100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारत की हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन

Lokesh Pal December 26, 2024 02:47 15 0

संदर्भ

भारत, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है तथा उसे बाढ़ की विकरालता का सामना करना पड़ रहा है एवं कृषि क्षेत्र में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है, लेकिन यह संवेदनशीलता भारत के लिए हरित आर्थिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने का एक अनूठा अवसर भी प्रस्तुत करती है।

भारत की जलवायु चुनौतियाँ हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन को बढ़ावा दे रही हैं

  • चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति: जलवायु परिवर्तन के कारण भारत को बार-बार बाढ़, हीट वेव और चक्रवातों का सामना करना पड़ता है।
    • वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश में आई बाढ़ ने ऊर्जा नेटवर्क सहित बुनियादी ढाँचे को व्यापक नुकसान पहुँचाया, जिसने जीवाश्म ईंधन पर निर्भर प्रणालियों की संवेदनशीलता पर ध्यान आकर्षित किया।
  • कृषि संबंधी सुभेद्यता: अनियमित मानसून और बढ़ते तापमान से फसल की पैदावार प्रभावित होती है, जिससे खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय पर खतरा उत्पन्न होता है।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक गेहूँ की पैदावार में 19.3% तथा वर्ष 2080 तक 40% की कमी आ सकती है।
  • समुद्र का बढ़ता स्तर: मुंबई और चेन्नई जैसे तटीय शहरों को समुद्र के बढ़ते स्तर से खतरा है, जिससे आजीविका और बुनियादी ढाँचे को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2050 तक तटीय जलप्लावन (Coastal Inundation) के कारण 36 मिलियन भारतीय विस्थापित हो सकते हैं।
  • जल की कमी और घटता भूजल: प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 1951 में 5,177 m³ से घटकर वर्ष 2022 में 1,486 m³ रह गई, जो अत्यधिक उपयोग और जलवायु प्रेरित जल तनाव के कारण है।
  • ऊर्जा आयात पर निर्भरता: आयातित तेल और गैस पर भारत की निर्भरता इसे वैश्विक मूल्य उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाती है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने से भारत का चालू खाता घाटा कम हो सकता है, क्योंकि अक्टूबर 2024 में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन 203.18 गीगावाट तक पहुँच जाएगा।

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से वेक्टर जनित बीमारियाँ और जल की कमी बढ़ती है, जिससे कमजोर आबादी प्रभावित होती है।
    • प्रतिवर्ष 37.7 मिलियन भारतीय जलजनित रोगों से प्रभावित होते हैं।

हरित अर्थव्यवस्था के बारे में

  • UNEP के अनुसार, हरित अर्थव्यवस्था को ऐसी अर्थव्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो कम कार्बन, संसाधन कुशल और सामाजिक रूप से समावेशी हो।
  • हरित अर्थव्यवस्था में, रोजगार और आय में वृद्धि सार्वजनिक एवं निजी निवेश द्वारा ऐसी आर्थिक गतिविधियों, बुनियादी ढाँचे और परिसंपत्तियों में की जाती है, जो कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण को कम करती हैं, ऊर्जा एवं संसाधन दक्षता को बढ़ाती हैं और जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के नुकसान को रोकती हैं।

हरित ऊर्जा संक्रमण का महत्त्व 

  • पर्यावरणीय स्थिरता: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता को कम करता है, आत्मनिर्भरता को बढ़ाता है।
    • भारत में सौर, पवन और बायोमास संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।
    • राजस्थान और गुजरात सौर ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी हैं, जबकि तमिलनाडु पवन ऊर्जा में श्रेष्ठ है।
  • आर्थिक विकास: हरित रोजगार सृजित करता है और नई प्रौद्योगिकियों में निवेश आकर्षित करता है।
    • अक्षय ऊर्जा क्षेत्र ने वर्ष 2023 में अकेले सौर ऊर्जा में 2,38,000 नौकरियाँ उत्पन्न कीं। विकेंद्रीकृत सौर और माइक्रोग्रिड परियोजनाएँ ग्रामीण रोजगार के अवसर प्रदान करती हैं।
    • भारत को वर्ष 2050 तक अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में 8.5 मिलियन नौकरियों की आवश्यकता होगी।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: पेरिस समझौते के अंतर्गत भारत के लक्ष्यों के अनुरूप, वर्ष 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करना (वर्ष 2005 के स्तर से)।
  • जीवन की बेहतर गुणवत्ता: वायु एवं जल प्रदूषण को कम करता है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य को लाभ होता है।
  • वैश्विक नेतृत्व: भारत आर्थिक विकास को स्थिरता के साथ संतुलित करने में अन्य विकासशील देशों के लिए एक उदाहरण स्थापित कर रहा है।

हरित अर्थव्यवस्था की ओर भारत के परिवर्तन में चुनौतियाँ

  • उच्च आरंभिक लागत और वित्तीय बाधाएँ: हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।
    • भारत को वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा (RE) उत्पादन परिसंपत्तियाँ स्थापित करने के लिए लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।
    • नीति आयोग ने नेट-जीरो लक्ष्यों के लिए वर्ष 2070 तक 10.1 ट्रिलियन डॉलर का अनुमान लगाया है, लेकिन वर्ष 2022 में स्वच्छ ऊर्जा निवेश केवल 17 बिलियन डॉलर था।
    • भारी निवेश के साथ, भारत का राजकोषीय बोझ बढ़ सकता है, जिससे भारत के राजकोषीय घाटे और सार्वजनिक ऋण के स्तर पर असर पड़ सकता है।
  • आयात पर तकनीकी निर्भरता: भारत सौर पैनल, बैटरी और पवन टरबाइन जैसी हरित प्रौद्योगिकियों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है।
    • निर्भरता वैश्विक व्यापार गतिशीलता और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाती है। 
    • वित्त वर्ष 2024 में चीन भारत के सौर मॉड्यूल का मुख्य आपूर्तिकर्ता था, जो भारत के कुल सौर आयात $3.89 बिलियन का 62.6% था।
  • सामाजिक और रोजगार संबंधी चुनौतियाँ: परिवर्तन कार्बन-गहन क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को प्रभावित करता है, जिनके पास हरित नौकरियों में परिवर्तन करने के लिए कौशल की कमी होती है।
    • झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे कोयला पर निर्भर राज्यों को पुनर्कौशल कार्यक्रमों के बिना रोजगार के जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।
  • नीतिगत और विनियामक अंतराल: खंडित और असंगत नीतियाँ दीर्घकालिक हरित निवेश में बाधा डालती हैं।
    • बार-बार टैरिफ में परिवर्तन और शुल्क, जैसे कि सौर ऊर्जा आयात पर मूल सीमा शुल्क (BCD), निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
  • भूमि अधिग्रहण और सामुदायिक प्रतिरोध: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए विशाल भूमि की आवश्यकता होती है, जिसके कारण अक्सर विस्थापन और विरोध प्रदर्शन होते हैं।
    • राजस्थान के भादला सौर पार्क (Bhadla Solar Park) और कर्नाटक के पावागड़ा पार्क को भूमि उपयोग और मुआवजे के मुद्दों पर स्थानीय प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
  • शहरी और अपशिष्ट प्रबंधन चुनौतियाँ: तेजी से बढ़ते शहरीकरण से अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों पर बोझ बढ़ता है।
    • शहरी अपशिष्ट का केवल 22-28% ही कुशलतापूर्वक संसाधित किया जाता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा पर जलवायु प्रभाव: अनियमित मौसम पैटर्न दक्षता को कम करते हैं और नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को बाधित करते हैं।
    • तमिलनाडु में पवन ऊर्जा परियोजनाओं को बेमौसम पवन पैटर्न के कारण उत्पादन में कमी का सामना करना पड़ रहा है।
  • सीमित सार्वजनिक जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन: स्थायी प्रथाओं में सार्वजनिक भागीदारी कम बनी हुई है।
    • केवल 25% परिवार ही BEE स्टार रेटिंग जैसे ऊर्जा दक्षता लेबल के बारे में जानते हैं।
  • राज्यों के बीच असमान विकास: कार्बन-गहन उद्योगों पर निर्भर राज्य हरित पहल अपनाने में पिछड़ रहे हैं।
    • गुजरात जैसे सक्रिय राज्यों की तुलना में कोयले पर निर्भर राज्यों को परिवर्तन में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त घाटा: भारत को अपनी हरित पहलों के लिए सीमित वित्तीय सहायता मिलती है।
    • COP29 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों की प्रतिबद्धताएँ भारत की जलवायु वित्त आवश्यकताओं को पूर्ण करने में अपर्याप्त रही हैं।

भारत में हरित अर्थव्यवस्था के प्रति सरकारी पहल और प्रतिबद्धताएँ

  • नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार
    • राष्ट्रीय सौर मिशन: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) का हिस्सा, इसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है, जिसे बाद में वर्ष 2030 तक 280 गीगावाट तक बढ़ाया जाएगा।
    • हरित ऊर्जा गलियारा: ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करके ग्रिड में अक्षय ऊर्जा के एकीकरण का समर्थन करता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता हासिल करना है।
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन
    • जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया।
    • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक प्रत्येक वर्ष 5 मिलियन मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन।
  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) प्रोत्साहन
    • फेम (FAME) इंडिया स्कीम (हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तेजी से अपनाना और विनिर्माण): इलेक्ट्रिक कारों, बसों और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए सब्सिडी के साथ EV अपनाने का समर्थन करता है।
    • भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए दो वर्ष की अवधि के लिए अक्टूबर 2024 में ‘पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव रिवॉल्यूशन इन इनोवेटिव व्हीकल एन्हांसमेंट’ (PM E-DRIVE) योजना शुरू की गई थी।
  • सर्कुलर इकोनॉमी पहल
    • सर्कुलर इकोनॉमी सेल: नीति आयोग ने सर्कुलर इकोनॉमी कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन के समन्वय के लिए वर्ष 2022 में इस सेल की स्थापना की।
    • स्वैच्छिक वाहन-बेड़े आधुनिकीकरण कार्यक्रम (Voluntary Vehicle-Fleet Modernization Program-VVMP) (2021): इसका उद्देश्य पुराने और प्रदूषणकारी वाहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है।
  • शहरी विकास और स्थिरता
    • स्मार्ट सिटी मिशन: हरित इमारतों, कुशल परिवहन और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए टिकाऊ शहरी नियोजन को एकीकृत करता है।
    • राष्ट्रीय शीतलन कार्य योजना (NCAP): ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकियों के माध्यम से वर्ष 2037-38 तक शीतलन की माँग को 25-30% तक कम करने का लक्ष्य।
  • वनरोपण और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली
    • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (National Afforestation Programme-NAP): इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक बंजर भूमि पर वन क्षेत्र को 20 मिलियन हेक्टेयर तक बढ़ाना है।
    • तटीय आवासों और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल (Mangrove Initiative for Shoreline Habitats and Tangible Incomes-MISHTI): तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए मैंग्रोव संरक्षण को बढ़ावा देती है।
      • वर्ष 2023-24 में लॉन्च किया गया और वर्ष 2023 से वर्ष 2028 तक पाँच वर्षों में लागू किया जाएगा।
  • अपशिष्ट प्रबंधन
    • स्वच्छ भारत मिशन: लैंडफिल पर निर्भरता कम करने के लिए अपशिष्ट पृथक्करण और प्रसंस्करण को बढ़ावा देता है।
      • भारत में 97% वार्डों में 100% डोर-टू-डोर अपशिष्ट संग्रहण है।
  • हरित वित्त तंत्र (Green Finance Mechanisms)
    • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए वर्ष 2023 में ₹16,000 करोड़ जारी किए गए।
    • हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने में MSMEs को सहायता देने के लिए ग्रीन क्रेडिट गारंटी फंड का निर्माण।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ
    • पेरिस समझौता: भारत ने वर्ष 2030 तक (वर्ष 2005 के स्तर से) अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने और वर्ष 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है।
    • पेरिस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC): भारत का लक्ष्य वनरोपण और वृक्ष आवरण वृद्धि के माध्यम से वर्ष 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन CO₂ के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना है।
      • वर्तमान प्रगति: वर्ष 2005 से अब तक 2.29 बिलियन टन अतिरिक्त कार्बन सिंक प्राप्त किया गया।
      • एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड (One Sun, One World, One Grid- OSOWOG): अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), भारत, फ्राँस और यूनाइटेड किंगडम द्वारा वैश्विक हरित ऊर्जा ग्रिड बनाने की पहल।
  • कृषि और ग्रामीण स्थिरता
    • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture-NMSA): परिशुद्ध कृषि, जैविक खेती और जल-उपयोग दक्षता जैसी जलवायु-लचीली कृषि पद्धतियों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • पीएम-कुसुम योजना: किसानों के लिए सौर ऊर्जा चालित सिंचाई प्रणालियों और ऑफ-ग्रिड सौर पंपों को बढ़ावा देती है।

भारत की हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए आगे की राह

  • हरित वित्त तंत्र को बढ़ावा देना: भारत को हरित पहलों के लिए वित्तपोषण की कमी को पूरा करने के लिए नवीन वित्तीय समाधानों की आवश्यकता है।
    • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करने का विस्तार करना।
    • MSMEs के लिए ग्रीन क्रेडिट गारंटी फंड की स्थापना करना।
    • ग्रीन क्लाइमेट फंड जैसी वैश्विक संस्थाओं के साथ साझेदारी के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त का लाभ उठाना।
  • मिश्रित वित्तपोषण: नवीन वित्तीय साधनों, जैसे कि मिश्रित वित्तपोषण, के माध्यम से निजी पूँजी को आकर्षित करने के लिए सार्वजनिक पूँजी का विवेकपूर्ण तरीके से निवेश किया जाना चाहिए।
    • सरकार को अपना बजट अन्य महत्त्वपूर्ण गतिविधियों के लिए आवंटित करने की अनुमति देना।
  • घरेलू हरित प्रौद्योगिकी विनिर्माण को बढ़ावा देना: ऊर्जा सुरक्षा के लिए आयातित नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता कम करना महत्त्वपूर्ण है।
    • सौर मॉड्यूल, बैटरी और हरित हाइड्रोजन उपकरणों के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना का विस्तार करना।
    • स्वदेशी स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
  • कौशल विकास और कार्यबल परिवर्तन: कार्बन-गहन उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों को हरित नौकरियों के लिए तैयार करना एक न्यायसंगत परिवर्तन सुनिश्चित करता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा, ईवी विनिर्माण और टिकाऊ कृषि में बड़े पैमाने पर पुनः कौशलीकरण और उन्नयन कार्यक्रमों को लागू करना।
  • नीति और शासकीय ढाँचे को मजबूत करना: नीतियों को सुव्यवस्थित करने से दीर्घकालिक निवेश आकर्षित हो सकते हैं और कार्यान्वयन में सुधार हो सकता है।
    • सभी क्षेत्रों में एकजुट कार्रवाई के लिए एक राष्ट्रीय हरित अर्थव्यवस्था नीति विकसित करना।
    • अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की मंजूरी में तेजी लाने के लिए अंतर-विभागीय समन्वय को बढ़ाना।
  • सतत् उपभोग और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: संसाधन दक्षता को प्रोत्साहित करना और अपशिष्ट को कम करना स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है।
    • संधारणीय प्रथाओं पर जन जागरूकता अभियान लागू करना।
    • रीसाइक्लिंग, पुनः उपयोग और अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाओं के लिए विनियमन तथा प्रोत्साहन को मजबूत करना।
  • राज्य-स्तरीय हरित पहल को बढ़ावा देना: राष्ट्रव्यापी प्रगति सुनिश्चित करने के लिए राज्यों के बीच असमान विकास को संबोधित किया जाना चाहिए।
    • कोयले पर निर्भर राज्यों को उनकी अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
    • राजस्थान में सौर ऊर्जा या तमिलनाडु में पवन ऊर्जा जैसी क्षेत्रीय शक्तियों का दोहन करने के लिए राज्य-विशिष्ट हरित ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष 

भारत का हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन चुनौतियों और अवसरों दोनों को प्रस्तुत करता है, जिसके लिए नीति, वित्त और प्रौद्योगिकी में समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। नवाचार को बढ़ावा देने, समावेशिता को बढ़ावा देने और शासन को मजबूत करने के माध्यम से, भारत सतत् विकास को प्राप्त कर सकता है और साथ ही हरित अर्थव्यवस्था में स्वयं को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर सकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.