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भारत का वैश्विक उत्थान और इसका क्षेत्रीय पतन

Lokesh Pal May 08, 2024 05:00 127 0

संदर्भ

समकालीन भारतीय विदेश नीति में एक विरोधाभास उभर रहा है, जहाँ भारत की वैश्विक शक्ति बढ़ रही है, वहीं दक्षिण एशियाई क्षेत्र में इसका प्रभाव कम हो रहा है।

भारत के वैश्विक उत्थान के कारक

  • भारत का वैश्विक उत्थान पूर्ण क्षमताओं में वृद्धि और समकालीन अंतरराष्ट्रीय प्रणाली की अग्रणी शक्तियों द्वारा चुने गए भू-राजनीतिक विकल्पों से उत्पन्न होता है।
  • पूर्ण क्षमता में वृद्धि: पिछले दो दशकों में भारत की समग्र क्षमताओं में वृद्धि हुई है, जो प्रभावी आर्थिक विकास, सैन्य क्षमताओं, तकनीकी प्रगति और बड़े पैमाने पर युवा जनसांख्यिकी के रूप में स्पष्ट है।
    • आर्थिक विकास: भारत की अर्थव्यवस्था 10वीं से 5वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गई है। यह प्रक्षेप-वक्र एक मजबूत वृद्धि दर पर आधारित है, जो वित्त वर्ष 2014 के लिए 7% अनुमानित है और वित्त वर्ष 2015 तक जारी रहने की संभावना है।
      • विश्व बैंक के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में भारत की आउटपुट ग्रोथ 7.5% रहेगी।
      • वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 के लिए भारत की GDP वृद्धि का अनुमान 6.8% है।
    • सैन्य क्षमताओं में वृद्धि: भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिसने चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान, परमाणु पनडुब्बी, सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM) प्रणाली, मुख्य युद्धक टैंक (MBT), एक ICBM और एक स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली का डिजाइन एवं उत्पादन किया है। 
      • भारत का रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 686 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में लगभग 16,000 करोड़ रुपये हो गया। पाँच वर्षों में यह 800% बढ़ गया है और दुनिया के 85 देशों तक पहुँच गया है।
    • तकनीकी उन्नति: वर्ष 2023 में भारत की तकनीकी उन्नति ने नवाचार और आत्मनिर्भरता के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।
      • सेमीकंडक्टर विनिर्माण से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण, रक्षा क्षमताओं और दूरसंचार में तेजी से प्रगति तक, भारत सक्रिय रूप से वैश्विक प्रौद्योगिकी परिदृश्य को आकार दे रहा है।
      • उदाहरण: वर्ष 2017 में PSLV-C37 द्वारा एक ही उड़ान में 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण, वर्ष 2023 में आदित्य-L1 मिशन का प्रक्षेपण (सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष-आधारित भारतीय मिशन), स्वदेशी विमानवाहक पोत (भारतीय नौसेना जहाज विक्रांत, वर्ष 2022 में पहला) का कमीशनिंग, आदि।
    • युवा जनसांख्यिकी: भारत, अपनी विशाल और युवा आबादी के साथ, वर्तमान में जनसांख्यिकीय लाभांश का अनुभव कर रहा है। इसके वर्ष 2055 तक चलने की उम्मीद है, जिससे भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने का एक अनूठा अवसर मिलेगा। 
      • IMF के अनुसार, जनसांख्यिकीय लाभांश अगले दो दशकों में भारत की प्रति व्यक्ति GDP वृद्धि में प्रति वर्ष लगभग 2% अंक जोड़ सकता है।
  • भू-राजनीतिक और समकक्ष दृष्टिकोण: G-20 जैसे प्रमुख वैश्विक संस्थानों में भारत का शामिल होना, G-7 बैठकों में आमंत्रित सदस्य के रूप में और क्वाड, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे बहुपक्षीय समूहों में सक्रिय भागीदारी इसके भू-राजनीतिक महत्त्व और वैश्विक स्तर पर इसकी प्रभावी उपस्थिति को और उजागर करती है, भले ही वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य क्यों न हो। 
  • एक अनुकूल ‘अव्यवस्थित’ अंतरराष्ट्रीय स्थिति
    • इंडो-पैसिफिक फोकस: भारत के वैश्विक उत्थान को इंडो-पैसिफिक पर बढ़ते अंतरराष्ट्रीय फोकस से भी सहायता मिलती है, एक ऐसा क्षेत्र जो वैश्विक रणनीतिक स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण है, जहाँ भारत की केंद्रीय स्थिति है।
    • गुटनिरपेक्ष कूटनीति: भारत गुटनिरपेक्षता और प्रभावी बहुपक्षवाद की रणनीति का पालन करता है, जो भारत को सभी देशों के साथ विश्वास बनाने और अपने संबंधों को बनाए रखने में मदद करता है।
      • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के विरुद्ध मतदान से दूर रहने का भारत का हालिया निर्णय और रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूसी कच्चे तेल की खरीद (यूक्रेन-रूस संघर्ष के दौरान) और इजरायल के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखते हुए फिलिस्तीन को मानवीय सहायता प्रदान करना।
  • सॉफ्ट पॉवर: भारत को विश्व स्तर पर एक गैर-आक्रामक देश के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसका दृष्टिकोण समावेशी है और वैश्विक दृष्टिकोण ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की विचारधारा पर आधारित है।
    • प्रवासी: भारत के 31 मिलियन लोग 200 देशों में रहते हैं। वे भारत और अन्य देशों के बीच एक सेतु का काम करते हैं।
    • ग्लोबल सॉफ्ट पॉवर इंडेक्स के अनुसार, भारत वर्ष 2022 में 29वें स्थान से एक पायदान ऊपर चढ़कर वर्ष 2023 में 28वें स्थान पर पहुँच गया है।

इंडो पैसिफिक क्षेत्र

  • ‘इंडो पैसिफिक क्षेत्र’ शब्द को हाल ही में प्रमुखता मिली है और यह एक भू-राजनीतिक अवधारणा को संदर्भित करता है, जो हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में एक विशाल समुद्री क्षेत्र तक विस्तारित है।
  • यह अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर अमेरिका के पश्चिमी तट तक फैला हुआ है और अपने प्रमुख व्यापार मार्ग और महत्त्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंट्स के कारण रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।

इंडो पैसिफिक क्षेत्र को आकार देने के लिए भारत की पहल

  • भारत एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का पक्षधर है। भारत के लिए, इंडो-पैसिफिक सामान्य जिम्मेदारियों और सामान्य हितों के आधार पर सभी हितधारकों के लिए एक समावेशी स्थान है।
    • इस क्षेत्र के प्रति भारत का दृष्टिकोण ट्रिनिटी (खुला, एकीकृत और संतुलित क्षेत्र) पर आधारित है।
  • एक्ट ईस्ट: लुक ईस्ट पॉलिसी से एक्ट ईस्ट पॉलिसी की ओर बढ़ना।
  • सागर (SAGAR): हिंद महासागर के लिए रणनीतिक दृष्टि, ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (Security and Growth for All in the Region) अर्थात् सागर (SAGAR)।
  • इंडो-पैसिफिक महासागर पहल: यह एक पहल है, जो SAGAR पहल पर आधारित है। यह व्यावहारिक सहयोग के माध्यम से विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र में चुनौतियों को कम करने के लिए एक खुली, समावेशी, गैर-संधि-आधारित वैश्विक पहल का समर्थन करता है।

भारत की क्षेत्रीय शक्ति में गिरावट

  • भारत के क्षेत्रीय परिदृश्य में गिरावट तुलनात्मक शक्ति की गतिशीलता और क्षेत्र की छोटी शक्तियों द्वारा चुने गए भू-राजनीतिक विकल्पों का परिणाम है।
  • शक्ति की क्रियाशीलता: शीतयुद्ध के दौरान इस क्षेत्र में भारत के प्रभाव की तुलना में या आज इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव की तुलना में, इस क्षेत्र में भारत की शक्ति और प्रभाव में तेजी से गिरावट आई है।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव: भारत को दक्षिण एशिया में प्रभाव के लिए कड़ी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है। चीन के उभार का मतलब यह होगा कि भारत अब इस क्षेत्र में सबसे बड़ी शक्ति नहीं रह जाएगा।
    • मालदीव में चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत-मालदीव संबंधों को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं। इसके अलावा, हाल ही में मालदीव में ‘इंडिया आउट’ नामक एक अभियान चर्चा में रहा है, जिसमें भारतीय उपस्थिति को संप्रभुता के लिए खतरा बताया गया है।
    • नेपाल में, नई अग्निवीर योजना के कारण गोरखा लोग भारतीय सेना में भर्ती होने के बजाय चीनी सेना की ओर उन्मुख हो रहे हैं।
    • श्रीलंका में भी चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। (विशेषकर हंबनटोटा बंदरगाह के माध्यम से)
    • चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भारत के लिए अन्य चिंताजनक परियोजनाएँ हैं।
  • क्षेत्र की छोटी शक्तियों द्वारा चुने गए भू-राजनीतिक विकल्प: दक्षिण एशिया की छोटी शक्तियाँ अर्थात् भारत के पड़ोसी देश, कई प्रकार की रणनीतियाँ  (संतुलन, सौदेबाजी, प्रतिरक्षा और अंधानुकरण) अपना रहे हैं। भारत के पड़ोसी देश कम-से-कम चीन को भारत के खिलाफ एक उपयोगी बचाव के रूप में देखते हैं।
    • दक्षिण एशिया में नेपाल, भूटान, मालदीव जैसे कुछ छोटे राष्ट्र भारत के कार्यों को अपना आधिपत्य जताने के प्रयास के रूप में देखते हैं, जिससे भारत के प्रति अविश्वास की भावना उत्पन्न हुई है और उनका चीन के साथ जुड़ाव बढ़ रहा है।
  • भारत का इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में फोकस: हालाँकि इंडो-पैसिफिक में भारत का फोकस बढ़ा है, एक महत्त्वपूर्ण हितधारक के रूप में भारत की वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं ने इस क्षेत्र में अपनी क्षमता स्थापित करने के कारण इस क्षेत्र से संबंधित देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया है।
  • भू-राजनीतिक संरचना के रूप में दक्षिण एशिया का अप्रभावी होना: एक भू-राजनीतिक इकाई के रूप में दक्षिण एशिया की पारंपरिक अवधारणा अप्रभावी होती जा रही है और इसने इस क्षेत्र में भारत की भूमिका को और अधिक हाशिए पर ला दिया है, जिससे इसकी पकड़ एवं प्रभाव कम हो गया है।
  • पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंध
    • सीमा-विवाद: भारत में लंबे समय से सीमा विवाद हैं, विशेषकर चीन (वास्तविक नियंत्रण रेखा) और पाकिस्तान (नियंत्रण रेखा) के साथ, जिसके कारण सैन्य संघर्ष एवं तनाव उत्पन्न हुआ है।
      • कच्चातिवू द्वीप पर स्वामित्व को लेकर भारत-श्रीलंका के बीच तनाव है।
      • भारत-नेपाल को सीमा विवादों का भी सामना करना पड़ता है, विशेषकर पश्चिमी नेपाल में कालापानी-लिंपियाधुरा-लिपुलेख ट्राइजंक्शन क्षेत्र और दक्षिणी नेपाल में सुस्ता क्षेत्र को लेकर।
    • सीमा पार आतंकवाद: भारत पड़ोसी देशों, विशेषकर पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों द्वारा चलाए जा रहे आतंकवादी मिशन।
    • जल-विवाद: जल बँटवारा जल संसाधनों के आवंटन और उपयोग पर तनाव का एक स्रोत रहा है, जिसके कारण पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि पर विवाद जैसे मुद्दे उत्पन्न हुए हैं।
      • भारत और बांग्लादेश ने अपनी साझा 54 साझा नदियों में से केवल 2 संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें गंगा जल संधि और कुशियारा नदी संधि शामिल हैं।
      • भारत और नेपाल पारंपरिक रूप से वर्ष 1816 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बीच हस्ताक्षरित सुगौली संधि पर असहमत हैं, जिसने नेपाल में महा काली नदी के साथ सीमा का परिसीमन किया था।
    • राजनीतिक अस्थिरता: भारत के कुछ पड़ोसी देश राजनीतिक अस्थिरता और आंतरिक संघर्षों का सामना कर रहे हैं, जिसका क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ा है, जैसे कि वर्ष 2021 में म्याँमार में सैन्य तख्तापलट।

एक विरोधाभास: जिन कारकों के कारण इस क्षेत्र में भारतीय प्रभाव में गिरावट आई है, वे भारत की वैश्विक प्रमुखता के पीछे भी कारण हैं।

  • अमेरिकी वापसी: दक्षिण एशियाई क्षेत्र से अमेरिका की वापसी से उभरी रिक्तिता को चीन द्वारा कवर किया जाना भारत के लिए चिंताजनक स्थिति उत्पन्न कर रहा है।
    • लेकिन साथ ही, एक प्रमुख कारण यह भी है कि अमेरिका और उसके सहयोगी भारत के वैश्विक हितों को समायोजित करने के इच्छुक हैं।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र: हालाँकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की रुचि बढ़ी है, एक अपरिहार्य इंडो-पैसिफिक शक्ति के रूप में भारत की वैश्विक प्रमुखता, इंडो-पैसिफिक में शक्ति संतुलन पर भारत की रणनीति ने पड़ोस देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित किया है।

भारत के लिए इस विरोधाभास के निहितार्थ

  • वैश्विक आकांक्षाओं पर प्रभाव: भारत के वैश्विक उत्थान एवं क्षेत्रीय गिरावट के बीच द्वंद्व का भारत की वैश्विक आकांक्षाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • विश्वसनीयता पर प्रश्न: यह एक वैध प्रश्न उठाता है कि क्या जो देश अपनी परिधि में प्रधानता बनाए रखने में असमर्थ है, वह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक निर्णायक शक्ति बन पाएगा या नहीं।

दक्षिण एशियाई क्षेत्र

  • शामिल देश: यह एशिया का दक्षिणी क्षेत्र है, जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।
  • जनसांख्यिकी: दक्षिण एशिया के लोग इस क्षेत्र का सबसे प्रमुख संसाधन हैं, लेकिन इनका उपयोग प्रभावी तरीके से नहीं हो पा रहा है।
    • इस क्षेत्र की आधी आबादी 24 वर्ष से कम उम्र की है और वर्ष 2030 तक प्रत्येक महीने दस लाख से अधिक युवा श्रम बल में शामिल होंगे।
    • यदि दक्षिण एशिया की मानव पूँजी की मात्रा एवं गुणवत्ता में सुधार हुआ, तो प्रति श्रमिक क्षेत्रीय सकल घरेलू उत्पाद दोगुना हो सकता है।

विदेश नीतियों पर भारत के सिद्धांत

  • पंचशील: इन सिद्धांतों का पहली बार उल्लेख वर्ष 1954 के भारत-चीन समझौते में किया गया था। यह निम्नलिखित पाँच सिद्धांतों पर आधारित है:
    • एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए परस्पर सम्मान
    • परस्पर अनाक्रामकता
    • पारस्परिक अहस्तक्षेप
    • समानता और पारस्परिक लाभ
    • शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व
  • भारत प्रथम नीति: भारत अपनी विदेश नीति निर्णयों में अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है, वैश्विक मंच पर अपनी स्वतंत्रता और आत्मविश्वास का दावा करता है।
  • सामरिक स्वायत्तता: निर्णय लेने की स्वतंत्रता और रणनीतिक स्वायत्तता भारत की विदेश नीति की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इस प्रकार भारत साझेदारी में विश्वास करता है और गठबंधनों, विशेषकर सैन्य गठबंधनों से दूर रहता है।
  • वसुधैव कुटुंबकम् सिद्धांत: भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की अवधारणा पर विश्वास करता है और उसका पालन करता है, जो ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के सिद्धांतों के माध्यम से वैश्विक सद्भाव और विकास को बढ़ावा देता है।

आगे की राह

  • चीन की चुनौती का मुकाबला: भारत को क्षेत्र की अपनी कुछ पारंपरिक अवधारणाओं पर पुनः विचार करना चाहिए, दक्षिण एशिया में अपनी प्रधानता को ‘आधुनिक’ बनाना चाहिए और क्षेत्र में चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सक्रिय एवं कल्पनाशील नीतिगत कदम उठाने चाहिए।
  • क्षेत्रीय सहभागिता में भारत की शक्तियों का लाभ उठाना: भारत को हर पहलू में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ सीधे प्रतिस्पर्द्धा करने के प्रयास के बजाय अपनी शक्तियों का लाभ उठाने को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो एक अव्यावहारिक प्रयास होगा।
    • क्षेत्रीय भागीदारी के लिए एक नया दृष्टिकोण तैयार करना महत्त्वपूर्ण है, जो भारत के पारंपरिक लाभों और क्षेत्र की उभरती वास्तविकताओं के अनुरूप हो।
    • भारत को अपनी बौद्ध विरासत को पुनः स्थापित करना एक उदाहरणात्मक रणनीति के रूप में कार्य कर सकता है।
  • भारत के समुद्री लाभ का लाभ उठाना: भारत की महाद्वीपीय रणनीति कई बाधाएँ प्रस्तुत करती है, जबकि इसका समुद्री क्षेत्र व्यापार को बढ़ावा देने और अन्य प्रयासों के बीच मुद्दा-आधारित गठबंधन बनाने के पर्याप्त अवसर प्रदान करता है।
  • भारत-प्रशांत रणनीति में दक्षिण एशियाई पड़ोसियों को शामिल करना: इसमें भारत के छोटे दक्षिण एशियाई पड़ोसियों को भारत-प्रशांत रणनीतिक वार्ता में एकीकृत करना शामिल हो सकता है। हालाँकि उनमें से कई समुद्री राष्ट्र हैं, वर्तमान में उनकी इंडो-पैसिफिक पहल में सीमित भागीदारी है।
  • इंडो-पैसिफिक साझेदारी का विस्तार: भारत और उसके सहयोगियों (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ और अन्य) को अपनी व्यापक इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश के साथ जुड़ने और सहयोग करने के रास्ते तलाशने चाहिए।
  • सॉफ्ट पॉवर का उपयोग करना: भारत को क्षेत्र में प्रभाव बनाए रखने, अनौपचारिक संपर्कों एवं संघर्ष प्रबंधन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए अपनी सॉफ्ट पॉवर का उपयोग करना चाहिए।
  • सहभागिता में विविधता लाना: भारत को सहयोगी विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो समसामयिक और विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करती हैं, जैसे कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु मुद्दे, आपदा प्रबंधन, साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान कृत्रिम बुद्धिमत्ता, आदि।
  • क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाएँ: भारत को सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन), बिम्सटेक जैसी संगठनों को प्रभावी बना कर और व्यक्तिगत स्तर पर दक्षिण एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय साझेदारी को बढ़ावा देकर दक्षिण एशिया क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को प्राथमिकता देनी चाहिए। 
  • विचारधारा को स्थापित करना: भारत को अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति पर पुनः ध्यान केंद्रित करने और समावेशी विकास परियोजनाओं को प्राथमिकता देने और आपसी विश्वास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • ग्लोबल साउथ के केंद्र में दक्षिण एशिया: भारत को ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ में एक महत्त्वपूर्ण हितधारक के रूप में दक्षिण एशियाई क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करके अपने क्षेत्रीय राजनयिक संबंधों को बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • भारत को अपनी विदेश नीति में नैतिक सिद्धांतों को शामिल करने का प्रयास करना चाहिए, विश्व स्तर पर नैतिक नेतृत्व को पुनः स्थापित करना चाहिए, जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि सिद्धांतों एवं नैतिकता के बिना राजनीति विनाशकारी होगी।

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