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भारत की पहली डायरेक्ट-टू-डिवाइस (D2D) सैटेलाइट कनेक्टिविटी

Lokesh Pal November 19, 2024 03:11 35 0

संदर्भ

सरकारी दूरसंचार प्रदाता BSNL ने भारत की पहली डायरेक्ट-टू-डिवाइस सैटेलाइट इंटरनेट सेवा (Direct-to-Device Satellite Internet Service) शुरू की है, जिसका उद्देश्य दूरदराज के क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना है।

  • यह सेवा अमेरिका स्थित संचार कंपनी वायसैट (Viasat) के सहयोग से शुरू की गई है।
  • इंडिया मोबाइल कांग्रेस (Indian Mobile Congress- IMC) ने वर्ष 2024 में इसकी घोषणा की और दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) द्वारा इसकी जानकारी दी गई।

इंडिया मोबाइल कांग्रेस (India Mobile Congress- IMC) 2024

  • इंडिया मोबाइल कांग्रेस (IMC), 2024 वैश्विक और भारतीय दूरसंचार क्षेत्रों के लिए एक महत्त्वपूर्ण आयोजन है, जो 15-19 अक्टूबर, 2024 को नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित किया गया था।
  • थीम: IMC 2024 की थीम है:- ‘द फ्यूचर इज नाउ’ (The Future is Now)
  • चर्चा के विषय: इस कार्यक्रम में 6G, 5G, AI, सैटेलाइट संचार, सेमीकंडक्टर और EV जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर चर्चा होगी।
  • संगठन: दूरसंचार विभाग और सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Cellular Operators Association of India- COAI) इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं।

डायरेक्ट-टू-डिवाइस सैटेलाइट प्रौद्योगिकी के बारे में

  • डायरेक्ट-टू-डिवाइस सैटेलाइट तकनीक एक कनेक्टिविटी समाधान है, जो पारंपरिक ग्राउंड-आधारित सेलुलर टॉवरों को दरकिनार करते हुए डिवाइस को कक्षा में उपग्रहों के साथ सीधे संचार करने की अनुमति देता है।
  • यह तकनीक उन क्षेत्रों में नेटवर्क कवरेज प्रदान करती है, जहाँ सेलुलर या Wi-Fi  नेटवर्क उपलब्ध नहीं हैं, जिससे दूरदराज या कम सेवा वाले क्षेत्रों में कनेक्टिविटी सुनिश्चित होती है।

यह किस प्रकार कार्य करता है:

  • सैटेलाइट सिग्नल ट्रांसमिशन (Satellite Signal Transmission): जमीन पर मौजूद डिवाइस सीधे कक्षा में स्थित सैटेलाइट से सिग्नल प्राप्त करते हैं, आमतौर पर जियोस्टेशनरी या लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit- LEO) सैटेलाइट।
  • गैर-स्थलीय नेटवर्क (Non-Terrestrial Network- NTN): डिवाइस एवं सैटेलाइट के बीच निर्बाध दो-तरफा संचार के लिए NTN तकनीक का उपयोग करता है।
  • भूस्थिर सैटेलाइट: 36,000 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित ये सैटेलाइट व्यापक कवरेज और विश्वसनीय कनेक्शन प्रदान करते हैं।

D2D  सैटेलाइट प्रौद्योगिकी की मुख्य विशेषताएँ

  • विस्तृत क्षेत्र कवरेज: D2D सैटेलाइट तकनीक विशाल भौगोलिक क्षेत्रों को कवर कर सकती है, जिसमें सीमित या बिना स्थलीय नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर वाले दूरदराज के क्षेत्र भी शामिल हैं। यह इसे विविध भू-भागों या बड़ी ग्रामीण आबादी वाले देशों के लिए आदर्श बनाता है।
  • हाई-स्पीड इंटरनेट एक्सेस (High-Speed Internet Access): यह तकनीक हाई-स्पीड इंटरनेट एक्सेस प्रदान करती है, जिससे निर्बाध ब्राउजिंग, स्ट्रीमिंग और ऑनलाइन गतिविधियाँ संभव होती हैं। यह डिजिटल डिवाइड को समाप्त कर सकता है और दूरदराज के क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
  • विश्वसनीय कनेक्टिविटी: D2D सैटेलाइट तकनीक प्राकृतिक आपदाओं या बुनियादी ढाँचे की विफलताओं के कारण होने वाले व्यवधानों के प्रति कम संवेदनशील है, जो चुनौतीपूर्ण मौसम की स्थिति में भी विश्वसनीय कनेक्टिविटी सुनिश्चित करती है। 
  • आपातकालीन संचार: इसका उपयोग आपदाग्रस्त क्षेत्रों या सीमित नेटवर्क कवरेज वाले क्षेत्रों में आपातकालीन संचार के लिए किया जा सकता है, जिससे संकट के दौरान महत्त्वपूर्ण संचार संभव हो पाता है। 
  • ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ (IoT) समर्थन: D2D सैटेलाइट तकनीक IoT उपकरणों का समर्थन कर सकती है, जिससे विभिन्न प्रणालियों की दूरस्थ निगरानी और नियंत्रण की सुविधा मिलती है। इससे स्मार्ट सिटी पहल और डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा मिल सकता है।

डायरेक्ट-टू-डिवाइस सैटेलाइट प्रौद्योगिकी के वैश्विक उदाहरण

  • स्पेसएक्स का स्टारलिंक: डायरेक्ट-टू-सेल क्षमताओं सहित वैश्विक उपग्रह इंटरनेट कवरेज प्रदान करने का लक्ष्य रखता है।
  • एएसटी स्पेसमोबाइल (AST SpaceMobile): मानक मोबाइल फोन से सीधे कनेक्शन के लिए उपग्रह आधारित सेलुलर नेटवर्क विकसित करना।
  • लिंक ग्लोबल (Lynk Global): आपातकालीन और दूरदराज के क्षेत्रों के लिए डायरेक्ट-टू-फोन उपग्रह संचार पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • कॉन्स्टेलेशन नेटवर्क (Constellation Network): IoT डिवाइस कनेक्टिविटी के लिए उपग्रह-आधारित नेटवर्क का निर्माण करना।

भारत के लिए संभावित लाभ

  • सुदूर क्षेत्रों के लिए कनेक्टिविटी: ग्रामीण और कम आबादी वाले क्षेत्रों के लिए आदर्श जहाँ पारंपरिक बुनियादी ढाँचे को बनाए रखना कठिन है।
  • नियमित उपयोगकर्ताओं के लिए पहली सेवा: आपातकालीन केंद्रित उपग्रह संचार के विपरीत, यह सेवा नियमित सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण: यह UPI भुगतान और डिजिटल लेनदेन का समर्थन कर सकता है, जो कम सेवा वाले क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • डिजिटल डिवाइड को पाटना: डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देते हुए दूरस्थ और कम सेवा वाले क्षेत्रों को जोड़ता है।
  • आपदा प्रबंधन: यह आपात स्थिति के दौरान संचार और समन्वय की सुविधा प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: यह रक्षा और रणनीतिक उद्देश्यों के लिए संचार क्षमताओं को बढ़ाता है।
  • यात्रा और सुरक्षा: यह यात्रियों और साहसी लोगों के लिए लाभकारी है, जिन्हें विश्वसनीय संचार चैनलों की आवश्यकता होती है।
  • BSNL द्वारा पुनरुद्धार और नवाचार: अपनी सेवाओं को नया रूप देने और दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिए BSNL के बड़े प्रयास का हिस्सा।

चुनौतियाँ

  • उच्च प्रारंभिक लागत: उपग्रह अवसंरचना की तैनाती एवं रखरखाव महंगा हो सकता है।
  • विलंबता: वीडियो कॉल जैसे वास्तविक समय के अनुप्रयोगों में विलंबता बढ़ने की संभावना है।
  • विनियामक ढाँचा: निर्बाध संचालन के लिए स्पष्ट विनियमन और स्पेक्ट्रम आवंटन की आवश्यकता है।
  • डिवाइस संगतता: विभिन्न उपकरणों और ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ संगतता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण है।
  • प्रसार चुनौतियाँ: विविध वातावरण में सिग्नल के ह्रास होने पर नियंत्रण पाना।

निष्कर्ष

D2D सैटेलाइट तकनीक में कनेक्टिविटी में क्रांति लाने की अपार संभावनाएँ हैं, विशेषकर भारत जैसे देशों में। यह डिजिटल डिवाइड को पाट सकता है, दूरदराज के समुदायों को सशक्त बना सकता है और सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान दे सकता है। हालाँकि, लागत, विलंबता और विनियामक ढाँचे से संबंधित चुनौतियों का समाधान इसके सफल कार्यान्वयन के लिए महत्त्वपूर्ण है।

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