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भारत में आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन में विरोधाभास

Lokesh Pal September 03, 2024 05:50 228 0

संदर्भ 

भारत रोजगारविहीन आर्थिक वृद्धि के विरोधाभास से जूझ रहा है, जहाँ उल्लेखनीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का विस्तार रोजगार के अवसरों में वृद्धि में तब्दील नहीं हो रहा है।

भारत में रोजगार एवं GDP वृद्धि का वर्तमान परिदृश्य

  • आर्थिक विकास और रोजगार के रुझान
    • GDP वृद्धि: वर्ष 2011-12 एवं वर्ष 2022-23 के बीच वार्षिक 6.5-7% की प्रभावशाली GDP वृद्धि दर के साथ भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था रहा है।
    • रोजगार वृद्धि: मजबूत GDP वृद्धि के बावजूद, इसी अवधि के दौरान रोजगार केवल 1.9% सालाना की धीमी गति से बढ़ा है।
  • रोजगार बनाम श्रम आपूर्ति गतिशीलता
    • रोजगार वृद्धि: रोजगार वर्ष 2011-12 में लगभग 466 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2022-23 में लगभग 577 मिलियन हो गया।
    • श्रम आपूर्ति वृद्धि: श्रम आपूर्ति वर्ष 2011-12 में 477 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2022-23 में लगभग 595 मिलियन हो गई।

  • बेरोजगारी संबंधी आँकड़े 
    • बेरोजगारी में वृद्धि: रोजगार की वृद्धि एवं श्रम आपूर्ति के बीच अंतर के कारण बेरोजगारी में वृद्धि हुई। बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या वर्ष 2011-12 में लगभग 10 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 19 मिलियन से अधिक हो गई।
    • बेरोजगारी वृद्धि दर: यह बेरोजगारी में 5.6% से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर का प्रतिनिधित्व करती है, जो कि काफी अधिक है एवं सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर से बहुत कम नहीं है।

रोजगार विहीन वृद्धि (Jobless Growth) के बारे में

  • ‘रोजगारविहीन वृद्धि’ शब्द वास्तव में आर्थिक वृद्धि की एक असामान्य स्थिति का प्रतीक है, जिसके तहत एक देश आर्थिक रूप से तरक्की करता है, जो सकल घरेलू उत्पाद द्वारा मापा जाता है, लेकिन नौकरियाँ उत्पन्न नहीं करता है। 
  • इन उच्च वृद्धि दर के बावजूद, रोजगार सृजन एक चिंता का विषय बना हुआ है, जो इस आर्थिक विकास की सामाजिक प्रकृति पर भी संदेह उत्पन्न करता है।

महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

  • बेरोजगार विकास: डेटा ‘रोजगारविहीन वृद्धि’ के परिदृश्य को इंगित करता है, जहाँ आर्थिक वृद्धि के साथ रोजगार के अवसरों में आनुपातिक वृद्धि नहीं होती है।
  • उत्पादकता बनाम रोजगार: यद्यपि उत्पादकता में सुधार के कारण उत्पादन वृद्धि और रोजगार वृद्धि के बीच कुछ अंतर की उम्मीद है, लेकिन यह महत्त्वपूर्ण अंतर यह दर्शाता है कि आर्थिक विकास पर्याप्त रोजगार सृजन के लिए पर्याप्त रूप से समावेशी नहीं रहा है।
  • बेरोजगारी के लिए निहितार्थ: श्रम आपूर्ति की तुलना में रोजगार वृद्धि की धीमी गति के कारण बेरोजगारी बैकलॉग में वृद्धि हुई है, जो दर्शाता है कि आर्थिक नीतियों को श्रम-गहन वृद्धि एवं प्रभावी रोजगार सृजन रणनीतियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

रोजगार की परिभाषा 

किसी व्यक्ति को नियोजित माना जाता है यदि वह निर्दिष्ट संदर्भ अवधि के दौरान किसी भी आर्थिक गतिविधि में लगा हुआ है, जिसे किसी भी कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है, चाहे वह मजदूरी/वेतन, लाभ या पारिवारिक लाभ के लिए हो। 

आर्थिक विकास के पर्याप्त रोजगार सृजन के अनुरूप नहीं होने के कारण

  • समय-पूर्व विऔद्योगीकरण: भारत समय-पूर्व विऔद्योगीकरण का सामना कर रहा है, जहाँ सकल घरेलू उत्पाद एवं रोजगार में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी विकसित देशों की तुलना में बहुत कम आय स्तर पर घट रही है। 
  • कौशल अंतर का मुद्दा: नियोक्ताओं के लिए आवश्यक कौशल एवं श्रमिकों के पास वर्तमान में मौजूद कौशल के बीच एक उल्लेखनीय असमानता मौजूद है। कौशल भारत पहल जैसे प्रयासों के बावजूद, ये कार्यक्रम अपने लक्ष्यों से कम हो गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी तथा अल्परोजगार दोनों की उच्च दर है।
  • अनौपचारिक रोजगार की व्यापकता: भारत का 90% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में लगा हुआ है, जो कम उत्पादकता, नौकरी सुरक्षा की कमी एवं न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा द्वारा चिह्नित है।
    • हालाँकि गिग इकॉनमी रोजगार के नए अवसर प्रस्तुत करती है, लेकिन इसमें अक्सर स्थिरता एवं कॅरियर में उन्नति की संभावनाओं का अभाव होता है, जिससे नौकरी की असुरक्षा बढ़ जाती है।
  • नौकरी सृजन एवं बढ़ती कामकाजी आबादी में चुनौती: प्रत्येक वर्ष लगभग 12 मिलियन नए व्यक्ति कार्यबल में शामिल होते हैं, भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने तथा इसे जनसांख्यिकीय दायित्व बनने से रोकने के लिए सालाना 10-12 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न करनी होंगी। हालाँकि, रोजगार सृजन की वर्तमान दर अपर्याप्त है, जिससे सामाजिक अशांति एवं आर्थिक चुनौतियों का खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • MSMEs में ‘मिसिंग मिडिल’: भारत की औद्योगिक संरचना बहुत छोटी फर्मों एवं बड़े निगमों के बीच ध्रुवीकृत है, जिसमें मध्यम आकार के उद्यमों की कमी है, जो आम तौर पर रोजगार उत्पन्न करने में सबसे प्रभावी होते हैं। रोजगार सृजन के लिए महत्त्वपूर्ण MSME क्षेत्र विमुद्रीकरण तथा कोविड-19 महामारी के बाद भी संघर्ष कर रहा है।
  • AI एवं ऑटोमेशन के कारण रोजगार हानि: ऑटोमेशन एवं AI का उभार नौकरी बाजारों को नया आकार दे रहा है, जिससे वर्ष 2030 तक भारत के 9% कार्यबल को विस्थापित होने की संभावना है। ये प्रगति आम तौर पर अत्यधिक कुशल कार्यबल की माँग करती है, जिससे निचले स्तर-कुशल श्रमिक के लोगों में बेरोजगारी दर बढ़ सकती है। 
  • उद्योग की आवश्यकताओं के साथ शैक्षणिक पाठ्यक्रम का गलत संरेखण: भारत की शिक्षा प्रणाली छात्रों को आधुनिक नौकरी बाजारों के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं करती है, जिससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जहाँ वर्ष 2019 में केवल 47% स्नातक रोजगार के योग्य थे। यह विसंगति अक्षमताओं को जन्म देती है, जिससे बड़ी संख्या में नौकरी चाहने वाले उद्योग की माँगों को पूरा करने में असमर्थ हो जाते हैं। 

आर्थिक विकास को अधिक श्रम प्रधान बनाने की रणनीतियाँ

  • वेतन-किराया अनुपात कम करना: श्रम-केंद्रित विकास को बढ़ावा देने के लिए, नीतियों को वेतन-किराया अनुपात कम करना चाहिए, जिससे पूँजी के सापेक्ष श्रम सस्ता हो जाएगा। इस अनुपात को कम करने से निर्माण एवं कपड़ा जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों को अधिक लाभदायक बनाया जा सकता है, जिससे निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
    • हालाँकि, पहले से ही कम वेतन स्तर के कारण भारत में मजदूरी कम करना संभव नहीं है।
  • श्रम-सघन क्षेत्रों पर ध्यान देना: निर्माण, व्यापार, परिवहन एवं कपड़ा जैसे श्रम-सघन क्षेत्र, जो वर्तमान में लगभग 240 मिलियन लोगों को रोजगार देते हैं, यदि वेतन-किराया अनुपात कम हो जाता है, तो संसाधन आवंटन में बदलाव से लाभ हो सकता है।
  • रोजगार-लिंक्ड प्रोत्साहन: श्रम-गहन क्षेत्रों में रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) की तरह एक मजबूत रोजगार-लिंक्ड प्रोत्साहन (ELI) योजना का कार्यान्वयन।
  • श्रम बाजार की कठोरताओं को संबोधित करना: विभिन्न राज्यों से तुलनात्मक साक्ष्यों के आधार पर श्रम कानूनों को सरल बनाना एवं अनुपालन बोझ को कम करना, जो वर्तमान में रोजगार वृद्धि में बाधक है।
  • पूँजी की लागत बढ़ाना: भारत में, सरकार द्वारा नियंत्रित कम पूँजी लागत, कृत्रिम रूप से कम ब्याज दरों से प्रभावित, वास्तविक कमी को प्रतिबिंबित करने में विफल रहती है। यह श्रम प्रधान निवेश को हतोत्साहित करता है। पूँजीगत लागत बढ़ाने से रोजगार सृजन को बढ़ावा देते हुए अधिक श्रम-गहन क्षेत्रों की ओर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
    • आयात को अधिक महंगा एवं निर्यात को सस्ता बनाने के लिए विनिमय दरों को समायोजित करना, हालाँकि इससे मुद्रा हेरफेर के आरोप लग सकते हैं।

वेतन-किराया अनुपात कम करने की चुनौतियाँ 

  • निम्न वेतन स्तर: भारत में वेतन बेहद कम है, नियमित कर्मचारी लगभग ₹1,000 मासिक कमाते हैं, आकस्मिक मजदूर ₹4,500 मासिक कमाते हैं, एवं स्व-रोजगार व्यक्ति वर्ष 2022-23 में लगभग ₹7,000 मासिक अर्जित कर रहे थे। पहले से ही निराशाजनक वेतन परिदृश्य मजदूरी में कटौती के विकल्प को सीमित करता है।
  • नियंत्रित पूँजी लागत: पूँजीगत लागत अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की प्रमुख उधार लेने एवं उधार देने की प्रथाओं द्वारा नियंत्रित होती है। 
    • उदाहरण के लिए, 10-वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों पर उपज 7-7.5% पर स्थिर बनी हुई है, एवं पूँजी की वास्तविक ब्याज लागत लगभग 2% है, जो अपेक्षाकृत कम तथा कभी-कभी नकारात्मक है, जो पूँजी की वास्तविक कमी को नहीं दर्शाती है।
  • आयात पर निर्भर राष्ट्र: हालाँकि, एक आयात पर निर्भर राष्ट्र के रूप में, मुद्रा मूल्यह्रास महत्त्वपूर्ण नकारात्मक बाह्यताओं को जन्म दे सकता है।

आगे की राह

  • कौशल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के प्रयास: स्थानीय कौशल केंद्रों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना, जो स्थानीय उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, क्षेत्रीय नियोक्ता की माँगों को पूरा करने के लिए कुशल श्रमिकों के लिए एक सीधा मार्ग बनाते हैं।
  • सहकारी समितियों के माध्यम से गिग श्रमिकों को सशक्त बनाना: सामूहिक सौदेबाजी को मजबूत करने, संसाधन साझाकरण को अनुकूलित करने एवं वित्तीय स्थिरता प्रदान करने के लिए गिग श्रमिकों के स्वामित्व वाली सहकारी समितियों के निर्माण को बढ़ावा देना, साथ ही गिग नौकरियों द्वारा प्रदान किए जाने वाले लचीलेपन को बनाए रखना।
  • AI कौशल संवर्द्धन पहल: AI प्रौद्योगिकी को शामिल करने वाली भूमिकाओं के लिए कार्यबल को प्रशिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम विकसित करना, उभरते नौकरी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना, जहाँ मानव क्षमताओं को AI द्वारा पूरक किया जाता है, जिससे दक्षता एवं रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
  • सर्कुलर इकोनॉमी हब में नौकरियाँ: सर्कुलर इकोनॉमी प्रथाओं के लिए समर्पित केंद्र बनाएँ, पुनर्चक्रण, पुनः प्रयोजन और सतत डिजाइन में रोजगार प्रदान करना, जिससे रोजगार वृद्धि को बढ़ावा मिले और साथ ही पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिले।

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