100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारत के वन संरक्षण प्रयास

Lokesh Pal November 10, 2025 03:37 53 0

संदर्भ

भारत आर्थिक विकास और स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में कार्य कर रहा है और हाल ही में संशोधित ग्रीन इंडिया मिशन (GIM) पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली को प्राथमिकता दे रहा है। इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को पुनर्स्थापित करना तथा 3.39 बिलियन टन कार्बन सिंक का निर्माण करना है।

ग्रीन इंडिया मिशन (GIM) 

  • अनुमोदन: केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित संशोधित GIM, 2030 तक 3.39 बिलियन टन CO₂ समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक निर्माण के भारत के जलवायु संकल्प के अनुरूप है।
  • उद्देश्य: 25 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को पुनर्स्थापित करना, वन क्षेत्र और पारिस्थितिकी गुणवत्ता को बढ़ाना और साथ ही कार्बन अवशोषण में योगदान देना।
  • मुख्य उद्देश्य
    • पुनर्स्थापन एवं वनरोपण: पश्चिमी घाट, अरावली पहाड़ियों, हिमालयी जलग्रहण क्षेत्रों और मैंग्रोव जैसे जैव विविधता से युक्त भू-दृश्यों के पुनर्स्थापन पर ध्यान केंद्रित करना।
    • पारिस्थितिकी अनुकूलन: स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता देना तथा ऐसी पुनर्स्थापन परियोजनाएँ डिजाइन करना, जो पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता एवं जलवायु अनुकूलन का समर्थन करें।
    • स्थायी आजीविका: स्थानीय समुदायों को शामिल करना, वन प्रबंधन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना और संरक्षण प्रयासों के साथ जनजातीय आजीविका को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • संस्थागत ढाँचा
    • शासी बोर्ड: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) GIM के कार्यान्वयन और उसका रणनीतिक मार्गदर्शन करता है।
    • कार्यकारी समितियाँ: राज्य वन विभाग और स्थानीय निकाय जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन, निगरानी तथा अनुकूली प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • वित्तपोषण और संसाधन: यह योजना वनीकरण गतिविधियों के लिए प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) और अन्य स्रोतों से धन जुटाती है।

अपेक्षित प्रभाव

  • कार्बन पृथक्करण: पुनर्स्थापन प्रयासों का उद्देश्य भारत की कार्बन सिंक क्षमता को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाना है, जो सीधे तौर पर इसके जलवायु परिवर्तन शमन लक्ष्यों में योगदान देगा।
  • जैव विविधता पुनर्प्राप्ति: विविध पारिस्थितिकी तंत्रों और देशी प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करके, यह मिशन जैव विविधता को बढ़ावा देगा और जलवायु तनावों के प्रति वनों की अनुकूलन क्षमता को बढ़ाएगा।
  • सतत् आजीविका: स्थानीय समुदायों को पुनर्स्थापना में भाग लेने के लिए सशक्त बनाने से दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित होगी और आर्थिक एवं पर्यावरणीय लाभ प्राप्त होंगे।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: सफल पुनर्स्थापना भारत को पारिस्थितिकी अनुकूलन और कार्बन प्रबंधन में अग्रणी के रूप में स्थापित करेगी, जिससे वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में योगदान मिलेगा।

भारत की वन स्थिति और हालिया परिवर्तन (ISFR 2023)

  • कुल वन क्षेत्र: भारत का कुल वन क्षेत्र 7,15,343 वर्ग किमी. है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.76% है।
  • सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले राज्य: सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले शीर्ष तीन राज्य हैं:
    • मध्य प्रदेश: 77,073 वर्ग किमी.
    • अरुणाचल प्रदेश: 65,882 वर्ग किमी.
    • छत्तीसगढ़: 55,812 वर्ग किमी.।

  • मैंग्रोव आवरण: भारत का मैंग्रोव आवरण लगभग 4,992 वर्ग किमी. है, जो मुख्यतः अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में विस्तृत है।
  • जैव विविधता और संरक्षित क्षेत्र: भारत में 106 राष्ट्रीय उद्यान, 573 वन्यजीव अभयारण्य, 115 संरक्षण रिजर्व और 220 सामुदायिक रिजर्व हैं, जो इसकी समृद्ध पारिस्थितिकी और जैव विविधता को दर्शाते हैं।

वैश्विक वन रिपोर्ट 2025- भारत का बढ़ता ग्रीन फुटप्रिंट 

  • रिपोर्ट के बारे में: प्रत्येक पाँच वर्ष में जारी होने वाली वैश्विक वन संसाधन आकलन (GFRA) 2025, इंडोनेशिया के बाली में आयोजित वैश्विक वन अवलोकन पहल (GFOI) के पूर्ण अधिवेशन के दौरान प्रस्तुत की गई।
  • GFOI के बारे में: वैश्विक वन अवलोकन पहल (GFOI), पृथ्वी अवलोकन समूह (GEO) का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो स्थायी वन निगरानी के लिए पृथ्वी की जानकारी के उपयोग को बढ़ावा देता है।
  • GEO के बारे में: पृथ्वी अवलोकन समूह (GEO) एक वैश्विक साझेदारी है, जिसमें सरकारें, शिक्षा जगत, संगठन, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र शामिल हैं, जो स्थिरता के लिए समन्वित पृथ्वी अवलोकन को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं।
  • भारत की भूमिका: भारत GEO का एक सक्रिय सदस्य है, जो डेटा-आधारित वन प्रबंधन और जलवायु-प्रतिरोधी पारिस्थितिकी तंत्र निगरानी के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • GFRA 2025 की मुख्य विशेषताएँ
    • वैश्विक वन विस्तार: वन 4.14 अरब हेक्टेयर में विस्तृत हैं, जो विश्व के 32% भू-भाग को शामिल करते हैं। इनमें से लगभग आधे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थित हैं, इसके बाद बोरियल, समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र आते हैं।
    • भारत की वन स्थिति: भारत विश्व स्तर पर एक स्थान ऊपर 9वें स्थान पर पहुँच गया है, जो विश्व के कुल वन क्षेत्र का 2% है, और रबर बागान क्षेत्र में 5वें स्थान पर है।
    • वनोन्मूलन: वनोन्मूलन में उल्लेखनीय कमी आई है—17.6 मिलियन हेक्टेयर/वर्ष (1990-2000) से घटकर 10.9 मिलियन हेक्टेयर/वर्ष (2015-2025)।
    • प्राकृतिक पुनर्जनन: विश्व के 90% से अधिक वन अब प्राकृतिक रूप से बहाल हो रहे हैं, जो बेहतर संरक्षण परिणामों का संकेत है।
    • कार्बन भंडार: वैश्विक वन कार्बन भंडार बढ़कर 714 गीगाटन हो गया है, जिसमें मृदा का सबसे बड़ा हिस्सा है, उसके बाद जीवित बायोमास, अपशिष्ट और लकड़ी का स्थान है।
  • वन विक्षोभ: उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वनाग्नि की घटनाएँ अधिक होती हैं, जबकि समशीतोष्ण और बोरियल क्षेत्रों में कीटों, बीमारियाँ और चरम मौसम संबंधी मुख्य खतरे मौजूद  हैं।

भारत में वनरोपण की प्रमुख पहल और विकास

  • वनरोपण के प्रारंभिक चरण 
    • औपनिवेशिक दृष्टिकोण: वनों को लकड़ी के लिए आर्थिक संपत्ति माना जाता था; वर्ष 1865 और वर्ष 1927 के भारतीय वन अधिनियमों में पुनर्जनन पर नहीं, बल्कि राज्य नियंत्रण तथा  दोहन पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
    • स्वतंत्रता-पश्चात् परिवर्तन: वन संरक्षण और वनरोपण पर बल दिया गया, हालाँकि प्रारंभिक लक्ष्य ईंधन की लकड़ी की आवश्यकताओं पर ही केंद्रित  रहा।

  • राष्ट्रीय वन नीति-1952- आधारभूत चरण: इसका उद्देश्य बंजर भूमि पर पौधरोपण, सामाजिक वानिकी और ग्रामीण विकास के साथ एकीकरण को बढ़ावा देकर इमारती लकड़ी, ईंधन और औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए वन क्षेत्र में वृद्धि करना था।
  • राष्ट्रीय वन नीति-1988- पारिस्थितिकी परिवर्तन: पारिस्थितिक पुनर्स्थापन और जन भागीदारी की ओर उल्लेखनीय परिवर्तन।
    • लक्ष्य: 33% वन एवं वृक्षावरण प्राप्त करना।
    • फोकस: क्षरित भूमि का वनीकरण, जलग्रहण प्रबंधन, जैव विविधता वृक्षारोपण, और जनजातीय भागीदारी हेतु संयुक्त वन प्रबंधन (JFM)।

  • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP), 2000: जन भागीदारी के माध्यम से वनरोपण और पर्यावरण-पुनर्स्थापन हेतु एक केंद्र प्रायोजित योजना। बाद में बेहतर अभिसरण के लिए इसे ग्रीन इंडिया मिशन (GIM) के साथ संयुक्त कर दिया गया।
    • त्रि-स्तरीय प्रणाली के माध्यम से कार्यान्वित
      • राज्य स्तर पर राज्य वन विकास एजेंसी (SFDA)
      • वन प्रभाग स्तर पर वन विकास एजेंसी (FDA)
      • ग्राम स्तर पर संयुक्त वन प्रबंधन समितियाँ (JFMC)
  • ग्रीन इंडिया मिशन (GIM), 2014: आठ GIM मिशनों में से एक, जिसका उद्देश्य वन/वृक्ष आवरण को बढ़ाना और क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना है।
    • लक्ष्य: 5 मिलियन हेक्टेयर वन/वृक्ष क्षेत्र बढ़ाना और 5 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि में सुधार करना।
    • लाभ: कार्बन भंडारण, जैव विविधता, जल प्रबंधन और 30 लाख आजीविकाओं में वृद्धि।
    • संशोधित GIM (2025): वर्ष 2015-21 के प्रयासों पर आधारित, जिसके तहत 11.22 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पुनर्स्थापित किया गया था, जो CAMPA, कृषि वानिकी नीति और जलग्रहण कार्यक्रमों से जुड़ा है; अरावली, पश्चिमी घाट, मैंग्रोव और हिमालय पर केंद्रित है।

  • राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति, 2014: कृषि आय, मृदा उर्वरता और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता हेतु वृक्ष-फसल एकीकरण को बढ़ावा देती है।
    • ICAR-CAFRI और राज्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री (QPM) सुनिश्चित करती है।
    • निजी क्षेत्र, मूल्य समर्थन को प्रोत्साहित करती है और बाजरा-आधारित कृषि प्रणालियों के साथ सामंजस्य स्थापित करती है।
  • प्रतिपूरक वनीकरण निधि अधिनियम (CAMPA), 2016: वन परिवर्तन के लिए प्रतिपूरक वृक्षारोपण को अनिवार्य बनाती है; वनीकरण, वन्यजीव संरक्षण और वन अवसंरचना के लिए ₹95,000 करोड़ के कोष के साथ राष्ट्रीय और राज्य CAMPA प्राधिकरणों का गठन किया गया।
  • वनाग्नि निवारण एवं प्रबंधन योजना (FFPM), 2017: वनाग्नि को रोकने और नियंत्रित करने के लिए रिमोट सेंसिंग और रियल-टाइम अलर्ट’ का उपयोग करने वाली एक केंद्र प्रायोजित योजना।
    • वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना को लागू करती है और सामुदायिक भागीदारी एवं प्रौद्योगिकी-आधारित अग्नि प्रबंधन को बढ़ावा देती है।
  • वन धन योजना, 2018: लघु वनोपजों (MFP) के मूल्य संवर्द्धन, कौशल प्रशिक्षण और बाजार संपर्कों के माध्यम से जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाना, सतत् आजीविका और वन संरक्षण को बढ़ावा देना।
  • नगर वन योजना, 2020: शहरी पारिस्थितिकी, हरित आवरण और वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए 200 शहरी वनों के निर्माण का लक्ष्य।
  • मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली), 2022: प्रो-प्लेनेट पीपल (P3) मॉडल के तहत उपयोग-और-निपटान की मानसिकता से कम-पुनः-उपयोग-पुनर्चक्रण की मानसिकता में परिवर्तन लाकर सतत् जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक वैश्विक पहल।
    • माई लाइफ’ पोर्टल और एक पेड़ माँ के नाम’ जैसी पहलों के माध्यम से भारत के G20 जलवायु नेतृत्व का मूल आधार तैयार करता है।
  • मिष्टी (तटीय आवासों और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल, 2023-24): CAMPA-MGNREGS अभिसरण के माध्यम से पाँच वर्षों में 9-11 तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 540 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव को पुनर्स्थापित करने के लिए शुरू की गई यह पहल समुदाय-आधारित जैव और कार्बन-समृद्ध तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देती है, जिससे जलवायु अनुकूलन और आजीविका सुरक्षा दोनों में वृद्धि होती है।
  • अरावली ग्रीन वॉल परियोजना (वर्ष 2023): गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में 1,400 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चौड़ी हरित पट्टी स्थापित करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मरुस्थलीकरण से निपटना, जैव विविधता को बढ़ाना तथा वायु प्रदूषण को कम करना है।
  • बजटीय और संस्थागत सहायता (वर्ष 2025-26)
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को ₹3,412.82 करोड़ आवंटित (वर्ष 2024-25 की तुलना में 9% की वृद्धि)
    • क्षेत्रीय कार्यों को सुदृढ़ करने हेतु राजस्व व्यय हेतु ₹3,276.82 करोड़ (96%)।
    • पारिस्थितिकी तंत्र सेवा सुधार परियोजना (ESIP): विश्व बैंक के साथ, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में 1.55 लाख हेक्टेयर भूमि का पुनर्स्थापन।

  • अन्य सहायक मिशन: राष्ट्रीय बाँस मिशन, कृषि वानिकी उप-मिशन और सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन जैसी पूरक पहल वृक्ष-आधारित आजीविका तथा पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन को बढ़ावा देती हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय वन दिवस (21 मार्च): वर्ष 2025 की थीम वन और खाद्य” खाद्य सुरक्षा और पोषण में वनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है।

उल्लेखनीय राज्य-स्तरीय पहल 

तमिलनाडु: तीन वर्षों के भीतर मैंग्रोव आवरण में लगभग दोगुनी वृद्धि हासिल की, जिससे कार्बन अवशोषण और तटीय अनुकूलन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

  • हिमाचल प्रदेश: वनाग्नि जोखिम को कम करने के साथ-साथ कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने के लिए बायोचार कार्यक्रम शुरू किया गया।
  • उत्तर प्रदेश
    • वर्ष 2024-25 में 39 करोड़ से अधिक पौधे लगाए गए, जिससे स्थानीय स्तर पर मजबूत गतिशीलता का प्रदर्शन हुआ।
    • ग्राम पंचायतों के लिए कार्बन बाजार संबंधों की खोज।
    • ग्राम हरित निधि (ग्राम हरित निधि) और मासिक जागरूकता एवं सूक्ष्म-नियोजन बैठकों के माध्यम से समुदाय-आधारित वृक्षारोपण अभियान और रखरखाव को बढ़ावा देने के लिए ग्रीन चौपाल मंच का शुभारंभ किया गया।
  • ओडिशा: संयुक्त वन प्रबंधन समितियों (JFMC) को नियोजन और राजस्व-साझाकरण ढाँचों में एकीकृत करके उन्हें सुदृढ़ किया गया, जिससे सामुदायिक भागीदारी और अनुपालन में सुधार हुआ।
  • छत्तीसगढ़: जैव विविधता के प्रति संवेदनशील वृक्षारोपण को लागू करना और महुआ के पेड़ लगाकर बंजर पशु आश्रयों को पुनर्जीवित करना, पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन को जनजातीय आजीविका संवर्द्धन के साथ प्रभावी ढंग से जोड़ना।

वनों का बहुआयामी महत्त्व

  • पारिस्थितिकी और जलवायु अनुकूलन (अस्तित्व का भविष्य)
    • जलवायु परिवर्तन शमन: वन प्राकृतिक कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, CO2 को अवशोषित करते हैं और पेरिस समझौते के तहत भारत को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता करते हैं, जो भारत के कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य में लगभग 11% का योगदान करते हैं।
      • पेरिस समझौते के तहत, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक वन और वृक्षावरण बढ़ाकर 2.5-3 बिलियन टन अतिरिक्त CO2 समतुल्य कार्बन सिंक का निर्माण करना है।
    • जैव विविधता संरक्षण: भारत के बंगाल टाइगर और एक सींग वाले गैंडे जैसी प्रतिष्ठित प्रजातियों का पोषण करते हैं। प्रोजेक्ट टाइगर और हाथी गलियारे जैसे संरक्षण प्रयास जैव विविधता को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • जल सुरक्षा: वन जल चक्र को नियंत्रित करते हैं, भूजल पुनर्भरण को बढ़ाते हैं और मृदा अपरदन को रोकते हैं, जिससे कृषि और शहरी क्षेत्रों के लिए स्थायी जल आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
    • वायु गुणवत्ता: पर्यावरण के फेफड़ों के रूप में कार्य करते हुए वन, CO2 और पार्टिकुलेट मैटर (PM) जैसे प्रदूषकों को अवशोषित करके वायु को शुद्ध करते हैं, जिससे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • आर्थिक एवं सतत् विकास (समृद्धि का भविष्य)
    • आजीविका तथा रोजगार: 25 करोड़ से अधिक लोग फल, जड़ी-बूटियाँ और ईंधन जैसे गैर-काष्ठ वन उत्पादों (NTFP) पर निर्भर हैं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्थायी आजीविका की नींव रखते हैं।
    • वन-आधारित उद्योग: वनों से स्थायी स्रोत, कागज, लकड़ी और दवाइयों जैसे उद्योगों को बढ़ावा देते हैं, जिससे उत्पादन में पर्यावरणीय जिम्मेदारी सुनिश्चित होती है।
    • पारिस्थितिकी पर्यटन: जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान जैसे वनों में पारिस्थितिकी पर्यटन, महत्त्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न करता है और स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, जिससे वन संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ती है।
    • हरित लेखांकन: पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं—कार्बन पृथक्करण, जल निस्पंदन और जैव विविधता—के सकल घरेलू उत्पाद में मौद्रिक मूल्य को पहचानने से स्थायी वन प्रबंधन में निवेश को बढ़ावा मिलता है और बेहतर नीति-निर्माण सुनिश्चित होता है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक और जनजातीय अधिकार (समानता भविष्य)
    • जनजातीय अधिकार: वर्ष 2006 का वन अधिकार अधिनियम (FRA) जनजातीय समुदायों के लिए स्वामित्व और स्वशासन सुनिश्चित करता है और उन्हें वन संसाधनों के प्रबंधन तथा सतत् उपयोग के लिए सामुदायिक वन संसाधन (CFR) अधिकार प्रदान करता है।
    • पारंपरिक ज्ञान: वन समुदायों के पास पारंपरिक ज्ञान होता है, जो सतत् वन प्रबंधन और संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस ज्ञान को आधुनिक तकनीकों के साथ एकीकृत करना दीर्घकालिक वन संरक्षण के लिए आवश्यक है।
    • लैंगिक समानता: महिलाएँ वनस्पति रहित वन उत्पादों (NTFP) के संग्रहण और प्रसंस्करण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जो सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देती हैं। लैंगिक समानता सुनिश्चित करने से वन संरक्षण और सामुदायिक विकास को बल मिलता है।

वनरोपण के लिए संवैधानिक, सतत् विकास लक्ष्य और वैश्विक प्रावधान 

वर्ग 

प्रावधान 

संवैधानिक प्रावधान
  • अनुच्छेद-48A – राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत: राज्य को वन संरक्षण सहित पर्यावरण की रक्षा और सुधार का दायित्व सौंपता है।
  • अनुच्छेद-51A(g) – मौलिक कर्तव्य: नागरिकों को वनों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • संघ और राज्य सूची (सातवीं अनुसूची): केंद्र और राज्य सरकारें वनीकरण तथा वन संरक्षण से संबंधित नीतियों का कानून बनाकर उन्हें लागू कर सकती हैं।
सतत् विकास लक्ष्य (SDG)
  • सतत् विकास लक्ष्य 13 – जलवायु कार्रवाई: वनरोपण कार्बन अवशोषण में मदद करता है, जो पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों (NDC) में योगदान देता है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 15 – भूमि पर जीवन: वनरोपण के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्रों की पुनर्स्थापना और वनावरण के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करना।
  • सतत् विकास लक्ष्य 6 – स्वच्छ जल और स्वच्छता: वन जल चक्रों को नियंत्रित करते हैं, भूजल का पुनर्भरण करते हैं और मृदा अपरदन को रोकते हैं, जिससे स्थायी जल संसाधन सुनिश्चित होते हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्य 8 – गरिमापूर्ण कार्य और आर्थिक विकास: वनरोपण, हरित रोजगार, गैर-उत्पादित खाद्य उत्पादों (NTFP) से आजीविका और वन-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देता है।
वैश्विक प्रावधान
  • UNFCCC – पेरिस समझौता: जलवायु शमन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वनरोपण के माध्यम से कार्बन सिंक बढ़ाने की भारत की प्रतिबद्धता।
  • पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन पर संयुक्त राष्ट्र दशक (वर्ष 2021- वर्ष 2030): जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन और बंजर भूमि के वनरोपण को बढ़ावा देता है।
  • जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD): वन संरक्षण और वनरोपण को बढ़ावा देकर वैश्विक जैव विविधता की रक्षा करता है।
  • वैश्विक वन अवलोकन पहल (GFOI): वन आवरण में परिवर्तन पर नजर रखने और वैश्विक स्तर पर वनरोपण रणनीतियों को बढ़ाने के लिए भू-अवलोकन।
  • UNEP – संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम: जलवायु परिवर्तन को कम करने, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में वृद्धि करने और मरुस्थलीकरण से लड़ने के लिए वनरोपण को प्रोत्साहित करता है।

वनरोपण और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली की चुनौतियाँ

  • सीमित सामुदायिक भागीदारी: वन अधिकार अधिनियम (2006) द्वारा स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के बावजूद, कई वनरोपण कार्यक्रम हितधारकों की उपेक्षा करते हैं, जिससे सामुदायिक स्वामित्व कम होता है और पुनर्स्थापन प्रयासों की स्थिरता तथा प्रभावशीलता में बाधा आती है।
  • एकल-कृषि वृक्षारोपण: यद्यपि वृक्षारोपण में वृद्धि हुई है, लेकिन अधिकांश विस्तार एकल-कृषि वृक्षारोपण पर केंद्रित है, जिनमें जैव विविधता का अभाव है और जो दीर्घकालिक पारिस्थितिकी स्थिरता में योगदान करने में विफल रहते हैं।
  • वनों की कटाई और भूमि परिवर्तन: अवैध कटाई, शहरीकरण और औद्योगीकरण मौजूदा वनों को लगातार नुकसान पहुँचा रहे हैं, जिससे वनरोपण के प्रयासों को नुकसान पहुँच रहा है और वन क्षेत्र के विस्तार में बाधा आ रही है।
  • जलवायु भेद्यता: तापमान वृद्धि, वनाग्नि और चरम मौसम की घटनाएँ वनों पर दबाव डाल रही हैं। वर्ष 2025 के IIT खड़गपुर अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकाश संश्लेषण क्षमता में 12% की गिरावट आई है, जिससे उनकी कार्बन अवशोषण क्षमता सीमित हो गई है।
  • कार्यान्वयन में कमियाँ: संस्थागत क्षमता और वन विभागों में विशेषज्ञता की कमी, वनरोपण कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है, जिससे इष्टतम पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन और निगरानी में बाधा आती है।
  • वनाग्नि प्रबंधन: सुदूर संवेदन तकनीक और अग्नि निवारण उपायों के उपयोग के बावजूद, वनाग्नि, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में, गंभीर जोखिम पैदा करती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप जैव विविधता का नुकसान होता है और वन पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण होता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र: पूर्व वनरोपण प्रयास यूकेलिप्टस और बबूल जैसी एकल फसलों पर अत्यधिक निर्भर थे, जो तीव्रता से वृद्धि करते थे, लेकिन पारिस्थितिकी रूप से हानिकारक थे।
  • वित्तीय बाधाएँ: CAMPA के तहत ₹95,000 करोड़ के कोष के बावजूद, धन का उपयोग असंगत रहा है, उदाहरण के लिए, दिल्ली ने वर्ष 2019 और वर्ष 2024 के बीच अपने स्वीकृत आवंटन का केवल 23% ही खर्च किया है।

आगे की राह 

  • पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील वनरोपण: दीर्घकालिक पारिस्थितिकी स्थिरता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन सुनिश्चित करने के लिए एकल-कृषि वृक्षारोपण से देशी प्रजातियों और जैव विविधता-आधारित पुनर्स्थापन की ओर परिवर्तन।
  • संवर्द्धित सामुदायिक सहभागिता: निर्णय लेने में जनजातीय और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करके, वन संरक्षण को सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं के साथ जोड़कर, समुदाय-संचालित वन प्रबंधन को मजबूत बनाना।
  • उन्नत निगरानी प्रणालियाँ: वन स्वास्थ्य, उत्तरजीविता दर और निधि उपयोग की निगरानी करने के लिए सुदूर संवेदन और उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करके वास्तविक समय आधारित निगरानी लागू करना, जिससे अधिक पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित हो।
  • नवीन वित्तपोषण मॉडल: वनरोपण कार्यक्रमों के लिए दीर्घकालिक निधि सुरक्षित करने, सरकारी बजट को पूरक बनाने और वित्तीय स्थिरता बढ़ाने के लिए कार्बन क्रेडिट, निजी निवेश और वैश्विक साझेदारी का लाभ उठाना।
  • क्षमता निर्माण और कौशल विकास: नीति और कार्यान्वयन, दोनों स्तरों पर क्षमता निर्माण के लिए पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन, सतत् वन प्रबंधन और जलवायु-प्रतिरोधी प्रथाओं में वन कर्मचारियों तथा स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • जलवायु लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित करना: वनीकरण प्रयासों में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन रणनीतियों को एकीकृत करना, पुनर्स्थापन परियोजनाएँ कार्बन अवशोषण को बढ़ाना और साथ ही वनों की चरम मौसम संबंधी घटनाओं का सामना करने की क्षमता में सुधार करना।
  • नीति कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाना: वनीकरण कार्यक्रमों में निगरानी, ​​जवाबदेही बढ़ाकर और अनुकूली प्रबंधन रणनीतियों को एकीकृत करके निधियों, विशेष रूप से CAMPA कोष, का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना।
  • पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन: संशोधित ग्रीन इंडिया मिशन (GIM) देशी प्रजातियों और स्थल-विशिष्ट पुनर्स्थापन को प्राथमिकता देता है, जिससे जैव विविधता संवर्द्धन और जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष

वन भारत की पारिस्थितिकी राजधानी तथा वर्ष 2047 के विकासशील भारत की आधारशिला हैं। 25 मिलियन हेक्टेयर भूमि के पुनर्स्थापन का लक्ष्य लेकर संचालित हो रहा ग्रीन इंडिया मिशन 2025 इसी दृष्टिकोण का प्रतीक है। सामुदायिक भागीदारी, देशी प्रजातियों और नवोन्मेषी वित्तपोषण के साथ, भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन, जैव विविधता पुनरुद्धार तथा सतत् आजीविका के एक वैश्विक मॉडल का नेतृत्व कर सकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.