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भारत का पहला बाँस-आधारित जैव-इथेनॉल रिफाइनरी संयंत्र

Lokesh Pal September 16, 2025 03:12 105 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम में भारत की पहली बाँस-आधारित बायो-इथेनॉल रिफाइनरी का उद्घाटन किया, जो ऊर्जा आत्मनिर्भरता (ऊर्जा में आत्मनिर्भर भारत) की ओर परिवर्तन में एक उपलब्धि सिद्ध होगा।

  • उन्होंने रिफाइनरी परिसर में एक नई पॉलीप्रोपाइलीन इकाई की आधारशिला भी रखी।

बायो-इथेनॉल के बारे में

  • यह एक नवीकरणीय ईंधन है, जो गन्ना, मक्का या अन्य पादप पदार्थों जैसे जैव ईंधन को किण्वित करके बनाया जाता है; इसका उपयोग मुख्य रूप से कार्बन उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिए पेट्रोल में जैव ईंधन के रूप में किया जाता है।
  • जैव-रिफाइनरी एक औद्योगिक सुविधा है, जो जैव ईंधन को ऊर्जा, जैव ईंधन, जैव रसायन, जैव ऊर्जा/जैव शक्ति और अन्य जैव पदार्थों में संसाधित करती है।

पॉलीप्रोपाइलीन के बारे में

  • यह प्रोपिलीन के बहुलकीकरण द्वारा निर्मित एक सिंथेटिक रेजिन है।
  • यह हल्का, सतत्, संक्षारण और नमी प्रतिरोधी (जलरोधी) और पुनर्चक्रणीय होने के कारण मूल्यवान है।
  • अनुप्रयोग: इसका व्यापक रूप से पैकेजिंग, पाइप, फाइबर और वस्त्र, ऑटोमोटिव पार्ट्स, विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, चिकित्सा उपकरणों और उपभोक्ता वस्तुओं में उपयोग किया जाता है।

असम जैव-इथेनॉल संयंत्र की मुख्य विशेषताएँ

  • प्रकृति: भारत की पहली जैव-रिफाइनरी, जिसमें बाँस को प्राथमिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया गया है।
  • स्थान: गोलाघाट जिला, असम।
  • उद्देश्य: एक वैकल्पिक, नवीकरणीय और पर्यावरण-अनुकूल ईंधन स्रोत के रूप में जैव-इथेनॉल का उत्पादन करना।
  • कच्चा माल: असम, अरुणाचल प्रदेश और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से प्रतिवर्ष पाँच लाख टन हरा बाँस प्राप्त होता है।
  • स्वामित्व: नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (Numaligarh Refinery Limited- NRL), फिनलैंड की फोर्टम और केमपोलिस ओवाई का संयुक्त उद्यम।
  • महत्त्व: आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की भारत की रणनीति के अनुरूप।

भारत में बाँस उत्पादन

  • क्षेत्रफल और विविधता: भारत में दुनिया में बाँस का सबसे बड़ा क्षेत्रफल है, जो लगभग 13.96 मिलियन हेक्टेयर है।
  • प्रजाति समृद्धि: प्रजाति समृद्धि के मामले में, यह चीन के बाद दूसरे स्थान पर है, जहाँ 136 प्रजातियाँ (125 देशी और 11 विदेशी) पाई जाती हैं।
  • उत्पादन: देश में वार्षिक रूप से लगभग 14.6 मिलियन टन बाँस का उत्पादन होता है।
  • बाँस एक लिग्नोसेलूलोसिक बायोमास (गैर-खाद्य, काष्ठीय घास) है।
    • इसमें सेलूलोज और हेमीसेलूलोज होते हैं, जिन्हें हाइड्रोलाइज करके शर्करा का निर्माण किया जा सकता है और फिर किण्वित करके इथेनॉल बनाया जा सकता है।
    • यह इसे दूसरी पीढ़ी (2G) के बायोइथेनॉल के लिए उपयुक्त बनाता है, क्योंकि यह खाद्य फसलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा नहीं करता है।

महत्त्व

  • नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा: अपनी तरह का पहला बाँस बायो-इथेनॉल संयंत्र असम के प्राकृतिक बाँस भंडार का लाभ उठाता है।
  • आर्थिक प्रभाव: बाँस की खेती और उससे जुड़े उद्योगों को प्रोत्साहित करता है, जिससे पूर्वोत्तर में रोजगार सृजन होता है।
  • रणनीतिक भूमिका: कार्बन उत्सर्जन कम करता है और ईंधन में भारत के इथेनॉल मिश्रण लक्ष्यों (2025 तक 20% मिश्रण) को पूरा करने में मदद करता है।
  • क्षेत्रीय विकास: असम में ऊर्जा स्वतंत्रता को चिकित्सा और परिवहन अवसंरचना विस्तार के साथ एकीकृत करता है।

जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सरकारी पहल

  • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति (2018): वर्ष 2022 में संशोधित जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 ने अन्य बातों के साथ-साथ पेट्रोल में इथेनॉल के 20% मिश्रण के लक्ष्य को वर्ष 2030 से बढ़ाकर इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ESY) 2025-26 कर दिया है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य जैव ईंधन के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर और स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को बढ़ावा देकर पेट्रोलियम आयात को कम करना है।
    • नीति में इथेनॉल उत्पादन के लिए निम्नलिखित के उपयोग की अनुमति दी गई है: गन्ने का रस, चुकंदर, कसावा, क्षतिग्रस्त खाद्यान्न, सड़े हुए आलू, मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त पदार्थ।
  • इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (Ethanol Blended Petrol- EBP) कार्यक्रम: भारत ने वर्ष 2030 के लिए निर्धारित अपने मूल लक्ष्य से पाँच वर्ष पहले, वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण सफलतापूर्वक प्राप्त कर लिया है।
  • रीपर्पज कुकिंग ऑयल (Repurpose Cooking Oil- RUCO) पहल: यह एक ऐसी परियोजना है, जो वनस्पति तेलों, पशु वसा, जिनका उपयोग पहले से ही खाना पकाने में किया जाता है, को डीजल वाहनों या डीजल का उपयोग करने वाले किसी भी उपकरण को चलाने के लिए बायोडीजल में परिवर्तित करने की योजना बनाती है।

जैव ईंधन वर्गीकरण: 1G से 4G

1. प्रथम पीढ़ी (1G) जैव ईंधन

  • फीडस्टॉक: खाद्य फसलें जैसे गन्ना, मक्का, गेहूँ, चुकंदर, सोयाबीन तेल, पाम ऑयल
  • तकनीक: शर्करा/स्टार्च का किण्वन (इथेनॉल के लिए) और खाद्य तेलों का ट्रांसएस्टरीफिकेशन (बायोडीजल के लिए)
  • लाभ: परिपक्व, व्यावसायिक रूप से स्थापित तकनीक; कच्चे माल की आसान उपलब्धता; परिवहन ईंधन में मिश्रण।
  • सीमाएँ: “खाद्य बनाम ईंधन (Food vs Fuel)” संघर्ष; खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा; उच्च जल/भूमि उपयोग; बड़े पैमाने पर सतत् नहीं।

2. दूसरी पीढ़ी (2G) जैव ईंधन

  • फीडस्टॉक: अखाद्य बायोमास और फसल अवशेष (गेहूँ का भूसा, चावल की भूसी, खोई), वन अवशेष (बाँस, चूरा), जट्रोफा के बीज, अखाद्य तेल।
  • प्रौद्योगिकी: लिग्नोसेलूलोसिक बायोमास (Lignocellulosic Biomass) का रूपांतरण (पूर्व उपचार → जल-अपघटन → किण्वन/गैसीकरण); उन्नत बायोडीजल उत्पादन
  • लाभ: खाद्य सुरक्षा संबंधी समस्याओं से बचाव; अपशिष्ट बायोमास का उपयोग; पराली जलाने और प्रदूषण को कम करना; अधिक सतत्।
  • सीमाएँ: उच्च उत्पादन लागत; तकनीक अभी भी विकसित हो रही है; एंजाइम और पूर्व उपचार महँगे हैं; कम ऊर्जा दक्षता।

3. तीसरी पीढ़ी (3G) जैव ईंधन

  • फीडस्टॉक: शैवाल (सूक्ष्म शैवाल, वृहद शैवाल) और विशेष रूप से संवर्द्धित सूक्ष्मजीव।
  • तकनीक: शैवाल की खेती → तेल/कार्बोहाइड्रेट का निष्कर्षण → बायोडीजल, इथेनॉल या हाइड्रोजन में रूपांतरण।
  • लाभ: प्रति हेक्टेयर बहुत अधिक उपज; खाद्य प्रतिस्पर्द्धा नहीं; CO₂ को अवशोषित कर सकता है और अपशिष्ट जल का उपयोग कर सकता है; अनुकूलित उत्पाद (बायोडीजल, इथेनॉल, बायोहाइड्रोजन)।
  • सीमाएँ: अभी भी अनुसंधान एवं विकास और प्रायोगिक चरण में; महँगा बुनियादी ढाँचा और रखरखाव; मापनीयता संबंधी चुनौतियाँ।

4. चौथी पीढ़ी (4G) जैव ईंधन

  • फीडस्टॉक: आनुवंशिक रूप से संशोधित शैवाल, फसलें, या सूक्ष्मजीव; सिंथेटिक जीव विज्ञान; सौर-आधारित जैव ईंधन।
  • प्रौद्योगिकी: जैव-रिफाइनरियों के साथ कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) को एकीकृत करती है; इंजीनियर्ड सिस्टम का उपयोग करके CO₂ का प्रत्यक्ष रूप से ईंधन में रूपांतरण।
  • लाभ: संभावित रूप से कार्बन-तटस्थ या कार्बन-ऋणात्मक; उच्चतम स्थिरता; जलवायु परिवर्तन को सीधे संबोधित करता है।
  • सीमाएँ: अत्यधिक भविष्योन्मुखी; उन्नत जैव प्रौद्योगिकी और भारी निवेश की आवश्यकता; अभी भी प्रायोगिक।

भारत की वैश्विक ऊर्जा स्थिति

  • जैव ईंधन: विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक।
  • LNG: विश्व में चौथी सबसे बड़ी टर्मिनल क्षमता
  • शोधन क्षमता: विश्व में चौथी सबसे बड़ी।
  • निर्यात: परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों का सातवाँ सबसे बड़ा निर्यातक।

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