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भारत का मत्स्यपालन और जलीय कृषि

Lokesh Pal November 24, 2025 02:08 4 0

संदर्भ

खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने विश्व मत्स्य दिवस, 2025 (21 नवंबर) के अवसर पर भारत की नीली क्रांति के प्रति अपने नवोन्मेषी सहयोग को पुनः रेखांकित किया और मत्स्यपालन व जलीय कृषि क्षेत्र में सतत् विकास, मूल्य संवर्द्धन तथा लचीलापन बढ़ाने पर बल दिया।

विश्व मत्स्य दिवस के बारे में

  • यह दिवस प्रतिवर्ष 21 नवंबर को मनाया जाता है।
  • वर्ष 2025 का विषय: ‘इंडियाज ब्लू ट्रांसफॉरमेशन: स्ट्रेंथनिंग वैल्यू ऐडिशन इन सी–फूड एक्स्पोर्ट्स(India’s Blue Transformation: Strengthening Value Addition in Seafood Exports)।

मत्स्यपालन क्षेत्र के बारे में

  • मत्स्यपालन क्षेत्र में मछली और अन्य जलीय जीवों के पालन-पोषण तथा संग्रहण से संबंधित सभी गतिविधियाँ शामिल हैं, जिनमें जलीय कृषि और समुद्री मत्स्यपालन भी शामिल है।
  • यह वैश्विक खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से तटीय और ग्रामीण समुदायों के लिए प्रोटीन युक्त भोजन, आजीविका तथा आर्थिक विकास प्रदान करता है।
  • मत्स्यपालन के प्रकार
    • समुद्री मत्स्यपालन (Marine Fisheries): इसमें महासागरों और समुद्रों से मछलियों को पकड़ना शामिल है। प्रमुख समुद्री मछलियों में टूना, मैकेरल और सार्डिन शामिल हैं।
    • अंतर्देशीय मत्स्यपालन (Inland Fisheries): इसमें नदियों, झीलों और जलाशयों में मछली पकड़ना शामिल है। कार्प, कैटफिश और तिलापिया जैसी मछलियाँ आमतौर पर अंतर्देशीय जल निकायों में पाई जाती हैं।
    • जलकृषि (Aquaculture): इसमें तालाबों, टैंकों या बंद समुद्री निकायों जैसे नियंत्रित वातावरण में जलीय जीवों, जैसे मछली, शंख और समुद्री शैवाल का पालन-पोषण शामिल है।
    • समुद्री कृषि (Mariculture): समुद्री वातावरण में होने वाली विशिष्ट प्रकार की जलकृषि, जिसमें सीप, झींगा और समुद्री शैवाल जैसी प्रजातियों का पालन-पोषण किया जाता है।

मत्स्यपालन क्षेत्र की स्थिति

  • उत्पादन की उपलब्धियाँ
    • उत्पादन वृद्धि: भारत का जलीय खाद्य उत्पादन 1980 के दशक के 2.44 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 17.54 मिलियन टन हो गया।
    • वैश्विक रैंक: भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है (वैश्विक उत्पादन का लगभग 8%)।
    • FAO की SOFIA रिपोर्ट, 2024 के अनुसार
      • वैश्विक जलीय कृषि: 130.9 मिलियन टन (2022), जिसका मूल्य 313 बिलियन डॉलर है।
      • भारत ने 10.23 मिलियन टन का योगदान दिया।
    • तटीय एवं आजीविका योगदान: 3,477 तटीय मत्स्यन आधारित गाँव मछली उत्पादन में 72% और समुद्री खाद्य निर्यात में 76% का योगदान करते हैं, जिससे तटीय तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 30 मिलियन से अधिक लोगों की आजीविका को सहारा मिलता है।
      • भारत झींगा पालन, विशेष रूप से ‘ब्लैक टाइगर’ झींगा उत्पादन में अग्रणी है, जो निर्यात वृद्धि में योगदान देता है।
    • निर्यात: समुद्री उत्पाद निर्यात 11.08% बढ़कर US$0.81B (अक्टूबर 2024) से US$0.90B (अक्टूबर 2025) हो गया।
  • क्षेत्रीय वृद्धि के चालक
    • मत्स्यपालन से जलीय कृषि-आधारित विस्तार की ओर बदलाव।
    • हैचरी, चारा, प्रजनन और रोग नियंत्रण के क्षेत्र में तकनीकी नवाचार।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि और बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण।
    • सरकार द्वारा मजबूत संस्थागत और नीतिगत समर्थन।

भारत के साथ FAO का सहयोग

  • तकनीकी सहयोग कार्यक्रम (TCP): पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए वनकबारा (दादरा और नागर हवेली तथा दीव) और जखाऊ (गुजरात) जैसे मत्स्यन बंदरगाहों का आधुनिकीकरण करता है।
  • बंगाल की खाड़ी कार्यक्रम (BOBP): इस पहल ने छोटे पैमाने के मछुआरों को सहायता प्रदान की, समुद्री सुरक्षा में सुधार किया, प्रबंधन को बेहतर बनाया और स्थायी मत्स्यन तकनीकों को बढ़ावा दिया।
  • BOBLME परियोजना: बंगाल की खाड़ी वृहद समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र परियोजना ने भारत को मत्स्य प्रबंधन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र दृष्टिकोण (EAFM) अपनाने और अवैध, अप्रतिबंधित तथा अनियमित (IUU) मत्स्यन से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजनाओं को लागू करने में मदद की, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र एवं छोटे पैमाने के मछुआरों का संरक्षण हुआ।
  • आंध्र प्रदेश में सतत् जलीय कृषि: एक वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) द्वारा वित्तपोषित परियोजना, सतत् जलीय कृषि दिशा-निर्देशों (GSA) और जलीय कृषि के लिए पारिस्थितिकी तंत्र दृष्टिकोण (EAA) सिद्धांतों द्वारा निर्देशित, जलवायु-अनुकूल, कम-फुटप्रिंट आधारित जलीय कृषि को बढ़ावा देती है।

मत्स्य पालन क्षेत्र का महत्त्व

  • आर्थिक योगदान: मत्स्यपालन क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान देकर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषतः उन देशों में जहाँ समुद्र तट विस्तृत हैं।
  • खाद्य सुरक्षा: मत्स्यपालन वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक है, विशेषतः तटीय और द्वीपीय देशों में जहाँ मछली लाखों लोगों के लिए प्रोटीन तथा अन्य महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों का प्राथमिक स्रोत है।
  • रोजगार सृजन: मत्स्य पालन क्षेत्र दुनिया भर में रोजगार का एक प्रमुख स्रोत है, जो मछुआरों, मत्स्य प्रसंस्करण संयंत्रों में कार्य करने वालों और जलीय कृषि उद्योग से जुड़े लोगों सहित लाखों लोगों को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है।
  • ग्रामीण और तटीय विकास: मत्स्यपालन ग्रामीण और तटीय क्षेत्रों के आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है और छोटे पैमाने के मछुआरों के लिए, विशेषतः दूरदराज तथा वंचित क्षेत्रों में, आय के अवसर प्रदान करता है।

मत्स्यपालन और जलीय कृषि में प्रमुख चुनौतियाँ

  • पर्यावरणीय दबाव: तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक मत्स्यन और अल्प-विकसित मछलियों के शिकार ने निकटवर्ती मत्स्य भंडार को कम कर दिया है, जिससे पश्चिमी और पूर्वी दोनों तटों पर सार्डिन तथा मैकेरल जैसी प्रमुख प्रजातियों की उपलब्धता कम हो गई है।
  • आवास क्षरण और प्रदूषण: ‘सी-बेड’ का क्षरण, बंदरगाह-जनित प्रदूषण और तटीय अवसादन नर्सरी आवासों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च घनत्व वाले मत्स्यन क्षेत्रों में आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रजातियों के भंडार में कमी आ रही है।
  • सामाजिक-आर्थिक बाधाएँ: छोटे पैमाने के मछुआरों के पास प्रायः वित्त, प्रौद्योगिकी और बाजारों तक पहुँच का अभाव होता है।
  • अवसंरचनात्मक कमियाँ: बाजार अवरोध, विशेषकर दुर्बल निगरानी क्षमता, अपर्याप्त कोल्ड-चेन नेटवर्क और सीमित मूल्यवर्द्धन, भारत की निर्यात क्षमता के साथ-साथ घरेलू बाजार की परिचालन दक्षता को भी सीमित करते हैं।
    • भारत में पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन की कमजोरियों के कारण कुल पकड़ का लगभग 15–20% हिस्सा नष्ट हो जाता है।
  • समावेशी चिंताएँ: छोटे किसानों, महिलाओं और कमजोर समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना समान विकास के लिए महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।

संस्थागत और नीतिगत समर्थन

  • नीली क्रांति और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY): समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्यपालन के एकीकृत विकास, उत्पादकता वृद्धि, बुनियादी ढाँचे के निर्माण और मछुआरों की सुरक्षा को बढ़ावा देती है।
    • PMMSY के अंतर्गत, बुनियादी ढाँचे के निर्माण में 730 शीतगृह और बर्फ संयंत्र, 26,348 मत्स्य परिवहन सुविधाएँ और 6,410 मछली कियोस्क शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय मत्स्यपालन नीति (मसौदा 2020): स्थायी उत्पादन, संसाधनों के संरक्षण और जलवायु-अनुकूल मत्स्यपालन प्रबंधन पर केंद्रित है।
  • संस्थागत एजेंसियाँ: ICAR मत्स्यपालन संस्थान, राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB), समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA) और तटीय जलीय कृषि प्राधिकरण नवाचार, क्षमता निर्माण, गुणवत्ता नियंत्रण तथा पर्यावरण अनुपालन का समर्थन करते हैं।

सरकार द्वारा की गई प्रमुख पहल

  • समुद्री मत्स्यपालन गणना 2025 (MFC 2025): व्यास-NAV, व्यास-भारत और व्यास-सूत्र ऐप का उपयोग करके 5,000 गाँवों के 12 लाख मछुआरे परिवारों का भू-संदर्भन, वास्तविक समय में साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण को सक्षम बनाता है।
  • आदर्श वाक्य: “स्मार्ट गणना, स्मार्ट मत्स्यपालन” साक्ष्य-आधारित नीति और सतत् प्रबंधन को सक्षम बनाता है।
  • प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि योजना (PM-MKSSY): वित्तीय प्रोत्साहन, बीमा प्रीमियम सहायता, उद्यमों का औपचारीकरण और जोखिम न्यूनीकरण प्रदान करता है।
  • मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि (FIDF): मत्स्यन बंदरगाहों, कोल्ड स्टोरेज शृंखलाओं, प्रसंस्करण इकाइयों और जलीय कृषि अवसंरचना के लिए रियायती वित्तपोषण प्रदान करता है।
    • यह 2 वर्ष के ऋण स्थगन सहित 12 वर्षों के लिए 3% प्रति वर्ष की ब्याज सहायता प्रदान करता है।
  • जलवायु-प्रतिरोधी तटीय मछुआरा गाँव कार्यक्रम: इसका उद्देश्य तटीय गाँवों को चक्रवात-प्रतिरोधी आवास, पूर्व चेतावनी प्रणाली, विविध आजीविका और जलवायु अनुकूलन अवसंरचना के साथ उन्नत बनाता है।
  • EEZ सतत् दोहन नियम, 2025: यह सहकारी समितियों को मत्स्यन संबंधी प्राथमिकता प्रदान करता है, डिजिटल ReALCRaft एक्सेस-पास की शुरुआत करता है तथा समुद्री जैव विविधता संरक्षण हेतु विनाशकारी मत्स्यन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाता है।

ReALCRaft के बारे में

  • मत्स्यन जहाजों के ऑनलाइन पंजीकरण और लाइसेंसिंग के लिए एक वेब-आधारित, ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म है।
  • यह दूरस्थ आवेदन जमा करने और ई-भुगतान सहित संपूर्ण डिजिटल प्रसंस्करण को सक्षम बनाता है।
  • यह पंजीकरण प्रमाण-पत्र (RC) और लाइसेंस प्रमाण-पत्र (LC) डिजिटल रूप से जारी करता है।

आगे की राह

  • सतत् मत्स्यपालन पद्धतियाँ: सतत् मत्स्यपालन तकनीकों के कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाना, यह सुनिश्चित करते हुए कि तटीय समुदाय पर्यावरण-अनुकूल पद्धतियाँ अपनाना।
    • मत्स्य भंडारों की निगरानी, ​​अति-मत्स्यन को रोकने और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए डिजिटल निगरानी, डेटा विश्लेषण और उपग्रह मानचित्रण जैसी तकनीकों के उपयोग का विस्तार करना।
  • छोटे मछुआरों के लिए समर्थन: छोटे मछुआरों, विशेषकर महिलाओं और हाशिए के समुदायों के लिए वित्त, तकनीक और बाजारों तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करना।
  • बुनियादी ढाँचा और पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन: देश में 15-20%मत्स्यन बर्बादी को कम करने के लिए कोल्ड चेन बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना और पोस्ट-हार्वेस्ट प्रसंस्करण सुविधाओं में सुधार करना।
  • जलवायु-अनुकूल जलीय कृषि को बढ़ावा देना: पूरे भारत में, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश जैसे तटीय राज्यों में, सतत् और जलवायु-अनुकूल जलीय कृषि मॉडलों का विस्तार करना।
    • समुद्र के बढ़ते स्तर और जल के तापमान में परिवर्तन सहित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए तटीय क्षेत्रों में अनुकूली प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना।
  • डेटा-संचालित निर्णय लेना: मत्स्य प्रबंधन में डेटा-संचालित दृष्टिकोणों के उपयोग को बढ़ावा देना, मत्स्यन निगरानी, ​​मत्स्यन आधारित जहाजों की निगरानी करने और अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित (IUU) मत्स्यन को रोकने के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीकों का लाभ उठाना।

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