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भारत की विस्तारित तटरेखा

Lokesh Pal May 27, 2025 03:20 25 0

संदर्भ

दिसंबर 2024 में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारत की समुद्र तट की लंबाई में एक महत्त्वपूर्ण संशोधन की सूचना दी।

तटरेखा संबंधी विरोधाभास (Coastline Paradox)

  1. मूल अवधारणा
    • तटरेखाएँ ‘फ्रैक्टल’ (भग्न आयाम) जैसी विशेषताएँ प्रदर्शित करती हैं — अर्थात्, जितना अधिक सूक्ष्मता से मापा जाए, तटरेखा की लंबाई उतनी ही बढ़ती जाती है।
    • इस कारण तटरेखा की लंबाई कोई निश्चित मात्रा नहीं होती, यह मापने के पैमाने पर निर्भर करती है।
  2. उदाहरण
    • यदि हम 200 किलोमीटर लंबे रूलर से मापन करें, तो वह कई वक्रों और खाड़ी क्षेत्रों को समतल कर देगा, जिससे कुल लंबाई कम आएगी।
    • लेकिन यदि हम 1 किलोमीटर लंबे रूलर से मापें, तो वह मुहानों, चट्टानों और छोटे वक्रों को भी शामिल कर लेगा, जिससे तटरेखा की कुल लंबाई बढ़ जाएगी।
  3. इतिहास

    • इस विरोधाभास की पहचान सबसे पहले लुईस फ्राई रिचर्डसन (Lewis Fry Richardson) ने की थी।
    • इसके गणितीय विश्लेषण और स्पष्टीकरण का कार्य बेनोइट मैंडेलब्रॉट (Benoit Mandelbrot) ने वर्ष 1967 में किया।
  4. सैद्धांतिक निष्कर्ष
    • यदि मापन बहुत ही छोटे पैमानों (जैसे- जल के अणु) तक किया जाए, तो तटरेखा की लंबाई अनंत तक पहुँच सकती है
    • यही इस विरोधाभास का मूल बिंदु है — मापन का पैमाना बदलने से परिणाम भी बदलता है।

संबंधित तथ्य

  • राष्ट्रीय जल सर्वेक्षण कार्यालय (National Hydrographic Office- NHO) द्वारा भारतीय सर्वेक्षण विभाग (SoI) के साथ संयुक्त रूप से समुद्र तट की लंबाई का पुनर्मूल्यांकन किया गया।
  • समुद्र तट 7,516.6 किमी. (1970 के दशक) से बढ़कर 11,098.8 किमी. (वर्ष2023-24) हो गया, जो 47.6% की वृद्धि दर्शाता है।
  • यह परिवर्तन क्षेत्रीय विस्तार या भू-वैज्ञानिक बदलावों के कारण नहीं है, बल्कि बेहतर माप पद्धतियों के कारण है।
  • अब वर्ष 2024-25 से शुरू होकर प्रत्येक 10 वर्ष में तटरेखा संबंधी डेटा अपडेट किया जाएगा।

भारत की तटरेखा का भौगोलिक कवरेज

  • तटीय सीमाएँ: बंगाल की खाड़ी (पूर्व), अरब सागर (पश्चिम) और हिंद महासागर (दक्षिण) से लगती हैं।
  • तटीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश
    • राज्य: गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल।
    • केंद्रशासित प्रदेश: दमन और दीव, लक्षद्वीप, पुडुचेरी, अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह।

उल्लेखनीय वृद्धि वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश

  • गुजरात: तटरेखा की लंबाई 1,214 किमी. से बढ़कर 2,340 किमी. हो गई।
    • सर्वाधिक वृद्धि; सबसे लंबी तटरेखा का दर्जा बरकरार रखा।
  • पश्चिम बंगाल: तटरेखा की लंबाई 157 किमी. से बढ़कर 721 किमी. हो गई।
    • 357% की वृद्धि – प्रतिशत के लिहाज से सर्वाधिक।
  • तमिलनाडु: तटरेखा की लंबाई 906 किमी. से बढ़कर 1,068 किमी. हो गई।
    • तटरेखा की लंबाई में आंध्र प्रदेश से आगे निकल गया।

न्यूनतम या नकारात्मक वृद्धि वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश

  • केरल: केवल 30 किमी (5%) की वृद्धि हुई – सबसे कम वृद्धि।
  • पुडुचेरी: कटाव और पुनर्संयोजन के कारण समुद्र तट 4.9 किमी. (-10.4%) कम हो गया।

पहलू पुरानी पद्धति (1970 का दशक) नई पद्धति (वर्ष 2023–24)
माप का आधार सीधी रेखा से सन्निकटन जटिल तटीय विशेषताओं का समावेशन
तटीय विशेषताओं का मापन बुनियादी तटरेखा मुहाना, प्रवेशद्वार, रेतीले टीले, ज्वारीय खाड़ियाँ
प्रयुक्त पैमाना 1: 4,500,000 1: 250,000
प्रयुक्त प्रौद्योगिकी मैनुअल, बुनियादी मानचित्रण उपकरण GIS, LIDAR-GPS, सैटेलाइट अल्टीमेट्री, ड्रोन मैपिंग
शुद्धता कम सटीक अधिक सटीक, गतिशील प्रतिनिधित्व
रिपोर्ट की गई तटरेखा की लंबाई 7,516.6 किमी. 11,098.8 किमी.।

उभरती और जलमग्न तटरेखाएँ

  • उभरती तटरेखाएँ: इनका निर्माण तब होता है, जब भूमि ऊपर उठती है (ऊपर उठती है) या जब समुद्र का स्तर कम होता है।
    • उदाहरणों में बार, स्पिट्स, लैगून, नमक दलदल, समुद्र तट, समुद्री चट्टानें और शैल शामिल हैं।
  • भारत में उदाहरण
    • तमिलनाडु तट (कोरोमंडल तट)
    • केरल तट (मालाबार तट)
  • जलमग्न तटरेखाएँ: इनका निर्माण तब होता है, जब भूमि धँसने के कारण जलमग्न हो जाती है या जब समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।
  • भारत में उदाहरण
    • भारत का पश्चिमी तट: उभरने और डूबने दोनों विशेषताओं को दर्शाता है।
      • उत्तरी भाग: जलमग्न।
      • केरल तट: तटरेखा का उभरता हुआ भाग।

तटरेखा विस्तार के प्रभाव

  • आर्थिक एवं विकासात्मक निहितार्थ
    • बंदरगाह और रसद: आंध्र प्रदेश जैसे राज्य बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे का विस्तार कर रहे हैं (जैसे- रामायपट्टनम, कृष्णापट्टनम, काकीनाडा)।
    • समुद्री अर्थव्यवस्था: लंबी तटरेखाएँ मत्स्यन क्षेत्रों, पर्यटन और समुद्री व्यापार को बढ़ावा देती हैं।
  • रणनीतिक और पर्यावरणीय योजना: सटीक तटरेखा डेटा समुद्री सुरक्षा, बुनियादी ढाँचे की योजना और आपदा तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • समुद्री सुरक्षा: बड़े तटीय क्षेत्र के लिए विस्तारित तटीय निगरानी और सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
    • आपदा प्रबंधन: चक्रवात अलर्ट, सुनामी की तैयारी और तटीय जोनिंग के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • पर्यावरण निगरानी: कटाव, अभिवृद्धि और जैव विविधता पैटर्न की निगरानी करने की क्षमता को बढ़ाता है।

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