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अनुसंधान और नवाचार में भारत की नया कीर्तिमान

Lokesh Pal November 06, 2025 04:06 27 0

संदर्भ

हाल ही में उभरते विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सम्मेलन (ESTIC) 2025 के उद्घाटन के दौरान अनुसंधान, विकास और नवाचार (RDI) योजना शुरू की गई।

  • नई दिल्ली में आयोजित ESTIC 2025, उभरते विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सम्मेलन में ‘विकसित भारत 2047- अग्रणी सतत् नवाचार’ (Viksit Bharat 2047 – Pioneering Sustainable Innovation) विषय के तहत 3,000 से अधिक वैश्विक विशेषज्ञ एक साथ आए।

अनुसंधान विकास और नवाचार (RDI) योजना के बारे में

  • अनुमोदन: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित RDI योजना, ₹1 लाख करोड़ की निधि के साथ एक परिवर्तनकारी पहल है।
  • उद्देश्य: कम या शून्य ब्याज दरों पर दीर्घकालिक वित्तपोषण के माध्यम से वैज्ञानिक और तकनीकी नवाचार में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देकर भारत के अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना।
  • मुख्य उद्देश्य
    • निजी क्षेत्र की सहभागिता: निजी कंपनियों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे उभरते और रणनीतिक क्षेत्रों और आर्थिक सुरक्षा एवं आत्मनिर्भरता के लिए महत्त्वपूर्ण अन्य क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है।
    • परिवर्तनकारी परियोजनाओं का वित्तपोषण: परिवर्तनकारी विचारों को अवधारणा से बाजार तक पहुँचाने में तेजी लाने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी तत्परता स्तरों (Technology Readiness Levels-TRLs) पर उच्च-जोखिम, उच्च-प्रभाव वाली परियोजनाओं का समर्थन करता है।
    • महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का अधिग्रहण: राष्ट्रीय विकास और सुरक्षा के लिए आवश्यक रणनीतिक और उच्च-मूल्य वाली प्रौद्योगिकियों तक पहुँच को सुगम बनाता है।
    • डीप-टेक्नोलॉजी फंड ऑफ फंड्स (FoF): डीप-टेक स्टार्ट-अप्स को पोषित करने के लिए एक समर्पित कोष की स्थापना करता है, जिससे एक मजबूत और मापनीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है।
  • संस्थागत ढाँचा
    • अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (ANRF) का शासी बोर्ड: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में।
      • RDI योजना को रणनीतिक मार्गदर्शन और निरीक्षण प्रदान करता है।
    • ANRF की कार्यकारी परिषद (EC): यह योजना दिशा-निर्देशों को मंजूरी देती है और द्वितीय-स्तरीय फंड प्रबंधकों तथा क्षेत्रीय फोकस क्षेत्रों की सिफारिश करती है।
    • सचिवों का अधिकार प्राप्त समूह (EGoS): कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में।
      • योजना संशोधनों को मंजूरी देना, पात्र क्षेत्रों और परियोजनाओं को परिभाषित करना तथा निष्पादन की निगरानी करना।
    • नोडल विभाग: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) इस योजना के लिए कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
  • दो-स्तरीय वित्तपोषण ढाँचा
    • विशेष प्रयोजन निधि (SPF): ANRF के अंतर्गत निधियों के संरक्षक के रूप में स्थापित, यह निधि कई द्वितीय-स्तरीय निधि प्रबंधकों को संसाधन आवंटित करने के लिए उत्तरदायी है।
    • द्वितीय-स्तरीय निधि प्रबंधक: विशेष रूप से स्टार्ट-अप्स और डीप-टेक उद्यमों के लिए दीर्घकालिक रियायती ऋण या इक्विटी वित्तपोषण प्रदान करते हैं।
      • वे डीप-टेक फंड मैनेजर (FoF) या अन्य RDI-लिंक्ड वित्तीय साधनों में भी निवेश कर सकते हैं।
  • अपेक्षित प्रभाव
    • निजी अनुसंधान एवं विकास निवेश को प्रोत्साहित करता है: वित्तपोषण की कमी को दूर करता है और उद्योग-आधारित नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए विकास एवं जोखिम पूँजी प्रदान करता है।
    • आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है: रणनीतिक और उभरते क्षेत्रों में घरेलू क्षमताओं को बढ़ाकर आयातित तकनीकों पर निर्भरता कम करता है।
    • तकनीकी नेतृत्व को बढ़ावा देता है: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में अत्याधुनिक नवाचार को बढ़ावा देता है।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है: प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देकर और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करके भारत की वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में स्थिति को मजबूत करता है।
    • विकसित भारत@2047 विजन का समर्थन करता है: अनुसंधान और व्यावसायीकरण को आगे बढ़ाने में निजी क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देते हुए, कम या शून्य ब्याज दरों पर दीर्घकालिक वित्तपोषण या पुनर्वित्त सहायता के माध्यम से एक आत्मनिर्भर, नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करता है।

विश्लेषणात्मक अंतर्दृष्टि- भारत का अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र

  • प्रमुख चुनौतियाँ एवं सुधार
    • वित्तीय जोखिम से बचाव: निजी अनुसंधान एवं विकास निवेश कम (~36%) बना हुआ है, जिससे नवाचार सीमित हो रहा है।
      • सुधार: ₹1 लाख करोड़ की RDI योजना, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में उच्च जोखिम वाली, उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक, कम ब्याज दर पर वित्तपोषण और जोखिम पूँजी प्रदान करती है।
    • कम अनुसंधान एवं विकास रूपांतरण: अनुसंधान का बाजार-तैयार उत्पादों में धीमा रूपांतरण।
      • सुधार: अनुसंधान-व्यावसायीकरण के अंतर को पाटने के लिए प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर (TRLs) को बढ़ाना।
    • खंडित वित्तपोषण: विखंडित अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण समन्वय को कमजोर करता है।
      • सुधार: ANRF की द्वि-स्तरीय वित्तपोषण प्रणाली द्वितीय-स्तरीय निधि प्रबंधकों के माध्यम से सुव्यवस्थित संसाधन आवंटन सुनिश्चित करती है।
  • कार्यान्वयन निगरानी बिंदु
    • नौकरशाही समन्वय: कार्यकुशलता सुनिश्चित करने के लिए ANRF बोर्ड, कार्यकारी समिति (EC) और सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह (EGoS) में निर्णय लेने की प्रक्रिया को सरल बनाना।
    • चयन पूर्वाग्रह: पारंपरिक पूर्वाग्रह से बचना; स्वतंत्र मूल्यांकन तंत्रों के माध्यम से गहन तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना।
    • राजकोषीय स्थिरता: दीर्घकालिक स्थिरता के लिए निजी सह-वित्तपोषण और वैश्विक साझेदारी के माध्यम से ₹1 लाख करोड़ के कोष को बनाए रखना।
  • डीप-टेक फंड ऑफ फंड्स (FoF)- रणनीतिक उत्प्रेरक
    • उद्देश्य: डीप-टेक स्टार्ट-अप्स और नवाचार-संचालित उद्यमों को समर्थन प्रदान करना।
    • दृष्टिकोण: उच्च-विकास, उच्च-जोखिम वाले उद्यमों को वित्तपोषित करने के लिए निजी क्षेत्र की इक्विटी/ऋण विशेषज्ञता का लाभ उठाना।
    • परिणाम: सरकारी सूक्ष्म-प्रबंधन को न्यूनतम करते हुए भारत के डीप-टेक पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाना।

भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय और विकास रुझान

  • अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (GERD): ₹60,196.75 करोड़ (2010-11) से बढ़कर ₹1,27,380.96 करोड़ (2020-21) हो गया, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में, यह 0.6-0.7% पर स्थिर रहा, जो वैश्विक औसत 2-3% से कम है।

  • GDP वृद्धि संदर्भ: इसी अवधि में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2.5 गुना बढ़ा (₹77.84 लाख करोड़ से बढ़कर ₹198 लाख करोड़ हो गया) जिसके परिणामस्वरूप GERD अनुपात में सीमित वृद्धि हुई।
  • क्षेत्रीय योगदान: सरकारी क्षेत्र कुल अनुसंधान एवं विकास व्यय का लगभग 64% हिस्सा है, जबकि निजी क्षेत्र का योगदान लगभग 36% है, जबकि चीन, दक्षिण कोरिया और अमेरिका में यह 70% से अधिक है। यह निजी क्षेत्र की मजबूत भागीदारी और उद्योग-अकादमिक सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • प्रति व्यक्ति अनुसंधान एवं विकास व्यय: PPP $29.2 (2007-08) से बढ़कर PPP $42.0 (2020-21) हो गया, जो निरंतर सुधार को दर्शाता है, लेकिन वैश्विक मानकों से अभी भी पीछे है।

  • मानव पूँजी और अनुसंधान उत्पादन: साइंस एंड इंजीनियरिंग इंडिकेटर, 2022 (NSF, USA) के अनुसार, भारत ने वर्ष 2018-19 में 40,813 डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान कीं, जिनमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी में 24,474 (60%) शामिल हैं, जो संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है।
  • नवाचार वृद्धि: भारत में दायर पेटेंटों की संख्या 24,326 (2020-21) से बढ़कर 68,176 (2024-25) हो गई, जो घरेलू नवाचार और अनुसंधान व्यावसायीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत है।

भारत में नवाचार के लिए संस्थागत और नीतिगत ढाँचा

  • अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (ANRF): अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान अधिनियम, 2023 के अंतर्गत स्थापित, फरवरी 2024 से क्रियाशील; विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के लिए रणनीतिक दिशा प्रदान करता है।
    • इसका लक्ष्य ₹50,000 करोड़ (2023-28) जुटाना है, जिसमें ₹14,000 करोड़ केंद्र सरकार से और शेष उद्योग एवं परोपकारी संस्थाओं से प्राप्त होंगे; यह शिक्षा-उद्योग संबंधों तथा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप उच्च-प्रभावी अनुसंधान पर केंद्रित है।
  • राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति, 2022: इसका लक्ष्य वर्ष 2035 तक भारत को भू-स्थानिक क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी बनाना है; शासन, व्यवसाय और अनुसंधान के लिए भू-स्थानिक डेटा तक पहुँच को उदार बनाना; मानचित्रण और भू-स्थानिक अवसंरचना विकास को बढ़ावा देना।
    • इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक एक हाई-रिजॉल्यूशन स्थलाकृतिक सर्वेक्षण और डिजिटल एलिवेशन मॉडल (Digital Elevation Model-DEM) तैयार करना है और सभी हितधारकों के लिए डेटा तक खुली पहुँच सुनिश्चित करना है।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023: अंतरिक्ष क्षेत्र के प्रशासन के लिए एक एकीकृत ढाँचा प्रदान करती है; वर्ष 2020 के अंतरिक्ष सुधारों पर आधारित है, जो निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम बनाते हैं; एक वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा देती है, सामाजिक-आर्थिक और वैज्ञानिक लाभ सुनिश्चित करती है तथा राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्षमता को बढ़ाती है।
    • यह निजी अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने, मार्गदर्शन करने और अधिकृत करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना करती है।
  • BioE3 नीति, 2024 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी): नवाचार-संचालित जैव प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिए अगस्त 2024 में स्वीकृत; जैव-विनिर्माण, जैव-कृत्रिम बुद्धिमत्ता और बायो-फाउंड्री सहित छह विषयगत क्षेत्रों पर केंद्रित; जीव विज्ञान के औद्योगीकरण और एक चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था का समर्थन करती है।
    • यह जैव-आधारित नवाचार के माध्यम से जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और जन स्वास्थ्य जैसी राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान करती है।
  • अटल नवाचार मिशन (AIM) 2.0: नीति आयोग के तहत वर्ष 2016 में शुरू किया गया, ₹2,750 करोड़ के आवंटन के साथ मार्च 2028 तक जारी रहेगा; यह नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख पहल है; इसमें स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब (ATL) और विश्वविद्यालयों एवं उद्योगों में अटल इनक्यूबेशन सेंटर (AIC) शामिल हैं।
    • यह इनक्यूबेशन नेटवर्क का विस्तार करने, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को शामिल करने और वर्ष 2047 तक विकसित भारत के अनुरूप युवा नवप्रवर्तकों को पोषित करने पर केंद्रित है।
  • अनुसंधान और बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने की योजनाएँ
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अवसंरचना सुधार निधि (FIST): विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अवसंरचना को सुदृढ़ करता है।
    • परिष्कृत विश्लेषणात्मक उपकरण सुविधाएँ (SAIF) और परिष्कृत विश्लेषणात्मक एवं तकनीकी सहायता संस्थान (SATHI): उन्नत अनुसंधान और विश्लेषणात्मक सुविधाओं तक पहुँच प्रदान करता है।
    • महिला विश्वविद्यालयों में नवाचार और उत्कृष्टता के माध्यम से विश्वविद्यालय अनुसंधान का समेकन (CURIE): महिला विश्वविद्यालयों में अनुसंधान क्षमता का निर्माण करता है।
    • विश्वविद्यालय अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्कृष्टता को बढ़ावा (PURSE): उच्च-गुणवत्ता वाले विश्वविद्यालय अनुसंधान का समर्थन करता है।
    • त्वरित नवाचार और अनुसंधान के लिए साझेदारी (PAIR): ANRF के नेतृत्व वाली पहल, हब-एंड-स्पोक मॉडल के तहत उभरते संस्थानों को स्थापित संस्थानों के साथ जोड़ती है।
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग-शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्वविद्यालय अंतःविषय जीवन विज्ञान विभागों को बढ़ावा (DBT-BUILDER): अंतःविषय जीवन विज्ञान अनुसंधान क्षमता को बढ़ाता है।
    • विज्ञान धारा योजना: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना, जिसका उद्देश्य भारत के विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षमता निर्माण, अनुसंधान, नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना है।
  • परिणाम: ये पहल मिलकर एक समावेशी, सहयोगात्मक और नवाचार-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती हैं, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के वैश्विक केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करती हैं, साथ ही आत्मनिर्भरता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और सतत् विकास को भी बढ़ावा देती हैं।

राष्ट्रीय अनुसंधान और नवाचार ढाँचा

  • प्रमुख मिशन
    • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM): विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अंतर्गत वर्ष 2023 में ₹6,000 करोड़ (2023-31) के परिव्यय के साथ शुरू किया गया; इसका उद्देश्य 50-1,000 क्यूबिट क्वांटम कंप्यूटर विकसित करना, 2,000 किलोमीटर से अधिक सुरक्षित क्वांटम संचार स्थापित करना और राष्ट्रीय क्वांटम नेटवर्क का निर्माण करना है।
      • यह मिशन क्वांटम कंप्यूटिंग, क्रिप्टोग्राफी और संचार में भारत के नेतृत्व को मजबूत करता है, जो वर्ष 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
    • अंतरविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS): DST द्वारा वर्ष 2018 में ₹3,660 करोड़ के परिव्यय के साथ शुरू किया गया; यह 25 प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्रों (TIHs) के माध्यम से AI, रोबोटिक्स, सेंसर और IoT जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान, नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देता है।
      • यह स्मार्ट सिस्टम विकास और डिजिटल विनिर्माण के लिए शिक्षा जगत, उद्योग और सरकार को जोड़ने वाले एक नवाचार-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है।
    • राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (NSM): विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा संयुक्त रूप से कार्यान्वित, प्रमुख संस्थानों में 70 से अधिक उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग (HPC) सुविधाओं का एक नेटवर्क स्थापित करने के लिए।
      • यह मिशन AI अनुसंधान, मौसम मॉडलिंग, जीनोमिक्स और रक्षा सिमुलेशन के लिए भारत की क्षमता को बढ़ाता है, जिसका लक्ष्य कंप्यूटेशनल आत्मनिर्भरता और विश्व स्तरीय वैज्ञानिक कंप्यूटिंग अवसंरचना का निर्माण करना है।
    • राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्ट-अप नीति (NDTSP): सेमीकंडक्टर, क्वांटम तकनीक, उन्नत सामग्री और जैव प्रौद्योगिकी जैसी अग्रणी प्रौद्योगिकियों में नवाचार-आधारित उद्यमिता को बढ़ावा देने का प्रस्ताव।
      • यह IP निर्माण, व्यावसायीकरण और उद्योग-अकादमिक संबंधों का समर्थन करता है, जिससे उच्च-मूल्य वाले नवाचार क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित होती है।
    • भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM): सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम के एक भाग के रूप में ₹76,000 करोड़ के प्रोत्साहन परिव्यय के साथ MeitY के तहत वर्ष 2021 में शुरू किया गया; इसका उद्देश्य एक सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है।
      • यह वेफर निर्माण, डिजाइन और मिश्रित सेमीकंडक्टर उत्पादन पर केंद्रित है, जिससे आपूर्ति शृंखला लचीलापन और तकनीकी संप्रभुता सुनिश्चित होती है।
    • डिजिटल ओपन मैन्युफैक्चरिंग (DOM) पहल: SMEs और स्टार्ट-अप्स को खुले डेटा और साझा बुनियादी ढाँचे के माध्यम से डिजिटल विनिर्माण प्लेटफॉर्म, सिमुलेशन टूल और डिजाइन रिपॉजिटरी तक पहुँच प्रदान करता है।
      • यह उद्योग 4.0 परिवर्तन का समर्थन करता है और समावेशी औद्योगिक नवाचार के लिए विनिर्माण प्रौद्योगिकी तक पहुँच का लोकतंत्रीकरण करता है।
    • इंडिया AI मिशन: ₹10,371.92 करोड़ के बजट के साथ 2024 में स्वीकृत; इसका उद्देश्य भारत AI कंप्यूट प्लेटफॉर्म, डेटासेट प्लेटफॉर्म, इनोवेशन सेंटर और AI स्टार्ट-अप वित्तपोषण के माध्यम से एक राष्ट्रीय AI पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
      • शासन, स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि क्षेत्रों में अनुप्रयोगों के साथ नैतिक, सुरक्षित और समावेशी AI विकास पर केंद्रित है।

    • उन्नत सामग्री पर राष्ट्रीय मिशन (वर्ष 2024 में प्रस्तावित किया गया): इसका उद्देश्य रक्षा, अंतरिक्ष और ऊर्जा अनुप्रयोगों के लिए ग्रेफीन, नैनोमैटेरियल, कंपोजिट और स्मार्ट मिश्रधातु जैसी नवीन सामग्रियों में अनुसंधान एवं विकास को मजबूत करना और स्वदेशी विनिर्माण एवं रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ावा देना है।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI)
    • एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI): भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया; यह तत्काल अंतर-संचालनीय भुगतान की सुविधा प्रदान करता है।
      • 12 अरब से अधिक मासिक लेन-देन (2025) के साथ, यह डिजिटल विश्वास, पैमाने और समावेशन का उदाहरण प्रस्तुत करता है और भारत को वित्तीय प्रौद्योगिकी अवसंरचना में एक वैश्विक अग्रणी के रूप में परिवर्तित करता है।
    • Co-WIN प्लेटफॉर्म: COVID-19 टीकाकरण प्रबंधन के लिए विकसित, 2 अरब से अधिक खुराकों के लिए रियल-टाइम पंजीकरण, समय-निर्धारण और प्रमाणन को सक्षम बनाता है; यह डिजिटल स्वास्थ्य प्रशासन और सार्वजनिक सेवा वितरण के लिए एक आदर्श मॉडल है।
    • डिजिलॉकर: आधार के साथ एकीकृत एक क्लाउड-आधारित दस्तावेज संग्रह; नागरिकों को डिजिटल क्रेडेंशियल्स तक सुरक्षित रूप से पहुँचने और साझा करने की अनुमति देता है।
      • यह कागजी कार्रवाई को कम करता है, डेटा पोर्टेबिलिटी को बढ़ाता है और ई-गवर्नेंस दक्षता का समर्थन करता है।
    • आधार-सक्षम eKYC और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): लक्षित और पारदर्शी कल्याणकारी वितरण प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि सब्सिडी और लाभ न्यूनतम लीकेज के साथ वास्तविक लाभार्थियों तक पहुँचें।
      • DBT ने डुप्लिकेट को समाप्त करके और शासन की जवाबदेही में सुधार करके ₹2.7 लाख करोड़ से अधिक की बचत की है।
    • इंडिया स्टैक और डेटा सशक्तीकरण एवं संरक्षण संरचना (DEPA): यह डिजिटल इंटरऑपरेबिलिटी का आधार है, वित्त, स्वास्थ्य और शिक्षा में नवाचार के लिए सुरक्षित डेटा साझाकरण, सहमति-आधारित शासन और खुले API पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम बनाते हैं।
      • ये भारत के डिजिटल पब्लिक गुड्स (DPG) मॉडल का आधार हैं, जिसे अब भारत-UNDP वैश्विक DPI साझेदारी के माध्यम से कई देशों द्वारा अपनाया जा रहा है।
      • ये राष्ट्रीय मिशन और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना पहल मिलकर भारत के नवाचार-आधारित विकास मॉडल के दोहरे इंजन का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भारत के अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी-तंत्र में चुनौतियाँ

  • निजी क्षेत्र में निवेश घाटा: सरकारी प्रयासों के बावजूद, अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र का निवेश अपेक्षाकृत कम (~36%) बना हुआ है, जिससे नवाचार-संचालित उद्यमों का विकास बाधित हो रहा है और उच्च-प्रभाव वाली प्रौद्योगिकियों का व्यावसायीकरण सीमित हो रहा है।
  • खंडित बुनियादी ढाँचा और डेटा अंतराल: भूमि का विखंडन, कम तकनीक अपनाना और विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से कृषि में, असंगत डेटा प्रणालियाँ, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों की मापनीयता और अंतर-संचालनीयता में बाधा डालती हैं।
  • वित्तीय और जलवायु बाधाएँ: सस्ती वित्तपोषण तक सीमित पहुँच, निजी क्षेत्र की जोखिम से बचने की प्रवृत्ति, और जलवायु संबंधी कमजोरियाँ (जैसे- अनियमित मौसम) छोटे किसानों और उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों के लिए चुनौतियाँ पेश करती हैं, जिससे नवाचार अपनाने की गति धीमी हो जाती है।
  • कम अनुसंधान एवं विकास तीव्रता और रूपांतरण बाधाएँ: भारत की अनुसंधान एवं विकास तीव्रता (GDP का 0.6-0.7%) वैश्विक औसत से कम बनी हुई है और शिक्षा जगत और उद्योग के बीच सहयोग कमजोर है, जिससे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अनुसंधान परिणामों के व्यावसायीकरण में देरी हो रही है।
  • प्रतिभा और संस्थागत बाधाएँ: शोध कॅरियर का सीमित आकर्षण, संस्थागत नौकरशाही और परिचालन स्वायत्तता की कमी के साथ मिलकर, नवाचार को बाधित करता है और उच्च-जोखिम, उच्च-लाभ वाली परियोजनाओं के विस्तार को धीमा कर देता है।
  • नवाचार की गहराई और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: हालाँकि भारत ने पेटेंट में वृद्धि देखी है, लेकिन घरेलू स्वामित्व, व्यावसायीकरण और वैश्विक साझेदारियों की कमी घरेलू नवाचार को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बदलने की इसकी क्षमता को सीमित करती है।

आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विकास की तीव्रता बढ़ाना: भारत को GERD को सकल घरेलू उत्पाद के 2% या उससे अधिक तक बढ़ाने की आवश्यकता है। यह लक्षित मिशन बजट, रिंग-फेंस्ड फंडिंग और स्थिर बहु-वर्षीय अनुदानों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जो वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के लिए दीर्घकालिक प्रतिबद्धता सुनिश्चित करते हैं।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: निजी पूँजी को आकर्षित करने के लिए, सरकार को RDI कोष का विस्तार करना चाहिए, व्यावसायिक अनुसंधान एवं विकास (BERD) के लिए कर क्रेडिट प्रदान करना चाहिए और परिणाम-संबंधित खरीद तंत्र शुरू करना चाहिए।
    • इसके अतिरिक्त, सह-वित्तपोषित चुनौती अनुदान निजी कंपनियों को गहन-तकनीकी नवाचारों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकी रूपांतरण को बढ़ावा देना: अनुसंधान को बाजार-तैयार उत्पादों में बदलने में तेजी लाने के लिए IP त्वरण निधि और स्पष्ट IPR/रॉयल्टी मानदंड स्थापित करना।
    • नवीन समाधानों के परीक्षण के लिए सैंडबॉक्स्ड विनियमन का निर्माण वास्तविक दुनिया में अनुप्रयोग की बाधाओं को कम करने में भी मदद करेगा।
  • प्रतिभा विकास को मजबूत करना: शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए, वैश्विक फेलोशिप और रिवर्स-ब्रेन-ड्रेन प्रक्रिया की पेशकश करके प्रतिभा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए।
    • इसके अतिरिक्त, प्रदर्शन-आधारित स्वायत्तता सुनिश्चित करने से नवाचार और अनुसंधान के व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
  • अनुसंधान प्रयोगशालाओं का वैश्वीकरण: भारत को AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और 6जी प्रौद्योगिकियों में वैश्विक अग्रणी कंपनियों के साथ बड़ी विज्ञान साझेदारी स्थापित करनी चाहिए।
    • ओपन-डेटा प्लेटफॉर्म बनाकर और अंतरराष्ट्रीय मानकों में अग्रणी बनकर, भारत अत्याधुनिक अनुसंधान का वैश्विक केंद्र बन सकता है।

निष्कर्ष

भारत का नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र ₹1 लाख करोड़ की RDI योजना, ANRF और राष्ट्रीय मिशनों के माध्यम से फलने-फूलने के लिए तैयार है। मजबूत नीतिगत समर्थन और निरंतर अनुसंधान एवं विकास निवेश, वर्ष 2047 तक विकसित भारत को गति प्रदान करेगा और भारत को वैश्विक नवाचार में अग्रणी के रूप में स्थापित करेगा।

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