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भारत की चुनावी अखंडता

Lokesh Pal August 12, 2025 03:44 7 0

संदर्भ

हाल ही में विपक्ष के नेता ने दावा किया कि बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत महादेवपुरा विधानसभा सीट पर 1,00,000 से अधिक ‘फर्जी वोट’ पाए गए थे।

संबंधित तथ्य

  • उन्होंने कथित चुनावी कदाचार की पाँच श्रेणियों की रूपरेखा प्रस्तुत की है:-
    • डुप्लिकेट वोट: विभिन्न राज्यों में प्रयोग किए गए एक जैसे मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) नंबर।
    • नकली और अमान्य पता: अनुपस्थित या गलत पते पर सूचीबद्ध मतदाता।
    • एकल पते पर बड़ी संख्या में मतदाता: एक ही पते पर असामान्य रूप से बड़ी संख्या में पंजीकृत मतदाता, जिनमें से कई के पास निवास प्रमाण पत्र नहीं है।

निर्वाचक फोटो पहचान पत्र (EPIC) 

  • EPIC एक 10-अंकीय अल्फान्यूमेरिक संख्या है जो ECI द्वारा प्रत्येक पंजीकृत मतदाता को दी जाती है।
  • इसका उपयोग चुनावों के दौरान पहचान के लिए किया जाता है, लेकिन यह निर्दिष्ट निर्वाचन क्षेत्र के बाहर मतदान का अधिकार नहीं देता है।

फॉर्म 6

  • फॉर्म 6 वह आवेदन पत्र है, जिसका उपयोग मतदाता सूची में नए मतदाता के रूप में पंजीकरण करने या किसी अन्य निर्वाचन क्षेत्र में मत स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है।

    • मतदाता पहचान-पत्रों पर अमान्य तस्वीरें: ऐसे मतदाता पहचान-पत्र जिनमें तस्वीरें अनुपस्थित, गलत या संदिग्ध हों, उनकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं।
    • पंजीकरण के लिए फॉर्म 6 का दुरुपयोग: मतदाता सूची में अमान्य मतदाताओं को जोड़ने के लिए मतदाता पंजीकरण आवेदन पत्र का धोखाधड़ीपूर्ण उपयोग।

भारत निर्वाचन आयोग के बारे में

  • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) भारत में चुनाव कराने के लिए उत्तरदायी एक स्थायी संवैधानिक निकाय है।
  • संवैधानिक आधार: संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329) चुनावों को नियंत्रित करता है।
  • संरचना: एक मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अन्य चुनाव आयुक्त (EC)।
  • वर्तमान संरचना: एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त।
  • शक्तियाँ और कार्य
    • अनुच्छेद 324: भारत निर्वाचन आयोग को संसद, राज्य विधानमंडलों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों पर अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।
  • नियुक्ति: वर्ष 2023 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय (अनूप बर्णवाल बनाम भारत संघ मामला, 2023) के बाद, नियुक्तियाँ एक चयन समिति (प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री) द्वारा की जाती हैं।
  • अनुच्छेद 324(5) के तहत निष्कासन एवं सेवा शर्तें
    • मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाना: सर्वोच्च न्यायालय (SC) के न्यायाधीश के समान प्रक्रिया।
    • मुख्य चुनाव आयुक्तों और क्षेत्रीय आयुक्तों को हटाना: केवल मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर।

चुनाव से संबंधित अन्य संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 325: किसी भी व्यक्ति को धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 326: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होने चाहिए।
  • अनुच्छेद 327: संसद को चुनाव संबंधी मामलों पर विधि निर्माण का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 328: राज्य विधानमंडल अपने-अपने राज्यों के निर्वाचन से संबंधित कानून बना सकते हैं।
  • अनुच्छेद 329: न्यायालय चुनावी मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

अनूप बर्णवाल बनाम भारत संघ मामला, 2023 में सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश

  • पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने निर्देश दिया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा चयन समिति की सलाह के आधार पर की जानी चाहिए।
  • समिति की संरचना
    • प्रधानमंत्री
    • लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP)
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)
  • यदि कोई विपक्ष का नेता उपलब्ध न हो: तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को शामिल किया जाएगा।
  • संसदीय प्रतिक्रिया: अनूप बर्णवाल बनाम भारत संघ (वर्ष 2023) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023 पारित किया गया।

मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT)

  • यह एक स्वतंत्र प्रणाली है, जिसमें दो भाग होते हैं, अर्थात् एक VVPAT प्रिंटर और VVPAT स्थिति प्रदर्शन इकाई (VSDU) जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) से जुड़ी होती है, जो मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति देती है कि उनका वोट उद्देश्य के अनुसार डाला गया है।
    • जब कोई वोट डालता है, तो एक पर्ची मुद्रित होती है जिसमें उम्मीदवार का सीरियल नंबर, नाम और चुनाव चिन्ह होता है और यह एक पारदर्शी विंडो के माध्यम से 7 सेकंड के लिए दिखाई देती है।
  • इसका पहली बार वर्ष 2013 में नागालैंड के नोकसेन निर्वाचन क्षेत्र में उपयोग किया गया था और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में अखिल भारतीय स्तर पर इसका उपयोग किया गया था।

भारत की चुनावी प्रक्रिया से संबंधित चुनौतियाँ

  • ‘एक व्यक्ति, एक मत’ सिद्धांत का उल्लंघन: कथित फर्जी मतदाता प्रविष्टियाँ असमान मत भारांक उत्पन्न करती हैं।
  • अभियान वित्त और MCC प्रवर्तन अंतराल: व्यय सीमा और आदर्श आचार संहिता नियमों का कमजोर कार्यान्वयन।
  • VVPAT सत्यापन सीमाएँ: केवल छोटे, गैर-सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण नमूनों का मिलान किया जाता है।
  • तकनीकी कमजोरियाँ: VVPAT में प्रतीक लोड करने के लिए अपर्याप्त सुरक्षा उपाय, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) सुरक्षा उपायों की कोई स्वतंत्र विशेषज्ञ समीक्षा नहीं।
  • पारदर्शिता के मुद्दे: मतदान केंद्रों से CCTV फुटेज रखने में अनिच्छा, अंतिम मतदान आँकड़े जारी करने में विलम्ब।
  • नियुक्ति प्रक्रिया संबंधी चिंताएँ: सरकार चुनाव आयुक्तों के चयन पैनल में मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने की सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिश को दरकिनार कर रही है।
  • संस्थागत विश्वास का क्षरण: निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर जनता में संदेह।

आगे की राह

  • व्यापक मतदाता सूची ऑडिट: घर-घर जाकर सत्यापन और मतदाता सूचियों का नियमित अद्यतन।
  • डेटा साझाकरण में पारदर्शिता: मतदाता सूची डेटा को संरचित, खोज योग्य प्रारूपों में जारी करना।
  • तकनीकी सुधार: EVM का स्वतंत्र ऑडिट, आदेशों का पूर्ण ऑडिट ट्रेल, प्रतीक लोडिंग के लिए मजबूत प्रोटोकॉल।
  • VVPAT सत्यापन का विस्तार: सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण नमूनाकरण का उपयोग करना।
  • नियुक्तियों में सुधार: चुनाव आयोग के सदस्यों के लिए एक व्यापक, निष्पक्ष चयन पैनल हेतु सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिश को लागू करना।
  • हितधारकों को शामिल करना: विश्वास को मजबूत करने के लिए राजनीतिक दलों और नागरिक समाज के साथ नियमित परामर्श।

निष्कर्ष

हालिया विवाद मतदाता सूची में मजबूत सुधारों की सख्त आवश्यकता को रेखांकित करता है। संस्थाओं को मजबूत करने के एक साधन के रूप में जाँच-पड़ताल का स्वागत करके, निर्वाचन आयोग जनता के विश्वास की रक्षा कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि चुनावी प्रक्रियाओं में घटते विश्वास के कारण लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था कमजोर न हो।

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