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भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत

Lokesh Pal May 12, 2025 02:58 30 0

संदर्भ  

भारत और पाकिस्तान के मध्य संघर्ष के बीच, इस बहस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कि क्या भारत को भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सैद्धांतिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत (National Security Doctrine-NSD) के बारे में

  • यह एक रणनीतिक दस्तावेज है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मुख्य सिद्धांतों, खतरे की धारणाओं और प्रतिक्रिया तंत्रों को रेखांकित करता है।
  • भारत में वर्तमान में कोई औपचारिक NSD नहीं है, हालाँकि बढ़ते पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों के कारण इसकी माँग तेज हो गई है।
  • मौजूदा सुरक्षा निर्णय खंडित परिचालन निर्देशों (जैसे- रक्षा मंत्री का परिचालन निर्देश 2009) और तदर्थ प्रतिक्रियाओं पर आधारित हैं।

भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत की आवश्यकता क्यों है?

  • प्रतिक्रियात्मक सुरक्षा मुद्रा: भारत प्रायः संकटों के उभरने के बाद प्रतिक्रिया करता है (जैसे- वर्ष 2019 का पुलवामा हमला, वर्ष 2020 का गलवान संघर्ष)।
    • एक राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत रोकथाम और प्रारंभिक निरोध पर ध्यान केंद्रित करेगा, जिससे पूर्व तैयारी सुनिश्चित होगी।

  • रणनीतिक निष्क्रियता और ‘नो फर्स्ट यूज’ (NFU) की गलत व्याख्या: भारत का ‘नो फर्स्ट यूज’ (NFU) का परमाणु सिद्धांत नैतिक संयम पर आधारित है, लेकिन प्रायः इसे आतंकवाद जैसे खतरों से निपटने में अनिर्णय के रूप में गलत समझा जाता है।
    • विश्वसनीयता बहाल करने के लिए NSD को भारत की प्रतिक्रिया मुद्रा को स्पष्ट करना चाहिए, जैसे- ‘बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई’ बनाम ‘केंद्रित लेकिन दंडात्मक कार्रवाई’।
  • विखंडित संस्थागत प्रतिक्रिया: एकीकृत नेतृत्व की कमी के परिणामस्वरूप सैन्य, खुफिया और नागरिक एजेंसियों के बीच खराब समन्वय होता है।
    • NSD भूमिकाएँ, जिम्मेदारियाँ और अंतर-एजेंसी प्रोटोकॉल परिभाषित करेगा, जिससे संकटों में निर्बाध समन्वय सुनिश्चित होगा (जैसे- माओवादी कार्रवाई के दौरान देखा गया)।
  • उभरते खतरों के लिए रणनीतिक मार्गदर्शन का अभाव: भारत का वर्तमान दृष्टिकोण साइबर हमलों, AI-आधारित कट्टरपंथ, क्रिप्टो-आतंकवाद और ग्रे-जोन युद्ध जैसे आधुनिक खतरों को कम करके आँकता है।
    • एक राष्ट्रीय सिद्धांत को स्पष्ट रूप से इन गैर-पारंपरिक और तकनीक-सक्षम खतरों को संबोधित करना चाहिए, जिसमें साइबर तथा सूचना बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा शामिल है।
  • रेड लाइन्स और एस्केलेशन नीतियों में अस्पष्टता: स्पष्ट सीमा की अनुपस्थिति चीन और पाकिस्तान जैसे विरोधियों को भारत की रणनीतिक अस्पष्टता का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
    • NSD को रेड लाइन्स, एस्केलेशन लैडर और निरोध तर्क को परिभाषित करना चाहिए, विशेष रूप से सीमा, साइबर और आतंकवाद विरोधी संदर्भों में।
  • सामरिक संपत्तियों का कम उपयोग: उन्नत प्रणालियाँ (जैसे- अग्नि-5 MIRV, आईएनएस अरिघात) होने के बावजूद, भारत के पास निरोध और शक्ति प्रक्षेपण में उनकी भूमिका को निर्देशित करने वाले सिद्धांत का अभाव है।
    • NSD रणनीतिक तैनाती के लिए एक रूपरेखा प्रदान करेगा, जिससे चीन और पाकिस्तान के मुकाबले भारत की स्थिति मजबूत होगी।
  • एक समग्र सुरक्षा दृष्टिकोण की उपेक्षा: वर्तमान नीति राष्ट्रीय सुरक्षा को सैन्य या पुलिस के नजरिए से देखती है।
    • एक औपचारिक सिद्धांत आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय और तकनीकी आयामों को एकीकृत करते हुए ‘संपूर्ण राष्ट्र’ दृष्टिकोण अपनाएगा।

दार्शनिक आधार

  • न्यायपूर्ण युद्ध के लिए श्रीकृष्ण का आह्वान – युद्ध कृत निश्चय: भगवद्गीता– भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म (धार्मिक व्यवस्था) के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
    • युद्ध तब लड़ा जाना चाहिए, जब यह नैतिक रूप से उचित हो और न्याय एवं स्थिरता के लिए आवश्यक हो।
  • चाणक्य का मंडल सिद्धांत: ‘आपका निकटतम पड़ोसी आपका स्वाभाविक शत्रु है।’
    • रणनीतिक दूरदर्शिता, गुप्त गठबंधन और दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए तैयारियों की चर्चा की।
    • समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दूर की सीमाओं (जैसे- पूर्वोत्तर, समुद्री) को सुरक्षित करने पर जोर दिया।
  • अशोक की बौद्ध कूटनीति: संपूर्ण एशिया में बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए दूत (महेंद्र और संघमित्रा) भेजे।
    • एक मित्रतापूर्ण रणनीतिक परिधि बनाने के लिए सुरक्षा रणनीति के रूप में सॉफ्ट पॉवर का प्रयोग किया।
    • भारत की पड़ोस पहले की नीति के प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिए सांस्कृतिक उपयोग इस विरासत को दर्शाता है।
  • बुद्ध और गांधी – शांति का सिद्धांत: नैतिक सिद्धांतों के रूप में अहिंसा और ‘नो फर्स्ट यूज’ (NFU) को बढ़ावा दिया।
  • भारत का वर्ष 2003 का परमाणु सिद्धांत इसी विरासत से प्रेरित है: यह केवल हमला होने पर ही NFU और बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई की घोषणा करता है।
  • धर्म और शक्ति का संतुलन: भारतीय विचार नैतिकता (धर्म) और वास्तविक राजनीति (शक्ति) के मध्य संतुलन को बढ़ावा देता है।
    • NSD में नैतिक संयम और रणनीतिक दृढ़ता दोनों को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
    • क्वाड में भारत की स्थिति और अपनी संप्रभुता की रक्षा करते हुए वैश्विक दबाव के आगे झुकने से इनकार करना इस दोहरे दृष्टिकोण को दर्शाता है।
  • राजधर्म के रूप में सुरक्षा (राज्य का कर्तव्य): प्राचीन भारतीय राजा, अर्थशास्त्र और महाभारत जैसे ग्रंथों से निर्देशित होकर, राज्य की रक्षा को सर्वोच्च नैतिक कर्तव्य मानते थे।
    • NSD को नागरिक सुरक्षा, संप्रभुता और सामाजिक सद्भाव को न केवल नीतियों के रूप में, बल्कि राज्य के दायित्वों के रूप में मानना ​​चाहिए।

राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत (NSD) तैयार करने में चुनौतियाँ

  • राजनीतिक सहमति का अभाव: राजनीतिक दलों को प्रायः डर रहता है कि ये औपचारिक सिद्धांत भविष्य में जवाबदेही या आलोचना का कारण बन सकता है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा को अभी भी गोपनीय कार्यकारी कार्य माना जाता है, न कि द्विदलीय नीति क्षेत्र।
  • गोपनीयता बनाम पारदर्शिता दुविधा: सिद्धांत को सार्वजनिक रूप से जारी करने से भारत के रणनीतिक अंतराल या निर्णय लेने का तर्क विरोधियों के सामने आ सकता है।
    • इसे पूरी तरह से गोपनीय रखने से इसका प्रतिरोध करने का उद्देश्य विफल हो सकता है।
  • नौकरशाही साइलो और संस्थागत विखंडन: मंत्रालय (गृह, रक्षा, विदेश मामले), सशस्त्र बल और खुफिया एजेंसियाँ प्रायः साइलो में कार्य करती हैं।
    • कोई केंद्रीय सिद्धांत-लेखन प्राधिकरण मौजूद नहीं है; NSCS को अभी भी सिद्धांत लेखन शक्ति को मजबूत करना है।
  • सिद्धांत संबंधी कठोरता का डर: एक निश्चित सिद्धांत को तेजी से बदलती दुनिया में अनम्य माना जा सकता है, विशेषकर तकनीकी और भू-राजनीतिक बदलावों की गति को देखते हुए।
  • रणनीतिक संस्कृति का अभाव: भारत के राजनीतिक वर्ग और नौकरशाही ने ऐतिहासिक रूप से रणनीतिक दृष्टि पर सामरिक संकट प्रबंधन को प्राथमिकता दी है।
    • राजनीति हेतु चाणक्य और महाभारत आधारित परंपराओं को दार्शनिक रूप से स्वीकार किया जाता है, लेकिन राज्य की नीति में संस्थागत नहीं बनाया जाता है।
  • परिचालन बनाम रणनीतिक वियोग: थिएटर कमांड और सामरिक सिद्धांत (जैसे- कोल्ड स्टार्ट, साइबर सिद्धांत) मौजूद हैं।
    • लेकिन वे एक व्यापक रणनीतिक सिद्धांत के बिना कार्य करते हैं, जिससे दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारण में असंगति होती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांतों (NSDs) के वैश्विक उदाहरण

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) कुछ वर्षों के अंतराल पर व्हाइट हाउस द्वारा प्रकाशित की जाती है।
    • इसमें रक्षा, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, साइबर सुरक्षा और जलवायु से संबंधित व्यापक लक्ष्यों की रूपरेखा दी गई है।
  • रूस: रूस की NSD सैन्य तैयारी, परमाणु निरोध और सूचना, युद्ध को प्राथमिकता देती है।
    • वर्ष 2021 के संस्करण में आर्थिक संप्रभुता और साइबर लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • इसने ‘रणनीतिक स्थिरता’ के हिस्से के रूप में अपने निकट-विदेश में पूर्व-प्रतिरोधी सैन्य कार्रवाई को भी उचित ठहराया।
  • चीन: चीन एक भी NSD प्रकाशित नहीं करता है, लेकिन अपने सुरक्षा सिद्धांत को रेखांकित करते हुए रक्षा श्वेत-पत्र (जैसे- 2019) जारी करता है।
    • “लड़ाई के बिना जीतना” (सन त्जू), सक्रिय रक्षा और ग्रे जोन युद्ध जैसी अवधारणाओं पर जोर देता है।
    • रणनीतिक लक्ष्यों में क्षेत्रीय अखंडता (ताइवान, दक्षिण चीन सागर) को सुरक्षित करना और ‘पश्चिमी हस्तक्षेप’ का मुकाबला करना शामिल है।
  • यूनाइटेड किंगडम: एकीकृत समीक्षा, 2021 (वर्ष 2023 में अद्यतित) इसके सुरक्षा सिद्धांत के रूप में कार्य करती है।
    • यू.के. के वैश्विक नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए विदेश, रक्षा, आर्थिक और जलवायु नीतियों को संरेखित करता है।

आगे की राह

  • राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत को औपचारिक रूप देना: NSCS को सैन्य, साइबर, आर्थिक, कूटनीतिक और सामाजिक खतरों को शामिल करने वाले एक व्यापक NSD के निर्माण का नेतृत्व करना चाहिए।
    • इसमें रणनीतिक संकेत के लिए एक सार्वजनिक संस्करण और कार्रवाई योग्य योजनाओं के लिए एक वर्गीकृत संस्करण शामिल होना चाहिए।
  • समग्र खतरा आकलन: चीन की सैन्य और साइबर उन्नति तथा पाकिस्तान के आतंकवाद सहित बाहरी, आंतरिक और गैर-पारंपरिक खतरों को संबोधित करना।
    • बांग्लादेश, म्याँमार और पूर्वोत्तर को प्रभावित करने वाले संभावित चीन-पाकिस्तान गठजोड़ से होने वाले जोखिमों को शामिल करना।
  • पूरे देश के लिए दृष्टिकोण अपनाना: सामंजस्यपूर्ण सुरक्षा के लिए सैन्य, खुफिया, कूटनीति, आर्थिक और साइबर रणनीतियों को एकीकृत करना।
    • वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में आतंक समर्थित वित्त पर नकेल कसने हेतु खुफिया-नेतृत्व आधारित कार्रवाई करना।
  • रणनीतिक मुद्रा को स्पष्ट करना और प्रौद्योगिकी को अपनाना: हाइब्रिड खतरों के लिए ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति को अपनाते हुए पहले उपयोग, प्रतिशोध, वृद्धि और युद्ध की सीमाओं पर नीतियों को परिभाषित करना।
    • ‘वोल्ट टाइफून’ जैसे खतरों का मुकाबला करने के लिए स्वदेशी एआई, साइबर, अंतरिक्ष, क्वांटम और ड्रोन क्षमताओं का निर्माण करना।
  • समुद्री, ऊर्जा और खुफिया ढाँचे को मजबूत करना: INS अरिघात, क्वाड और कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन के माध्यम से भारत की इंडो-पैसिफिक और IOR भूमिका को बढ़ाना।
    • रॉ, आईबी, एनआईए, एनटीआरओ और सशस्त्र बलों के मध्य अंतर-एजेंसी तालमेल को बढ़ावा देना तथा महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना।
  • थिएटर कमांड को संरेखित करना: साइबर त्रुटियों और गलत सूचना जैसी ग्रे-जोन रणनीति का मुकाबला करने के लिए प्रोटोकॉल विकसित करना।
    • उत्तरी, पश्चिमी और समुद्री थिएटर कमांड को NSD लक्ष्यों के साथ संरेखित करना, जिससे निवारण के लिए स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित हों।
  • समीक्षा और सभ्यतागत लोकाचार को संस्थागत बनाना: NSC द्वारा प्रत्येक पाँच वर्ष में समीक्षा की जाने वाली एक गतिशील NSD की स्थापना करना, जिससे अनुकूलनशीलता सुनिश्चित हो।
    • नैतिक संयम (गांधी, बुद्ध) और रणनीतिक संकल्प (कृष्ण, चाणक्य) के मध्य भारत के संतुलन को शामिल करना।

निष्कर्ष 

भारत को उभरते खतरों से सक्रिय रूप से निपटने, रणनीतिक स्पष्टता सुनिश्चित करने और वैश्विक सुरक्षा नेता के रूप में अपनी भूमिका को प्रस्तुत करने के लिए एक संहिताबद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत की तत्काल आवश्यकता है। सैन्य, साइबर और कूटनीतिक रणनीतियों को अपने सभ्यतागत लोकाचार के साथ एकीकृत करके, भारत अपनी संप्रभुता तथा स्थिरता की रक्षा के लिए धर्म एवं शक्ति के मध्य संतुलन बना सकता है।

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