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भारत की अवैध कोयला खनन समस्या

Lokesh Pal July 29, 2024 04:10 88 0

संदर्भ

हाल ही में गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले में एक अवैध कोयला खदान के अंदर दम घुटने से तीन श्रमिकों की मौत हो गई, जो अनधिकृत खनन कार्यों में सुरक्षा उपायों की गंभीर कमी को रेखांकित करती है। 

पृष्ठभूमि

हाल की घटनाएँ

  • जून 2023: झारखंड के धनबाद जिले में एक अवैध खदान ढहने से दस वर्ष के किशोर सहित तीन लोगों की मौत हो गई।
  • अक्टूबर 2023: पश्चिम बंगाल के पश्चिम बर्द्धमान जिले में अवैध उत्खनन के दौरान तीन लोगों की मौत हो गई।
  • अन्य क्षेत्रों में इसी तरह की मौतें अवैध कोयला खनन की व्यापक समस्या को उजागर करती हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ

  • कोयला राष्ट्रीयकरण: भारत में कोयले का राष्ट्रीयकरण दो चरणों में किया गया-
    • चरण 1: कोकिंग कोयला (इस्पात उद्योग में कोक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त) का वर्ष 1971-72 में राष्ट्रीयकरण किया गया।
    • चरण 2: वर्ष 1973 में गैर-कोकिंग कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
  • विधिक उपाय: कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 केंद्रीय कानून है, जो भारत में कोयला खनन के लिए पात्रता निर्धारित करता है।
  • राज्य का उत्तरदायित्व: अवैध खनन राज्य सूची के तहत एक कानून एवं व्यवस्था की समस्या है, जिसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार के बजाय राज्य सरकारों पर है।

कोल इंडिया लिमिटेड (CIL)

  • कोल इंडिया लिमिटेड, भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के स्वामित्व में एक भारतीय केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। 
  • इसका मुख्यालय कोलकाता में है।
  • यह वर्ष 1973 के कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम के तहत संचालित होता है, जो इसे देश में कोयला खनन एवं वितरण पर एकाधिकार देता है।
  • वर्ष 2010 में विनिवेश तक यह पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाली इकाई थी।
  • वर्तमान में, सरकार के पास 67% शेयर प्रतिशत के साथ बहुमत हिस्सेदारी है।

कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973

  • कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 के तहत, कोयला खनन विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित था।
  • इस अधिनियम ने सीमित निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए विशिष्ट प्रावधानों के साथ कोयला खनन पर केंद्रीय नियंत्रण स्थापित किया गया।
  • वर्ष 1976 का अपवाद: निजी कंपनियों द्वारा लौह एवं इस्पात उत्पादन तथा अलग-अलग छोटे इलाकों में उपपट्टे पर खनन की अनुमति दी गई थी।
  • वर्ष 1993 का संशोधन: विद्युत उत्पादन, कोयला धुलाई एवं अन्य अधिसूचित अंतिम उपयोगों के लिए कैप्टिव कोयला खनन में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दी गई।
  • सरकारी अधिसूचना द्वारा सीमेंट उत्पादन में कैप्टिव उपयोग के लिए कोयले के खनन की अनुमति दी गई थी।

अवैध खनन 

  • अवैध खनन: अवैध खनन का तात्पर्य उचित लाइसेंस या नियामक मानकों के पालन के बिना खदानों से खनिजों अथवा संसाधनों के अनधिकृत निष्कर्षण से है। 
    • इसमें अक्सर असुरक्षित प्रथाएँ, पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों की कमी एवं कानूनी तथा वित्तीय दायित्वों की चोरी शामिल होती है, जिससे खतरनाक स्थितियाँ एवं महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ते हैं।
  • कार्यप्रणाली 
    • सतह से निकटता: अवैध खननकर्ता सतही कोयले की परतों से कोयले का खनन करते हैं।
    • सतही खनन: यह अवैध खननकर्ताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली एक आसान  विधि है।
    • रैट-होल खनन: संकीर्ण सुरंगों से जुड़ी एक अन्य बुनियादी विधि, जिसका उपयोग अक्सर अवैध खनन कार्यों में किया जाता है।
  • अवैध खनन करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन
    • कम परिचालन लागत: अवैध खनन में विधिक खनन कार्यों की तुलना में काफी कम लागत शामिल होती है।
    • उच्च लाभ मार्जिन: आवश्यक न्यूनतम निवेश से पर्याप्त लाभ होता है, जिससे अवैध खनन आकर्षक हो जाता है।

अवैध कोयला खदानों में कई मौतों के कारण

  • सुरक्षा उपकरणों का अभाव
    • प्राथमिक जोखिम कारक: संचालन न्यूनतम या बिना किसी सुरक्षा उपाय के किया जाता है। जिसके अंतर्गत हेलमेट, मास्क व अन्य सुरक्षा उपकरणों का अभाव शामिल है।
    • श्वसन संबंधी जोखिम: कोयले के महीन कणों के संपर्क में आने से श्वसन संबंधी समस्याओं में बढ़ोतरी हो रही है।
    • जहरीली गैस का निकलना: सुरेंद्रनगर की घटना का उदाहरण जहाँ कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता से श्रमिकों की मृत्यु हो गई।
  • खतरनाक कार्य परिस्थितियाँ
    • संरचनात्मक ढाँचे का अभाव: अवैध खदानों में अक्सर उचित संरचनात्मक ढाँचे का अभाव होता है, जिससे खदानों, भूस्खलन एवं विस्फोटों का खतरा बढ़ जाता है।
    • विषाक्त पदार्थ: श्रमिक सीसा और पारा जैसे हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आते हैं, जिससे गंभीर विषाक्तता या दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • प्रशिक्षण एवं आपातकालीन तैयारी का अभाव
    • अप्रशिक्षित कार्यबल: कई श्रमिकों के पास खनन एवं संबंधित जोखिमों से निपटने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण का अभाव है।
    • आपातकालीन प्रतिक्रिया: आपात स्थिति के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया के लिए अपर्याप्त प्रशिक्षण एवं सुविधाएँ।
  • संचालक की लापरवाही एवं कर्मचारी का शोषण
    • लापरवाही: संचालक अक्सर सुरक्षा प्रोटोकॉल एवं कर्मचारी कल्याण की उपेक्षा करते हैं।
    • शोषण: श्रमिकों का अक्सर शोषण किया जाता है, जिससे अवैध खनन गतिविधियों संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं।

भारत में अवैध कोयला खनन के बड़े पैमाने पर होने के कारण

कोयला मंत्रालय के अनुसार, भारत में अवैध खनन ज्यादातर परित्यक्त खदानों या दूरदराज स्थानों में उथली कोयला परतों में किया जाता है। भारत में अवैध कोयला खनन में कई कारक योगदान करते हैं।

  • माँग एवं आपूर्ति की गतिशीलता: कोयला भारत में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है, जो देश की ऊर्जा आवश्कयता का 55% पूरा करता है। 
    • भारत में विद्युत की उच्च माँग कोयले की उच्च माँग में बदल जाती है, जो अक्सर कानूनी आपूर्ति से अधिक हो जाती है, जिससे अवैध आपूर्ति को बढ़ावा मिलता है। 
  • सामाजिक-आर्थिक कारक: कोयले से समृद्ध कई क्षेत्र गरीबी एवं बेरोजगारी से जूझ रही आबादी के घरों के करीब भी स्थित हैं, जो इन क्षेत्रों में अवैध खनन में योगदान देता है।
  • नियामक चुनौतियाँ: दूरदराज के क्षेत्रों में, अपर्याप्त निगरानी एवं संसाधनों की कमी के कारण खनन संबधी नियमों का क्रियान्वयन नहीं हो पाता हैं। 
    • इसके परिणामस्वरूप ‘कोयला माफियाओं’ का प्रभाव बढ़ सकता है, जैसा कि भारत में अवैध कोयला खनन के कई मामलों में आरोप लगाया गया है। 
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2018 में, नॉर्थ ईस्ट इंडिजिनस पीपुल्स फेडरेशन के कार्यकर्ता मार्शल बायम ने ‘पुलिस समर्थित’ कोयला गिरोह पर उन्हें धमकी देने का आरोप लगाते हुए एक शिकायत दर्ज करवाई थी। कोयला समृद्ध मेघालय में खनन त्रासदी आसामान्य नहीं हैं।
  • राजनीतिक प्रभाव: अवैध खनन को कथित तौर पर राजनीतिक नेताओं का मौन समर्थन मिलता है, जिससे इस पर अंकुश लगाना मुश्किल हो जाता है।

भारत में अवैध कोयला खनन को रोकने में चुनौतियाँ

  • क्षेत्राधिकार संबंधी मुद्दे
    • कानून एवं व्यवस्था की समस्या: राज्य की जिम्मेदारी के रूप में वर्गीकृत।
    • दोष स्थानांतरण: केंद्र सरकार अक्सर जिम्मेदारी राज्य अधिकारियों पर स्थानांतरित कर देती है।
  • स्थानीय आर्थिक निर्भरता: समुदाय आजीविका के लिए खनन पर निर्भर हैं, आधिकारिक संचालन समाप्त होने के बाद भी अवैध प्रथाएँ जारी हैं।
  • विनियामक एवं कानूनी चुनौतियाँ
    • जटिल कानूनी ढाँचा: जटिल नियम नौकरशाही बाधाएँ एवं शासन की अक्षमताएँ उत्पन्न करते हैं।
    • कमजोर प्रवर्तन: दूरदराज के क्षेत्रों में अपर्याप्त निगरानी एवं संसाधन प्रभावी विनियमन में बाधा डालते हैं।

भारत में खनन से संबंधित कानून

  • राज्य सरकार का स्वामित्व: भारत के संविधान की सूची II (राज्य सूची) के क्रम संख्या 23 की प्रविष्टि के अनुसार, राज्य सरकार को अपनी सीमाओं के भीतर स्थित खनिजों पर  स्वामित्व रखने का अधिकार है।
  • केंद्र सरकार का स्वामित्व: भारत के संविधान की सूची I (केंद्रीय सूची) के क्रमांक 54 की प्रविष्टि के अनुसार, केंद्र सरकार को भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के भीतर खनिजों का स्वामित्व रखने का अधिकार है।
  • विधायी ढाँचा: इन संवैधानिक आदेशों के अनुसरण में, भारत में खानों एवं खनिजों के विकास तथा विनियमन को विनियमित करने के लिए खान एवं खनिज (विकास तथा विनियमन) अधिनियम, 1957 बनाया गया था।
    • विशिष्ट आकस्मिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए अधिनियम को वर्ष 2016 एवं 2020 में और संशोधित किया गया था तथा आखिरी बार वर्ष 2021 में संशोधित किया गया था।
  • राष्ट्रीय खनिज नीति 2019: राष्ट्रीय खनिज नीति, 2019 का उद्देश्य GDP में खनन उद्योग के योगदान को बेहतर बनाने के लिए गहरे समुद्र के संसाधनों सहित व्यापक अन्वेषण को बढ़ावा देना है। 
  • प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY): यह खनन प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक कल्याणकारी योजना है, जिसका उद्देश्य खनन क्षेत्र के विकास का समर्थन करने के लिए बंदरगाह बुनियादी ढाँचे का विकास करना है।
    • यह एक नया कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य जिला खनिज फाउंडेशन (DMFs) द्वारा उत्पन्न धन का उपयोग करके खनन से संबंधित कार्यों से प्रभावित क्षेत्रों एवं लोगों का कल्याण करना है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24: कोयला एवं खनन से संबंधित आँकड़े

  • कोयला: भारत की ऊर्जा प्रणाली की रीढ़ 
    • भारत की प्राथमिक वाणिज्यिक ऊर्जा में कोयले की हिस्सेदारी 55% से अधिक है। 
    • कोयला आधारित विद्युत उत्पादन कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 70% है।
    • पिछले पाँच वर्षों में कोयला उत्पादन में तेजी आई है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हुई है। 
    • वित्त वर्ष 2024 में, भारत द्वारा 997.2 मिलियन टन कोयले का निष्कर्षण किया गया, 261 मीट्रिक टन का आयात किया एवं 1233.86 मीट्रिक टन की खपत की। 
    • पिछले दशक में कोयले के घरेलू निष्कर्षण एवं खपत के अनुपात में धीरे-धीरे सुधार हुआ क्योंकि उत्पादन में वृद्धि ने खपत में वृद्धि को पीछे छोड़ दिया।
    • कोयला, जो कुल विद्युत उत्पादन का 70% हिस्सा है, स्टील, स्पंज आयरन, सीमेंट एवं कागज जैसे विभिन्न उद्योगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण इनपुट है।
    • इसके अगले दो दशकों तक भारतीय ऊर्जा प्रणाली का प्रमुख घटक बने रहने की उम्मीद है एवं शुष्क ईंधन को चरणबद्ध तरीके से बंद करना, स्वच्छ ऊर्जा तथा बैटरी भंडारण के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों के आयात पर काफी हद तक निर्भर होगा।
  • गैसीकरण प्रौद्योगिकी 
    • भारत में गैसीकरण प्रौद्योगिकी को अपनाने से कोयला क्षेत्र में बदलाव आ सकता है एवं प्राकृतिक गैस, मेथनॉल तथा अमोनिया के आयात पर निर्भरता कम हो सकती है एवं GHG उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी।
    • देश का लक्ष्य लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं के माध्यम से वर्ष 2030 तक राष्ट्रीय कोयला गैसीकरण मिशन के तहत 100 मिलियन टन कोयले को गैसीकृत करना है।
    • कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं को व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण प्रदान करने के लिए वर्ष 2023-24 के दौरान ₹8500 करोड़ के परिव्यय वाली एक योजना शुरू की गई है।
  • कोयला निकासी प्रणाली
    • कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) धीरे-धीरे उच्च क्षमता वाली कोयला निकासी प्रणाली की ओर बढ़ रही है, जिससे इसकी ‘फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी’ परियोजनाओं के तहत कोयला हैंडलिंग प्लांट/साइलो स्थापित करके इसे और अधिक कुशल बनाया जा रहा है।
    • सरकार ने कोयला निष्कर्षण के लिए तकनीकी रूप से सक्षम, एकीकृत एवं लागत प्रभावी लॉजिस्टिक्स विकसित करने के लिए फरवरी 2024 में एकीकृत कोयला रसद नीति को लागू किया। 
  • उत्सर्जन में कमी एवं पर्यावरणीय स्थिरता के लिए पहल
    • कोयला बिजली संयंत्रों के लिए सुपरक्रिटिकल एवं अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल प्रौद्योगिकियों को अपनाने के प्रोत्साहन से भी कम उत्सर्जन तथा उच्च दक्षता प्राप्त हुई है।
    • कोयले का उपयोग हरित ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जा सकता है, जैसे कोयला खदान मेथेन (CMM), कोल बेड मेथेन (CBM)।

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