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भारत का पहला सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन संयंत्र

Lokesh Pal March 02, 2024 03:53 113 0

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत के पहले सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन संयंत्र सहित तीन चिप संबंधित परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान की है।

संबंधित तथ्य 

ये तीन परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं

  • धोलेरा, गुजरात में सेमीकंडक्टर संयंत्र
    • यह सेमीकंडक्टर संयंत्र टाटा समूह और ताइवान की फाउंड्री पॉवरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्प (PSMC) के बीच सहयोग से स्थापित किया जाएगा।
    • यह 28 नैनोमीटर, 40 नैनोमीटर, 55 नैनोमीटर, 90 नैनोमीटर और 110 नैनोमीटर सहित अग्रणी और उन्नत नोड्स तक पहुँच प्रदान करेगा।
    • इसकी क्षमता प्रति माह 50,000 वेफर्स (Wafers) निर्माण की है।
  • मोरीगाँव, असम में चिप असेंबली संयंत्र
    • टाटा समूह एक चिप असेंबली संयंत्र भी स्थापित करेगा, जिसकी प्रतिदिन 48 मिलियन चिप्स निर्माण क्षमता होगी और यह मुख्य रूप से निर्यात आवश्यकताओं को पूरा करेगा।
  • सानंद, गुजरात में चिप पैकेजिंग सुविधा
    • कैबिनेट द्वारा गुजरात के सानंद में एक चिप पैकेजिंग सुविधा को भी मंजूरी प्रदान की गई है।

सेमीकंडक्टरों के बारे में

  • अर्द्धचालक या सेमीकंडक्टर (Semiconductor) , जिन्हें अक्सरचिप्सभी कहा जाता है, सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक सर्किट होते हैं जिनमें ट्रांजिस्टर, डायोड, कैपेसिटर, प्रतिरोधक और इंटरकनेक्शन होते हैं।
    • यह सर्किट सिलिकॉन वेफर पर अत्यंत जटिल एवं परिष्कृत प्रक्रिया के माध्यम से स्थापित किया जाता है।
    • सेमीकंडक्टर का उपयोग डायोड, ट्रांजिस्टर और एकीकृत सर्किट सहित विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। ऐसे उपकरणों के छोटे आकार, विश्वसनीयता, ऊर्जा दक्षता और कम लागत के कारण विभिन्न क्षेत्रों में इनका उपयोग बढ़ा है।

सेमीकंडक्टर उद्योग के बारे में

  • सेमीकंडक्टर उद्योग में सफलता छोटे, तीव्र और सस्ते उत्पाद बनाने पर निर्भर करती है।
  • किसी चिप पर जितने अधिक ट्रांजिस्टर होंगे वह उतनी ही तेजी से अपना कार्य कर सकती है।
  • इससे उद्योग में अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा होती है और नई प्रौद्योगिकियों से प्रति चिप उत्पादन लागत कम हो जाती है।
  • इसलिए, सेमीकंडक्टर कंपनियों को बड़े अनुसंधान और विकास बजट बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
  • सेमीकंडक्टर उद्योग अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे देशों के प्रमुख निर्माता बाजार पर हावी हैं।
  • हालाँकि, हाल के दिनों में, भारत इस क्षेत्र में एक उभरते प्रतिभागी के रूप में सामने आया है।

सेमीकंडक्टर उद्योग से संबंधित शब्दावली

  • वेफर्स (Wafers): सिलिकॉन की चपटी गोल डिस्क जिस पर चिप्स बनी होती हैं।
  • फैब (Fab): फैब्रिकेशनका संक्षिप्त रूप, जिसका अर्थ है विनिर्माणयाबनाना फैब वह स्थान है, जहाँ सेमीकंडक्टर बनाए जाते हैं। फैब सुविधाएँ चिप डिजाइन के अनुसार, इन लघु सर्किटों को सिलिकॉन वेफर्स पर मुद्रित करने में विशेषज्ञ हैं।
  • ट्रांजिस्टर (Transistors): कंप्यूटर चिप्स में निर्मित छोटे उपकरण जो सभी गणनाएँ करते हैं। एक कंप्यूटर चिप पर अरबों ट्रांजिस्टर हो सकती हैं।
  • फाउंड्री (Foundry): एक सेमीकंडक्टर विनिर्माण सुविधा जो बाहरी कंपनियों द्वारा प्रदान किए गए डिजाइन के आधार पर एकीकृत सर्किट (Integrated circuits-IC) का उत्पादन करती है।
  • फैबलेस (Fabless): एक व्यवसाय मॉडल जहाँ एक सेमीकंडक्टर कंपनी IC को डिजाइन और विपणन करती है लेकिन उनके निर्माण को तीसरे पक्ष की फाउंड्री को आउटसोर्स करती है।
  • एकीकृत डिवाइस निर्माता (Integrated Device Manufacturer-IDM): एक कंपनी जो अपने स्वयं के सेमीकंडक्टर उपकरणों को डिजाइन और निर्माण दोनों करती है, जिसमें पूरी आपूर्ति शृंखला शामिल होती है।
  • आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट (OSAT): यह दुनिया भर के आपूर्तिकर्ताओं द्वारा प्रदान की जाने वाली एक तृतीय-पक्ष सेवा है, जिसमें जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, सेमीकंडक्टर असेंबली, पैकेजिंग और IC का परीक्षण शामिल है।

भारत की सेमीकंडक्टर स्थिति और बाजार के अवसर:

  • बाजार आकार में तीव्र वृद्धि : इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (IESA) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की सेमीकंडक्टर खपत वर्ष 2026 तक $64 बिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • विनिर्माण क्षमता विस्तार: भारत वर्तमान में सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला के अनुसंधान एवं विकास और डिजाइन पहलुओं में सबसे मजबूत है।                                                                     
  • हाल ही में, भारत ने अपना ध्यान सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन (“फैब्स”) और पोस्ट-प्रोडक्शन असेंबली, परीक्षण और पैकेजिंग (ATP) पर केंद्रित किया है, जहाँ सेमीकंडक्टर का परीक्षण किया जाता है और उन्हें परिष्कृत पैकेजों में इकट्ठा किया जाता है।

फैब्स की स्थापना के लिए संभावित क्लस्टर

भारत सरकार आवश्यक बुनियादी ढाँचे के साथ हाई-टेक क्लस्टर स्थापित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ सहयोग करेगी।

  • भूमि: फैब सुविधाओं के लिए पर्याप्त भूमि।
  • सेमीकंडक्टर-ग्रेड जल: सेमीकंडक्टर विनिर्माण मानकों को पूरा करने वाला उच्च गुणवत्ता वाला जल।

  • विद्युत : विश्वसनीय और उच्च गुणवत्ता वाली विद्युत आपूर्ति।
  • लॉजिस्टिक्स: कुशल परिवहन और लॉजिस्टिक्स।
  • अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र: अनुसंधान एवं विकास और नवाचार के लिए समर्थन।
    • निर्धारित विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) उपयुक्त स्थान साबित हो सकते हैं।

सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति (National Policy on Electronics-NPE): भारत सरकार ने वर्ष 2019 में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति शुरू की थी। इसका लक्ष्य देश में वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण उद्योग स्थापित करना है।
  • सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में एक स्थायी सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिए 76,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम को भी मंजूरी दी थी।
  • भारत सेमीकंडक्टर मिशन (India Semiconductor Mission-ISM) के बारे में
    • ISM को देश में एक स्थायी सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम के विकास के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तत्त्वावधान में वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था।
    • घटक 
      • भारत में सेमीकंडक्टर फैब्स की स्थापना की योजना
      • भारत में डिस्प्ले फैब्स स्थापित करने की योजना
      • भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर/सिलिकॉन फोटोनिक्स/सेंसर फैब और सेमीकंडक्टर असेंबली, परीक्षण, मार्किंग और पैकेजिंग (ATMP)/OSAT सुविधाओं की स्थापना के लिए योजना
      • डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव (Design Linked Incentive-DLI) योजना: यह इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स (एसओसी), सिस्टम और आईपी कोर और सेमीकंडक्टर लिंक्ड डिजाइन के लिए सेमीकंडक्टर डिजाइन के विकास और तैनाती के विभिन्न चरणों में वित्तीय प्रोत्साहन, डिजाइन बुनियादी ढांचे का समर्थन प्रदान करता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment-FDI) मानदंड: ऑटोमेटिक रूट के तहत 100% FDI की अनुमति है।
  • मेक इन इंडिया अभियान और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर (EMC) योजना का उद्देश्य देश में निवेश आकर्षित करना और सेमीकंडक्टर विनिर्माण को बढ़ावा देना है।

धोलेरा में सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन संयंत्र का महत्त्व

  • आयात निर्भरता में कमी : वर्तमान वैश्विक विनिर्माण क्षमता का 70% दक्षिण कोरिया, ताइवान और चीन तक ही सीमित है, जबकि अमेरिका और जापान बाकी बची माँग को पूरा करते हैं।
    • अपना स्वयं का फैब बनाकर भारत सेमीकंडक्टर उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ा सकता है।
  • व्यापार घाटा संतुलन: भारत में सेमीकंडक्टर उत्पादों में बड़ा व्यापार घाटा है। एक अनुमान के अनुसार,  भारत का 70% इलेक्ट्रॉनिक्स आयात चीन और हांगकांग से होता है, इसके अलावा 13% सिंगापुर से आता है।
  • जटिल निर्माण प्रक्रिया: सेमीकंडक्टर निर्माण में जटिल चरण शामिल होते हैं, जिसमें संदूषण को रोकने के लिए स्वच्छ कमरे की उपलब्धता भी शामिल है। इस प्रक्रिया में सिलिकॉन वेफर्स, विशेष रसायन और निर्बाध बिजली आपूर्ति जैसे इनपुट की आवश्यकता होती है। एक घरेलू फैब इन महत्त्वपूर्ण घटकों पर नियंत्रण सुनिश्चित करता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा: प्रस्तावित ‘फैब’ की विनिर्माण क्षमता प्रति माह 50,000 वेफर्स तक होगी।
    • यह भविष्य की प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक घटकों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
  • रोजगार के अवसर: इसमें 20,000 उन्नत प्रौद्योगिकी नौकरियों का प्रत्यक्ष रोजगार और उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में लगभग 60,000 अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा करने की क्षमता है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला में लचीलापन: विनिर्माण में विविधता लाने से वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टरों की आपूर्ति शृंखला को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण: चीन का सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉरपोरेशन (SMIC) को वर्तमान में उन्नत चिप बनाने वाले उपकरण प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह कठिनाई संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाली नाकाबंदी से उत्पन्न हुई है, जिससे SMIC को महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी की आपूर्ति प्रतिबंधित हो गई है।
  • स्पिलओवर प्रभाव: सेमीकंडक्टर विनिर्माण भारत की शेष उच्च-तकनीकी अर्थव्यवस्था में जबरदस्त स्पिलओवर और “लर्निंग बाय डूइंग” (Learning By Doing) का प्रभाव पैदा कर सकता है।

घरेलू सेमीकंडक्टर क्षेत्र को बढ़ावा देने में चुनौतियाँ

  • फैब्रिकेशन इकाइयों का अभाव: भारत में, 90% से अधिक वैश्विक कंपनियों के पास पहले से ही सेमीकंडक्टरों के लिए अपने अनुसंधान एवं विकास और डिजाइन केंद्र हैं, लेकिन उन्होंने भारत में कभी अपनी फैब्रिकेशन इकाइयाँ नहीं स्थापित की हैं।
    • हालाँकि भारत में मोहाली और बैंगलोर में सेमीकंडक्टर फैब्स हैं, लेकिन यह केवल रक्षा एवं अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिए पूरी तरह से उत्पादन करते हैं।
  • संसाधन-गहन चिप उत्पादन: चिप बनाने के लिए एक ही दिन में कई गैलन शुद्ध जल की भी आवश्यकता होती है।
    • विद्युत की निर्बाध आपूर्ति इस प्रक्रिया का केंद्र है, केवल कुछ सेकंड के उतार-चढ़ाव या बढ़ोतरी से लाखों का नुकसान हो सकता है।
  • बाजार सहभागिता का अभाव: जटिल आवेदन प्रक्रिया और पहले से मौजूद पारिस्थितिकी तंत्र की कमी के कारण।
    • उदाहरण– वर्ष 2021 में, भारत ने चिप निर्माताओं और डिस्प्ले निर्माताओं को आकर्षित करने के लिए $10 बिलियन का प्रोत्साहन कार्यक्रम शुरू किया था। इस पहल ने स्थानीय विनिर्माण परियोजनाओं की स्थापना करने वाली कंपनियों को पूँजीगत व्यय का 50% तक प्रोत्साहन के रूप में दिया गया था। लेकिन कम रुचि के कारण इसमें  संशोधन किया गया था।
  • उच्च पूँजी गहन और प्रवेश बाधाएँ
    • सेमीकंडक्टर डिजाइन और निर्माण के लिए अत्यधिक जटिल उत्पाद हैं।
    • अनुसंधान एवं विकास और पूँजीगत व्यय दोनों में निवेश का स्तर बहुत बड़ा है, जिससे सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन उच्च प्रवेश बाधाओं के साथ एक अत्यंत पूँजी गहन व्यवसाय बन गया है।
  • बंद पारिस्थितिकी तंत्र: वैश्विक सेमीकंडक्टर चिप उद्योग पर कुछ राष्ट्रों और कुछ सीमित कंपनियों का वर्चस्व है।
    • ताइवान और दक्षिण कोरिया चिप्स के लिए वैश्विक फाउंड्री बेस का लगभग 80% हिस्सा बनाते हैं।
  • भारत द्वारा अपर्याप्त प्रोत्साहन: अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भारत की तुलना में अधिक आकर्षक प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की हैं।
  • अपर्याप्त प्रतिभा पूल: भारत में सालाना स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले इंजीनियरों को रोजगार प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, लेकिन बेहतर पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण और तैयारियों की आवश्यकता है, क्योंकि स्नातक स्तर पर केवल एक छोटा सा वर्ग ही उद्योग के लिए तैयार होता है।
  • सेमीकंडक्टर डिजाइन में सीमित मूल अनुसंधान: चिप का भविष्य मूल अनुसंधान द्वारा तय किया जाता है।
    • हालाँकि, सरकार इस कमी से अवगत है और मोहाली में सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला में एक अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला स्थापित करने की प्रक्रिया में है।
  • एकाधिक मंजूरी की आवश्यकता: फैब्स सब-5 नैनोमीटर तकनीक का उपयोग करते हैं, जिसके लिए प्रौद्योगिकी प्रदाता और सरकार दोनों से मंजूरी की आवश्यकता होती है, जिससे स्थापना प्रक्रिया में जटिलता बढ़ जाती है।

आगे की राह 

  • अनुकूल वातावरण: भारत के पास वैश्विक सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखलाओं में बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है, बशर्ते सरकार अपनी निवेश नीतियों को बरकरार रखे, अनुकूल नियामक और व्यावसायिक माहौल बनाए रखे और अप्रत्याशितता पैदा करने वाले उपायों से बचे।
  • OSAT की ओर फोकस बदलना: जो कंपनियाँ आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली और टेस्ट (OSAT) में विशेषज्ञ हैं, उनके लिये संयत्र स्थापित करना कम खर्चीला है और वह कम  लागत पर भी उत्पन्न करती हैं।
    • OSAT सेट-अप चिप निर्माण के कम पूँजी-गहन भागों का ध्यान रखता है, जैसे कि पहले से ही निर्मित सटीक घटकों को इकट्ठा करना और उन्हें अनुमोदित करने के लिए विशेष परीक्षण चलाना।
  • सहयोगात्मक प्रयास: यदि समान विचारधारा वाले राष्ट्र सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं में विशेषज्ञ हो और असेंबली एवं वितरण पर एक साथ काम करें, तो इससे चीनी प्रभुत्व की भू-राजनीतिक समस्या का भी समाधान हो सकता है।
  • डिजाइन और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान: प्रारंभिक फंडिंग को डिजाइन और अनुसंधान एवं विकास जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसके लिए भारत के पास पहले से ही एक स्थापित प्रतिभा पूल है।

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