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भारत की पहली राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति

Lokesh Pal September 18, 2025 02:34 54 0

संदर्भ

हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (भारत सरकार) ने भारत की पहली राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति अधिसूचित की, जिसका उद्देश्य देश में अप्रयुक्त भू-तापीय संसाधनों के उपयोग को प्रोत्साहित करना है।

भारत की पहली राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति (2025) के बारे में

  • स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा: यह नीति वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के रोडमैप के अनुरूप है और इसका उद्देश्य सौर एवं पवन ऊर्जा के अलावा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना है।
  • दृष्टिकोण एवं लक्ष्य
    • नवीकरणीय ऊर्जा को मुख्यधारा में लाना: भू-तापीय ऊर्जा को सौर, पवन, जैव ऊर्जा और जल विद्युत के साथ-साथ भारत के नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण का एक प्रमुख स्तंभ बनाना।
    • क्षमता का दोहन: 10,600 मेगावाट (MW) क्षमता का दोहन, ऊर्जा सुरक्षा में योगदान और विश्वसनीय बेस-लोड विद्युत उपलब्ध कराना।
    • डीकार्बोनाइजेशन मार्ग: भू-स्रोत ताप पंप (Ground Source Heat Pumps- GSHP) और प्रत्यक्ष-उपयोग अनुप्रयोगों के माध्यम से भवनों, उद्योगों, कृषि और शहरी स्थानों को डीकार्बोनाइज करना।
    • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: एक मजबूत सार्वजनिक-निजी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण, क्षमता निर्माण सुनिश्चित करना और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना।

  • पहचानी गई क्षमता
    • सर्वेक्षण और प्रांत: भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और सोन-नर्मदा-ताप्ती क्षेत्र बेसिन (सोनाता बेसिन) सहित 381 गर्म झरनों और 10 भू-तापीय प्रांतों का मानचित्रण किया है।
    • उच्च-आंतरिक ऊर्जा क्षमता: पुगा-चुमाथांग (लद्दाख) जैसे स्थलों को विद्युत उत्पादन के लिए चिह्नित किया गया है।
    • मध्यम/निम्न-आंतरिक ऊर्जा अनुप्रयोग: मध्यम और निम्न तापीय प्रवणता वाले क्षेत्रों को ग्रीनहाउस तापन, जलीय कृषि और औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसे प्रत्यक्ष उपयोगों के लिए लक्षित किया जाता है।
  • नीति की मुख्य विशेषताएँ
    • अन्वेषण एवं डेटा संग्रह: व्यवस्थित भू-वैज्ञानिक, भू-रासायनिक और भू-भौतिकीय सर्वेक्षणों के माध्यम से, केंद्रीय खान मंत्रालय, हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (DGH) तथा CSIR–राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) के सहयोग से एक राष्ट्रीय भू-तापीय संसाधन डेटाबेस का निर्माण किया जाएगा।
    • परित्यक्त तेल एवं गैस कुओं का पुनरुद्देश्यीकरण: भू-तापीय निष्कर्षण हेतु निष्क्रिय कुओं के पुनर्निर्माण हेतु तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) और पेट्रोलियम कंपनियों के साथ सहयोग।
    • भू-स्रोत ऊष्मा पंप (GSHP): भू-तापमान (10-25 डिग्री सेल्सियस) का लाभ उठाते हुए, 24/7 तापन और शीतलन हेतु GSHP को बढ़ावा देना।
    • संयुक्त उद्यम: विशेषज्ञता और पूँजी जुटाने के लिए भू-तापीय विकासकर्ताओं, तेल कंपनियों और खनिज फर्मों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
    • राजकोषीय प्रोत्साहन: कर छूट, त्वरित मूल्यह्रास, आयात शुल्क छूट, रियायती भूमि पट्टे, व्यवहार्यता अंतर निधि (VGF) और निवेशों को जोखिम मुक्त करने के लिए हरित बॉण्ड जारी करना।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): भू-तापीय ऊर्जा में 100% तक FDI की अनुमति है, रियायती ऋण और बहुपक्षीय वित्तपोषण को प्रोत्साहित किया जाएगा।

    • परियोजना अवधि: भू-तापीय परियोजनाओं को 30 वर्षों के लिए समर्थन दिया जाएगा, संसाधन उपलब्धता के आधार पर विस्तार किया जा सकता है।
    • प्रत्यक्ष अनुप्रयोग: यह नीति विद्युत उत्पादन के अलावा, शीत भंडारण, बागवानी, ग्रीनहाउस तापन, जलीय कृषि और भू-पर्यटन में उपयोग को बढ़ावा देती है।
    • उपोत्पाद और खनिज: खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत भू-तापीय तरल पदार्थों से लीथियम, सिलिका और बोरॉन जैसे मूल्यवान खनिजों के निष्कर्षण की अनुमति है।
    • पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय: स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986), वन संरक्षण अधिनियम (1980) और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) का अनुपालन किया गया है।

भू-तापीय ऊर्जा के बारे में

  • परिभाषा: भू-तापीय ऊर्जा, पृथ्वी की पर्पटी के नीचे संचित ऊष्मा को संदर्भित करती है, जो मुख्य रूप से रेडियोधर्मी क्षय और मैग्मा की गति के माध्यम से उत्पन्न होती है।
    • यह ऊष्मा गर्म जल भंडारों, प्राकृतिक भाप या गर्म चट्टान संरचनाओं के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।
  • अनुप्रयोग: इसका उपयोग विद्युत उत्पादन, तापन और शीतलन प्रणालियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं और जल शोधन के लिए किया जाता है।
    • सौर और पवन ऊर्जा, जो अस्थायी हैं, के विपरीत, भू-तापीय ऊर्जा निरंतर, आधार-भार नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान करती है।
  • प्रयुक्त प्रौद्योगिकियाँ: विद्युत संयंत्रों में प्रयुक्त तीन प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ हैं:
    • शुष्क भाप संयंत्र: टरबाइनों को घुमाने के लिए सीधे भू-तापीय भाप का उपयोग करते हैं।
    • फ्लैश स्टीम संयंत्र: उच्च दाब युक्त गर्म जल का उपयोग करते हैं, जो तेजी से वाष्पीकृत होकर भाप में बदल जाता है।
    • बाइनरी साइकिल संयंत्र: कम क्वथनांक वाले द्वितीयक द्रव को गर्म करने के लिए मध्यम गर्म जल (200°C से कम) का उपयोग करते हैं, जो फिर टरबाइन को चलाता है।

भारत का भू-तापीय ऊर्जा परिदृश्य

  • भू-तापीय एटलस (2022): भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI) ने एक भू-तापीय एटलस प्रकाशित किया है, जिसमें देश भर में 381 तापीय रूप से असामान्य क्षेत्रों की पहचान की गई है।
  • अनुमानित क्षमता: भारत में अनुमानित 10,600 मेगावाट (MW) भू-तापीय ऊर्जा क्षमता है, जो हिमालय, गुजरात, महाराष्ट्र, सोनाटा बेसिन, गोदावरी बेसिन और पूर्वोत्तर राज्यों सहित विविध भू-वैज्ञानिक क्षेत्रों में विस्तृत है।
  • प्रमुख जलाशय
    • पुगा-चुमाथांग क्षेत्र (लद्दाख): 240°C तक के उच्च तापमान वाले जलाशय, जो फ्लैश या बाइनरी पॉवर प्लांट के लिए उपयुक्त हैं।
      • भारत की पहली और विश्व की सबसे ऊँची भू-तापीय ऊर्जा परियोजना लद्दाख की पुगा घाटी में विकसित की जा रही है। तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) 14,000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर इस परियोजना का क्रियान्वयन कर रहा है।
    • तातापानी-सूरजकुंड बेल्ट (छत्तीसगढ़/झारखंड): मध्यम आंतरिक ऊर्जा क्षेत्र (110-150 °C)।
    • कैम्बे बेसिन (गुजरात): मध्यम से उच्च आंतरिक ऊर्जा, जिसमें विद्युत और प्रत्यक्ष-उपयोग दोनों अनुप्रयोगों की संभावना है।

भू-तापीय ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय प्राथमिकता

  • वैश्विक क्षमता बेंचमार्क: वर्ष 2024 के अंत तक, विश्व की स्थापित भू-तापीय क्षमता 15.4 गीगावाट (GW) थी, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनेशिया और फिलीपींस सबसे आगे थे।
  • जर्मनी में ऊर्जा परिवर्तन: जर्मनी अपने वर्ष 2030 के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भू-तापीय परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ा रहा है और भू-तापीय ऊर्जा को पवन एवं सौर ऊर्जा के एक विश्वसनीय पूरक के रूप में देख रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और बड़ी तकनीकी कंपनियाँ: संयुक्त राज्य अमेरिका में, बड़ी तकनीकी कंपनियाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) डेटा केंद्रों को ऊर्जा प्रदान करने के लिए कम कार्बन युक्त भू-तापीय विद्युत का तेजी से अन्वेषण कर रही हैं, जो डिजिटल बुनियादी ढाँचे के भविष्य में इसकी भूमिका को दर्शाता है।
    • कैलिफोर्निया स्थित गीजर कॉम्प्लेक्स विश्व का सबसे बड़ा भू-तापीय क्षेत्र है, जो लगभग 1,500 मेगावाट विद्युत का उत्पादन करता है और लाखों घरों को स्वच्छ विद्युत प्रदान करता है।
  • केन्या: ओलकारिया भू-तापीय कॉम्प्लेक्स लगभग 989 मेगावाट विद्युत उत्पन्न करता है, जो केन्या की लगभग 40% विद्युत की माँग को पूरा करता है, जिससे यह अफ्रीका के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी बन गया है।
  • तुर्की: 2 गीगावाट (GW) की स्थापित भू-तापीय क्षमता के साथ, तुर्की दुनिया के शीर्ष पाँच उत्पादकों में से एक है और ग्रीनहाउस तथा तापन प्रणालियों के लिए भी भू-तापीय ऊर्जा का व्यापक रूप से उपयोग करता है।
  • आइसलैंड: लगभग 100% घरों को भू-तापीय ऊर्जा से विद्युत की आपूर्ति की जाती है। रेक्जानेस पॉवर प्लांट अकेले उच्च तापमान वाले जलाशयों से 130 मेगावाट विद्युत उत्पन्न करता है।

भू-तापीय ऊर्जा का सामरिक और सामाजिक-आर्थिक महत्त्व

  • स्वच्छ एवं विश्वसनीय बेस-लोड पावर: 24×7 विद्युत प्रदान करती है, ग्रिड स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करती है और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को ऊर्जा प्रदान करती है। साथ ही 99% कम CO₂ उत्सर्जन करती है तथा नेट जीरो 2070 और पेरिस समझौते के लक्ष्यों का समर्थन करती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा और कम जीवाश्म निर्भरता: परित्यक्त तेल और गैस कुओं का पुन: उपयोग करती है, कोयले और पेट्रोलियम पर निर्भरता कम करती है, आयात बिलों में कटौती करती है और रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ाती है।
  • आर्थिक विकास और ग्रामीण विकास: भू-पर्यटन, औद्योगिक तापन, ग्रीनहाउस खेती, जलीय कृषि और शीत भंडारण को सक्षम बनाती है, रोजगार सृजन, एमएसएमई के लिए अवसर और ग्रामीण आय के स्रोत उत्पन्न करती है। साथ ही दूरस्थ विद्युतीकरण और संतुलित क्षेत्रीय विकास को भी बढ़ावा देती है।
  • खनिज एवं तकनीकी लाभ: हॉट ब्राइन में लीथियम, सिलिका, बोरॉन और सीजियम होते हैं, जो ईवी बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों का समर्थन करते हैं; यह AI-संचालित शीतलन, हरित हाइड्रोजन उत्पादन और कार्बन कैप्चर के साथ एकीकृत होकर अगली पीढ़ी के ऊर्जा नवाचारों को बढ़ावा देती है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और सहयोग: भारत को नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बनाती है, अमेरिका, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे भू-तापीय केंद्रों के साथ संरेखित करती है, जलवायु कूटनीति को मजबूत करती है, और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सक्षम बनाती है।

भू-तापीय ऊर्जा में वैश्विक पहल

  • अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency-IRENA): भू-तापीय ऊर्जा का दोहन करने वाले देशों के लिए क्षमता निर्माण, नीतिगत मार्गदर्शन और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करती है।
  • विश्व बैंक भू-तापीय विकास कार्यक्रम: विकासशील देशों के लिए वित्तपोषण, जोखिम न्यूनीकरण निधि और व्यवहार्यता अध्ययन सहायता प्रदान करता है।
  • यूरोपीय संघ ग्रीन डील: सीमा-पार नवाचार निधि और नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण परियोजनाओं के माध्यम से भू-तापीय ऊर्जा विस्तार का समर्थन करता है।

भारत में भू-तापीय ऊर्जा के लिए नीति और संस्थागत ढाँचा

  • राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति (2025): नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) द्वारा घोषित, यह नीति अन्वेषण, प्रायोगिक परियोजनाओं, परित्यक्त तेल कुओं के उपयोग, निजी निवेश प्रोत्साहन और विदेशी सहयोग के लिए एक राष्ट्रीय ढाँचा प्रदान करती है।
  • अनुसंधान एवं विकास (Research and Development- R&D): MNRE नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम डेटा संग्रह, संसाधन मानचित्रण, व्यवहार्यता अध्ययन और प्रायोगिक संयंत्रों के लिए धन उपलब्ध कराती है। उन्नत ड्रिलिंग और उन्नत भू-तापीय प्रणालियों के लिए IIT बॉम्बे और ONGC ऊर्जा केंद्र के साथ सहयोग जारी है।
  • संस्थागत तंत्र: वर्ष 2024 में, MNRE ने भू-तापीय ऊर्जा पर एक राष्ट्रीय कार्यबल की स्थापना की ताकि एक रोडमैप तैयार किया जा सके, तकनीकी मानक बनाए जा सकें और निवेशक जोखिम कम किए जा सकें।
  • राज्य-स्तरीय नीतियाँ
    • उत्तराखंड: उत्तराखंड सरकार ने तापन, शीतलन, जल शोधन और विद्युत उत्पादन में अनुप्रयोगों को प्रोत्साहित करने के लिए भू-तापीय ऊर्जा नीति-2025 प्रस्तुत की है।
      • यह नीति विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए 50% वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है।
    • गुजरात और लद्दाख: आगामी परियोजनाओं के लिए विशेष रूप से कैम्बे बेसिन और पुगा घाटी प्राथमिकता क्षेत्रों के रूप में पहचाने गए हैं।

भारत में भू-तापीय ऊर्जा के दोहन में चुनौतियाँ

  • उच्च पूँजीगत लागत: ड्रिलिंग और अन्वेषण के लिए महत्त्वपूर्ण अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण: कैम्बे बेसिन (गुजरात) की पायलट परियोजना, प्रारंभिक रुचि के बावजूद वित्तीय अव्यवहार्यता के कारण रुकी हुई थी।
  • अन्वेषण जोखिम: भू-वैज्ञानिक अनिश्चितताओं के कारण अनेक कुएँ व्यावसायिक रूप से अव्यवहार्य सिद्ध हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अदृश्य लागतें (Sunk Costs) उत्पन्न होती हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में लद्दाख के पुगा में भू-तापीय ड्रिलिंग अप्रत्याशित रूप से उच्च द्रव दबाव और मात्रा के कारण कुएँ के शीर्ष में विस्फोट के कारण रोक दी गई, जिससे ONGC ठेकेदार को परियोजना स्थगित करनी पड़ी।
  • दूरस्थ स्थान: लद्दाख के पुगा जैसे उच्च-संभावित स्थलों को कठिन भू-भाग, ऊँचाई और बुनियादी ढाँचे की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे विद्युत निकासी महँगी हो जाती है।
  • उच्च-संभावित भू-तापीय स्थल मुख्यतः टेक्टॉनिक प्लेट सीमाओं तक ही सीमित हैं, जिससे व्यापक तैनाती सीमित हो जाती है और दूरस्थ क्षेत्रों में संसाधनों की पहुँच एवं विद्युत निकासी एक बड़ी चुनौती बन जाती है।
  • नियामक बाधाएँ: भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी और अंतर-एजेंसी समन्वय में देरी से परियोजना अनुमोदन में देरी होती है।
    • उदाहरण: गुजरात में कैम्बे संयुक्त उद्यम (ONGC-टैलबूम) परियोजना वर्ष 2012 में वैधानिक अनुमोदनों में देरी और भूमि उपयोग अधिकारों के अनसुलझे होने के कारण रुकी हुई थी, जिससे नियामकीय अड़चनें और भी बढ़ गईं।
  • सीमित विशेषज्ञता और अनुसंधान एवं विकास: सौर और पवन ऊर्जा के विपरीत, भारत में प्रशिक्षित भू-तापीय पेशेवर कम हैं। इसके अलावा, MNRE के तहत भू-तापीय ऊर्जा के लिए वार्षिक बजट आवंटन सौर/पवन अनुसंधान एवं विकास (MNRE रिपोर्ट, वर्ष 2024) की तुलना में न्यूनतम रहता है।
  • पर्यावरणीय जोखिम: जोखिमों में भू-स्खलन, भू-तापीय तरल पदार्थों से भूजल का संभावित संदूषण तथा वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित न की गई ड्रिलिंग से उत्पन्न भूकंपीय चिंताएँ शामिल हैं।
  • वित्तपोषण अंतराल: नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण-पत्रों (Renewable Energy Certificates -REC) या मुख्यधारा के हरित वित्त के अंतर्गत शामिल नहीं, जिससे निजी रुचि सीमित होती है (केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग)।

आगे की राह

  • समर्पित प्राधिकरण: एकल-विंडो मंजूरी प्रदान करने, अंतर-मंत्रालयी समन्वय को सुव्यवस्थित करने और नियामक देरी को कम करने के लिए एक राष्ट्रीय भू-तापीय विकास बोर्ड (NGDB) की स्थापना करना।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: निजी निवेश को आकर्षित करने और उच्च अग्रिम जोखिमों को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण-पत्र (REC), कार्बन क्रेडिट, अन्वेषण अनुदान, व्यवहार्यता अंतर निधि और रियायती ऋण प्रदान करना।
  • क्षमता निर्माण: कुशल कार्यबल तैयार करने के लिए IIT और हरित प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयों में भू-तापीय इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम विकसित करना, साथ ही GSI और ONGC के साथ ऑन-फील्ड प्रशिक्षण भी प्रदान करना।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: औद्योगिक और शहरी अनुप्रयोगों के लिए उन्नत भू-तापीय प्रणालियों (Enhanced Geothermal Systems- EGS), द्विआधारी चक्र संयंत्रों और भू-तापीय ऊर्जा को हाइड्रोजन भंडारण या ताप नेटवर्क के साथ संयोजित करने वाले हाइब्रिड समाधानों में निवेश करना।
  • वैश्विक साझेदारियाँ: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त अनुसंधान, वित्तपोषण मॉडल और सर्वोत्तम अभ्यास अपनाने के लिए आइसलैंड, केन्या और जर्मनी के साथ सहयोग करना।
  • सामुदायिक सहभागिता: सामाजिक सहमति सुनिश्चित करने और विरोध को न्यूनतम करने के लिए लाभ-साझाकरण ढाँचे, स्थानीय रोजगार योजनाओं और पर्यावरण सुरक्षा उपायों को लागू करना।

निष्कर्ष

भारत की भू-तापीय ऊर्जा नीति-2025, नवीकरणीय ऊर्जा में विविधता लाने, स्वच्छ आधारभूत ऊर्जा सुनिश्चित करने और सतत् विकास, सहकारी संघवाद और जलवायु न्याय स्थापित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यह सतत् विकास लक्ष्य 7 (स्वच्छ ऊर्जा) और सतत् विकास लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) के अनुरूप है और संवैधानिक नैतिकता को प्रगति का मार्गदर्शक बनाने के अंबेडकर के दृष्टिकोण को प्रतिध्वनित करती है।

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