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भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी

Lokesh Pal March 21, 2024 05:53 447 0

संदर्भ

भूटान के प्रधानमंत्री की हालिया भारत यात्रा, उसके बाद भारतीय प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा की घोषणा, नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का उदाहरण है।

भारत-भूटान संबंध के बारे में

  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: भूटान और भारत के बीच राजनयिक संबंध जनवरी 1968 में थिंपू में भारत के एक विशेष कार्यालय की स्थापना के साथ स्थापित हुए थे।
  • बुनियादी ढाँचा: दोनों देशों के बीच वर्ष 1949 में हस्ताक्षरित मैत्री और सहयोग संधि, जिसे वर्ष 2007 में नवीनीकृत किया गया, बुनियादी ढाँचे के रूप में कार्य करती है।
  • आध्यात्मिक नाता: भूटान भारत को ग्यागार” (Gyagar)  मानता है, वह पवित्र भूमि जहाँ बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई थी। बौद्ध धर्म ने दोनों राष्ट्रों के बीच संबंधों को लचीला बनाए रखा है।

नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के बारे में

  • पड़ोसी प्रथम नीतिया नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ (Neighbourhood First Policy-NFP) की कल्पना वर्ष 2008 में की गई थी, जिसमें NFP के तहत जुड़ाव के सिद्धांत 5S (सम्मान, संवाद, शांति, समृद्धि और संस्कृति) थे।
  • इसका उद्देश्य मजबूत संबंधों को बढ़ावा देना, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना और निकटतम पड़ोसी राष्ट्रों के साथ आपसी चिंताओं को दूर करना है।
  • यह नीति भारत के परामर्शी, गैर-पारस्परिक और विकासोन्मुख दृष्टिकोण से प्रेरित है।

नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी का विकास

  • भारत का दृष्टिकोण उपनिवेशवाद-विरोधी एकजुटता से क्षेत्रीय वर्चस्व को बढ़ावा देने और फिर एक जिम्मेदार नेता के रूप में पारस्परिक विश्वास एवं सहयोग का लक्ष्य रखने वाला बन गया है।
  • वर्ष 2014 से आगे: आर्थिक सहयोग, विकास सहायता और साझा चुनौतियों के समाधान के माध्यम से संबंधों को मजबूत करने के लिए NFP को पुनर्जीवित करना।
  • NFP को पाकिस्तान को छोड़कर सभी पड़ोसियों से बढ़ावा मिला है। सार्क (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC) के माध्यम से क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय पहलों पर भी अधिक जोर दिया गया है।

नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी का महत्त्व

  • सामरिक और भू-राजनीतिक हित
    • क्षेत्रीय नेतृत्व: NFP रणनीतिक रूप से प्रतिस्पर्द्धी हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region-IOR) में भारत की केंद्रीय भूमिका को मजबूत करता है और इसे एक क्षेत्रीय नेता के रूप में स्थापित करता है।
    • क्षेत्रीय शक्तियों में संतुलन : NFP हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने और खुद को IOR में एक प्रमुख सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित करने के लिए भारत की रणनीतिक युक्तियों पर केंद्रित है।
    • बहुपक्षीय सहयोग: नीति वैश्विक मंचों पर भारत के रुख को मजबूत करने और क्षेत्रीय एकजुटता को बढ़ावा देने में पड़ोसी गठबंधनों के महत्त्व पर जोर देती है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा हित
    • संप्रभुता की रक्षा: NFP सीमा पार विद्रोह को रोकने और भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता को बनाए रखने के लिए सहयोगी पड़ोसियों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
    • समुद्री सीमाओं की सुरक्षा: NFP भारतीय जलक्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए श्रीलंका, मालदीव आदि जैसे निकटवर्ती राष्ट्रों के साथ सहयोगात्मक समुद्री सुरक्षा पहल को बढ़ावा देती है।
  • आर्थिक और विकासात्मक हित 
    • सुरक्षित ऊर्जा संसाधन: यह नीति हिमालयी पड़ोसियों की जलविद्युत क्षमता और ऊर्जा आयात के लिए समुद्री मार्गों की महत्त्वपूर्ण भूमिका का पता लगाती है।
    • क्षेत्रीय एकीकरण के माध्यम से उत्तर-पूर्व का विकास: इसमें चर्चा की गई है कि पड़ोसियों के साथ बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और व्यापार भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में विकास को कैसे गति प्रदान कर सकता हैं।
  • सॉफ्ट पॉवर डिप्लोमेसी
    • क्षेत्रीय प्रभाव के लिए ऐतिहासिक संबंधों का लाभ उठाना: यह नीति भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उपयोग कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने और सॉफ्ट पॉवर के माध्यम से क्षेत्रीय प्रभाव में वृद्धि के लिए करती है।
      • उदाहरण के लिए, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म की व्यापकता लोगों के बीच संबंध और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करती है।

नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी की चुनौतियाँ

  • व्यापक नीति ढाँचा
    • नीति अस्पष्टता: ऐसी धारणा है कि भारत में स्पष्ट रूप से परिभाषित नेबरहुड पॉलिसी का अभाव है, जिसके कारण पड़ोसी राष्ट्रों के साथ संबंधों को आकार देने में सक्रिय के बजाय प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण अपनाया जाता है।
    • क्षेत्रीय सहयोग बाधाएँ: क्षेत्रीय देशों के बीच तनावपूर्ण संबंध नीतियों के सामूहिक कार्यान्वयन को प्रभावित करते हैं, जो पाकिस्तान जैसे विशिष्ट राष्ट्रों की आपत्तियों के कारण सार्क शिखर सम्मेलन में समझौतों पर हस्ताक्षर करने में आंशिक सफलता से स्पष्ट होता है।
  • सुरक्षा चिंताएँ
    • सीमा पार आतंकवाद: कमज़ोर सीमाएँ और पाकिस्तान जैसे राष्ट्रों में आतंकवाद को मिलने वाला बाहरी समर्थन भारत में सुरक्षा खतरों को बढ़ावा देते हैं।
    • नशीली दवाओं की तस्करी और समुद्री डकैती: मादक पदार्थ उत्पादक क्षेत्रों से  निकटता और सोमाली तट पर समुद्री डकैती के खतरे भारत की सुरक्षा और तस्करी के मुद्दों को बढ़ा देते हैं।
    • अवैध प्रवासन: अवैध प्रवासन को लेकर भारत में घरेलू राजनीतिक बयानबाजी के कारण बांग्लादेश के साथ संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव
    • चीन का आर्थिक विस्तार: चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (OBOR) ने दक्षिण एशियाई राष्ट्रों के साथ व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे भारत के प्रभाव को चुनौती मिली है।
    • भारत के विरुद्ध चीन का उपयोग : पड़ोसी राष्ट्र कभी-कभी भारत के विरुद्ध चीन का इस्तेमाल करते हैं, जिससे द्विपक्षीय रिश्ते प्रभावित होते हैं।
  • पड़ोसियों के साथ विश्वास निर्माण 
    • अनुभूत असमानता: पड़ोसियों को कभी-कभी लगता है कि भारत उनके साथ समान व्यवहार नहीं करता है, जिससे क्षेत्रीय विश्वास प्रभावित होता है। ऐतिहासिक सैन्य भागीदारी को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और आशंकाओं को बढ़ावा मिलता है।
  • पड़ोस में आर्थिक चुनौतियाँ
    • क्षेत्रीय आर्थिक अस्थिरता: श्रीलंका जैसे राष्ट्रों में आर्थिक संकट भारत के निर्यात को प्रभावित करते हैं और व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक कमजोरियों को दर्शाते हैं।
    • LOC परियोजना में देरी: पड़ोसी राष्ट्रों के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC) परियोजनाओं को लागू करने में देरी द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति में एक बड़ी बाधा रही है और क्षेत्र में भारत के प्रभाव और विश्वास को कम करती है।
  • कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे की कमी
    • अविकसित सीमावर्ती क्षेत्र: सीमाओं पर बुनियादी ढाँचे की कमी व्यापार और निर्बाध आवागमन में बाधा उत्पन्न करती है, कई सीमावर्ती जिलों को विकास की भारी कमी देखी गई है और इनमें कनेक्टिविटी परियोजनाओं के कार्यान्वयन विलंब  है।
  • घरेलू राजनीति का विदेश नीति पर प्रभाव 
    • राजनीतिक और जातीय संवेदनशीलताएँ: घरेलू राजनीति और जातीय सरोकार कभी-कभी पड़ोसियों के प्रति भारत की विदेश नीति को निर्धारित करते हैं, जो तीस्ता जल समझौते और श्रीलंका तथा नेपाल में जातीय समूहों के साथ जुड़ाव जैसे समझौतों को प्रभावित करते हैं।
  • पर्यावरणीय चुनौतियाँ
    • जलवायु परिवर्तन और आपदाएँ: प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रति क्षेत्र की संवेदनशीलता अतिरिक्त चुनौतियाँ पैदा करती है, जिससे संभावित रूप से जलवायु प्रवासन और विकास प्रयासों में बाधा उत्पन्न होती है।

आगे की राह 

  • क्षेत्रीय मंचों का पुनरुद्धार और उनका उपयोग: निरंतर राजनयिक जुड़ाव, विवाद समाधान और क्षेत्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए सार्क, बिम्सटेक और IORA जैसे मंचो को सक्रिय रूप से शामिल करने और उनका लाभ उठाने की आवश्यकता है।
  • चीन और पाकिस्तान के साथ रणनीतिक संबंध
    • चीन के साथ वार्ता : स्पष्ट रूप से LAC को परिभाषित करने को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है, जबकि सीमा रक्षा सहयोग समझौते का पालन करते हुए किसी भी उल्लंघन का दृढ़ता से विरोध किया जा रहा है।
    • आतंकवाद-रोधी सहयोग: आतंकवाद-रोधी मंच स्थापित करने और पाकिस्तान के साथ आर्थिक संबंधों पर विचार करने के लिए क्षेत्रीय एवं वैश्विक संस्थाओं के साथ काम करने की आवश्यकता है।
  • आंतरिक सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण : आतंकवादी गतिविधियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने और पड़ोसी देशों से सक्रिय प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए भारत के आंतरिक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना आवश्यक है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ रणनीतिक गठबंधन बनाने और क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स और G20 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए भारत की विदेश नीति का पुनर्गठन।
  • अनुरूप राजनयिक प्रयास: घरेलू समन्वय के माध्यम से छोटे पड़ोसी देशों की विशिष्ट चिंताओं और आकांक्षाओं को संबोधित करने के लिए भारत की राजनयिक पहलों को बेहतर बनाने की आवश्यकता है।
  • पर्यटन में निवेश: भारत को लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने, सॉफ्ट पॉवर बढ़ाने और आर्थिक एकीकरण का समर्थन करने के लिए चिकित्सा पर्यटन सहित पर्यटन क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत है।
  • पर्यावरण सहयोग: भारत को साझा पारिस्थितिकी चुनौतियों का समाधान करते हुए, डेटा विनिमय और वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण में संयुक्त प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी गतिशील रूप से क्षेत्र के उभरते परिदृश्य को अपनाती है, जो एक समृद्ध दक्षिण एशियाई भविष्य को आकार देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करती है। यह रणनीतिक दृष्टिकोण एक स्थिर और समृद्ध पड़ोस को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण है, जो भारत के राष्ट्रीय और विदेश नीति लक्ष्यों के अनुरूप हो।

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