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भारत की वृद्धि और निवेश प्रवृत्तियाँ

Lokesh Pal August 27, 2025 02:15 11 0

संदर्भ

क्रिसिल (Crisil) की रिपोर्ट के अनुसार, जिसका शीर्षक है ‘द रोड अहेड फॉर इन्वेस्टमेंट्स’ (The Road Ahead for Investments), भारत का वास्तविक निवेश वित्त वर्ष 2021-25 के दौरान औसतन वार्षिक रूप से 6.9% बढ़ा, जो इसी अवधि के दौरान 5.4% की GDP वृद्धि से आगे निकल गया, जो अर्थव्यवस्था में मजबूत घरेलू और बाहरी विश्वास को दर्शाता है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का प्रोत्साहन: सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में तेजी से वृद्धि हुई, औसतन 13.9% की वृद्धि (वित्त वर्ष 2022-24), जिससे समग्र वृद्धि को बल मिला।
  • घरेलू योगदान: मुख्य रूप से रियल एस्टेट के माध्यम से घरों में 13.4% की वृद्धि दर्ज की गई, जिससे वे सबसे बड़े योगदानकर्ता बन गए।
  • निजी कॉर्पोरेट की कमजोरी: वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धा और शुल्कों के कारण कॉरपोरेट पूँजीगत व्यय 8.7% की वृद्धि दर से पिछड़ गया।
  • परिप्रेक्ष्य और सुझाव: राजकोषीय समेकन सार्वजनिक निवेश को धीमा कर सकता है; रिपोर्ट में दीर्घकालिक विकास को बनाए रखने के लिए नियामक सुधारों, सस्ती भूमि/बिजली, बेहतर अनुबंध प्रवर्तन और मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर जोर दिया गया है।

भारत की वृद्धि और निवेश प्रवृत्तियाँ

  • जीडीपी का मजबूत प्रदर्शन: वित्त वर्ष 2025 में भारत की नॉमिनल (सांकेतिक) जीडीपी ₹33.10 लाख करोड़ (3.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) रही, जो 9.9% की दर से बढ़ी, जबकि वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.5% पर रही, जिससे यह सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गई।
  • बढ़ता घरेलू उपभोग: मध्यम वर्ग निजी उपभोग को बढ़ावा देता है और भारत का उपभोक्ता बाजार वर्ष 2025 तक चौगुना होने का अनुमान है।
    • बढ़ती प्रयोज्य आय इस वृद्धि को बढ़ावा देती है।
  • बढ़ती खुदरा भागीदारी: खुदरा निवेशकों की संख्या अब 11 करोड़ से अधिक हो गई है और उनके पास सूचीबद्ध इक्विटी का लगभग 10% हिस्सा है।
    • मई 2025 में म्यूचुअल फंड एसआईपी ₹26,688 करोड़ (US$3.09 बिलियन) के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
  • बढ़ती विदेशी और निजी पूँजी: भारत की वेंचर कैपिटल (VC) फंडिंग वर्ष 2024 में ₹1.18 लाख करोड़ (US$13.7 बिलियन) तक पहुँच गई, जबकि वर्ष 2000 से संचयी एफडीआई प्रवाह 1.07 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया है, जो बढ़ते वैश्विक विश्वास को दर्शाता है।

भारत में विकास के समर्थक

  • सरकारी पूँजीगत व्यय: सरकार बुनियादी ढाँचे पर आधारित प्रोत्साहन के माध्यम से विकास को गति दे रही है, जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetization Pipeline- NMP) और उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजनाओं जैसी पहलों का समर्थन प्राप्त है।
    • सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025 की पहली छमाही के दौरान छह क्षेत्रों में PLI योजनाओं के तहत 1,596 करोड़ रुपये (184.33 मिलियन अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए हैं।
  • नीतिगत सुधार: संरचनात्मक सुधारों ने भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाया है।
    • प्रमुख उपायों में सरलीकृत FDI नीति, वस्तु एवं सेवा कर (GST) का क्रियान्वयन और कॉरपोरेट कर में 22% (नई विनिर्माण फर्मों के लिए 15%) की कमी शामिल है।
    • ऑनलाइन अनुमोदन और ‘सिंगल विंडो’ मंजूरी जैसी डिजिटल व्यवसाय सुगमता पहलों ने नियामक बाधाओं को काफी कम किया है, जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ा है।
  • वित्तीय बाजार की गहराई: भारत में घरेलू बचत का प्रवाह बढ़ रहा है। म्यूचुअल फंड उद्योग की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियाँ (AUM) मई 2025 तक ₹72.19 लाख करोड़ (836 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुँच गईं, जो घरेलू भागीदारी में वृद्धि को दर्शाती है।
    • वित्तीय बाजारों में यह वृद्धि उद्योगों के लिए वित्तपोषण स्रोतों में विविधता लाती है और बाहरी उधारी पर निर्भरता कम करती है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) उदारीकरण: भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उत्तरोत्तर मुक्त रूप से संबद्ध किया है, एकल-ब्रांड खुदरा, ब्राउनफील्ड हवाई अड्डों, बीमा और रक्षा (स्वचालित और सरकारी अनुमोदन मार्गों के माध्यम से) जैसे क्षेत्रों में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी है।
    • उदारीकृत मानदंडों ने वैश्विक फर्मों को स्थानीय आधार पर स्थापित करने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया है।
  • प्रौद्योगिकी और हरित परिवर्तन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, नवीकरणीय ऊर्जा और ESG-प्रमाणित बुनियादी ढाँचे में निवेश से संरचनात्मक परिवर्तन को बढ़ावा मिल रहा है।
    • वर्ष 2020 से, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा में 6.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है, जो स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में इसके वैश्विक नेतृत्व को दर्शाता है।

भारत में निवेश

निवेश से तात्पर्य भौतिक, वित्तीय और मानवीय परिसंपत्तियों में पूँजी निर्माण से है, जो सतत् विकास और उत्पादकता को सक्षम बनाता है।

निवेश का प्रकार

यह क्या है ?

वर्तमान प्रवृत्ति और डेटा (2023–25)

सरकारी पूँजीगत व्यय (कैपेक्स)
  • बुनियादी ढाँचे, रक्षा, रेलवे, सड़क और नवीकरणीय ऊर्जा पर सार्वजनिक व्यय।
  • इसमें PLI (उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन) योजनाएँ शामिल हैं।
  • वित्त वर्ष 2025-26 में ₹11.21 लाख करोड़ (GDP का 3.1%) का पूँजीगत व्यय निर्धारित किया गया है।
  • 14 क्षेत्रों में PLI योजनाओं से ₹30 लाख करोड़ का उत्पादन और 60 लाख रोजगार सृजित होंगे।
निजी कॉरपोरेट निवेश
  • विनिर्माण, आईटी, लॉजिस्टिक्स, रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल में निवेश करने वाली घरेलू कंपनियाँ।
  • इसमें विलय, अधिग्रहण और क्षमता विस्तार शामिल हो सकते हैं।
  • भारतीय निगम EV, IT और रियल एस्टेट क्षेत्र में विस्तार कर रहे हैं।
  • रियल एस्टेट में प्राइवेट इक्विटी (PE) 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 24 की दूसरी तिमाही) के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई, जिसमें वेयरहाउसिंग (61%) का योगदान सबसे अधिक रहा।
घरेलू निवेश

इसमें आवास, बैंक बचत, म्यूचुअल फंड, बीमा, सोना, SIP आदि शामिल हैं।

  • म्यूचुअल फंड AUM: मई 2025 में ₹72.19 लाख करोड़ (836 अरब अमेरिकी डॉलर)।
  • मई 2025 में SIP प्रवाह ₹26,688 करोड़ (3.09 अरब अमेरिकी डॉलर) के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
  • वित्त वर्ष 2024 में नए म्यूचुअल फंड निवेशकों में 70% की वृद्धि।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)
  • स्वामित्व एवं नियंत्रण के साथ दीर्घकालिक विदेशी पूँजी प्रवाह।
  • 1.07 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का संचयी निवेश (2000-2025)।
  • उपग्रह, रक्षा, एकल ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI)
  • प्रबंधन नियंत्रण के बिना स्टॉक, बॉण्ड, प्रतिभूतियों में निवेश।
  • FDI की तुलना में अधिक अस्थिर।
  • वित्त वर्ष 2025 में FPI के बहिर्वाह में वृद्धि के बावजूद शुद्ध अंतर्वाह 1.4 ट्रिलियन रुपये रहा है।
बाह्य वाणिज्यिक उधार (External Commercial Borrowings- ECB)
  • विदेशी बैंकों/वित्तीय संस्थानों से भारतीय निगमों/सरकार को दिए गए ऋण।
  • इनका उपयोग बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए किया जाता है।
  • वित्त वर्ष 2025 में भारतीय संस्थाओं ने 1,379 ECBs पंजीकृत किए, जिनका कुल मूल्य 61.2 बिलियन डॉलर था।
वेंचर कैपिटल (VC) और प्राइवेट इक्विटी (PE)
  • VC: प्रारंभिक चरण के स्टार्ट-अप के लिए फंडिंग।
  • PE: परिपक्व कंपनी निवेश, बायआउट, पुनर्गठन।
  • वर्ष 2024 में ₹1.18 लाख करोड़ (US$13.7 बिलियन) की वेंचर कैपिटल (VC)।
  • भारतीय तकनीकी क्षेत्र में 635 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे (तीसरी तिमाही 2024) हुए।
NRI और OCI जमा
  • भारतीय बैंकों में प्रवासी भारतीयों द्वारा जमा राशि।
  • उप-प्रकार: FCNR, NRE, NRO जमा।
  • अंतर्वाह दोगुना होकर 7.82 अरब अमेरिकी डॉलर (अप्रैल-अगस्त 2024) हो गया।
  • कुल बकाया: 158.94 अरब अमेरिकी डॉलर (अगस्त 2024)।
बाहरी सहायता / ऋण
  • विश्व बैंक, एडीबी और द्विपक्षीय साझेदारों से सहायता, अनुदान, ऋण।
  • प्रायः स्वास्थ्य, बुनियादी ढाँचा, शिक्षा के लिए।
  • नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट शहरों और लॉजिस्टिक्स के लिए समर्थन बढ़ाना।
  • विश्व बैंक ने भारत के हरित ऊर्जा अभियान को गति देने के लिए 1.5 अरब डॉलर के ऋण (2023) को मंजूरी दी है।

निवेश में वृद्धि के कारण

  • युवा जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत की सबसे बड़ी कार्यशील आयु वर्ग की आबादी (65% से अधिक 35 वर्ष से कम आयु की) एक मजबूत श्रम शक्ति और बढ़ती उपभोक्ता माँग, दोनों सुनिश्चित करती है।
    • यह जनसांख्यिकीय बढ़त ई-कॉमर्स, आईटी सेवाओं और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देती है, जिससे भारत दीर्घकालिक निवेश के लिए आकर्षक बन जाता है।
  • बढ़ता मध्यम वर्ग: बढ़ती प्रयोज्य आय आवास, खुदरा, स्वास्थ्य सेवा और डिजिटल सेवाओं में खपत को बढ़ावा दे रही है।
    • उदाहरण के लिए, अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत के मध्यम वर्गीय परिवारों की संख्या कुल परिवारों के 45% तक पहुँच जाएगी, जिससे एक विशाल उपभोक्ता बाजार का निर्माण होगा।
  • सरकारी सुधार: 14 क्षेत्रों में PLI योजनाएँ, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति और उदार FDI मानदंडों जैसी नीतियों ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है।
    • ये पहल लागत कम करती हैं, आपूर्ति शृंखलाओं को सुव्यवस्थित करती हैं और घरेलू तथा विदेशी कंपनियों को परिचालन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
  • विदेशी पूँजी प्रवाह: मॉरीशस, सिंगापुर और अमेरिका से FDI का मजबूत प्रवाह भारत के विकास में वैश्विक विश्वास को दर्शाता है।
    • इसके अतिरिक्त, प्रौद्योगिकी, फिनटेक और रियल एस्टेट में निजी इक्विटी और उद्यम पूँजी निवेश बढ़ रहे हैं, जिससे पूँजी तक पहुँच मजबूत हो रही है।
  • घरेलू वित्तीय बचत: वित्तीय बाजारों में खुदरा भागीदारी बढ़ी है, वर्ष 2025 में म्यूचुअल फंड SIP प्रवाह ₹20,000 करोड़ मासिक को पार कर जाएगा।
    • इससे व्यवसायों के लिए दीर्घकालिक वित्त पोषण स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
  • क्षेत्रीय अवसर: नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और AI में बाजारों का विस्तार वैश्विक और घरेलू निवेशकों के लिए नए रास्ते खोल रहा है।
    • उदाहरण: भारत ने वर्ष 2020 से नवीकरणीय ऊर्जा में 6.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है, जो मजबूत क्षेत्रीय आकर्षण दर्शाता है।

निवेश में वृद्धि का महत्त्व

  • सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि को बढ़ावा: भारत की निवेश वृद्धि समग्र सकल घरेलू उत्पाद विस्तार से आगे निकल रही है, जो अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक उत्पादक क्षमता को मजबूत करती है।
    • उच्च पूँजी निर्माण निरंतर औद्योगिक विकास, बेहतर बुनियादी ढाँचे और बेहतर दक्षता सुनिश्चित करता है, जिससे अर्थव्यवस्था आने वाले दशकों में उच्च विकास दर हासिल कर सकेगी।
  • रोजगार सृजन: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में एक प्रमुख कारक हैं, जिनसे इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में लगभग 60 लाख रोजगार सृजित होने का अनुमान है।
    • यह बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन न केवल आय सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि प्रमुख उद्योगों में कौशल विकास को भी बढ़ावा देता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत IT सेवाओं, मशीनरी और नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों जैसे उच्च-माँग वाले क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति का विस्तार करके अपनी निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को तेजी से बढ़ा रहा है।
    • निर्यात में विविधता लाकर और अपनी वैश्विक आपूर्ति शृंखला उपस्थिति को मजबूत करके, भारत वैश्विक व्यापार में एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में अपनी स्थिति बना रहा है, जिससे पारंपरिक निर्यात पर अत्यधिक निर्भरता कम हो रही है।
  • धन वितरण: वित्तीय बाजारों में बढ़ती खुदरा भागीदारी निवेश के अवसरों तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करती है, जिससे शहरी अभिजात वर्ग से परे धन सृजन का लोकतंत्रीकरण होता है।
    • बढ़ता हुआ म्यूचुअल फंड निवेश, डिजिटल ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म और IPO भागीदारी गहन वित्तीय समावेशन को दर्शाती है, जिससे मध्यम वर्ग और अर्द्ध-शहरी आबादी को लाभ होता है।
  • समष्टि आर्थिक स्थिरता: मजबूत बाह्य बुनियादी ढाँचे लचीलापन प्रदान करते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 695 बिलियन अमेरिकी डॉलर (अगस्त 2025) है, जो मुद्रा की अस्थिरता और वैश्विक अनिश्चितताओं के विरुद्ध एक मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
    • चालू खाता घाटा (CAD) सकल घरेलू उत्पाद का 0.6% बना हुआ है, जो संतुलित व्यापार प्रवाह और स्थिर पूँजी प्रवाह को दर्शाता है, जिससे भारत की बाह्य कमजोरियाँ कम होती हैं।

निवेश की चुनौतियाँ

  • क्षेत्रीय संकेंद्रण: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) कुछ ही क्षेत्रों में केंद्रित है, जहाँ सेवाओं (16%) और आईटी हार्डवेयर (15%) में निवेश का बोलबाला है, जबकि कृषि और MSME जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को अपर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त हो रहा है।
  • भौगोलिक विषमता: कर्नाटक पूँजी के लिए एक असमानुपातिक आकर्षण के रूप में उभरा है, जिसने वर्ष 2020-24 के बीच उद्यम पूँजी वित्तपोषण में ₹3.28 लाख करोड़ (38 बिलियन अमेरिकी डॉलर) आकर्षित किया है।
    • यह असमान वितरण कम विकसित राज्यों और क्षेत्रों में निवेश प्रवाह की कमी को उजागर करता है।
  • कुछ स्रोतों पर निर्भरता: भारत का FDI प्रवाह मॉरीशस (25%) और सिंगापुर (24%) पर अत्यधिक निर्भर है, जो कुल निवेश का लगभग आधा हिस्सा है।
    • यह निर्भरता पूँजी प्रवाह को द्विपक्षीय कराधान परिवर्तनों और वैश्विक वित्तीय परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
  • रियल एस्टेट जोखिम: वित्त वर्ष 2024 में रियल एस्टेट में निजी इक्विटी निवेश 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, लेकिन यह अस्थिर बना हुआ है और वेयरहाउसिंग एवं औद्योगिक केंद्रों तक ही सीमित है, जिससे स्थिरता तथा क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • नियामक अनिश्चितता: ESG मानदंडों के कार्यान्वयन में बार-बार होने वाली देरी और कराधान अनुपालन में अस्पष्टताएँ दीर्घकालिक निवेशकों को हतोत्साहित करती हैं, जिससे निवेशकों का विश्वास प्रभावित होता है।
  • बुनियादी ढाँचे संबंधी बाधाएँ: राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति के तहत सुधारों के बावजूद, भारत की लॉजिस्टिक्स लागत वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में अधिक बनी हुई है, जिससे विनिर्माण और निर्यात के लिए समग्र प्रतिस्पर्द्धा सीमित हो रही है।
    • सरकार का लक्ष्य लॉजिस्टिक्स लागत को सकल घरेलू उत्पाद के 13%-14% से घटाकर 8% करना है, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना: सेवाओं और IT हार्डवेयर में FDI के अत्यधिक संकेंद्रण को कम करने के लिए, सरकार को कृषि, MSME और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश को प्रोत्साहित करना होगा।
    • हरित और लघु उद्यमों तक PLI योजनाओं का विस्तार करने से व्यापक क्षेत्रीय विकास और रोजगार सृजन होगा।
  • भौगोलिक विषमता को दूर करना: कर्नाटक और NCR जैसे स्थापित केंद्रों से परे औद्योगिक गलियारों और लॉजिस्टिक्स केंद्रों को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय असमानताओं को संतुलित किया जा सकता है।
    • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) के तहत पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए केंद्रित प्रोत्साहन पूँजी प्रवाह के समान वितरण को सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • निवेश स्रोतों में विविधता लाना: भारत को यूरोप, जापान और पश्चिम एशिया से निवेश आकर्षित करके मॉरीशस और सिंगापुर पर अपनी अत्यधिक निर्भरता कम करने की आवश्यकता है।
    • रणनीतिक साझेदारियाँ और द्विपक्षीय समझौते निवेशक आधार को व्यापक बना सकते हैं और चुनिंदा स्रोत देशों में अचानक नीतिगत बदलावों के प्रति संवेदनशीलता को कम कर सकते हैं।
    • यूरोपीय संघ (EU) से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में निरंतर वृद्धि का रुझान है और यूरोपीय संघ का FDI स्टॉक वर्ष 2019 के 82.3 बिलियन यूरो से बढ़कर वर्ष 2023 में 140.1 बिलियन यूरो तक पहुँच जाएगा।
  • रियल एस्टेट निवेश को स्थिर करना: अस्थिर रियल एस्टेट फंडिंग में जोखिमों को कम करने के लिए, नीतियों को किफायती आवास और स्मार्ट शहरों में विविध निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे वेयरहाउसिंग और औद्योगिक परिसंपत्तियों पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने के बजाय स्थायी रिटर्न सुनिश्चित हो सके।
  • नियामक स्पष्टता में वृद्धि: पूर्वानुमानित ESG मानदंड, पारदर्शी कराधान और तेज अनुपालन प्रक्रियाएँ निवेशकों का विश्वास बढ़ाएँगी।
    • आत्मनिर्भर भारत के तहत सुसंगत नीतियाँ विदेशी और घरेलू निवेशकों के लिए दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकती हैं।
  • बुनियादी ढाँचे और रसद को मजबूत करना: राष्ट्रीय रसद नीति गति शक्ति और NIP के माध्यम से रसद लागत को सकल घरेलू उत्पाद के 13-14% से घटाकर 8% करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • उन्नत मल्टीमॉडल परिवहन और डिजिटल माल ढुलाई प्रणालियाँ वैश्विक स्तर पर व्यापार प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाएँगी।

निष्कर्ष

घरेलू सुधारों, बढ़ती खपत और विदेशी निवेश से प्रेरित भारत में निवेश की तेजी एक गहरे संरचनात्मक परिवर्तन का संकेत है। अपने समकक्ष देशों की तुलना में तीव्र विकास दर, नियंत्रित मुद्रास्फीति और सुदृढ़ भंडार के साथ भारत एक वैश्विक निवेश केंद्र के रूप में अपनी स्थिति और मजबूत करने की दिशा में अग्रसर है। इस गति को बनाए रखने के लिए निवेश क्षेत्रों में विविधता लाना, क्षेत्रीय भागीदारी को प्रोत्साहित करना और नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करना अनिवार्य होगा।

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