100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारत का आपदा-प्रतिक्रिया वित्तपोषण ढाँचा

Lokesh Pal December 01, 2025 01:52 7 0

संदर्भ

राज्यों की आपदा आवश्यकताओं और केंद्र द्वारा किए जाने वाले व्यय के बीच बढ़ता असंतुलन, जैसा कि हाल ही में केरल के वायनाड मामले में स्पष्ट हुआ है, यह दर्शाता है कि भारत का आपदा-जोखिम वित्त, सहकारी संघवाद से हटकर, अधिक केंद्रीकृत, सशर्त मॉडल की ओर बढ़ रहा है।

केरल का वायनाड प्रकरण- संस्थागत तनाव के संकेत

  • नुकसान एवं राहत का अंतर: वायनाड भूस्खलन में लगभग 300 लोगों की जान गई और ₹1,200 करोड़ का नुकसान हुआ, फिर भी केंद्र सरकार ने केवल ₹260 करोड़, यानी केरल के मुआवजे के अनुरोध का लगभग 11%, स्वीकृत किया।
  • पुराने और अपर्याप्त राहत मानदंड: प्रति मृत्यु ₹4 लाख और पूरी तरह क्षतिग्रस्त घर के लिए ₹1.2 लाख की मुआवजे की सीमा एक दशक से अपरिवर्तित बनी हुई है, जिसमें जीवन निर्वाह की आवश्यकताएँ तो शामिल हैं, लेकिन पुनर्निर्माण या आजीविका बहाली शामिल नहीं है।
  • आपदा वर्गीकरण में विवेकाधिकार: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में गंभीर’ आपदा की स्पष्ट परिभाषा के अभाव के कारण वर्गीकरण में देरी हुई, जिससे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और असम को त्वरित और बड़ी सहायता मिलने के विपरीत, केरल की राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) तक पहुँच सीमित हो गई।
  • सहायता में कटौती के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि की शेष राशि का उपयोग: केरल के ₹780 करोड़ के अप्रयुक्त राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि (SDRF) शेष और ₹529 करोड़ के ब्याज-मुक्त ऋण को सहायता में कमी के लिए उद्धृत किया गया, जबकि ये शेष राशि राहत के लिए प्रतिबद्ध थी और SDRF नियमों द्वारा सीमित थी।
  •  केंद्र–राज्य असंतुलन का यह आवर्ती पैटर्न: जैसा कि चक्रवात गाजा (तमिलनाडु, वर्ष 2018) और कर्नाटक बाढ़ (वर्ष 2019) के दौरान देखी गई समान कमियों से स्पष्ट होता है—आपदा-जोखिम वित्तपोषण में सहकारी संघवाद से हटकर नौकरशाही-प्रधान वार्ताओं की ओर एक संरचनागत झुकाव को रेखांकित करता है।

भारत के आपदा वित्तीय ढाँचे के बारे में

भारत का आपदा-प्रतिक्रिया वित्तपोषण, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 द्वारा शासित, दो-स्तरीय है:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF): पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्तपोषित और गंभीर आपदाओं के लिए अभिप्रेत है।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF): 75:25 के अनुपात में संयुक्त रूप से वित्तपोषित (और हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10)।
  • तत्काल राहत के लिए उपयोग: भोजन, आश्रय, चिकित्सा देखभाल, मुआवजा।
  • केंद्रीय नियंत्रण की ओर बदलाव: कानूनी रूप से संतुलित संरचना व्यवहार में विलंब, विवेकाधीन निर्णय लेने और सीमित राज्य स्वायत्तता के साथ कार्य करती है।

15वें वित्त आयोग द्वारा आवंटन (2021-26)

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के लिए ₹2.28 लाख करोड़ (30 बिलियन अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए गए, जिसमें सार्वजनिक वित्त को रोकथाम, न्यूनीकरण, तैयारी, क्षमता निर्माण और पुनर्निर्माण से जोड़ा गया।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए वित्तीय ढाँचा
    • बजट आवंटन: तैयारी और क्षमता निर्माण (10%), न्यूनीकरण (20%), प्रतिक्रिया (40%), पुनर्निर्माण (30%)।

भारत में केंद्रीकृत आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली के लाभ

  • आपदाओं के पैमाने और जटिलता का प्रबंधन
    • समस्या की प्रकृति: भारत में आपदाएँ अक्सर बहु-राज्यीय और बहु-संकटपूर्ण घटनाएँ होती हैं, जो स्थानीय प्रशासनिक क्षमताओं पर भारी पड़ती हैं।
    • केंद्रीय समन्वय की आवश्यकता: आपदाएँ अक्सर अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को पार कर जाती हैं, जिससे समन्वित राहत कार्यों के लिए एक एकीकृत कमान आवश्यक हो जाती है।
      • उदाहरण: वर्ष 1999 के ओडिशा सुपर साइक्लोन और वर्ष 2013 की उत्तराखंड बाढ़ के लिए राज्य सरकारों, केंद्रीय बलों और सेना को शामिल करते हुए बहु-एजेंसी समन्वय की आवश्यकता थी। केवल NDMA या राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC) जैसा एक केंद्रीकृत निकाय ही इन प्रयासों को प्रभावी ढंग से संचालित कर सकता है।
    • हिंद महासागर सुनामी (2004): ये अभियान तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह तक फैले हुए थे, जिससे केंद्रीय नेतृत्व की आवश्यकता का पता चलता है।
  • संसाधन विषमता और क्षमता अंतराल को पाटना
    • चिंता: बड़ी आपदाओं के प्रबंधन के लिए राज्यों की वित्तीय, संस्थागत और तकनीकी क्षमता में काफी अंतर होता है।
    • केंद्र की भूमिका: बिहार (बाढ़-प्रवण) या ओडिशा (चक्रवात-प्रवण) जैसे आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों में अक्सर विशेष उपकरण, प्रशिक्षित कार्मिक और रसद संबंधी लचीलेपन का अभाव होता है, जो केंद्र सरकार प्रदान करती है।
    • उदाहरण: NDRF के पास ढही हुई संरचनाओं की खोज और बचाव तथा रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु (CBRN) प्रतिक्रिया में प्रशिक्षित 16 विशेष बटालियन हैं।
  • प्रतिक्रिया की गति और मानकीकरण सुनिश्चित करना
    • महत्त्वपूर्ण मुद्दा: आपदाओं में, गोल्डन ऑवर’ के दौरान हताहतों की संख्या को कम करने के लिए प्रतिक्रिया समय और एकरूपता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • केंद्रीकृत लाभ: NDRF को संवेदनशील क्षेत्रों में रणनीतिक रूप से पूर्व-स्थित किया गया है ताकि अंतर-राज्यीय समन्वय में होने वाली देरी को दरकिनार करते हुए, कुछ ही घंटों में त्वरित तैनाती की जा सके।
      • केंद्रीकृत प्रशिक्षण और मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOP) राज्यों में एक सुसंगत, पेशेवर प्रतिक्रिया की गारंटी देती हैं।
    • उदाहरण: कोसी नदी के टूटने के कारण बिहार बाढ़ (वर्ष 2008), जहाँ NDRF ने बड़े पैमाने पर निकासी का कुशलतापूर्वक प्रबंधन किया।
  • बेहतर प्रौद्योगिकी और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ
    • तकनीकी चुनौती: उन्नत उपकरण और विशेषज्ञता केंद्र स्तर पर केंद्रित हैं।
    • केंद्रीय भूमिका: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD), राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC), और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जैसी एजेंसियाँ राष्ट्रीय पूर्वानुमान, भेद्यता मानचित्र और सुनामी चेतावनी प्रणाली सहित वास्तविक समय की चेतावनियाँ प्रदान करती हैं।
    • रणनीतिक लाभ: केवल केंद्र सरकार ही इस जानकारी को देश भर में संश्लेषित और प्रसारित कर सकती है, जिससे भारत प्रतिक्रियावादी से सक्रिय आपदा प्रबंधन प्रतिमान की ओर अग्रसर होगा।
  • वित्तीय सहायता और राष्ट्रीय एकजुटता
    • वित्तीय चुनौती: बड़े पैमाने की आपदाएँ अत्यधिक वित्तीय बोझ डालती हैं, जिन्हें अलग-अलग राज्य अकेले वहन नहीं कर सकते हैं।
    • केंद्रीय सहायता: राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) प्रारंभिक राहत प्रदान करते हैं, जबकि केंद्र सरकार राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) को पूरी तरह से वित्तपोषित करती है और गंभीर आपदाओं के लिए पूरक सहायता प्रदान करती है।
    • वित्तपोषण तंत्र: वस्तु एवं सेवा कर (GST) क्षतिपूर्ति उपकर से प्राप्त योगदान यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रीय स्तर के वित्तीय संसाधन आपदा राहत के लिए जुटाए जाएँ।
    • रणनीतिक लाभ: केंद्रीकृत वित्तपोषण वित्तीय स्थिरता बनाए रखता है, राज्यों को दिवालिया होने से बचाता है और संकट के दौरान राष्ट्रीय एकजुटता को मजबूत करता है।

वर्तमान मॉडल से संबंधित चिंताएँ (आपदा प्रतिक्रिया का केंद्रीकरण और संघीय क्षरण)

  • आपदा वित्तपोषण में संरचनात्मक कमियाँ
    • पुराने राहत मानदंड: मुआवजे की राशि, जैसे कि प्रति व्यक्ति ₹4 लाख और पूरी तरह क्षतिग्रस्त घर के लिए ₹1.2 लाख, एक दशक से अपरिवर्तित बनी हुई है और वास्तविक पुनर्निर्माण लागत को नहीं दर्शाती है।
      • उदाहरण: केरल के वर्ष 2024 के वायनाड भूस्खलन में पुनर्निर्माण प्रयासों के लिए मुआवजे के मानदंडों की अपर्याप्तता देखी गई।
    • गंभीर आपदा’ की परिभाषा में अस्पष्टता: स्पष्ट वैधानिक परिभाषा के अभाव में एनडीआरएफ की पात्रता पर केंद्र सरकार का व्यापक विवेकाधिकार है, जिसके परिणामस्वरूप आपदाओं का वर्गीकरण असंगत होता है और सहायता आवंटन में देरी होती है।
      • उदाहरण: उत्तराखंड की वर्ष 2021 की बाढ़ को शुरू में गंभीर’ आपदा के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था, जिससे स्पष्ट मानदंडों के अभाव में NDRF से उच्च वित्तीय सहायता प्राप्त करने में देरी हुई।
    • गैर-स्वचालित सहायता जारी करना: अनुमोदन राज्य ज्ञापनों, केंद्रीय आकलनों और उच्च-स्तरीय मंजूरियों पर निर्भर करते हैं, जिससे तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता होने पर धनराशि जारी करने में देरी होती है।
      • उदाहरण: वर्ष 2020 में आए चक्रवात अम्फान के बाद, पश्चिम बंगाल और ओडिशा को समय लेने वाली अनुमोदन प्रक्रिया के कारण NDRF निधि प्राप्त करने में देरी का सामना करना पड़ा, जिससे तत्काल राहत प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई।
    • वित्त आयोग के कमजोर मानदंड: जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्र और गरीबी के स्तर पर आधारित आवंटन, वास्तविक जोखिम को दर्शाने में विफल रहते हैं तथा वैज्ञानिक रूप से निर्मित आपदा भेद्यता सूचकांक का अभाव है।
      • उदाहरण:  असम के बाढ़-प्रवण क्षेत्रों को पर्याप्त वित्तीय सहायता न मिल पाना इस तथ्य को उजागर करता है कि वित्त आयोग के आवंटन मानदंड राज्य की बाढ़ तथा नदी-तट कटाव जैसी विशिष्ट संवेदनशीलताओं को समुचित रूप से प्रतिबिंबित नहीं करते।
  • कानूनी और राजनीतिक अतिक्रमण
    • केंद्रीय निर्देश शक्ति: आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 62 केंद्र को राज्यों को बाध्यकारी निर्देश जारी करने की अनुमति देती है, जिसका प्रदर्शन कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान विवादास्पद रूप से हुआ, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे राज्य सूची के विषयों पर केंद्रीय नियंत्रण संभव हो गया।
    • पदानुक्रमिक असंतुलन: NDMA (प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में) संरचनात्मक रूप से राज्य SDMA (मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में) को कमजोर करता है, जिससे एक आवश्यक लेकिन अक्सर राजनीतिक रूप से शोषित शीर्ष-स्तरीय प्रतिक्रिया तंत्र को बढ़ावा मिलता है।
    • प्रार्थनाकर्ता के रूप में राज्य: इस प्रक्रिया में राज्यों को ज्ञापन प्रस्तुत करने और NDRF निधि के लिए केंद्र की मंजूरी का इंतजार करने की आवश्यकता होती है, जिससे सहायता, पूर्वानुमानित सहायता के बजाय बातचीत के माध्यम से, विवेकाधीन हस्तांतरण में बदल जाती है।
    • सशर्त राहत: केंद्र अक्सर सहायता में कटौती को उचित ठहराने के लिए अप्रयुक्त SDRF शेष या पूर्व ऋणों (जैसे- वायनाड मामला) का हवाला देता है, राहत को अनुदान-आधारित एकजुटता के बजाय सशर्त मानता है और राष्ट्रीय एकजुटता की अवधारणा को कमजोर करता है।
    • चयनात्मक सहायता: NDRF बटालियनों और वित्तीय पैकेजों की विवेकाधीन अनुमोदन से राजनीतिक शोषण की संभावना बढ़ जाती है, जिससे सत्तारूढ़ दल से जुड़े राज्यों को लाभ पहुँचता है और मानवीय सहायता की निष्पक्षता कम होती है।
    • श्रेय का स्थानांतरण: प्रधानमंत्री राहत कोष से संबंधित घोषणाएँ अक्सर राज्य सरकारों के व्यापक प्रतिक्रिया प्रयासों और व्यय पर भारी पड़ जाती हैं, जिससे राजनीतिक आख्यान और श्रेय पूरी तरह से केंद्र सरकार के पक्ष में चला जाता है।
  • परिचालन अंतराल और स्थानीय लचीलेपन का क्षरण
    • अंतिम-स्तर तक संपर्क: आपदाएँ संचार और परिवहन नेटवर्क को गंभीर रूप से बाधित करती हैं। लचीली प्रणालियों (सैटेलाइट फोन, हैम रेडियो) को अपनाने में देरी और मानकीकृत स्थानीय प्रोटोकॉल का अभाव, तत्काल राहत में बाधा डालता है।
    • प्रौद्योगिकी एकीकरण की कमी: हालाँकि केंद्रीय एजेंसियों (IMD, इसरो) के पास उन्नत पूर्व-चेतावनी डेटा मौजूद है, लेकिन जिला/ब्लॉक स्तर पर इस डेटा का धीमा एकीकरण स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की इसकी प्रभावशीलता को कम करता है।
    • स्थानीय विशेषज्ञता की अनदेखी: केंद्रीकृत नियोजन प्रायः स्थानीय कमजोरियों, स्थलाकृति तथा पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) के पारंपरिक बचाव तंत्रों के सूक्ष्म ज्ञान को पर्याप्त महत्व नहीं देता, जिसके परिणामस्वरूप नीतिगत हस्तक्षेप अपेक्षाकृत कम प्रभावी सिद्ध होते हैं।
    • राज्य क्षमता का क्षरण: बड़ी आपदा लागतों को वहन करने के लिए केंद्र पर निर्भरता, राज्य को अपनी SDRF क्षमता और दीर्घकालिक शमन अवसंरचना को बढ़ाने में निवेश करने से हतोत्साहित करती है, जिससे वित्तीय तथा परिचालन निर्भरता बनी रहती है।

आगे की राह

  • वित्तीय और निधि प्रवाह संरचना में सुधार
    • राहत मानदंडों का अद्यतन और अनुक्रमण: SDRF और NDRF के अंतर्गत मुआवजे की अधिकतम सीमा को संशोधित करना, ताकि वर्तमान निर्माण, पुनर्वास और आजीविका बहाली लागतों को प्रतिबिंबित किया जा सके।
      • इन अधिकतम सीमाओं को मुद्रास्फीति और आपदा-विशिष्ट आवश्यकताओं से जोड़ें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे पुनर्प्राप्ति और पुनर्निर्माण की वास्तविक लागतों से मेल खाती हैं, जिससे राज्यों पर राजकोषीय दबाव कम होगा।
    • सहायता आवंटन में डेटा-आधारित ट्रिगर्स का समावेश: जैसे आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 मेंगंभीर आपदा’ की पारदर्शी एवं सुस्पष्ट परिभाषा तथा वर्षा-तीव्रता सीमा, प्रति मिलियन मृत्यु-दर और GDP-हानि अनुपात जैसे वस्तुनिष्ठ संकेतकों को अपनाना—निर्णय प्रक्रिया को अधिक विश्वसनीय और प्रमाण-आधारित बना सकता है।
      • यह वर्तमान IMCT मूल्यांकन प्रक्रिया की जगह, बिना किसी विलम्ब या राजनीतिक विवेकाधिकार के NDRF निधियों के स्वचालित, समय पर जारी होने को सुनिश्चित करता है।
    • निधि प्रवाह तंत्र में सुधार: SDRF किश्तों के बहु-स्तरीय अनुमोदन से समयबद्ध, नियम-आधारित वितरण (जैसे- उन्हें त्रैमासिक रूप से जारी करना) की ओर परिवर्तन।
      • राज्यों को न केवल तत्काल राहत बल्कि पुनर्निर्माण और आजीविका बहाली पर खर्च करने के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करना, जिससे तीव्र तथा अधिक प्रभावी पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया सुनिश्चित हो सके।
    • जलवायु-प्रतिरोधी आपदा वित्तपोषण को संस्थागत बनाना: पूर्वानुमानित कार्रवाई के लिए एक राष्ट्रीय जलवायु जोखिम वित्तपोषण तंत्र स्थापित करना।
      • यह राज्यों को भविष्य में जलवायु-जनित आपदाओं के लिए तैयार रहने हेतु जोखिम न्यूनीकरण, पूर्व चेतावनी प्रणालियों और जलवायु-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु सहायता अनुदानों के माध्यम से प्रोत्साहन निधि प्रदान करता है।
  • संघीय शासन और जवाबदेही को मजबूत करना
    • संतुलित राजकोषीय प्राधिकरण के माध्यम से सहकारी संघवाद की बहाली: यह सुनिश्चित करना कि आपदा सहायता अनुदान-आधारित रहे, ऋण-आधारित न हो, और राज्यों को SDRF और NDRF के उपयोग पर परिचालन नियंत्रण प्रदान करें।
      • संघ को पूर्व अनुमोदन के बजाय लेखापरीक्षा-पश्चात् सत्यापन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे प्रणाली नौकरशाही वार्ता से विश्वास-आधारित संघीय साझेदारी में परिवर्तित हो सके।
    • वित्त आयोग के मानदंडों को सुदृढ़ बनाना: खतरे के जोखिम, जलवायु जोखिम और भू-वैज्ञानिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक आपदा-जोखिम और भेद्यता सूचकांक विकसित करके सरलीकृत प्रॉक्सी (जनसंख्या और क्षेत्र) से आगे बढ़ना।
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम में संशोधन और घोषणाओं का राजनीतीकरण: केंद्र की निर्देशात्मक शक्ति को समयबद्ध और केवल औपचारिक रूप से घोषित राष्ट्रीय आपदाओं के दौरान ही लागू करना।
      • यह केंद्र के अतिक्रमण को सीमित करता है और सहायता शुरू करने के लिए तटस्थ, तकनीकी आधार सुनिश्चित करता है।
    • संघीय परामर्शदात्री निकायों का संस्थागतकरण: एक संघीय आपदा परिषद (GST परिषद के समान) की स्थापना करना, जिसमें प्रधानमंत्री, चुनिंदा मुख्यमंत्रियों और विशेषज्ञों को शामिल किया जाए।
      • यह मंच सुनिश्चित करता है कि नीति, वित्तपोषण और आवंटन मानदंड सहयोगात्मक रूप से निर्धारित किए जाएँ, जिससे राज्यों की भागीदारी अधिकतम हो।

आपदा वित्तपोषण में परिवर्तन – 16वें वित्त आयोग के लिए प्रमुख सुधार 

  • राहत मानदंडों का आधुनिकीकरण: मौजूदा मुआवजे के मानदंड पुराने हो चुके हैं और केवल निर्वाह व्यय को ही कवर करते हैं, पुनर्निर्माण लागत को नहीं। राज्य वित्त आयोग (SFC) को पुनर्निर्माण और आजीविका बहाली के लिए बाजार दरों को दर्शाने के लिए मुआवजे की अधिकतम सीमा में उल्लेखनीय वृद्धि की सिफारिश करनी चाहिए और इन लागतों को शामिल करने के लिए राज्य आपदा राहत कोष (SDRF) का विस्तार करना चाहिए, जिससे राज्यों का वित्तीय बोझ कम हो।
  • खतरा-आधारित आवंटन मानदंड अपनाना: जनसंख्या और गरीबी पर आधारित वर्तमान आवंटन वास्तविक आपदा जोखिम को नहीं दर्शाते हैं। राज्य वित्त आयोग (SFC) को बहु-खतरा जोखिम, भौतिक भेद्यता और आर्थिक जोखिम को ध्यान में रखते हुए एक आपदा भेद्यता सूचकांक (DVI) लागू करना चाहिए, ताकि न्यायसंगत और प्रभावी वित्तपोषण सुनिश्चित हो सके।
  • सहायता के लिए उद्देश्यपूर्ण ट्रिगर: अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय दल (IMCT) के आकलन पर निर्भर रहने से सहायता में देरी होती है। राज्य वित्त आयोग (SFC) को NDRF की स्वचालित रिलीज के लिए डेटा-आधारित ट्रिगर स्थापित करने चाहिए, जैसे- क्षति सीमा या मृत्यु दर, ताकि त्वरित और पारदर्शी आपदा प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सके।
  • अनुदान-आधारित सहायता: वर्तमान में, आपदा सहायता अक्सर ऋण-आधारित होती है, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ता है। राज्य वित्त आयोग (SFC) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी आपदा राहत और पुनर्निर्माण निधि अनुदान के रूप में प्रदान की जाएँ, जिससे राष्ट्रीय एकजुटता बनी रहे और संकट के दौरान राज्य ऋण से बचा जा सके।
  • राज्य नियंत्रण को मजबूत करना: संघ की अनुमोदन प्रक्रिया में देरी होती है। राज्य वित्त आयोग (SFC) को लेखापरीक्षा-पश्चात् सत्यापन की प्रक्रिया अपनानी चाहिए, जिससे राज्यों को SDRF और SDMF संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण मिल सके, जिससे जवाबदेही बनाए रखते हुए आपदा प्रबंधन तेज और अधिक कुशल हो।

  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और स्थानीय सशक्तीकरण को अपनाना
    • त्वरित भुगतान के लिए वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का उपयोग: गति और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए वैश्विक प्रणालियों से तंत्रों को एकीकृत करना।
      • फिलीपींस (मानवीय क्षति और वर्षा-आधारित ट्रिगर), मैक्सिको (स्वचालित पवन/वर्षा सीमा) और अफ्रीकी-कैरेबियन जोखिम पूल (उपग्रह-आधारित पैरामीट्रिक बीमा), संघीय आपातकालीन प्रबंधन एजेंसी (Federal Emergency Management Agency- FEMA), अमेरिका (प्रति व्यक्ति क्षति सीमा), और ऑस्ट्रेलिया (राजस्व के सापेक्ष संघीय सहायता को राज्य राहत व्यय से जोड़ना) जैसे मॉडलों से सीखकर, भारत ऐसी प्रणालियाँ अपना सकता है, जो त्वरित, नियम-आधारित भुगतान प्रदान करती हैं।
    • क्षमता निर्माण और कानूनी मान्यता: SDRF क्षमता निर्माण को पर्याप्त रूप से बढ़ावा देना (उदाहरण के लिए, NDRF जैसा 50% प्रशिक्षण) और स्थानीय आपदाओं’ को कानूनी मान्यता प्रदान करना।
      • इससे यह सुनिश्चित होता है कि छोटे पैमाने की घटनाओं का प्रबंधन पूरी तरह से सशक्त जिलों/PRIs द्वारा किया जाए, जबकि मजबूत SDRF केंद्र पर तत्काल निर्भरता को कम करते हुए जमीनी स्तर पर जवाबदेही को मजबूत करते हैं।

निष्कर्ष

आपदा एकजुटता को संघीय स्वायत्तता को कम नहीं करना चाहिए। पारदर्शी, नियम-आधारित निधि हस्तांतरण के माध्यम से केंद्रीय विवेकाधिकार को कम करके और राज्य एवं जिला अधिकारियों को सशक्त बनाकर, अनुमोदन-आधारित राहत की जगह एक पूर्वानुमानित, विश्वास-आधारित प्रणाली स्थापित की जा सकती है, जिससे सहकारी संघवाद को कायम रखते हुए तीव्र प्रतिक्रिया सुनिश्चित होगी।

PWOnlyIAS विशेष

आपदा प्रबंधन (DM) के बारे में 

  • संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (United Nations Office for Disaster Risk Reduction- UNDRR): आपदा प्रबंधन (DM) आपात स्थितियों के सभी मानवीय पहलुओं, विशेष रूप से तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के लिए संसाधनों तथा जिम्मेदारियों का संगठन तथा प्रबंधन है, ताकि आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सके।
    • UNDRR के मुख्य क्षेत्र (आपदा जोखिम न्यूनीकरण-DRR के साथ संरेखित):
      • आपदा जोखिम को समझना।
      • आपदा जोखिम प्रबंधन को मजबूत करना।
      • लचीलेपन के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) में निवेश करना।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत भारतीय परिभाषा: निम्नलिखित के लिए उपायों की योजना, आयोजन, समन्वय और कार्यान्वयन की एक सतत् और एकीकृत प्रक्रिया:
    • किसी भी आपदा के खतरे या आशंका की रोकथाम
    • आपदा जोखिम और परिणामों का शमन या कमी
    • क्षमता निर्माण
    • आपदाओं से निपटने की तैयारी
    • आपदा की आशंका वाली स्थितियों पर त्वरित प्रतिक्रिया
    • गंभीरता या परिमाण का आकलन
    • निकासी, बचाव और राहत
    • पुनर्वास और पुनर्निर्माण।

आपदा प्रबंधन के लिए संवैधानिक आधार

  • कोई स्पष्ट संवैधानिक प्रविष्टि नहीं; व्युत्पन्न विधायी आधार: भारत में आपदा प्रबंधन (DM) के लिए संवैधानिक ढाँचे को सातवीं अनुसूची में किसी एकल प्रविष्टि में सीधे रेखांकित नहीं किया गया है, जो केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन करती है।
  • संसद ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को निम्नलिखित का उपयोग करके अधिनियमित किया:
    • समवर्ती सूची प्रविष्टि 23 (सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा)।
    • अनुच्छेद-248 और संघ सूची प्रविष्टि 97 के अंतर्गत अवशिष्ट शक्तियाँ।
    • राज्य सूची के विषयों—सार्वजनिक स्वास्थ्य (प्रविष्टि 6), कृषि (प्रविष्टि 14), जल (प्रविष्टि 17), और भूमि (प्रविष्टि 18)—के साथ अतिव्यापन के कारण राज्यों की भूमिकाएँ महत्त्वपूर्ण बनी हुई हैं।
  • मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
    • अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार): सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है कि राज्य को नागरिकों के जीवन और सुरक्षा की रक्षा करनी चाहिए और इस दायित्व को आपदा तैयारी तथा राहत तक भी विस्तारित करना चाहिए।
      • स्वराज अभियान बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जीवन के अधिकार में राहत का अधिकार भी शामिल है।
    • अनुच्छेद-14 (विधि के समक्ष समता): यह सुनिश्चित करता है कि आपदा राहत और पुनर्वास प्रयास भेदभाव रहित हों और सभी प्रभावित नागरिकों को समान पहुँच की गारंटी प्रदान करें।
  • संघीय संरचना और सहकारी प्रतिक्रिया
    • अनुच्छेद-1 (राज्यों का संघ): आपदा राहत, राज्यों के संघ के सिद्धांत से उत्पन्न एक संवैधानिक गारंटी है।
    • राज्यों की प्राथमिक जिम्मेदारी: आपदा प्रबंधन मुख्यतः एक स्थानीय मामला है और राज्य सरकारें बचाव, राहत और पुनर्वास के लिए जिम्मेदार हैं।
    • केंद्र की पूरक भूमिका: जब कोई आपदा राज्य की क्षमता से अधिक हो जाती है, तो केंद्र सरकार राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) जैसी व्यवस्थाओं के माध्यम से अतिरिक्त रसद और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

संवैधानिक ढाँचे में अस्पष्टताएँ और अतिव्यापन

संवैधानिक स्थिति की प्रायः स्पष्टता के अभाव के कारण आलोचना की जाती है, जिसके कारण कुछ चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं:-

  • समवर्ती सूची की माँग: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने आपदा प्रबंधन को समवर्ती सूची (सूची III) में स्पष्ट रूप से जोड़ने का सुझाव दिया था।
    • इससे केंद्र और राज्य दोनों को स्पष्ट विधायी अधिकार प्राप्त होंगे, जिससे अधिक समन्वित प्रतिक्रिया को बढ़ावा मिलेगा।
  • अधिकारों के अतिक्रमण के आरोप: कोविड-19 महामारी के दौरान केंद्र द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम का प्रयोग चिंता का विषय बना।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य’ एक राज्य सूची का विषय है (प्रविष्टि 6), लेकिन केंद्र ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत अस्थायी रूप से नियंत्रण में ले लिया, जिससे व्यापक आपदाओं में प्राधिकरण को केंद्रीकृत करने की उसकी शक्ति का प्रदर्शन हुआ।

विधिक ढाँचा- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 एक संरचित और समन्वित प्रणाली को संस्थागत रूप देता है। यह विभिन्न स्तरों पर स्पष्ट भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ प्रदान करता है:

चरण प्राधिकरण की स्थापना अध्यक्ष उत्तरदायित्त्व
राष्ट्रीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) प्रधानमंत्री नीति-निर्माण, दिशा-निर्देश निर्माण और राष्ट्रीय योजना का अनुमोदन
राष्ट्रीय राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC) केंद्रीय गृह सचिव राष्ट्रीय योजना का समन्वय और निगरानी
राज्य राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) मुख्यमंत्री नीतियाँ बनाना और राज्य योजना को मंजूरी देना।
जिला जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) जिला कलेक्टर जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन उपायों की योजना बनाना और उनका क्रियान्वयन करना।

  • यह अधिनियम केंद्र सरकार को गंभीर आपदाओं के दौरान प्राधिकरण को केंद्रीकृत करने का अधिकार देता है, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान प्रदर्शित हुआ, जब राष्ट्रव्यापी निर्देश जारी किए गए थे।

भारत के आपदा प्रबंधन ढाँचे का विकास

  • राहत-केंद्रित चरण (वर्ष 2001 से पूर्व) – प्रतिक्रियात्मक और खंडित प्रणाली: आपदा प्रबंधन कृषि मंत्रालय के अधीन संचालित होता था, जिसका मुख्य फोकस आपदा-पश्चात् राहत पर था।
    • औपनिवेशिक अकाल संहिताओं ने प्रतिक्रिया का मार्गदर्शन किया। वित्तपोषण आपदा राहत कोष (Calamity Relief Fund-CRF) और राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता कोष (National Calamity Contingency Fund-NCCF) से होता था, जिसमें राज्यों की प्राथमिक जिम्मेदारी होती थी तथा केंद्र सरकार पूरक सहायता प्रदान करती थी।
  • प्रमुख आपदाओं से प्रेरित परिवर्तन (2001-2005) – तैयारी की ओर कदम: गुजरात भूकंप (2001) ने प्रणालीगत कमियों को उजागर किया। उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति (NCDM) जैसी समितियों ने सुधारों की शुरुआत की, जिसमें तैयारी, पूर्व चेतावनी और क्षमता निर्माण पर जोर दिया गया।
    • भारत ने योकोहामा रणनीति और उभरते ह्योगो फ्रेमवर्क चर्चाओं जैसे वैश्विक ढाँचों के साथ सामंजस्य स्थापित करना।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत संस्थागत स्वरुप: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 ने शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति (MPRR) तक एक समग्र दृष्टिकोण के लिए एक कानूनी अधिदेश बनाया।
    • इसने तीन स्तरीय संरचना (NDMA, SDMA और DDMA) स्थापित की।
    • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) के रूप में निधियों को औपचारिक रूप दिया गया।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का गठन एक विशेष प्रतिक्रिया बल के रूप में किया गया।
  • वर्ष 2005 के बाद का समेकन (प्रणालियाँ, बल और वित्त): परिचालन दिशा-निर्देश, संकट प्रबंधन समूह, घटना प्रतिक्रिया प्रणालियाँ और मानक संचालन प्रक्रियाएँ संस्थागत रूप से स्थापित की गईं।
    • NDRF की क्षमताओं का विस्तार किया गया और SDRF/NDRF के वित्तपोषण की संरचना वित्त आयोगों के माध्यम से की गई।
    • खतरे के क्षेत्रीकरण, भेद्यता मानचित्रण और पेशेवर प्रतिक्रिया तंत्रों पर अधिक जोर दिया गया।
  • वर्ष 2015 के बाद का प्रतिमान परिवर्तन – न्यूनीकरण और जलवायु लचीलापन: आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क (वर्ष 2015-2030) से प्रभावित होकर, भारत ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) की ओर रुख किया।
    • जलवायु-लचीले बुनियादी ढाँचे (CRI), बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणालियों (EWS), प्रकृति-आधारित समाधानों और शहरी लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे दृष्टिकोण, जोखिम-सूचित तथा रोकथाम-उन्मुख हो गया।
  • स्थानीयकरण और समुदाय-केंद्रित शासन: समुदाय-आधारित आपदा जोखिम न्यूनीकरण (CBDRR) पर बढ़ते जोर ने पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों को प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में सशक्त बनाया।
    • क्षमता निर्माण, अभ्यास, जन जागरूकता और अंतिम छोर तक संपर्क, आपदा प्रतिरोधी समाज के निर्माण के लिए केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं।

[/green_button]

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.