरीदके (पाकिस्तान पंजाब), मुजफ्फराबाद और कोटली (PoK) में प्रमुख आतंकवादी केंद्र शामिल थे, जो जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ज्ञात ठिकाने हैं।
  • भारतीय रक्षा मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया कि ये हमले ‘केंद्रित, संयमित और अनाक्रामक’ थे और इनमें किसी भी पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना नहीं बनाया गया।
  • इस ऑपरेशन ने भारत के रणनीतिक संयम और सीमा पार आतंकवाद के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाया।

परिचालन सफलता स्वदेशीकरण का प्रमाण है

  • स्वदेशी वायु रक्षा वर्चस्व: भारत की आकाश मिसाइल प्रणाली और SAMAR शॉर्ट-रेंज इंटरसेप्टर ने अधिकांश पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइलों को सफलतापूर्वक अप्रभावी कर दिया, जिससे घरेलू प्रौद्योगिकियों की मजबूती सिद्ध हुई।
    • चीनी HQ-9 जैसी आयातित प्रणालियों पर पाकिस्तान की निर्भरता, भारत की बेहतर सामरिक प्रणालियों के सामने ध्वस्त हो गई, भारतीय रक्षा प्रणाली के अधिकांश उपकरण DRDO और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा विकसित की गए थे।
  • ड्रोन और गतिशील हथियारों की भूमिका: ऑपरेशन सिंदूर में स्वदेशी ड्रोन और गतिशील हथियारों का भी प्रयोग किया गया, जिन्होंने पाकिस्तान के अंदर सर्जिकल स्ट्राइक की।
    • ये मानवरहित प्रणालियाँ भारत की युद्ध रणनीति में बदलाव को दर्शाती हैं, जिसे स्थानीय अनुसंधान और विकास तथा उत्पादन क्षमताओं का समर्थन मिला।
  • सटीक हमले: दुश्मन के परिसरों में विशिष्ट संरचनाओं को नष्ट करने वाले हमलों की सटीकता भारत के स्वदेशी नाविक उपग्रह नेविगेशन सिस्टम और कार्टोसैट (Cartosat) एवं रीसैट (RISAT) जैसे हाई-रिजॉल्यूशन इमेजिंग सैटलाइट्स के समूह के कारण संभव हुई।
    • ये अंतरिक्ष-आधारित संपत्तियाँ अब आधुनिक भारतीय सैन्य अभियानों का आधार हैं।

स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली

समर (SAMAR) वायु रक्षा प्रणाली

  • भारतीय वायु सेना (IAF) ने वर्ष 2023 में ‘सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल’ (SAMAR) प्रणाली को शामिल किया था।
  • निर्माणकारी संस्था: भारतीय वायु सेना रखरखाव कमान ने निजी फर्म सिमरन फ्लोटेक इंडस्ट्रीज और यामाजुकी डेन्की के सहयोग से इसे निर्मित किया है।
  • स्वदेशीकरण स्तर: मध्यम स्वदेशीकरण स्तर, क्योंकि यह रूसी मूल की R-73 और R-27 हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलों के पुन: उपयोग द्वारा निर्मित है।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • कम दूरी (12 किमी. तक), भूमि संचालन योग्य, त्वरित प्रतिक्रिया वाली वायु रक्षा।
    • ‘ट्विन-बुर्ज लॉन्चर’ जो एकल या साल्वो फायर करने में सक्षम है।
    • मैक 2-2.5 की गति प्राप्त करता है।
    • विंटेज पिकोरा सिस्टम को बदलने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • मौजूदा मिसाइल भंडार का लागत प्रभावी पुन: उपयोग।

आकाश वायु रक्षा प्रणाली

  • आकाश वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली एक मध्यम दूरी की, सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है, जो विविध हवाई खतरों के विरुद्ध वायु रक्षा प्रदान करती है।
  • DRDO द्वारा विकसित: भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) और अन्य भारतीय रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा निर्मित किया गया।
  • स्वदेशीकरण स्तर: 96% ‘मेड इन इंडिया’ सामग्री।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • मध्यम दूरी (लगभग 25 किमी.), सभी मौसम में सक्षम, बहु-लक्ष्य संलग्नता क्षमता।
    • FLR, FCC, राजेंद्र रडार और C4I के साथ एकीकृत।
    • एक साथ 4 हवाई लक्ष्यों को सफलतापूर्वक संलग्न किया।
    • पहले से ही आर्मेनिया को निर्यात किया गया है; ओमान, ब्राजील, मिस्र, फिलीपींस द्वारा रुचि व्यक्त की गई है।
    • भारतीय वायुसेना और सेना के लिए स्थिर तैनाती सुनिश्चित करती है।

आकाशतीर वायु रक्षा प्रणाली

  • आकाशतीर भारतीय सेना के लिए अगली पीढ़ी की वायु रक्षा नियंत्रण और रिपोर्टिंग प्रणाली (ADCRS) है, जो वास्तविक समय में हवाई क्षेत्र की निगरानी एवं खतरे से निपटने में सक्षम है।
  • भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत विकसित की गई।
  • स्वदेशीकरण स्तर: बहुत उच्च; पूरी तरह से भारत द्वारा विकसित प्रणाली।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • हवाई खतरों का पता लगाना, उन पर नजर रखना और उन पर प्रतिक्रिया करना।
    • एकीकृत वायु रक्षा के लिए सेना और वायु सेना के रडार/सेंसर को एकीकृत करती है।
    • विकेंद्रीकृत नियंत्रण को सक्षम बनाती है, फील्ड कमांडरों को सशक्त बनाती है।
    • स्तरित रक्षा के लिए आकाश SAM और S-400 जैसी प्रणालियों का समर्थन करती है।
    • युद्ध क्षेत्रों में वायु रक्षा प्रभावशीलता को बढ़ाती है।

भार्गवस्त्र माइक्रो मिसाइल प्रणाली (Bhargavastra Micro-Missile System)

  • परिचय: भारत की पहली माइक्रो-मिसाइल-आधारित कम लागत वाली काउंटर-ड्रोन प्रणाली, जिसे ड्रोन खतरों को अप्रभावी करने के लिए तैयार किया गया है।
  • निर्माणकारी संस्था: सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड (SDAL); इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड द्वारा मोबाइल लॉन्चर प्लेटफॉर्म।
  • स्वदेशीकरण स्तर: उच्च, भारतीय फर्मों द्वारा पूरी तरह से विकसित किया गया।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • 6 किमी. से अधिक दूरी पर ड्रोन का पता लगाती है; 2.5 किमी. से अधिक दूरी पर लक्ष्य को निशाना बनाती है।
    • 64 से अधिक निर्देशित माइक्रो-मिसाइलों का एक साथ प्रक्षेपण करने की क्षमता।
    • फील्ड परीक्षणों में साल्वो और सिंगल-फायर क्षमताएँ।
    • उच्च क्षेत्रों सहित विभिन्न भू-भागों में संचालन योग्य।
    • आधुनिक हवाई खतरों के लिए किफायती, मापनीय समाधान प्रदान करती है।

रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण के बारे में

  • रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण का तात्पर्य आयात पर निर्भरता कम करने के लिए देश के भीतर रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकियों का विकास तथा उत्पादन करना है।
  • यह आत्मनिर्भरता को बढ़ाता है, राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करता है, घरेलू उद्योग को बढ़ावा देता है और भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ एवं रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP), 2020 जैसी पहलों के साथ संरेखित होता है।

भारत के रक्षा क्षेत्र की स्थिति

  • निर्मल बांग की रिपोर्ट के अनुसार, स्वदेशीकरण प्रयासों और ऑर्डर पाइपलाइन के कारण भारत का रक्षा क्षेत्र महत्त्वपूर्ण वृद्धि के लिए तैयार है। 
  • वित्त वर्ष 2025 तक रक्षा उत्पादन 1.75 ट्रिलियन रुपये तक पहुँचने का अनुमान है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2029 तक 3 ट्रिलियन रुपये है।

रक्षा विनिर्माण के स्वदेशीकरण में वृद्धि

  • घरेलू विनिर्माण पर ध्यान: भारत अब अपने रक्षा उपकरणों का 65% घरेलू स्तर पर ही निर्मित करता है, जो पहले 65-70% आयात निर्भरता से एक बड़ा बदलाव है, जो रक्षा उत्पादन में बढ़ती आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
  • औद्योगिक आधार का विस्तार: 16 DPSU, 430+ लाइसेंस प्राप्त निजी फर्मों और लगभग 16,000 MSME का एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र रक्षा प्लेटफॉर्मों में स्वदेशी डिजाइन, विकास और विनिर्माण को आगे बढ़ा रहा है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: निजी क्षेत्र कुल रक्षा उत्पादन में 21% का योगदान देता है, जो नवाचार, दक्षता और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2029 तक ₹3 लाख करोड़ का उत्पादन करना है।
  • आयात में कमी: SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015-19 और वर्ष 2020-24 के बीच, भारत के हथियारों के आयात में गिरावट आई, जबकि रक्षा निर्यात में वृद्धि हुई।
    • अब मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर विनिर्माण पर जोर दिया जा रहा है।
    • स्वीडिश थिंक टैंक, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) के अनुसार, वर्ष 2019-23 की अवधि के दौरान भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश था।
  • रक्षा निर्यात में वृद्धि: भारत का रक्षा निर्यात वर्ष 2013-14 में ₹686 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2024-25 में ₹23,622 करोड़ हो गया है, जो 34 गुना वृद्धि दर्शाता है। 
    • ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश SAM और ‘एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम’ (Advanced Towed Artillery Gun System- ATAGS) जैसे प्लेटफॉर्म की खरीद में दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और पश्चिम एशिया ने रूचि दिखाई है।

  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: 300 से अधिक निजी क्षेत्र की फर्म अब भारत के रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं। स्टार्ट-अप्स लोइटरिंग म्यूनिशन, AI-पावर्ड सर्विलांस और साइबर-डिफेंस जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं।
    • टाटा, लार्सन एंड टुब्रो, भारत फोर्ज और अडानी डिफेंस घरेलू बाजार और निर्यात दोनों के लिए प्लेटफॉर्म निर्मित कर रहे हैं।
  • जटिल प्लेटफॉर्म में आत्मनिर्भरता: भारत अब ऐसे प्लेटफॉर्म बना रहा है, जिन्हें पहले पहुँच से बाहर माना जाता था जैसे कि लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (तेजस), उन्नत रडार, मानवरहित लड़ाकू हवाई वाहन (Unmanned Combat Aerial Vehicles- UCAV) और एंटी-सैटेलाइट वेपन।
    • DRDO का डायरेक्टेड एनर्जी वेपन और डीप पेनेट्रेशन वॉरहेड्स पर कार्य करना अगली पीढ़ी के युद्ध के लिए तत्परता दिखाता है।

तुलना: लड़ाकू विमान बनाम ड्रोन (UAV/लोइटरिंग म्यूनिशन)

पहलू

लड़ाकू विमान (जैसे- राफेल)

ड्रोन/UAV (जैसे, स्काईस्ट्राइकर, हारोप, हेरॉन TP)

भार क्षमता राफेल जैसे लड़ाकू विमान 9,500 किलोग्राम तक के भारी बाह्य पेलोड ले जा सकते हैं, जिनमें अनेक बम और मिसाइलें शामिल हैं। अधिकांश UAV हल्के हथियार (जैसे, हारोप: 23 किग्रा.) ले जाते हैं, जो सटीक लेकिन सीमित प्रभाव वाले हमलों के लिए उपयुक्त होते हैं।
लागत और उत्तरदायित्व एक राफेल की कीमत लगभग 285 मिलियन डॉलर है, जिससे इसका कोई उपकरण खो जाने पर उसे बदलना महंगा हो जाता है। स्काईस्ट्राइकर जैसे ड्रोन की कीमत लगभग 1,05,000 डॉलर है, जिससे वे बड़ी संख्या में उपयोग योग्य और व्यवहार्य हो जाते हैं।
परिचालन जोखिम मानवयुक्त विमान पायलटों को जोखिम में डालते हैं, जिसके लिए उच्च प्रशिक्षण और बचाव रसद की आवश्यकता होती है। UAV पायलट के जोखिम को समाप्त कर देते हैं तथा मानव जीवन को जोखिम में डाले बिना खतरनाक मिशनों के लिए इन्हें प्राथमिकता दी जाती है।
मिशन संबंधी जटिलता लड़ाकू विमान जटिल, उच्च गति वाले लड़ाकू मिशनों को अंजाम दे सकते हैं तथा गतिशील वातावरण में भी परिचालन कर सकते हैं। ड्रोन पूर्व-मानचित्रित या कम जटिलता वाले मिशनों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, लेकिन उनमें गतिशील निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होता है।
सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता लड़ाकू विमान अधिक तेज होते हैं (मैक 1.8+), उन्हें रोकना कठिन होता है तथा वे प्रतिरोधक क्षमता से युक्त होते हैं। UAV धीमी गति से चलते हैं, उनकी ऊँचाई पर चलने की क्षमता कम होती है तथा वे जैमिंग और हवाई सुरक्षा के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: रक्षा उद्योग क्षेत्र को मई 2001 में निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए खोल दिया गया था।
    • रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा वर्ष 2020 में नए रक्षा औद्योगिक लाइसेंस की इच्छुक कंपनियों के लिए स्वचालित मार्ग के माध्यम से 74% तक बढ़ा दी गई थी और जहाँ भी आधुनिक तकनीक तक पहुँच की संभावना है, सरकारी मार्ग के माध्यम से 100% तक बढ़ा दी गई थी।
    • अब तक रक्षा क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों द्वारा 5,077 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश दर्ज किया गया है।
  • रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति (DPEPP) 2020: DPEPP का लक्ष्य वर्ष 2025 तक एयरोस्पेस, रक्षा वस्तुओं और सेवाओं में ₹1.75 लाख करोड़ का कारोबार हासिल करना है, जिसमें ₹35,000 करोड़ का निर्यात शामिल है। इसमें घरेलू स्रोतों से खरीद बढ़ाने और MSME पर ध्यान केंद्रित करने का प्रावधान है।
  • सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ: कुल 500 से अधिक वस्तुओं की चार सूचियाँ अधिसूचित की गई हैं, जो निर्दिष्ट हथियारों और प्रणालियों के आयात पर रोक लगाती हैं, इस प्रकार उनका घरेलू निर्माण अनिवार्य बनाती हैं।
    • इसमें आर्टिलरी गन, UAV, रडार, मिसाइल और संचार प्रणाली शामिल हैं।
  • रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (iDEX): वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया, iDEX दोहरे उपयोग और सीमांत प्रौद्योगिकियों पर कार्य करने वाले स्टार्ट-अप और MSME का समर्थन करता है।
    • अब तक, डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज (DISC) राउंड के माध्यम से 250 से अधिक अनुबंध दिए जा चुके हैं।
  • OFB का निगमीकरण: पूर्ववर्ती आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board- OFB) को प्रतिस्पर्द्धात्मकता, जवाबदेही और निर्यात क्षमता में सुधार के लिए वर्ष 2021 में सात कॉरपोरेट संस्थाओं में विभाजित किया गया था।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल: PPP के माध्यम से दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढाँचे पर अधिक जोर दिया जा रहा है, विशेष रूप से रक्षा औद्योगिक गलियारों (उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु) में, जिससे साझा परीक्षण, विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की अनुमति मिलती है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ चुनिंदा उच्च तकनीक आयात: भारत उच्च-स्तरीय प्लेटफॉर्म का आयात जारी रखता है, जैसे:-
    • रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणाली
    • फ्राँस से राफेल लड़ाकू विमान
    • अमेरिका से MQ-9B ड्रोन
    • ये प्रायः ऑफसेट या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सौदों का हिस्सा होते हैं।

रक्षा स्वदेशीकरण का महत्त्व

  • रणनीतिक लाभ: स्वदेशीकरण विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता को कम करता है, संघर्षों और भू-राजनीतिक तनावों के दौरान महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता बढ़ती है।
  • बेहतर एकीकरण और अनुकूलन: स्वदेशी प्रणालियाँ स्थानीय भू-भाग, परिचालन सिद्धांतों और सेवा-विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ बेहतर एकीकरण की अनुमति देती हैं, जिससे युद्ध के मैदान में बेहतर प्रदर्शन और तीव्र उन्नयन होता है।
  • आर्थिक लाभ: रक्षा स्वदेशीकरण घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देता है, रोजगार पैदा करता है, MSME को मजबूत करता है और निवेश को आकर्षित करता है, जो वर्ष 2029 तक ₹3 लाख करोड़ की रक्षा उत्पादन अर्थव्यवस्था प्राप्त करने के लक्ष्य में योगदान देता है।
  • तकनीकी उन्नति: यह ड्रोन, AI-आधारित प्रणालियों और मिसाइल प्रौद्योगिकी जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहित करता है, दीर्घकालिक अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देता है एवं वैश्विक रक्षा शक्तियों के साथ प्रौद्योगिकी अंतराल को कम करता है।
  • निर्यात और सॉफ्ट पॉवर: एक मजबूत स्वदेशी आधार रक्षा निर्यात को बढ़ावा देता है, भारत के कूटनीतिक लाभ और वैश्विक कद को बढ़ाता है, जिससे वर्ष 2024-25 में 100 से अधिक देशों में निर्यात बढ़कर 23,622 करोड़ रुपये हो जाएगा।

पूर्ण स्वदेशीकरण की चुनौतियाँ

  • असेंबलिंग बनाम वास्तविक प्रौद्योगिकी स्वामित्व: भारत के तथाकथित ‘स्वदेशी’ उत्पादन में अभी भी विदेश में डिजाइन किए गए सिस्टम की लाइसेंस प्राप्त असेंबलिंग शामिल है।
    • वास्तविक स्वदेशीकरण के लिए मुख्य प्रौद्योगिकी डिजाइन, सामग्री, सॉफ्टवेयर और आईपीआर के स्वामित्व की आवश्यकता होती है, जिसकी अभी भी कई उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में कमी है।
  • कमजोर सैन्य-औद्योगिक-शैक्षणिक संबंध: भारत में सशस्त्र बलों, शिक्षाविदों और उद्योग के बीच सहज सहयोग का अभाव है।
    • इजरायल या अमेरिका के मॉडल के विपरीत, सैन्य अनुसंधान और विकास अभी भी DRDO में बहुत अधिक केंद्रीकृत है, जिसमें निजी क्षेत्र का अपर्याप्त एकीकरण है।
  • नौकरशाही की बाधाएँ और खरीद प्रक्रिया: परीक्षण और प्रमाणन के लिए वर्तमान ‘वन साइज-फिट्स आल’ दृष्टिकोण स्वदेशी प्रणालियों की तैनाती में देरी करता है।
    • प्रमाणन के लिए यथार्थवादी आवश्यकताओं की कमी और नौकरशाही संबंधी बाधाएँ प्रायः निजी अभिकर्ताओं को हतोत्साहित करती हैं।
    • लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस, एक प्रमुख कार्यक्रम, जिसने रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता को प्रदर्शित किया, को दो दशकों से अधिक समय के बाद भी इसके विकास की सुस्त गति, उत्पादन में देरी और भारतीय वायु सेना (IAF) में सीमित समावेशन के लिए महत्त्वपूर्ण आलोचना का सामना करना पड़ा है।
  • इनपुट के लिए आयात पर निर्भरता: प्रगति के बावजूद, भारत एयरो इंजन, इलेक्ट्रॉनिक्स, रडार और विशेष मिश्रधातुओं के लिए आयात पर अधिक निर्भर है। उदाहरण के लिए, तेजस जेट के लिए कावेरी इंजन परियोजना तकनीकी खामियों के कारण दशकों से रुकी हुई है।
  • रक्षा स्टार्ट-अप के विस्तार में कमी: जबकि iDEX ने कई अभिनव स्टार्ट-अप की पहचान की है, विस्तार के लिए फंडिंग और खरीद प्रतिबद्धताएँ कमजोर बनी हुई हैं। कई स्टार्ट-अप राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म में एकीकरण के बिना प्रोटोटाइप चरण में ही बने हुए हैं।

आगे की राह

  • फास्ट-ट्रैक प्रमाणन और परीक्षण: प्रमाणन यथार्थवादी, प्रदर्शन-आधारित और मॉड्यूलर होना चाहिए। मिशन आवश्यकताओं के आधार पर उत्पादों को फास्ट-ट्रैक करने के लिए टियर ट्रायल का उपयोग किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, UAV को पूर्ण पैमाने के लड़ाकू विमानों की तुलना में सरल प्रोटोकॉल की आवश्यकता होती है।
  • वास्तविक समय की निगरानी: स्थानीयकरण लक्ष्यों, परियोजना में देरी और बाधाओं को वास्तविक समय में ट्रैक करने के लिए रक्षा स्वदेशीकरण डैशबोर्ड बनाया जाना चाहिए।
    • मंत्रालयों को तिमाही प्रदर्शन समीक्षा और अंतर-मंत्रालयी समन्वय के माध्यम से जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
  • सह-प्रौद्योगिकी विकास: भारत को अमेरिका के साथ iCET और Quad/I2U2 तकनीकी साझेदारी जैसे ढाँचे के तहत OEM के साथ दीर्घकालिक संयुक्त विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • अतीत में मात्र ToT (प्रौद्योगिकी हस्तांतरण-Transfer of Technology) अपर्याप्त सिद्ध हुआ है, लेकिन सह-विकास ने ब्रह्मोस के मामले में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।
    • सह-प्रौद्योगिकी विकास मौजूदा रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के साथ बेहतर एकीकरण भी प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका के साथ MQ-9B ड्रोन सौदे को भारत में पेलोड अनुकूलन और सेंसर एकीकरण के साथ सह-विकास परियोजना में बदला जा सकता है।
  • कूटनीति में बाजार का लाभ: भारत के बड़े रक्षा बाजार (अगले दशक में ~80 बिलियन डॉलर) का उपयोग IPR साझाकरण, संयुक्त विकास और निर्यात पहुँच के लिए वार्ता में सौदेबाजी के तौर पर किया जा सकता है।
    • रक्षा कूटनीति को केवल रणनीतिक संकेत देने के बजाय प्रौद्योगिकी अधिग्रहण से जोड़ा जाना चाहिए।
  • स्वदेशीकरण का मापन: एक स्वदेशीकरण प्रदर्शन सूचकांक (Indigenisation Performance Index- IPI) प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जो प्रत्येक खरीद में स्वदेशी मूल्य के प्रतिशत को मापता हो।
    • IPI  के आधार पर कंपनियों, सेवाओं और विभागों की रैंकिंग से स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हो सकती है।
  • कार्यबल को कौशल प्रदान करना: AI, रोबोटिक्स, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग और उन्नत सामग्रियों में समर्पित कौशल कार्यक्रमों को बढ़ाया जाना चाहिए।
    • DRDO प्रयोगशालाएँ, IITs और IISc द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रीय रक्षा तकनीक फेलोशिप कार्यक्रम निर्मित किए जा सकते हैं।
  • निवेश में विविधता लाना: भविष्य के युद्ध हाइब्रिड होंगे, जिसमें मानव रहित टीमिंग शामिल होगी।
    • स्वदेशी UCAV, स्वायत्त अंडरसी वाहन और रोबोटिक लड़ाकू प्लेटफॉर्म को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
    • AI-संचालित ISR (खुफिया, निगरानी, ​​टोही) उपकरणों को सभी बलों में एकीकृत किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत द्वारा रक्षा क्षेत्र में परिवर्तन लाइसेंस प्राप्त उत्पादन से वास्तविक नवाचार की ओर बढ़ने पर आधारित है। ऑपरेशन सिंदूर स्वदेशी प्रणालियों की शक्तियों की पुष्टि करता है, लेकिन रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने और भारत को वैश्विक रक्षा विनिर्माण नेतृत्त्वकर्ता के रूप में स्थापित करने के लिए प्रणालीगत सुधार, तीव्र प्रमाणीकरण और गहन सार्वजनिक-निजी सामंजस्य आवश्यक है।

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