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भारत में ग्रीन रिकवरी

Lokesh Pal December 31, 2024 05:44 29 0

संदर्भ

हाल ही में प्रकाशित ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023’ ने पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास को संतुलित करने के देश के सफल प्रयासों पर प्रकाश डाला है। 

भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023 का लघु परिदृश्य

  • ISFR उपग्रह डेटा और क्षेत्रीय सूचना का उपयोग करके देश के वन संसाधनों का द्विवार्षिक मूल्यांकन है।
    • पहली रिपोर्ट वर्ष 1987 में प्रकाशित हुई थी तथा ISFR, 2023 इसका 18वाँ संस्करण है।
  • प्रकाशक: इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • डेटा स्रोत: यह IRS रिसोर्ससैट उपग्रहों पर इसरो के LISS-III सेंसर से उपग्रह इमेजरी का उपयोग करती है।
  • खंड: रिपोर्ट 2 खंडों में प्रकाशित की गई है:
    • खंड-I: यह वन आवरण, मैंग्रोव आवरण, वनाग्नि, बढ़ते स्टॉक, कार्बन स्टॉक, कृषि वानिकी, वन विशेषताओं और दशकीय परिवर्तनों जैसे पहलुओं के साथ एक राष्ट्रीय स्तर का मूल्यांकन है।
    • खंड-II: यह प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के लिए वन आवरण और क्षेत्र सूची डेटा पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, जिसमें जिला तथा वन प्रभाग-वार वन आवरण डेटा शामिल है।
  • निष्कर्ष
    • वन और वृक्ष आवरण: यह 8,27,357 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत है, जो देश के कुल भूमि क्षेत्र का 25.17% है।
      • इसमें 7,15,343 वर्ग किलोमीटर (21.76%) वन आवरण और 1,12,014 वर्ग किलोमीटर (3.41%) वृक्ष आवरण शामिल हैं।
    • वन आवरण में वृद्धि: कुल मिलाकर वन आवरण वर्ष 2013 में 6,98,712 वर्ग किमी. से बढ़कर वर्ष 2023 में 7,15,343 वर्ग किमी. हो गया है।
    • वनाग्नि घटनाएँ: वनाग्नि की घटनाओं में कमी आई है, वर्ष 2023-24 में 2,03,544 अग्नि हॉटस्पॉट दर्ज किए गए, जो वर्ष 2021-22 में 2,23,333 से कम है।
    • कार्बन सिंक: देश ने वर्ष 2005 से अब तक 30.43 बिलियन टन CO2 समतुल्य कार्बन सिंक हासिल किया है, जो वन और वृक्ष आवरण में अतिरिक्त 2.29 बिलियन टन कार्बन सिंक का प्रतिनिधित्व करता है।

वन एवं वन्यजीव संरक्षण के लिए कानूनी ढाँचा

  • संवैधानिक निर्देश: संविधान के अनुच्छेद-48A और 51A (g) में वन और वन्यजीवों सहित पर्यावरण की रक्षा और सुधार के लिए राज्य और नागरिक के कर्तव्य को रेखांकित किया गया है।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: यह अधिनियम भारत में वन संरक्षण का मुख्य आधार है क्योंकि यह शिकार पर प्रतिबंध लगाता है, वन्यजीवों के आवासों की रक्षा करता है और संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करता है।
    • यह वन्यजीवों के अंगों और उत्पादों के व्यापार को भी नियंत्रित करता है और चिड़ियाघरों का प्रबंधन करता है।
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980: यह अधिनियम केंद्र सरकार की स्वीकृति के बिना किसी भी गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन संसाधनों के उपयोग पर रोक लगाता है।
  • जैव विविधता अधिनियम, 2002: इस अधिनियम का उद्देश्य जैव विविधता का संरक्षण करना, इसके घटकों का स्थायी उपयोग करना और आनुवंशिक संसाधनों के लाभों को निष्पक्ष तथा समान रूप से साझा करना है।
  • राज्य वन अधिनियम और वृक्ष संरक्षण अधिनियम: यह प्रत्येक राज्य के लिए विशिष्ट वन प्रबंधन को पूरा करता है, जबकि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पेड़ों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • प्रवर्तन राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए सरकारी पहल

  • हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन (GIM): इसे वर्ष 2014 में संयुक्त वन प्रबंधन समितियों (JFMCs) के माध्यम से संरक्षण, बहाली और विस्तार पहलों के माध्यम से भारत के वन क्षेत्र को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA): यह योजना गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग के कारण वन क्षेत्र और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के नुकसान की भरपाई करती है।
  • नगर वन योजना (NVY): यह योजना शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों में हरित स्थान विकसित करने पर केंद्रित है।
  • 20 सूत्री कार्यक्रम के अंतर्गत वनरोपण लक्ष्य: मंत्रालय केंद्र सरकार की योजनाओं, राज्य सरकार की योजनाओं और गैर-सरकारी संगठनों, निजी संगठनों तथा नागरिक समाज के प्रयासों के मिश्रण का उपयोग करके राज्यों/संघशासित प्रदेशों के लिए वार्षिक वनरोपण लक्ष्य निर्धारित करता है।
  • भारतीय वन प्रबंधन मानक: यह मानक स्थायी वन प्रबंधन की निगरानी के लिए मानदंड और रूपरेखा स्थापित करता है तथा भारतीय वन एवं लकड़ी प्रमाणन योजना का समर्थन करता है, जिससे विशेष रूप से छोटे पैमाने के लकड़ी उत्पादकों को लाभ मिलता है।
  • तटीय आवास और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल (MISHTI): यह पाँच वर्षीय पहल (2023-2028) भारत के तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव को बहाल करने और बढ़ावा देने का प्रयास करती है, जिससे तटीय आवासों की स्थिरता में वृद्धि होती है।
  • वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना (2018): यह योजना वनाग्नि को रोकने, तन्यता बढ़ाने और अग्नि नियंत्रण एवं रोकथाम के लिए सामुदायिक क्षमता बढ़ाने के उपाय प्रदान करती है।
  • संयुक्त वन प्रबंधन और पारिस्थितिकी विकास समितियाँ: इसने बेहतर वन और वन्यजीव संरक्षण के लिए संयुक्त वन प्रबंधन समितियों (JFMCs) के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा दिया है, जिससे प्रबंधन और संरक्षण गतिविधियों में स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित होती है।
  • जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय योजना (NPCA): इसका उद्देश्य केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों के बीच लागत साझाकरण के आधार पर देश में आर्द्रभूमि का संरक्षण और प्रबंधन करना है।
  • एक पेड़ माँ के नाम: प्रधानमंत्री द्वारा 5 जून, 2024 को शुरू किया गया यह अभियान नागरिकों को माताओं के सम्मान में पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे प्रकृति और पोषण के बीच गहरा संबंध विकसित होता है।

प्रकृति संरक्षण के लिए सामुदायिक भागीदारी

भारत का इतिहास और संस्कृति प्रकृति के साथ ‘सद्भावपूर्वक रहने’ के विचार पर बहुत जोर देती है, जो विभिन्न समुदायों और व्यक्तियों की जीवनशैली में प्रदर्शित होती है।

  • उदाहरण: पद्मश्री तुलसी गौड़ा, जिन्हें ‘वृक्षों की माता’ के नाम से भी जाना जाता है, ने कर्नाटक में लाखों पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए अपने जीवन के कई वर्ष समर्पित किए, जिससे बंजर भूमि हरे-भरे जंगल में बदल गई।
  • संरक्षण रिजर्व और सामुदायिक रिजर्व: ये रिजर्व वन्यजीव संरक्षण के लिए एक लचीली प्रणाली प्रदान करते हैं, साथ ही स्थानीय आबादी की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को भी बेहतर बनाते हैं।
  • चिपको आंदोलन: उत्तराखंड के चमोली जिले में इस आंदोलन ने वनों की कटाई का सफलतापूर्वक विरोध किया और दिखाया कि सामुदायिक वनीकरण कैसे सफल हो सकता है।
  • पवित्र उपवन: महाराष्ट्र का अजीवली गाँव इसका उदाहरण है, जहाँ धार्मिक भावनाएँ उपवनों से जुड़ी हैं।
  • जनजातीय संरक्षण: राजस्थान में बिश्नोई समुदाय वन्यजीवों की रक्षा के लिए सबसे आगे है क्योंकि वे सभी जीवन की पवित्रता में विश्वास करते हैं, मांस खाने से परहेज करते हैं और जीवित पेड़ों को काटने से बचते हैं।
    • यह समुदाय जंगली जानवरों के अवैध शिकार पर नजर रखने तथा घायल जानवरों को बचाने में सक्रिय रूप से शामिल रहता है और अक्सर वन विभाग के लिए बड़ा सहयोग करता है।
  • वन प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी: भारत में जनजातीय समुदाय तथा ग्रामीण पारंपरिक रूप से वनों की रक्षा करते रहे हैं, क्योंकि उनका अस्तित्व उन पर निर्भर करता है।
    • उदाहरण: मेघालय के खासी समुदाय के पास स्थानीय स्तर पर बहु-ग्राम सरकारों (हिमा) तथा आदिवासी ग्राम परिषदों सहित स्वदेशी सक्रिय शासन संगठन हैं।
  • कृषि-पारिस्थितिकी वानिकी: अरुणाचल प्रदेश के अपतानी समुदाय ने चावल-मछली की खेती का एक अनूठा कौशल विकसित किया है, जहाँ धान के साथ-साथ खेतों में मछली भी पाली जाती है, साथ ही चावल के खेतों के बीच ऊँची विभाजक मेड़ों पर बाजरा भी उगाया जाता है।

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