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भारत की समुद्री नीति

Lokesh Pal March 19, 2025 03:30 13 0

संदर्भ 

भारत की समुद्री नीति में वर्ष 2015 में सागर (SAGAR) अर्थात् ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ के शुभारंभ से लेकर वर्ष 2025 में नव घोषित महासागर (MAHASAGAR) अर्थात् ‘क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक तथा समग्र उन्नति’ तक महत्त्वपूर्ण विकास हुआ है।

हिंद-प्रशांत और ग्लोबल साउथ में भारत की भूमिका

  • विश्वसनीय भागीदारों की बढ़ती माँग: मध्यम और छोटे देश वैश्विक मामलों में सक्षमता, विश्वसनीयता और सहानुभूति प्रदान करने वाले भागीदारों की तलाश करते हैं। 
      • श्रीलंका के ऋण संकट और पाकिस्तान के आर्थिक संघर्षों में देखी गई चीन की ऋण देने की तत्परता ने ऋण जाल के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। 
  • सहानुभूतिपूर्ण भागीदार के रूप में भारत: भारत को एक भरोसेमंद भागीदार के रूप में देखा जाता है, विशेष रूप से समुद्री सुरक्षा और विकास सहयोग में।
    • इसका दृष्टिकोण शोषणकारी वित्तपोषण के बजाय क्षमता निर्माण, संप्रभुता के प्रति सम्मान और सतत् विकास पर जोर देता है।

पृष्ठभूमि

  • भारतीय प्रधानमंत्री ने मॉरीशस की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान महासागर (MAHASAGAR) विजन का अनावरण किया, जिससे वैश्विक दक्षिण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि हुई।
  • यह नीतिगत दृष्टिकोण ऐसे समय में आया है, जब चीन हिंद महासागर में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।

महासागर (MAHASAGAR) के बारे में

  • महासागर (MAHASAGAR) ग्लोबल साउथ में सुरक्षा, व्यापार और विकास सहयोग को बढ़ाने के लिए भारत की महत्त्वाकांक्षी रणनीतिक विजन है, अर्थात् अफ्रीका, आसियान, लैटिन अमेरिका, प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों तक विस्तार करना।
  • सागर से महासागर तक का विकास: महासागर, वर्ष 2015 की सागर (SAGAR) नीति पर आधारित है।
    • सागर सिद्धांत (2015) ने हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में समुद्री सुरक्षा, सतत् विकास और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया।
    • हालाँकि, महासागर (2025) पहल सागर का विस्तार करती है, जिसमें निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित किया गया है:
      • व्यापार और संपर्क को मजबूत करना।
      • समुद्री सुरक्षा और डोमेन जागरूकता को बढ़ाना।
      • आपदा लचीलापन और मानवीय सहायता को बढ़ावा देना।
      • द्वीपीय राष्ट्रों के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को गहरा करना।

सागर (SAGAR) अर्थात् ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (Security and Growth for All in the Region) के बारे में 

  • सागर को वर्ष 2015 में हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के लिए भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
  • इसका उद्देश्य IOR देशों के बीच समुद्री सुरक्षा, सतत् विकास और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना है।
  • इसने हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में निवल सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका को मजबूत किया।

सागर (SAGAR) के मुख्य उद्देश्य

  • समुद्री सुरक्षा: नौसैनिक सहयोग, समुद्री डोमेन जागरूकता (MDA) और समुद्री डकैती विरोधी उपायों को बढ़ाना।
  • आर्थिक विकास और ब्लू इकॉनमी: व्यापार, मत्स्यपालन और स्थायी समुद्री संसाधनों को बढ़ावा देना।
  • आपदा लचीलापन: प्राकृतिक आपदाओं के लिए सहायता और प्रतिक्रिया को मजबूत करना।
  • क्षेत्रीय संपर्क: बंदरगाहों, शिपिंग मार्गों और डिजिटल लिंक का विकास करना।
  • पर्यावरण संरक्षण: जलवायु परिवर्तन, समुद्री प्रदूषण और तटीय प्रबंधन से निपटना।

सागर (SAGAR) के कार्यान्वयन के उदाहरण

  • भारत ने मॉरीशस, सेशेल्स, मालदीव, श्रीलंका और पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ नौसैनिक साझेदारी का विस्तार किया है।
  • तेल रिसाव (मॉरीशस 2020), चक्रवातों और कोविड-19 महामारी के दौरान IOR देशों की सहायता की।
  • MILAN और समन्वित गश्त (कॉर्पैट) जैसे संयुक्त अभ्यासों के माध्यम से रक्षा संबंधों को मजबूत किया

सागर (SAGAR) से महासागर (MAHASAGAR) की ओर बदलाव की आवश्यकता

  • रणनीतिक विजन का विस्तार: सागर ने हिंद महासागर पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि महासागर ने भारत-प्रशांत और उससे आगे के कई क्षेत्रों में भारत की भागीदारी को व्यापक बनाया।
  • बढ़ती भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: हिंद महासागर, अफ्रीका और प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों में बढ़ते चीनी प्रभाव के लिए अधिक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • आर्थिक एवं व्यापार संबंधी विचार: भारत का लक्ष्य उभरते बाजारों के साथ ब्लू इकोनॉमी भागीदारी, व्यापार संपर्क और डिजिटल सहयोग को बढ़ाना है।
  • समग्र सुरक्षा दृष्टिकोण की आवश्यकता: साइबर युद्ध, समुद्री डकैती, जलवायु परिवर्तन और संसाधन प्रतिस्पर्द्धा जैसे आधुनिक खतरों के लिए व्यापक सुरक्षा ढाँचे की आवश्यकता है।

महासागर के भू-राजनीतिक निहितार्थ

  • अन्य नीतियों के साथ संरेखण: महासागर इंडो-पैसिफिक रणनीति के साथ संरेखित है और एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए क्वाड के दृष्टिकोण का पूरक है।
  • चीन के प्रभाव का मुकाबला करना: भारत के नेतृत्व वाले सहयोग मॉडल के माध्यम से इंडो-पैसिफिक और हिंद महासागर में चीन के प्रभाव का मुकाबला करना।
  • भारत की स्थिति को मजबूत करना: भारत को ग्लोबल साउथ में एक हितधारक के रूप में स्थापित करना तथा G20, IORA और BRICS जैसे वैश्विक मंचों पर उनके हितों की वकालत करना।
  • अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को गहरा करना: महासागर भारत को अफ्रीकी देशों, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों के साथ संबंधों को गहरा करने में सक्षम बनाता है, जिससे दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूती मिलती है।
  • द्वीपीय देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना: मॉरीशस, मालदीव और सेशेल्स जैसे देश भारत के व्यापक समुद्री दृष्टिकोण में प्रमुख साझेदार हैं।
  • मॉरीशस को हिंद महासागर क्षेत्र रणनीति में केंद्रीय स्थान: भारत ने सागर नीति, जिसने पिछले दशक में हिंद महासागर क्षेत्र के साथ भारत की भागीदारी के लिए आधारशिला का कार्य किया तथा महासागर नीति, जो आने वाले वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की रणनीति का मार्गदर्शन करेगी, दोनों को शुरू करने के लिए मॉरीशस को चुना। यह नीति भारत की क्षेत्रीय रणनीति में मॉरीशस के केंद्रीय स्थान को रेखांकित करती है।

समुद्री सुरक्षा और कूटनीति के लिए सरकारी पहल

  • इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (IPOI): इसे वर्ष 2019 में बैंकॉक (थाईलैंड) में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) में एक खुली, समावेशी, गैर-संधि-आधारित वैश्विक पहल के रूप में लॉन्च किया गया था।
    • यह समुद्री सुरक्षा, कनेक्टिविटी, आपदा जोखिम प्रबंधन और सतत् नीली अर्थव्यवस्था विकास में इंडो-पैसिफिक देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) सहभागिता: IORA के माध्यम से क्षेत्रीय आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को मजबूत करता है, 23 सदस्य देशों के बीच व्यापार, सतत् मत्स्यपालन और समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देता है।
  • क्वाड समुद्री सुरक्षा पहल: भारत समुद्री डोमेन जागरूकता बढ़ाने, संयुक्त नौसैनिक अभ्यास करने और अवैध मछली पकड़ने का मुकाबला करने के लिए क्वाड फ्रेमवर्क के तहत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग करता है।
  • IFC-IOR: भारत सरकार ने समुद्री सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में वास्तविक समय की सूचना के आदान-प्रदान के लिए सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) की स्थापना की है।
  • भारत-अफ्रीका समुद्री सहयोग: भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS) जैसी पहलों के माध्यम से बंदरगाह विकास, नौसैनिक प्रशिक्षण और समुद्री डकैती विरोधी अभियानों में अफ्रीकी तटीय राज्यों को शामिल करता है।
  • समुद्री कूटनीति के एक उपकरण के रूप में नौसेना अभ्यास: उदाहरण के रूप में मिलन 2024 में, आसियान, अफ्रीका और प्रशांत देशों सहित 50 से अधिक देशों ने भाग लिया, जिससे भारत की रणनीतिक साझेदारी मजबूत हुई।
  • इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) भागीदारी: IPEF को वर्ष 2022 में अमेरिका और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के अन्य साझेदार देशों द्वारा संयुक्त रूप से लॉन्च किया गया था ताकि समुद्री व्यापार में लचीली आपूर्ति शृंखला और डिजिटल कनेक्टिविटी सुनिश्चित की जा सके।

ग्लोबल साउथ के साथ भारत की सहभागिता के लिए चुनौतियाँ

  • सामरिक प्रतिस्पर्द्धा: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), मैरीटाइम सिल्क रोड आदि के माध्यम से चीन का बढ़ता प्रभाव और हिंद महासागर में उसकी बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति सामरिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है।
  • क्षेत्रीय संगठनों की बहुलता: उदाहरण के लिए, मॉरीशस तीन क्षेत्रीय संगठनों में एक प्रमुख हितधारक है:-
    • IORA (व्यापार, आर्थिक विकास और समुद्री सुरक्षा पर केंद्रित)।
    • हिंद महासागर आयोग (IOC): इसके सदस्य हैं- कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, रीयूनियन और सेशेल्स।
    • कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC): भारत, श्रीलंका और मालदीव के नेतृत्व में एक सुरक्षा-केंद्रित समूह है।
      • यद्यपि मॉरीशस को क्षेत्रीय सहयोग से लाभ मिलता है, लेकिन उसे विभिन्न क्षेत्रीय निकायों में परस्पर-अतिव्यापी भूमिकाओं, रणनीतिक हितों और संगठनात्मक प्रतिबद्धताओं के प्रबंधन की चुनौती का भी सामना करना पड़ता है।
  • संसाधन की कमी: भारत को अपनी नौसेना के आधुनिकीकरण और बुनियादी ढाँचे में निवेश को अन्य घरेलू प्राथमिकताओं के साथ संतुलित करना चाहिए।
  • जलवायु परिवर्तन और समुद्री आपदाएँ: समुद्र के बढ़ते स्तर और बढ़ती चरम मौसमी घटनाओं के कारण समुद्री नीतियों में जलवायु लचीलेपन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • क्षेत्रीय राजनीतिक अस्थिरता: भागीदार देशों (जैसे, मॉरीशस, मालदीव) में राजनीतिक बदलाव दीर्घकालिक सहयोग को प्रभावित कर सकते हैं।
  • हिंद महासागर का सैन्यीकरण: हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) का सैन्यीकरण वैश्विक महाशक्तियों की प्रतिस्पर्द्धा द्वारा संचालित है, जिसमें चीन नौसेनिक अड्डों (जिबूती, ग्वादर, हंबनटोटा) का विस्तार कर रहा है, अमेरिका डिएगो गार्सिया को उन्नत कर रहा है, भारत अंडमान और निकोबार कमांड को मजबूत कर रहा है आदि।
  • UNCLOS 1982 जैसे समुद्री कानूनों की अवहेलना: नेविगेशन की स्वतंत्रता, संप्रभुता और दीर्घकालिक समझौतों को कमजोर करके क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा है।
    • इस तरह के उल्लंघन, जो अक्सर अवैध क्षेत्रीय दावों में देखे जाते हैं, तनाव को बढ़ाते हैं तथा हिंद महासागर एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था को चुनौती देते हैं।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना: कूटनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा पहलों के माध्यम से इंडो-पैसिफिक और ग्लोबल साउथ देशों के साथ जुड़ाव को गहरा करना। उदाहरण के लिए, भारत ने मॉरीशस को अपना तटीय निगरानी रडार सिस्टम स्थापित करने में मदद की है।
    • वर्ष 2024 में, भारत ने मॉरीशस के अगालेगा द्वीप पर 3 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी और जेट्टी का वित्तपोषण ($192 मिलियन परियोजना) किया।।
  • हिंद महासागर में HADR (मानवीय सहायता और आपदा राहत) संचालन को मजबूत करना: भारत अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह जैसे प्रमुख नौसैनिक ठिकानों पर राहत आपूर्ति की पूर्व-स्थिति बनाकर और आपदा राहत के लिए सुसज्जित त्वरित प्रतिक्रिया वाली नौसेना परिसंपत्तियों को तैनात करके पहले प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ा सकता है।
  • क्षेत्रीय भागीदारों के साथ समन्वय: हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) और बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) जैसे मंचों के माध्यम से क्षेत्रीय भागीदारों के साथ समन्वय का विस्तार करने से सामूहिक आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया दक्षता में सुधार होगा।
    • इसके अतिरिक्त, IONS (हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी) में भारत की सक्रिय भागीदारी सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।
  • सतत् नौसेना और बुनियादी ढाँचे का विकास: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप और मॉरीशस जैसे रणनीतिक स्थानों में समुद्री निगरानी, ​​बंदरगाह बुनियादी ढाँचे तथा कनेक्टिविटी को मजबूत करना।
    • उदाहरण: उल्लंघनों और खतरों को ट्रैक करने के लिए सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) जैसे सहकारी तंत्रों के माध्यम से समुद्री डोमेन जागरूकता (MDA) को मजबूत करना।
  • UNCLOS 1982 की प्रभावशीलता को बनाए रखना: ASEAN, IORA और संयुक्त राष्ट्र मंचों पर कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से UNCLOS 1982 के अनुपालन को सुनिश्चित करके नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था की वकालत करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: अवैध क्षेत्रीय दावों का मुकाबला करने के लिए नेविगेशन संचालन की स्वतंत्रता (FONOP) और क्षेत्रीय विवाद-समाधान तंत्र का समर्थन करना।

निष्कर्ष 

सागर से महासागर में बदलाव, दक्षिण एशिया से परे अपने समुद्री नेतृत्व का विस्तार करने, आर्थिक विकास, क्षेत्रीय सुरक्षा और सतत् विकास को एक ही ढाँचे में एकीकृत करने की भारत की महत्त्वाकांक्षा को दर्शाता है।

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