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भारत का विस्तारित अंतरिक्ष कार्यक्रम

Lokesh Pal October 29, 2024 04:43 46 0

संदर्भ

नए रॉकेट एवं न्यू मून तथा वीनस मिशन जैसी नई परियोजनाओं के लिए भारत सरकार की मंजूरी के साथ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण नए शिखर पर है।

संबंधित तथ्य

  • स्पेस विजन 2047: भारत का लक्ष्य वर्ष 2040 तक अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन एवं चंद्रमा पर लैंडिंग करना है।

  • गगनयान: इसमें 3 दिनों के मिशन के लिए 3 सदस्यों के एक दल को 400 किमी. की कक्षा में लॉन्च करके एवं भारतीय समुद्री जल में उतारकर उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाकर मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता का प्रदर्शन करने की परिकल्पना की गई है।
  • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bhartiya Antriksh Station- BAS) वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होगा। 
    • वर्तमान में, केवल दो कार्यशील अंतरिक्ष स्टेशन ‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन’ एवं चीन का तियांगोंग (Tiangong) हैं।

अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए भारत सरकार द्वारा हालिया प्रमुख स्वीकृतियाँ

  • गगनयान एवं अंतरिक्ष स्टेशन मिशन: भारत सरकार ने ‘गगनयान’ मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के तहत चार नए मिशनों को मंजूरी दी है।
    • भारत के पहले अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन 1 के लिए प्रौद्योगिकियों का परीक्षण करने के लिए वर्ष 2028 तक चार मिशन अपेक्षित हैं।
    • इन मिशनों के लिए 11,170 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि आवंटित की गई।
  • अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (Next Generation Launch Vehicle- NGLV): रॉकेट की पहली तीन विकास उड़ानों की लागत को कवर करते हुए 8,240 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ NGLV के विकास को मंजूरी दे दी गई है।
    • श्रीहरिकोटा में नया लॉन्च पैड: NGLV के परीक्षण एवं लॉन्चिंग के लिए इस लॉन्च पैड को मंजूरी दे दी गई है।
  • अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान (NGLV): अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान या NGLV या ‘सूर्य’ (Soorya) एक तीन चरणों वाला आंशिक रूप से ‘रीयूजेबल हैवी-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल’ है, जो वर्तमान में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित किया जा रहा है।
  • NGLV को LVM3 की लागत से 1.5 गुना अधिक लागत पर वर्तमान पेलोड क्षमता से 3 गुना अधिक आपूर्ति करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • पुन: प्रयोज्य प्रथम चरण के साथ 30 टन तक निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) तक ले जाने में सक्षम, लागत प्रभावी एवं सतत् अंतरिक्ष पहुँच को बढ़ावा देता है।
  • इसमें ‘मॉड्यूलर ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम’ शामिल है।
  • अंतरिक्ष-आधारित निगरानी (SBS): कैबिनेट ने अंतरिक्ष आधारित निगरानी (SBS) मिशन के तीसरे चरण को मंजूरी दे दी है, जिसमें 26,968 करोड़ रुपये के 52 उपग्रह शामिल हैं।

अंतरिक्ष आधारित निगरानी (Space-Based Surveillance- SBS)

  • SBS परियोजना का लक्ष्य निम्न पृथ्वी कक्षा  (LEO) एवं भू-स्थैतिक कक्षा (GEO) में 52 नए उपग्रहों के माध्यम से नागरिक तथा सैन्य अनुप्रयोगों के लिए भूमि एवं समुद्री डोमेन जागरूकता बढ़ाना है।
    • LEO उपग्रह: जमीनी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उच्च-रिजॉल्यूशन इमेजिंग प्रदान करते हैं।
    • GEO उपग्रह: प्रमुख क्षेत्रों की व्यापक निगरानी सक्षम करना।
  • महत्त्व: ये उपग्रह भारत की सीमाओं, विशेष रूप से चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) एवं भारत-पाकिस्तान सीमा पर बुनियादी ढाँचे के विकास की निगरानी करेंगे।
    • हिंद महासागर में शत्रुतापूर्ण पनडुब्बियों एवं नौसैनिक बलों का पता लगाना तथा उनका मुकाबला करना, चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है।

शुक्र ग्रह के बारे में

  • शुक्र सूर्य से दूसरा ग्रह है, एवं पृथ्वी का निकटतम पड़ोसी ग्रह है। 
  • यह सूर्य एवं चंद्रमा के बाद आकाश में तीसरी सबसे चमकीली वस्तु है। 
  • यह अधिकांश ग्रहों से विपरीत दिशा में धीरे-धीरे घूमता है। 
  • यह संरचना एवं आकार में पृथ्वी के समान है।
  • यह हमारे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है क्योंकि इसका घना वातावरण ऊष्मा को एक अनियंत्रित ग्रीनहाउस प्रभाव में फँसा देता है।
  • घने, निरंतर बादलों के नीचे, सतह पर ज्वालामुखी एवं विकृत पहाड़ हैं।

आगामी उपग्रह प्रक्षेपण

  • ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) एवं प्रक्षेपण यान मार्क-3 (LMV-3): हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड तथा लार्सन एंड टुब्रो द्वारा एक PSLV वर्ष 2024 के अंत या वर्ष 2025 की शुरुआत में आने की उम्मीद है। 
    • न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड LMV-3 के व्यावसायीकरण के लिए एक निजी इकाई का चयन करेगी।
      • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड भारत सरकार का एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है एवं अंतरिक्ष विभाग के अधीन है। 
  • वीनस मिशन: एक वीनस ऑर्बिटर मिशन मार्च 2028 में लॉन्च के लिए निर्धारित है, जिसकी लागत 1,236 करोड़ रुपये है। 
    • इस मिशन के साथ, वैज्ञानिकों को यह समझने के लिए ग्रह की अम्लीय सतह एवं वायुमंडल का अध्ययन करने की उम्मीद है कि सौरमंडल के विभिन्न ग्रह कैसे विकसित हुए?
  • चंद्रयान-4: यह एक सैंपल-रिटर्न मिशन होगा, जिसका बजट 2,104 करोड़ रुपये है।
    • दोहरी लॉन्च रणनीति: इसके घटकों को दो अलग-अलग LVM-3 लॉन्च वाहनों पर लॉन्च किया जाएगा।
  • पृथ्वी कक्षा डॉकिंग: चंद्रमा पर जाने से पहले वे पृथ्वी की कक्षा में डॉक करेंगे, एवं चंद्रयान 3 के स्थान के पास सतह पर उतरेंगे।
  • नमूना संग्रह: लैंडर विश्लेषण के लिए चंद्रमा की मिट्टी एवं चट्टान के नमूने एकत्र करेगा। नमूनों को विशेष रूप से डिजाइन किए गए कनस्तर में वापस पृथ्वी पर ले जाया जाएगा।
  • चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन (Lunar Polar Exploration Mission- LUPEX): अंतरिक्ष आयोग ने जापान के साथ चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन (LUPEX) नामक एक संयुक्त चंद्रमा मिशन को भी मंजूरी दे दी। 
    • LUPEX को भारत में चंद्रयान-5 के नाम से भी जाना जाता है।
    • LUPEX के लिए, ISRO चंद्रयान-3 (विक्रम लैंडर) के लिए इस्तेमाल किए गए लैंडर की तुलना में एक अलग चंद्रमा लैंडर विकसित कर रहा है एवं उसे उम्मीद है कि इसका उपयोग भविष्य में चालक दल के चंद्र मिशनों में किया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग 

  • NISAR सैटेलाइट: NASA-ISRO  सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) को वर्ष 2025 की शुरुआत में जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle- GSLV) के माध्यम से लॉन्च किया जाएगा।
    • NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) एक पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह है।
  • प्रोबा-3 मिशन: यह सूर्य के कोरोना का अध्ययन करने के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) का एक मिशन है एवं 29 नवंबर, 2024 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-एक्सएल (PSLV-XL) लॉन्च के लिए निर्धारित है।
  • भारत ने इससे पहले वर्ष 2001 में PSLV-C3 मिशन पर Proba-1 लॉन्च किया था।

निजी क्षेत्र के नवाचार

  • ग्रीन प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी: मनास्तु स्पेस (Manastu Space) ने ध्रुव के ‘एस्पायरिंग पेलोड्स फॉर लॉन्चिंग एक्सपीडिशन’ (Launching Expeditions for Aspiring Payloads- LEAP-3) मिशन के लिए अपनी ‘ग्रीन प्रोपल्शन तकनीक’ का परीक्षण करने के लिए ध्रुव स्पेस (Dhruva Space) के साथ साझेदारी की है।
    • LEAP-3 वर्ष 2025 में विभिन्न कंपनियों के पेलोड ले जाएगा। 
    • मानस्तु स्पेस, हाइड्रोजन-पेरोक्साइड-आधारित ईंधन का उपयोग करके एक हरित प्रणोदन प्रणाली विकसित कर रहा है। 
    • इसने पहली बार इस वर्ष 1 जनवरी को PSLV-C58 मिशन पर LEAP का परीक्षण किया।
  • बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस द्वारा प्रोजेक्ट 200: प्रोजेक्ट 200 एक उपग्रह का प्रोटोटाइप है, जिसे 200 किमी. की ऊँचाई पर अल्ट्रा-लो पृथ्वी कक्षाओं के लिए डिजाइन किया गया है।
  • स्पेस डॉकिंग प्रयोग: अनंत टेक्नोलॉजीज बंगलूरू में कंपनी की सुविधा में ISRO के लिए दो स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (Space Docking Experiment- SpaDEx) उपग्रहों को एकत्रित करने, एकीकृत करने एवं परीक्षण करने वाली पहली निजी भारतीय कंपनी बन गई।

ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम एक पर्यावरण अनुकूल तकनीक है, जो अंतरिक्ष अभियानों में हानिकारक उत्सर्जन को कम करने के लिए कम विषाक्त उपोत्पाद उत्पन्न करने वाले प्रणोदकों का उपयोग करती है।

हालिया उपलब्धि एवं वैज्ञानिक खोजें

  • चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट: वैज्ञानिकों ने पाया कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट के पास का गड्ढा दक्षिणी ध्रुव ऐटकेन बेसिन (South Pole Aitken Basin) से भी पुराना है।
    • यह चंद्रयान-2 ऑर्बिटर पर लगे ऑप्टिकल हाई-रिजॉल्यूशन कैमरे एवं चंद्रयान-3 रोवर, प्रज्ञान पर लगे नेविगेशनल कैमरों के डेटा पर आधारित था।
  • एस्ट्रोसैट का विस्तारित मिशन जीवन: मूल रूप से पाँच वर्षों के लिए योजना बनाई गई थी, एस्ट्रोसैट नौ वर्षों के लिए परिचालन में है एवं 400 से अधिक शोध पत्रों का समर्थन करते हुए अतिरिक्त दो वर्षों तक चलने का अनुमान है।
    • एस्ट्रोसैट भारत का पहला समर्पित खगोल विज्ञान मिशन है, जिसे एक्स-रे, ऑप्टिकल एवं पराबैंगनी स्पेक्ट्रल बैंड में आकाशीय स्रोतों का एक साथ अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है।
      • भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ने अपनी 31वीं उड़ान (PSLV-C30) में 1515 किलोग्राम भार वाला एस्ट्रोसैट को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 650 किमी. की कक्षा में लॉन्च किया।

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