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हिंद महासागर में पॉलीमेटेलिक सल्फाइड के अन्वेषण के लिए भारत को लाइसेंस

Lokesh Pal September 17, 2025 04:06 10 0

संदर्भ

भारत ने उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर में पॉलीमेटेलिक सल्फाइड की खोज के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority- ISA) से अन्वेषण लाइसेंस प्राप्त कर लिया है।

  • यह कार्ल्सबर्ग रिज में पॉलीमेटेलिक सल्फर नोड्यूल्स की खोज के लिए विश्व स्तर पर प्रदान किया गया पहला लाइसेंस है।

संबंधित तथ्य

  • भारत ने जनवरी 2024 में हिंद महासागर के दो क्षेत्रों में अन्वेषण अधिकारों के लिए आवेदन किया था:
    • कार्ल्सबर्ग रिज (Carlsberg Ridge)– भारत को लाइसेंस प्रदान किया गया।
    • अफानासी-निकितिन सागर (Afanasy Nikitin Sea- ANS) पर्वत- भारत का अनुमोदन अभी लंबित है। (श्रीलंका ने वर्ष 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासागर कानून अभिसमय (UNCLOS) के तहत विश्व महाद्वीपीय शेल्फ सीमा आयोग (CLCS) में अपनी महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा को बढ़ाने के लिए आवेदन किया था, जिसमें यह सीमाउंट शामिल है)
  • भारत द्वारा प्राप्त पूर्व अन्वेषण अधिकार
    • वर्ष 2002: मध्य हिंद महासागर बेसिन (विस्तार के बाद मार्च 2027 तक वैध)।
    • वर्ष 2016: हिंद महासागर रिज में पॉलीमेटेलिक सल्फाइड हेतु (सितंबर 2031 तक वैध)।

गहन समुद्र में खनिज भंडार के प्रकार

विशेषता पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स (Polymetallic Nodules) पॉलीमेटेलिक सल्फाइड (Polymetallic Sulphides) कोबाल्ट-समृद्ध फेरोमैंगनीज क्रस्ट 

(Cobalt-rich Ferromanganese Crusts)

गठन वितल मैदानों (Abyssal plains) पर एक कोर के चारों ओर Fe और Mn हाइड्रॉक्साइड की संकेंद्रित परतें। गर्म खनिज-समृद्ध हाइड्रोथर्मल तरल पदार्थों से निर्मित धातु सल्फाइड का अवक्षेपण। कठोर चट्टान सतहों (समुद्री पर्वत, कटक) पर Mn और Fe ऑक्साइड का प्रत्यक्ष अवक्षेपण।
स्थिति वितल मैदान (Abyssal plain) (4,000-6,000 मीटर गहराई)। मध्य-महासागरीय कटक और हाइड्रोथर्मल वेंट क्षेत्र। समुद्री पर्वतों की ढलानें और शिखर (1,000–3,000 मीटर गहराई)।
प्रमुख धातुएँ Mn, Ni, Co, Cu Cu, Zn, Fe, Pb, Au, Ag, दुर्लभ मृदा धातुएँ Mn, Co, Ni, Pt, दुर्लभ मृदा धातुएँ
उपस्थिति आलू के आकार के कंक्रीशन (कुछ सेमी. से 20 सेमी. तक)। चिमनी जैसे सल्फाइड के युक्त टीले और निक्षेप। कठोर, काले रंग की परतदार चट्टानें (कुछ सेमी. मोटी)।
वैश्विक महत्त्व  क्लेरियन-क्लिपर्टन जोन (प्रशांत), मध्य हिंद महासागर बेसिन में पाया जाता है। कार्ल्सबर्ग रिज, मध्य हिंद महासागर रिज में स्थित है। प्रशांत महासागरीय पर्वतों (हवाई, मार्शल द्वीप), हिंद महासागरीय पर्वतों में पाया जाता है।
भारतीय अधिकार (Indian Rights- ISA) CIOB में अन्वेषण अधिकार (वर्ष 2002)। हिंद महासागर रिज (वर्ष 2016) और कार्ल्सबर्ग रिज (वर्ष 2025) में अन्वेषण अधिकार। आवेदन लंबित (अभी तक स्वीकृत नहीं)।

अन्वेषण से संबंधित  चुनौतियाँ

  • पर्यावरणीय चिंताएँ: गहन महासागर में खनन के पारिस्थितिकी प्रभावों पर स्पष्टता का अभाव है। साथ ही समुद्री जैव विविधता के लिए संभावित जोखिम भी है।
  • उच्च लागत: महासागर की गहराई में अन्वेषण और निष्कर्षण के लिए उन्नत तकनीक और भारी निवेश की आवश्यकता होती है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: अन्य देशों के दावे (जैसे- मध्य हिंद महासागर और अफानासी-निकितिन सागर पर्वत में) कूटनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
  • अनिश्चित व्यावसायिक व्यवहार्यता: क्षमता के बावजूद, लागत-लाभ अनिश्चितताओं के कारण उद्योगों की रुचि सीमित बनी हुई है।

कार्ल्सबर्ग रिज के बारे में

  • कार्ल्सबर्ग रिज 3,00,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है, जो हिंद महासागर, विशेष रूप से अरब सागर और उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर में अवस्थित है।
  • यह भारतीय और अरब टेक्टॉनिक प्लेटों के मध्य की सीमा बनाता है, जो रॉड्रिक्स द्वीप के पास से ओवेन फ्रैक्चर जोन तक विस्तृत है।

अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority- ISA)

  • स्थापना: 16 नवंबर, 1994 को UNCLOS (वर्ष 1982) और इसके भाग XI के संबंध में वर्ष 1994 में हुए समझौते के तहत गठित।
  • मुख्यालय: किंग्स्टन, जमैका (Kingston, Jamaica)।
  • सदस्यता: 169 (168 राज्य + यूरोपीय संघ)। अमेरिका इसका सदस्य देश नहीं है।
  • अधिदेश
    • उच्च सागर क्षेत्र में खनिज संसाधनों के अन्वेषण और दोहन को विनियमित करता है।
    • हानिकारक समुद्री गतिविधियों से पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करता है।
  • उच्च सागर (High Sea) क्षेत्र: विश्व के 54% महासागरों को कवर करता है।
    • इसमें राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के जल क्षेत्र (EEZ, प्रादेशिक समुद्र या द्वीपसमूह) शामिल हैं।
    • उच्च सागर (High Sea) या महासागर के ऐसे भाग में अन्वेषण के लिए जो किसी भी देश से इतना दूर है कि वह उनके क्षेत्र का हिस्सा नहीं है, देशों को अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण से अनुमति लेनी होगी।
    • 19 देशों के पास ऐसे अन्वेषण अधिकार हैं।

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