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ग्लोबल साउथ के लिए न्यायसंगत AI को आकार देने में भारत का नेतृत्व

Lokesh Pal December 15, 2025 01:35 34 0

संदर्भ

हाल ही में ‘कार्नेगी इंडिया’ ने नई दिल्ली में ‘ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट इनोवेशन डायलॉग 2025’ की मेजबानी की, जिसमें AI के सामाजिक प्रभाव और ग्लोबल साउथ के सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो AI इम्पैक्ट समिट 2026 की प्रस्तावना के रूप में था।

कार्नेगी ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट इनोवेशन डायलॉग 2025’ और इसके प्रमुख परिणाम

  • यह शिखर सम्मेलन एक महत्त्वपूर्ण मंच था, जहाँ अफ्रीका और भारत के प्रतिनिधियों ने साझा चुनौतियों और समावेशी, विस्तार योग्य AI पारिस्थितिकी तंत्र की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।
  • भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के सहयोग से आयोजित यह डायलॉग, AI के भविष्य को आकार देने वाले मुद्दों  को एक साथ लाता है।
  • महत्त्वपूर्ण शक्ति: भारत जिम्मेदार एवं समावेशी AI विकास को आकार देने में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा है।
  • सहयोग: विशेषज्ञों ने सामूहिक प्रभाव का लाभ उठाने के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग के महत्त्व पर बल दिया।

विकासशील देशों में AI को अपनाने की आवश्यकता

  • तेजी से अपनाई जा रही तकनीक: UNDP की एक प्रमुख रिपोर्ट बताती है कि AI अब तक की सबसे तेज अपनाई जाने वाली तकनीकों में से एक है, जिसने महज तीन वर्षों में 1.2 अरब उपयोगकर्ताओं तक पहुँच बनाई है।
  • वैश्विक पहुँच में असमानता: ग्लोबल साउथ, जो विश्व की 80% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन वैश्विक कंप्यूटिंग क्षमता का केवल 15-20% हिस्सा ही रखता है।
    • यद्यपि लगभग 70% उपयोगकर्ता विकासशील देशों से संबंधित हैं, फिर भी समग्र पहुँच और उपयोग की तीव्रता विभिन्न क्षेत्रों में असमान बनी हुई है।
  • डिजिटल विभाजन का गहन होना: उच्च आय वाले देशों में दो-तिहाई लोग AI उपकरणों का उपयोग करते हैं, जबकि निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में इसका उपयोग लगभग 5% ही है, जो AI के क्षेत्र में एक स्पष्ट विभाजन को दर्शाता है।
  • ग्लोबल साउथ’ के लिए महत्त्वपूर्ण अवसर: AI पारंपरिक बाधाओं को दूर करके, उत्पादकता और रोजगार बढ़ाकर और स्वास्थ्य सेवा (स्थानीय भाषा में जानकारी), कृषि (डेटा-आधारित सलाह) और शिक्षा (व्यक्तिगत, स्केलिंग लर्निंग) में परिवर्तन लाकर सतत् विकास लक्ष्यों को तेजी से प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।

ग्लोबल साउथ’ के बारे में

  • ‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य विश्व के उन विभिन्न देशों से है, जिन्हें कभी-कभी विकासशील’, ‘कम विकसित’ या ‘अविकसित’ कहा जाता है।
  • उत्पत्ति: ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वर्ष 1969 में कार्ल ओगल्सबी द्वारा किया गया था, लेकिन वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद इसे व्यापक लोकप्रियता मिली।
  • भूगोल: ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द भौगोलिक नहीं है। वास्तव में,ग्लोबल साउथ’ के दो सबसे बड़े देश (चीन और भारत) पूरी तरह से उत्तरी गोलार्द्ध में अवस्थित हैं।
  • क्षेत्रीय विस्तार: ‘ग्लोबल साउथ’ के कई देश दक्षिणी गोलार्द्ध में, मुख्यतः अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में अवस्थित हैं।
  • विशेषताएँ: इसका प्रयोग राष्ट्रों के बीच राजनीतिक, भू-राजनीतिक और आर्थिक समानताओं के मिश्रण को दर्शाता है।
    • अरैखिक अवस्थिति: इसमें भारत और चीन जैसे देश शामिल हैं, जो उत्तरी गोलार्द्ध में अवस्थित हैं, जिससे पता चलता है कि ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द भौगोलिक रूप से स्थिर नहीं है।
    • वैश्विक प्रतिनिधित्व की कमी: ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को संयुक्त राष्ट्र, IMF और विश्व बैंक जैसे वैश्विक निर्णय लेने वाले निकायों में सीमित अभिव्यक्ति और प्रभाव का सामना करना पड़ता है।
    • विकास संबंधी अनिवार्यताएँ: साझा लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु न्याय और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं का पालन शामिल हैं।
    • मानव विकास अंतराल: गहरी सामाजिक-आर्थिक असमानताओं से चिह्नित, जिनमें आय असमानता, कम जीवन प्रत्याशा और निम्न स्तरीय जीवन स्तर शामिल हैं।
    • संगठनात्मक भागीदारी: G77 (134 देश), गुटनिरपेक्ष आंदोलन (120 देश) और भारत के नेतृत्व वाले वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन’ जैसे मंचों के माध्यम से कार्य करना, एकजुटता और संयुक्त वकालत को बढ़ावा देना।

AI की क्षमता और ‘ग्लोबल साउथ’ का सामूहिक लाभ

ग्लोबल साउथ’ एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता विकास के लिए एक परिवर्तनकारी शक्ति और वैश्विक शासन में रणनीतिक प्रभाव के स्रोत दोनों के रूप में कार्य करती है।

  • विकास के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का महत्त्व: कृत्रिम बुद्धिमत्ता मात्र एक तकनीकी प्रगति नहीं है; यह एक ऐसा विकासात्मक उपकरण है जो ग्लोबल साउथ‘ को पारंपरिक बाधाओं को दूर करने और तीव्र प्रगति प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
    • परिवर्तनकारी शक्ति: AI में दक्षता, गति और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाकर स्वास्थ्य सेवा, शासन, वित्त, शिक्षा और सुरक्षा सहित प्रमुख क्षेत्रों में क्रांति लाने की क्षमता है।
    • विकास क्षमता: विकासशील देशों के लिए, AI डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) और स्थानीय नवाचार के कार्यान्वयन के माध्यम से पुरानी अवसंरचना और विकास संबंधी चुनौतियों को पार करने के अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।
    • भू-राजनीतिक महत्त्व: AI एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में उभरा है, जो वैश्विक शक्ति पदानुक्रम को निर्धारित करता है और तकनीकी-आर्थिक नेतृत्व को निर्धारित करता है।
  • ग्लोबल साउथ’ का सामूहिक प्रभाव और रणनीतिक शक्ति: इस क्षेत्र के पास महत्त्वपूर्ण संसाधन हैं, जिनका प्रायः अपर्याप्त उपयोग किया जाता है। सहयोग और एक एकीकृत अभिव्यक्ति के माध्यम से इन्हें वैश्विक AI चर्चा में शामिल किया जाना चाहिए।
    • रणनीतिक सौदेबाजी की शक्ति: इस क्षेत्र की शक्ति वैश्विक AI अर्थव्यवस्था में इसके विशाल और आवश्यक योगदान से प्राप्त होती है।
      • विशाल डेटा और व्यापकता: जनसंख्या का विशाल आकार विविध डेटा सेट प्रदान करता है, जो AI मॉडल के लिए ‘ईंधन’ का कार्य करते हैं और एक महत्त्वपूर्ण सामरिक समझौते का आधार बनते हैं।
      • महत्त्वपूर्ण संसाधन: इस क्षेत्र में दुर्लभ खनिजों के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं, जो AI अर्थव्यवस्था के घटकों और बुनियादी ढाँचे के लिए आवश्यक हैं।
    • साझा शिक्षा के माध्यम से त्वरित प्रगति (दक्षिण-दक्षिण सहयोग): आर्थिक वृद्धि संबंधी चुनौतियों की समानता पारस्परिक विकास और साझा शिक्षा के लिए एक आदर्श आधार का निर्माण करती है।
      • साझा विशेषज्ञता: अफ्रीका के देशों ने डिजिटल तकनीक अपनाने और कानूनों को बेहतर बनाने में जो अनुभव प्राप्त किया है, उससे हमें सीख मिलती है। वहीं भारत जैसे देशों के पास AI के कुशल विशेषज्ञ हैं, जो मिलकर नए और उपयोगी नवाचार विकसित करने में मदद कर सकते हैं।।
    • एक एकीकृत प्रतिनिधित्त्व की आवश्यकता: वैश्विक AI मानदंडों में ग्लोबल साउथ’ के हितों को प्रतिबिंबित करने के लिए एक एकीकृत अभिव्यक्ति और एक साझा एजेंडा स्थापित करने के लिए नीति निर्माताओं, उद्योग और शोधकर्ताओं को एक साथ लाने जैसे प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता में ‘दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग की सफलता की कहानियाँ

  • कंप्यूट और इंफ्रास्ट्रक्चर का लोकतंत्रीकरण
    • शेयर्ड AI कंप्यूट बैकबोन (भारत): भारत की एक पहल, जिसके तहत शोधकर्ताओं और स्टार्टअप्स के लिए सब्सिडीयुक्त पहुँच प्रदान करते हुए ‘ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स’ (GPUs) के साझा ढाँचा को लागू किया जा रहा है। यह मॉडल अन्य देशों के लिए एक रूपरेखा के रूप में कार्य करता है, जिससे कंप्यूटेशन को लोकतांत्रिक बनाकर तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जा सके।
    • रीजनल कंप्यूट हब: अफ्रीका, आसियान और लैटिन अमेरिका में रीजनल कंप्यूट हब को सह-वित्तपोषित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि संसाधनों को एकत्रित कर बड़े पैमाने पर AI अवसंरचना को सस्ती एवं सुलभ बनाया जा सके।
  • भाषा और सांस्कृतिक अंतराल को पाटना
    • डिजिटल इंडिया भाषिणी: एक राष्ट्रीय मिशन, जो भारत की सभी 22 अनुसूचित भाषाओं के लिए ओपन-सोर्स ‘मल्टी लैंग्वेज मॉडल’ तैयार एवं जारी करता है।
      • इसके मॉडल और प्लेटफॉर्म एक डिजिटल सार्वजनिक संसाधन हैं जो अन्य भाषाई रूप से विविध देशों को वॉइस-फर्स्ट इंटरफेस बनाने के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं।
    • अफ्रीकी लैग्वेज AI मूवमेंट: क्षेत्रीय स्तर पर जमीनी सहयोग, जिसका उद्देश्य कम संसाधनों वाली अफ्रीकी भाषाओं तक पहुँच बढ़ाने और स्वदेशी AI नवाचार को बढ़ावा देने के लिए डेटासेट और मशीन अनुवाद उपकरण विकसित करना है।
  • वास्तविक दुनिया पर प्रभाव डालने के लिए AI (स्वास्थ्य एवं कृषि)
    • तपेदिक उन्मूलन के लिए AI (भारत): दूरदराज के गाँवों में बड़े पैमाने पर और तेजी से स्क्रीनिंग के लिए पोर्टेबल एक्स-रे मशीनों’ के साथ AI-संचालितकंप्यूटर स्वचालित पहचान’ (CAD) सॉफ्टवेयर का एकीकरण किया जा रहा है।
      • यह मॉडल वैश्विक स्तर पर सीमित संसाधनों वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • परिशुद्ध कृषि और जल संरक्षण: उपग्रह डेटा का उपयोग करने वाली AI प्रणालियाँ कृषि को अनुकूलित करती हैं, जिससे किसान जल की खपत को काफी कम कर सकते हैं और सिंचाई का सटीक समय निर्धारित कर सकते हैं, जो ‘ग्लोबल साउथ’ की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण समस्या का समाधान है।
    • जीवन रक्षक केस स्टडी: AI-सक्षम उपकरण ‘सखी’ व्हाट्सएप के माध्यम से स्थानीय भाषाओं में चिकित्सकीय रूप से सत्यापित जानकारी प्रदान करता है, जो उच्च मातृ मृत्यु दर में योगदान देने वाले सूचना अंतराल को दूर करने का एक स्पष्ट मार्ग दर्शाता है।
  • बहुपक्षीय शासन और साझा रणनीति
    • BRICS सहयोग: BRICS AI अध्ययन समूह और न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) सदस्य देशों में साझा AI अनुप्रयोगों में निवेश करते हैं ताकि साझा तकनीकी विकास और संसाधन आवंटन को सुगम बनाया जा सके।
    • अफ्रीकी संघ रणनीति: एक एकीकृत महाद्वीपीय AI रणनीति स्थापित करने की दिशा में कार्य करना, जो विकास को दिशा प्रदान करे, सुसंगत क्षेत्रीय नीति सुनिश्चित करे और महाद्वीप की सामूहिक सौदेबाजी शक्ति को बढ़ाए।

ग्लोबल साउथ’ में AI को अपनाने और विकास संबंधी चुनौतियाँ

  • संरचनात्मक और संसाधन असंतुलन: इस श्रेणी में आवश्यक बुनियादी ढाँचे तक असमान पहुँच और इसके पारिस्थितिक परिणामों का विवरण दिया गया है।
    • कंप्यूटिंग असमानता और पहुँच: शक्तिशाली कंप्यूटिंग संसाधनों (कंप्यूट क्षमता) तक पहुँच का अधिकांश हिस्सा ग्लोबल नार्थ’ में केंद्रित है, जिससेग्लोबल साउथ‘ की अत्याधुनिक AI मॉडलों का लाभ उठाने और उनमें नवाचार करने की क्षमता गंभीर रूप से सीमित हो जाती है।
      • यह असमानता सबसे बड़ी बाधा है।
    • मानदंडों की सांस्कृतिक अप्रासंगिकता: वैश्विक AI मानदंड और मॉडल प्रायः विकासशील देशों की विविध सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप नहीं होते है, जिससे अविश्वसनीय और अप्रासंगिक प्रणालियाँ निर्मित होती हैं।
    • डेटा केंद्रों से पर्यावरण और संसाधन संबंधी आँकड़े प्राप्त करना: AI के व्यापक विस्तार के लिए डेटा केंद्रों की संख्या में भारी वृद्धि की आवश्यकता है, जिनमें भूमि, जल और ऊर्जा की अत्यधिक माँग होती है।
      • संसाधन-दुर्लभ क्षेत्रों को तेजी से केंद्र के रूप में लक्षित किया जा रहा है, जिससे जल असुरक्षा और पारिस्थितिक निम्नीकरण में वृद्धि हो रही है।
    • जन विरोध: व्यापक स्थानीय विरोध प्रदर्शन (उदाहरण के लिए उरुग्वे, चिली, ब्राजील और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर) अस्थिर अवसंरचना विस्तार पर बढ़ती चिंता को दर्शाते हैं।
  • मानवीय और नैतिक लागतें: यह मानव श्रम के शोषण और उपयोगकर्ताओं तथा संवेदनशील आबादी के लिए तत्काल जोखिमों पर केंद्रित है।
    • शोषणकारी श्रम प्रथाएँ (घोस्ट वर्क)
      • आउटसोर्स श्रम: डेटा एनोटेशन और कंटेंट मॉडरेशन जैसे कार्यों को कम आय वाले देशों को न्यूनतम मजदूरी पर आउटसोर्स किया जाता है, जो कंपनियों के लाभ को अधिकतम करने के लिए शोषणकारी श्रम प्रथाओं को दर्शाता है।
      • मनोवैज्ञानिक आघात: मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों के अभाव में श्रमिकों को नियमित रूप से हिंसा और यौन शोषण जैसी सामग्री दर्शाने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उन्हें गंभीर मानसिक और मनोवैज्ञानिक क्षति होती है।
      • श्रम अधिकारों का उल्लंघन: कार्यक्षेत्र में नौकरी की असुरक्षा, खतरनाक परिस्थितियाँ, पारदर्शिता की कमी और बाल श्रम के मामले सामने आए हैं।
    • वास्तविक दुनिया में सुरक्षा संबंधी उच्च जोखिम: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), विशेष रूप से ‘मल्टी लार्ज लैंग्वेज मॉडल’ (LLM) में प्रगति से विश्वसनीय परिणामों की आवश्यकता बढ़ जाती है।
      • गलत मार्गदर्शन (उदाहरण के लिए कृषि, स्वास्थ्य सेवा) के गंभीर वास्तविक परिणाम हो सकते हैं, जैसे- फसल खराब होना, जिसके लिए मजबूत, संदर्भ-विशिष्ट सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है।
    • पूर्वाग्रह और नुकसान का जोखिम: मजबूत विनियमन की कमी उपयोगकर्ताओं को एल्गोरिथम पूर्वाग्रह, डेटा लीक और हानिकारक अनुशंसाओं जैसे जोखिमों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
  • शासन, शक्ति और क्षमता में अंतर: यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास की राजनीतिक संरचना और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न ज्ञान और कौशल की कमी को संबोधित करता है।
    • वैश्विक AI शासन में असमानता: AI विकास पर अभी भी कुछ बड़ी तकनीकी कंपनियों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं का ही वर्चस्व है।
      • ग्लोबल साउथ’ के मुद्दों को कम प्राथमिकता दिया जाना: गरीब देशों की विकास प्राथमिकताएँ वैश्विक AI मानदंडों एवं मानकों में अपर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित होती हैं, जिससे डिजिटल उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिलता है, जहाँ संसाधनों का दोहन (प्राकृतिक एवं मानवीय) ऐतिहासिक शोषणकारी चक्र को दर्शाता है।
    • AI साक्षरता का अंतर: AI के बारे में बुनियादी ज्ञान और समझ की कमी, विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं में, प्रभावी उपयोग और लोकतांत्रिक पहुँच में बाधा डालती है, जिससे AI साक्षरता कार्यक्रमों के विस्तार की अति आवश्यकता उत्पन्न होती है।

ग्लोबल साउथ’ में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका और रणनीतिक कार्यवाहियाँ

भारत एक उत्तरदायी, नैतिक और समावेशी वैश्विक AI व्यवस्था को आकार देने में ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने के लिए विशिष्ट रूप से उपयुक्त स्थिति में है, और विकासशील दुनिया के लिए एक परीक्षण स्थल और सेतु निर्माता दोनों के रूप में कार्य करने के लिए अपनी अदितीय शक्तियों का लाभ उठा सकता है।

  • भारत की अद्वितीय शक्तियाँ और रणनीतिक भूमिका: भारत की घरेलू विशेषताएँ और नीतिगत पहुँचग्लोबल साउथ’ के लिए एक व्यवहार्यमध्यम मार्ग’ प्रदान करती हैं, जो महत्त्वाकाँक्षा और सामाजिक न्याय के नैतिक दायित्व के बीच संतुलन स्थापित करती है।
    • अद्वितीय क्षमताएँ और वैश्विक परीक्षण मंच: भारत का विशाल आकार, अत्यधिक विविध बहुभाषी वातावरण और सशक्त नीतिगत पहुँच, इसे वैश्विक स्तर पर AI अपनाने के लिए एक अद्वितीय परीक्षण मंच के रूप में स्थापित करती है।
      • स्वास्थ्य, सेवा और कृषि जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर तैनाती से विकासशील देशों के लिए भी त्वरित रूप से लागू होने योग्य समाधान सिद्ध हो सकते हैं।
    • कंप्यूट और लोकतंत्रीकरण के लिए ‘मध्य मार्ग’: भारत अमेरिका के स्वामित्व वाले मॉडलों औरओपन-सोर्स फोकस’ के बीच संतुलन स्थापित कर मध्यम मार्ग’ की भूमिका निभा सकता है।
      • इंडियाAI मिशन (GPU एक्सेस प्रदान करना) और AI4भारत (22 भाषाओं के लिए ओपन मॉडल) जैसी पहलें ‘AI फॉर आल’ के सिद्धांत को मूर्त रूप देती हैं, जिससे पड़ोसी देशों के संदर्भ में संसाधनों का लोकतंत्रीकरण होता है।
    • मानक नेतृत्व और सेतु निर्माता: AI इम्पैक्ट समिट 2026 जैसे प्रमुख मंचों की मेजबानी भारत को नैतिक, समावेशी और स्थायी AI के संबंध में चर्चा को आकार देने में मानक नेतृत्व प्रदान करने की स्थिति में लाती है।
      • भारत एक सेतु निर्माता के रूप में कार्य करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि तकनीकी महत्त्वाकाँक्षा को मानवीय गरिमा और सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने की अनिवार्यता के साथ संतुलित किया जाए।
  • तकनीकी संप्रभुता के लिए रणनीतिक अनिवार्यताएँ: शक्ति संतुलन में असंतुलन का शिकार होने से बचने के लिए, ग्लोबल साउथ’ को कुशल, खुले विकल्पों के माध्यम से स्वदेशी नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और श्रम सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए।
    • स्वदेशी और कुशल मॉडल विकसित करना (SLM रणनीति): ‘ग्लोबल साउथ’ को स्थानीय हितों के अनुरूप स्वदेशी मॉडल और अधिक गणनात्मक रूप से कुशल विकल्पों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
      • इस रणनीति का मूल आधार ‘स्मॉल लैंग्वेज मॉडल्स’ (SLM) हैं, जिन्हें प्रशिक्षित और प्रयोग करना काफी सस्ता है, इनमें कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, और ये ऑन-डिवाइस या स्थानीय, ऑफलाइन कार्यक्षमता के लिए पूरी तरह से उपयुक्त हैं।
      • रणनीतिक लाभ: यह दक्षता महंगी क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्वामित्त्व सेवाओं पर निर्भरता को कम करती है, जिससे कंप्यूटिंग असमानता का सीधा समाधान होता है और कम कनेक्टिविटी युक्त वातावरण में बेहतर डेटा गोपनीयता और तीव्र प्रदर्शन सुनिश्चित होता है।
    • श्रम सुरक्षा और पारदर्शिता को मजबूत करना: वर्तमान मॉडल में निहित शोषण को दूर करने के लिए, ‘ग्लोबल साउथ’ को श्रम कानूनों को मजबूत करना होगा और संपूर्ण AI आपूर्ति शृंखला में पारदर्शिता बढ़ानी होगी, विशेष रूप से डेटा लेबलिंग और सामग्री मॉडरेशन में।
    • वैचारिक और आर्थिक एकजुटता को बढ़ावा देना: AI इम्पैक्ट समिट 2026 जैसे प्रमुख मंचों का उपयोग एक मजबूत नेतृत्व की भूमिका निभाने, समान विचारधारा वाले देशों के बीच वैचारिक और आर्थिक एकजुटता को बढ़ावा देने और सामूहिक रूप से ग्लोबल साउथ’ के हितों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए।
  • GPAI (ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन AI) का सदस्य: भारत इसका एक संस्थापक सदस्य है और इसने ‘सतत् विकास के लिए AI पर 2024-25 एजेंडा’ का नेतृत्व किया।

AI शासन और जवाबदेही के लिए मूलभूत स्तंभ

संवैधानिक एवं अधिकार आयाम AI नीति के लिए प्रासंगिकता
अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) भेदभाव को उत्पन्न करने वाले एल्गोरिथम पूर्वाग्रह से सीधे तौर पर चुनौती मिलती है।
अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का संरक्षण) स्वास्थ्य, कल्याण और पुलिसिंग जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में AI के उपयोग से मानवीय गरिमा प्रभावित हो रही है।
अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) ‘कंटेंट मॉडरेशन’ के लिए प्रयोग किए जाने वाले AI टूल्स और डीपफेक के प्रसार से प्रभावित होती है।
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) AI को अनुच्छेद 38 (सामाजिक न्याय) और अनुच्छेद 39(b) और (c) (संसाधनों का समान वितरण) के लक्ष्यों के साथ संरेखित होना चाहिए।

न्यायसंगत AI के लिए संस्थागत पारिस्थितिकी तंत्र मुख्य कार्य/जिम्मेदारी
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत में AI मिशन, राष्ट्रीय रणनीति और मुख्य AI शासन संबंधी ढाँचे के लिए नोडल एजेंसी।
नीति आयोग जिम्मेदार AI के व्यापक ढाँचे और अनुप्रयोग संबंधी दिशा-निर्देशों का विकास करना।
डेटा संरक्षण बोर्ड भारत के डेटा गवर्नेंस मानकों को लागू करना और गोपनीयता के उल्लंघनों का समाधान करना (DPDP अधिनियम)
क्षेत्रीय नियामक (RBI, SBI, आदि) विशिष्ट उच्च जोखिम युक्त क्षेत्रों (वित्त, स्वास्थ्य) की निगरानी और AI जोखिम प्रबंधन।
अंतरराष्ट्रीय मंच (G20, UN AI निकाय) ‘ग्लोबल साउथ’ का प्रतिनिधित्व करना, वैश्विक AI सिद्धांतों को प्रभावित करना और बहुपक्षीय सहमति सुनिश्चित करना।

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भारत की AI नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षाओं में प्रमुख घरेलू बाधाएँ

  • उच्च स्तरीय कौशल की कमी: AI साक्षरता में विस्तार के बावजूद, भारत उन्नत AI शोधकर्ताओं और डेटा वैज्ञानिकों की कमी का सामना कर रहा है, जिससे स्वदेशी मूलभूत मॉडलों और उच्च स्तरीय वैश्विक समाधानों के विकास में बाधा आ रही है।
  • डेटा गवर्नेंस और विश्वास की कमी: भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) देश की नेतृत्व भूमिका को मजबूत करती है किंतु ग्लोबल साउथ’ के देश तभी इसे अपनाएँगे, जब भारत एक ऐसा विश्वसनीय डेटा गवर्नेंस ढाँचा निर्मित करेगा, जिसमें DPI अधिनियम, 2023 के तहत लोगों की गोपनीयता और डेटा सुरक्षा की पूरी गारंटी हो।

ग्लोबल साउथ’ में भारत का नेतृत्व: एक बहुआयामी भूमिका

  • ऐतिहासिक विरासत और नैतिक अधिकार-गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM): स्वतंत्रता के बाद NAM में भारत की संस्थापक भूमिका ने इसे उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों के लिए एक नैतिक अभिव्यक्ति के रूप में स्थापित किया।
    • उपनिवेशवाद विरोधी एकजुटता: भारत के अपने स्वतंत्रता संग्राम और अफ्रीका और एशिया में उपनिवेशवाद से मुक्ति के लिए मुखर समर्थन ने इसे ग्लोबल साउथ’ में स्थायी सद्भावना और नैतिक वैधता दिलाई है।

  • आर्थिक शक्ति और विकास मॉडल- उभरती आर्थिक शक्ति: चौथी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत दक्षिण-दक्षिण व्यापार, निवेश और क्षमता निर्माण में तेजी से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
    • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना निर्यात: भारतग्लोबल साउथ’ के साझेदारों को UPI, आधार, टेलीमेडिसिन और कोविन जैसे स्केलेबल डिजिटल गवर्नेंस उपकरण निर्यात कर रहा है।
      • उदाहरण: नामीबिया में UPI का शुभारंभ फिनटेक समावेशन नेतृत्व का प्रदर्शन करता है।
    • जलवायु अनुकूल अवसंरचना: आपदा अनुकूल अवसंरचना गठबंधन (CDRI) के माध्यम से, भारत जलवायु खतरों के संबंध में सतत् और अनुकूलनीय अवसंरचना विकसित करने में देशों की सहायता करता है।
    • विकास सहायता: भारत के सहायता मॉडल में भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम, ऋण क्रेडिट और स्वास्थ्य सेवा, कृषि, शिक्षा और अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग शामिल हैं।
    • वैक्सीन मैत्री’ पहल: भारत ने 100 से अधिक देशों को कोविड-19 टीके उपलब्ध कराए, जिससे एक विश्वसनीय विकास भागीदार और वैश्विक स्वास्थ्य समानता के समर्थक के रूप में इसकी छवि मजबूत हुई।
  • राजनीतिक प्रभाव और कूटनीतिक मुखरता – बहुपक्षीय मंचों में अभिव्यक्ति: भारत लगातार G20, ब्रिक्स, G77 और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर ‘ग्लोबल साउथ’ की चिंताओं को उठाता है, संस्थागत सुधार, समावेशी बहुपक्षवाद और दक्षिणी प्रतिनिधित्व बढ़ाने का समर्थन करता है।
    • G20 की अध्यक्षता (2023): भारत ने अपनी अध्यक्षता का उपयोग दक्षिणी प्राथमिकताओं को बल देने, G20 में अफ्रीका की स्थायी सदस्यता का समर्थन करने और समावेशी कूटनीति को बढ़ावा देने के लिए किया।
    • ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (2023 एवं 2024): भारत ने 120 से अधिक विकासशील देशों की भागीदारी वाले दो प्रमुख शिखर सम्मेलनों की मेजबानी की, जिससे दक्षिणी एकजुटता के लिए एक कूटनीतिक संयोजक और गठबंधन निर्माता के रूप में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी।
    • संतुलित विदेश नीति: भारत ने ब्रिक्स जैसे मंचों के दौरान गाजा और ईरान जैसे विवादास्पद मुद्दों पर रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी, और किसी भी वैश्विक गुट के साथ गठबंधन किए बिना विश्वास हासिल किया।
  • रणनीतिक साझेदारी और क्षेत्रीय सहयोग: भारत साझा विकास प्राथमिकताओं और पारस्परिक लाभ को दर्शाने वाली क्षेत्रीय साझेदारियों को मजबूत कर रहा है:-
    • घाना: दुर्लभ खनिज खनन और समुद्री सुरक्षा पर सहयोग, संसाधन सुरक्षा और ब्लू इकॉनमी सहयोग सुनिश्चित करना।
    • अर्जेंटीना: कैटामार्का में KABIL के माध्यम से लिथियम अन्वेषण समझौता स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • नामीबिया: जैव ईंधन, महत्त्वपूर्ण खनिजों और UPI फिनटेक के शुभारंभ पर समझौते हरित ऊर्जा और डिजिटल समावेशन में भारत के नेतृत्व को प्रदर्शित करते हैं।
    • ब्राजील: रक्षा संबंधी गतिविधियाँ, जिनमें भारत की आकाश मिसाइल प्रणाली में ब्राजील की रुचि शामिल है, दक्षिण-दक्षिण रक्षा सहयोग में वृद्धि को दर्शाती हैं।
  • जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक ‘सॉफ्ट पावर’ – जनसंख्या एवं बाजार का आकार: भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश और विशाल उपभोक्ता आधार इसे कई विकासशील देशों के लिए एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं राजनीतिक भागीदार बनाते हैं।
    • सांस्कृतिक कूटनीति: भारत द्वारा योग, बॉलीवुड और संस्कृतनिष्ठ सौम्य शक्ति के वैश्विक प्रचार ने इसके सांस्कृतिक मूल्य को बढ़ाया है।
      • उदाहरण: प्रधानमंत्री मोदी के विदेशी संसदों में संबोधन, विश्वास और जन-संबंधों को मजबूत करते हैं।
    • प्रवासी सहभागिता: वैश्विक स्तर पर प्रसारित भारतीय प्रवासी दक्षिण के देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों, आर्थिक संबंधों और सांस्कृतिक जुड़ाव को मजबूत करते हैं।

आगे की राह

न्यायसंगत, समावेशी और जिम्मेदार AI सुनिश्चित करने के लिए एक प्रतिमान परिवर्तन की आवश्यकता है, जिसका नेतृत्वग्लोबल साउथ’ के चार प्रमुख स्तंभों में सामूहिक कार्रवाई द्वारा किया जाना चाहिए।

  • तकनीकी संप्रभुता और स्वदेशी क्षमता: भविष्य में स्वामित्त्व मॉडलों पर निर्भरता कम करने और स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप समाधान विकसित करने पर निर्भर है।
    • अनुकूलित अनुसंधान एवं विकास एवं मॉडल विकास: स्थानीय भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को समझने वाले मूलभूत AI मॉडल निर्माण में भारी निवेश करना।
      • इसमें स्वदेशी मॉडल (जैसे- Indic LLMs) और स्थानीय हितों के अनुरूप ओपन-सोर्स इकोसिस्टम के विकास को प्राथमिकता देना शामिल है।
    • दक्षता और विकल्पों को प्राथमिकता देना: कम्प्यूटेशनल दक्षता और ओपन वेट (जैसे- डीपसीक) पर बल देने वाले नवाचारों पर ध्यान केंद्रित करना।
      • स्मॉल लैंग्वेज मॉडल (SLM) का विकास महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये संभावित ऑफलाइन कार्यक्षमता प्रदान करते हैं और विशाल क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निर्भरता कम करते हैं, जिससे कंप्यूटिंग संबंधी चिंताएँ दूर हो जाती हैं।
    • वॉयस-फर्स्ट इंटरफेस: ऐसे AI को प्राथमिकता देना जो कम डिजिटल साक्षरता वाले नागरिकों को उनकी मातृभाषा में सेवाओं के साथ बातचीत करने में सक्षम बनाए, जिससे प्रौद्योगिकी वास्तव में सुलभ हो।
  • शासन, सुरक्षा उपाय और नियामक सुदृढ़ीकरण: ‘ग्लोबल साउथ’ को अपने नागरिकों और संसाधनों की रक्षा के लिए AI अर्थव्यवस्था के नियमों को सक्रिय रूप से निर्धारित करना होगा।
    • अनुकूलित और मानव-केंद्रित विनियमन: उपयोगकर्ताओं को पूर्वाग्रह, डेटा लीक और हानिकारक अनुशंसाओं से बचाने के लिए मजबूत AI सुरक्षा उपाय (सोशल मीडिया विनियमन के समान) लागू करना।
      • डू नो हार्म’ (Do No Harm) गाइडलाइंस और नैतिक AI मानकों पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यावहारिक और नवाचार-समर्थक दृष्टिकोण अपनाना।
    • डिजिटल श्रम की सुरक्षा: मजबूत श्रम कानूनों को लागू करना और संपूर्ण AI आपूर्ति शृंखला में पारदर्शिता बढ़ाना।
      • नीतिगत प्रयासों को AI मूल्य शृंखला का मानचित्रण करने और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने और डेटा एनोटेशन एवं कंटेंट मॉडरेशन के सुधार करने हेतु डिजिटल श्रम प्लेटफार्मों के लिए विनियमन लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • पर्यावरण सुरक्षा उपाय: डेटा केंद्रों के कारण संसाधनों पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए AI आपूर्ति शृंखला में पर्यावरण सुरक्षा उपायों को लागू करना।
    • AI डेवलपर्स का नैतिक दायित्व: ‘ग्लोबल साउथ’ को कानूनी रूप से AI डेवलपर्स से उपयोगकर्ताओं के सर्वोत्तम हित और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कार्य करने की अपेक्षा करनी चाहिए, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा और वित्त जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में।
    • नैतिकता एवं जवाबदेही: AI प्रणालियों का निर्माण शुरू से ही नैतिक रूप से किया जाना चाहिए, जिसमें स्पष्ट जवाबदेही, पता लगाने की क्षमता और मानवीय निगरानी शामिल हो।
  • बुनियादी ढाँचे और इस तक पहुँच का लोकतंत्रीकरण: समाधान उच्च स्तरीय बुनियादी ढाँचे और प्रमुख डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं तक पहुँच के लोकतंत्रीकरण पर केंद्रित होना चाहिए।
    • कंप्यूटिंग का लोकतंत्रीकरण: स्थानीय स्टार्टअप और शोधकर्ताओं के लिए वहनीय पहुँच के साथ बड़े पैमाने पर, साझा AI कंप्यूटिंग अवसंरचना (GPU) तैनात करने के लिए पहल (जैसे- इंडियाAI मिशन) लागू करना।
    • क्षेत्रीय केंद्रों का सह-वित्तपोषण: अफ्रीका, आसियान और लैटिन अमेरिका में क्षेत्रीय कंप्यूटर केंद्रों के सह-वित्तपोषण के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देना और साझेदारों के साथ डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं (जैसे- इंडिया स्टैक) को सीधे साझा करना।
    • वैश्विक परीक्षण मंच और प्रतिकृति: भारत के अद्वितीय पैमाने और नीति का लाभ उठाकर इसे  ‘AI अपनाने के लिए एक प्रभावी परीक्षण मंच’ बनाना, यह सुनिश्चित करते हुए कि कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में मान्य समाधानों को विश्व स्तर पर आसानी से दोहराया जा सके।
  • नेतृत्व और क्षमता निर्माण: स्थायी परिवर्तन के लिए एकजुट राजनीतिक कार्रवाई और मानव संसाधन विस्तार पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
    • रणनीतिक नेतृत्व और समन्वय क्षमता: भारत को अपनी समन्वयकारी भूमिका जारी रखनी चाहिए (उदाहरण के लिए- AI इम्पैक्ट समिट 2026 की मेजबानी करना), नीति निर्माताओं, उद्योग और शोधकर्ताओं को एक साथ लाकर एकीकृत ‘ग्लोबल साउथ’ रणनीतियाँ तैयार करनी चाहिए, वैचारिक और आर्थिक सामंजस्य को बढ़ावा देना चाहिए और वैश्विक AI शासन ढाँचों को प्रभावित करना चाहिए।
    • AI साक्षरता: सभी जनसांख्यिकी समूहों, विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं के लिए AI साक्षरता कार्यक्रमों के विस्तार को प्राथमिकता देना।
      • कार्यक्रमों को तकनीकी कौशल से आगे बढ़कर उपयोगकर्ताओं को यह सिखाना चाहिए कि वे आकर्षक डिजाइन को कैसे पहचानें, AI-जनित सामग्री के स्रोत संकेतों (संकेतों) को कैसे पढ़ें और महत्त्वपूर्ण सलाह को कैसे सत्यापित करें?
    • सह-डिजाइन और साझेदारी: अंतरराष्ट्रीय संगठनों से आग्रह किया जाता है कि वे परामर्श से आगे बढ़कर वास्तविक सह-डिजाइन की ओर बढ़ना तथा सलाहकार बोर्डों मेंग्लोबल साउथ‘ के प्रतिनिधित्व को शामिल करना ताकि विकास प्राथमिकताओं को वैश्विक मानदंडों में प्रतिबिंबित किया जा सके।
    • रणनीतिक स्वायत्तता का विस्तार: भारत द्वारा न्यायसंगत AI के लिए किए जा रहे प्रयासों को उसकी रणनीतिक स्वायत्तता के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए, जिससे तकनीकी विकल्प सुनिश्चित हो और अमेरिका-चीन के प्रभुत्व पर आधारित द्विध्रुवीय व्यवस्था को रोका जा सके।
    • डिजिटल उपनिवेशवाद की रोकथाम: भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि AI डिजिटल उपनिवेशवाद को बढ़ावा न दे, जहाँ विकासशील देश डेटा और माइनिंग तो उपलब्ध कराते हैं लेकिन विदेशी स्वामित्व वाली प्रौद्योगिकियों पर निर्भर रहते हैं।

इंडिया-AI इम्पैक्ट समिट 2026

  • स्थान एवं महत्त्व: ‘ग्लोबल साउथ’ में पहला आयोजन
    • यह शिखर सम्मेलन 19-20 फरवरी, 2026 को नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा, जो ग्लोबल साउथ में आयोजित होने वाला पहला वैश्विक AI मंच होगा।
  • रणनीतिक लक्ष्य: प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करना
    • इसका प्राथमिक लक्ष्य ‘सुरक्षा’ और ‘कार्रवाई’ पर केंद्रित पूर्व दृष्टिकोण से हटकर ‘प्रभाव’ पर केंद्रित होना है, ताकि AI समावेशी मानव विकास, पर्यावरणीय स्थिरता और विश्व स्तर पर समान प्रगति के लिए उत्प्रेरक का कार्य करे।
  • मूल सिद्धांत: पीपुल, प्लेनेट, प्रोग्रेस: संपूर्ण एजेंडा तीन सूत्रों (मार्गदर्शक सिद्धांतों) पर आधारित है:
    • पीपुल, प्लेनेट, प्रोग्रेस जिन्हें AI संसाधनों के लोकतंत्रीकरण और समावेशन जैसे क्षेत्रों को शामिल करने वाले सात चक्रों के माध्यम से क्रियान्वित किया जाता है।

पिछले वैश्विक AI शिखर सम्मेलन

शिखर सम्मेलन का नाम वर्ष अवस्थिति प्राथमिक फोकस
AI एक्शन समिट फरवरी 2025 पेरिस, फ्रांस AI सुरक्षा संबंधी चर्चाओं को ठोस, बहु-हितधारक कार्यों और निवेशों में बदलने पर केंद्रित।
AI सियोल शिखर सम्मेलन वर्ष 2024 सियोल, दक्षिण कोरिया सुरक्षा संबंधी संवाद को जारी रखा गया, जिसमें सुरक्षा के साथ-साथ नवाचार और समावेशिता पर जोर दिया गया (सियोल वक्तव्य)
AI सुरक्षा शिखर सम्मेलन वर्ष 2023 ब्लेचली पार्क, यू.के. उद्घाटन वैश्विक शिखर सम्मेलन, जो मुख्य रूप से AI के उभरते जोखिमों पर केंद्रित था और जिसके परिणामस्वरूप सुरक्षा पर ब्लेचली घोषणापत्र’ जारी हुआ।

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निष्कर्ष

कृत्रिम बुद्धिमत्ता अपार संभावनाओं का एक साधन है, लेकिन इसके लाभों का समान रूप से वितरण होना आवश्यक है। अपनी अद्वितीय शक्तियों का लाभ उठाते हुए और एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए, भारत ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए तकनीकी निर्भरता से सशक्त नवाचार की ओर अग्रसर होने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

  • यह सहयोगात्मक और समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि प्रौद्योगिकी अंततः मानवता की सेवा करे, जिससे वसुधैव कुटुंबकम’ (विश्व एक परिवार है) की भावना का उद्देश्य पूर्ण हो।

अभ्यास प्रश्न

‘ग्लोबल साउथ में डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए AI संसाधनों का लोकतंत्रीकरण और तकनीकी संप्रभुता का निर्माण आवश्यक है।’ भारत की उन नीतियों एवं कार्यों के संदर्भ में इस कथन की चर्चा कीजिए जिनका उद्देश्य न्यायसंगत AI को बढ़ावा देना है। इस परिप्रेक्ष्य में कौन सी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं और उनका प्रभावी ढंग से समाधान कैसे किया जा सकता है?

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