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भारत का परमाणु ऊर्जा समझौता

Lokesh Pal September 11, 2024 02:51 166 0

संदर्भ

हाल ही में भारत तथा संयुक्त अरब अमीरात (UAE) द्वारा असैन्य परमाणु सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

भारत-यूएई असैन्य परमाणु ऊर्जा समझौते का अवलोकन

  • मुख्य समझौता: न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) ने बराकाह परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Barakah Nuclear Power Plant) के संचालन एवं रखरखाव के लिए अमीरात परमाणु ऊर्जा कंपनी (Emirates Nuclear Energy Company- ENEC) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • UAE की परमाणु ऊर्जा नीति: यह परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निवेश का विस्तार करने की UAE की रणनीति के अनुरूप है।
  • भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा: अगस्त 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री की UAE यात्रा के दौरान, दोनों राष्ट्र परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर सहयोग करने पर सहमत हुए थे।
  • सहयोग के क्षेत्र: दोनों देशों के मध्य फोकस क्षेत्रों में परमाणु सुरक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और विज्ञान और प्रौद्योगिकी शामिल हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक (2022): वर्ष 2022 में भारत, फ्राँस और UAE के विदेश मंत्रियों ने त्रिपक्षीय सहयोग ढाँचे को एक आकार देने के लिए न्यूयॉर्क में वार्ता की थी।
    • फोकस क्षेत्र: इस पहल का उद्देश्य ऊर्जा क्षेत्र, विशेष रूप से सौर और परमाणु ऊर्जा में संयुक्त परियोजनाओं को बढ़ावा देना है।

बराकाह परमाणु ऊर्जा संयंत्र के बारे में 

  • अवस्थिति: बराकाह परमाणु ऊर्जा संयंत्र अबू धाबी अमीरात के अल धफरा (Al Dhafra) में अवस्थित है।
  • परमाणु रिएक्टर: इस संयंत्र में चार परमाणु रिएक्टर हैं। इसकी क्षमता सालाना 40 टेरावाट-घंटे (TWh) विद्युत उत्पादन की है।
  • उद्देश्य: बराकाह संयंत्र UAE के अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के प्रयासों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और यह स्वच्छ एवं कार्यक्षम ऊर्जा प्रदान करेगा।
  • महत्त्व: इससे प्रत्येक वर्ष 22 मिलियन टन का कार्बन उत्सर्जन रोका जा सकता है।

परमाणु ऊर्जा समझौतों के बारे में

  • परमाणु ऊर्जा समझौते अंतरराष्ट्रीय या द्विपक्षीय संधियाँ हैं, जो परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर आधारित हैं।
  • इन समझौतों का उद्देश्य नागरिक उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के विकास, उपयोग और विनियमन में देशों या संगठनों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाना है।
  • वे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, ईंधन आपूर्ति, सुरक्षा मानकों और अप्रसार प्रतिबद्धताओं जैसे विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं।

भारत द्वारा विभिन्न देशों के साथ किए गए परमाणु ऊर्जा समझौतों पर एक नजर

भारत ने फ्राँस, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, नामीबिया, कनाडा, अर्जेंटीना, कजाखस्तान, कोरिया गणराज्य, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और यूनाइटेड किंगडम आदि के साथ असैन्य परमाणु सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।

  • भारत-रूस परमाणु सहयोग: भारत और रूस के बीच शीतयुद्ध के समय से ही परमाणु सहयोग पर दीर्घकालिक समझौता है।
    • रूस, भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण में एक प्रमुख साझेदार रहा है, विशेष रूप से तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KNPP) में।
  • वर्ष 2008 का भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता: इसे ‘123 समझौते’ (123 Agreement) के रूप में भी जाना जाता है, यह एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद वैश्विक परमाणु ऊर्जा बाजार में भारत के प्रवेश को आसान बनाया।
    • इसने भारत को अमेरिका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) सदस्यों के साथ असैन्य परमाणु व्यापार में शामिल होने की अनुमति प्रदान की।
  • वर्ष 2008 का भारत-फ्राँस असैन्य परमाणु समझौता: इस समझौते के तहत फ्राँस द्वारा भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी एवं ईंधन की आपूर्ति सुनिश्चित करने की अनुमति मिल गई।
    • उल्लेखनीय है कि फ्राँसीसी कंपनियाँ भारत में परमाणु रिएक्टरों के निर्माण की योजनाओं में शामिल रही हैं, जैसे कि महाराष्ट्र में प्रस्तावित जैतापुर परमाणु विद्युत परियोजना।
  • वर्ष 2010 का भारत-कनाडा परमाणु सहयोग समझौता: इस समझौते ने भारत-कनाडा संबंधों में ऐतिहासिक बदलाव को चिह्नित किया, क्योंकि कनाडा ने वर्ष 1974 में भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों के बाद प्रतिबंध लगा दिए थे। यह समझौता कनाडा को भारत को उसके असैन्य परमाणु रिएक्टरों के लिए यूरेनियम की आपूर्ति करने की अनुमति देता है।
  • वर्ष 2016 का भारत-जापान परमाणु समझौता: भारत और जापान ने एक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो जापान द्वारा भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी निर्यात करने की अनुमति देता है।
    • यह भारत की परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने की स्थिति के बावजूद भारत की परमाणु अप्रसार प्रतिबद्धताओं में जापान के विश्वास को दर्शाता है।
  • भारत-कजाखस्तान परमाणु सहयोग: कजाखस्तान दुनिया के सबसे बड़े यूरेनियम उत्पादकों में से एक है और भारत ने यूरेनियम की आपूर्ति के लिए कजाखस्तान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • भारत-ऑस्ट्रेलिया असैन्य परमाणु सहयोग समझौता: यह समझौता ऑस्ट्रेलिया को भारत के असैन्य परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए यूरेनियम निर्यात करने की अनुमति प्रदान करता है।
    • भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया का समझौता महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह केवल उन्हीं देशों को यूरेनियम निर्यात करता है, जिन्होंने NPT पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • वर्ष 2015 का भारत-यूनाइटेड किंगडम परमाणु समझौता: भारत और यूके ने परमाणु प्रौद्योगिकी एवं अनुसंधान पर सहयोग करने के उद्देश्य से एक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

भारत द्वारा किए गए परमाणु ऊर्जा समझौतों का महत्त्व

ये समझौते भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के साथ-साथ उसकी वैश्विक स्थिति को भी प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • वैश्विक वैधता: परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद, प्रमुख देशों के साथ परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने की भारत की क्षमता, इसकी वैश्विक कूटनीतिक सफलता को दर्शाती है।
  • विश्वसनीय ईंधन आपूर्ति: भारत के पास घरेलू स्तर पर यूरेनियम के सीमित संसाधन हैं और कनाडा, कजाखस्तान एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ दीर्घकालिक यूरेनियम आपूर्ति समझौते करना भारत के परमाणु रिएक्टरों के निरंतर संचालन को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: ये समझौते नए परमाणु रिएक्टरों के निर्माण की सुविधा प्रदान करते हैं, जो औद्योगीकरण एवं आर्थिक विस्तार को बढ़ावा देने के लिए अधिक विद्युत उत्पादन  के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारत द्वारा फ्राँस, रूस और अमेरिका जैसे देशों के साथ किये गए समझौतों से विदेशी निवेश की राह आसान होती है, जिससे वित्तीय संसाधन एवं अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी दोनों प्राप्त होते हैं।
  • सतत् विकास: परमाणु ऊर्जा पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना देश की बढ़ती विद्युत माँग को पूरा करने के लिए स्वच्छ, विश्वसनीय एवं बड़े पैमाने पर ऊर्जा स्रोत प्रदान करके भारत के सतत् विकास लक्ष्यों का समर्थन करती है।
    • परमाणु ऊर्जा एक निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोत है और अपनी परमाणु क्षमता का विस्तार करने से भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।
  • अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: उन्नत परमाणु उद्योग वाले देशों के साथ समझौते भारत को परमाणु सुरक्षा, रिएक्टर डिजाइन, अपशिष्ट प्रबंधन एवं विकिरण सुरक्षा में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने में मदद करते हैं।
    • अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों के साथ भारत की सहभागिता तथा व्यापक सुरक्षा समझौतों (CSAs) का पालन, इसके परमाणु कार्यक्रम की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • असैन्य परमाणु कार्यक्रम को प्रभावी बनाना: वर्ष 2008 के भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के तहत भारत के असैन्य एवं सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को अलग करने से भारत को अपने असैन्य परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के विस्तार पर अधिक संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति प्राप्त हुई है।

भारत के परमाणु ऊर्जा समझौतों से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ

  • परमाणु दुर्घटनाओं की संभावना: परमाणु ऊर्जा अवसंरचना के विस्तार के साथ सबसे बड़ी चिंताओं में से एक दुर्घटनाओं का जोखिम है जैसा कि चेरनोबिल (1986) और फुकुशिमा (2011) जैसी आपदाओं में देखा गया है।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल और विनियामक चुनौतियाँ: न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) और परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (AERB) की महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं के बावजूद, विनियामक स्वतंत्रता और सुरक्षा प्रोटोकॉल की पर्याप्तता के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं।
    • तमिलनाडु में कुडनकुलम संयंत्र जैसे प्रस्तावित परमाणु स्थलों के आसपास विरोध प्रदर्शनों ने संभावित दुर्घटनाओं या विकिरण उत्सर्जन से संबंधित सार्वजनिक सुरक्षा चिंताओं को उजागर किया है।
  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट निपटान: उच्च-स्तरीय रेडियोधर्मी अपशिष्ट हजारों वर्षों तक हानिकारक बना रहता है और भारत के पास अभी तक इसके निपटान का कोई स्थायी समाधान नहीं है।
    • भारत में परमाणु अपशिष्ट के लिए भंडारण सुविधाएँ अस्थायी हैं तथा उच्च-स्तरीय रेडियोधर्मी अपशिष्ट को सुरक्षित रूप से रखने एवं निपटाने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियाँ अभी भी विकसित की जा रही हैं।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी जोखिम: परमाणु प्रौद्योगिकी एवं सामग्री जो शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हैं, उन्हें संभावित रूप से सैन्य कार्यक्रमों में बदला जा सकता है, जिससे परमाणु प्रसार जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय जाँच: हालाँकि भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, लेकिन इसके परमाणु ऊर्जा समझौतों में पारदर्शिता एवं अप्रसार मानदंडों का पालन करने की बाध्यताएँ शामिल हैं।
  • विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता: भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम रिएक्टर प्रौद्योगिकी एवं यूरेनियम आपूर्ति के लिए विदेशी हितधारकों पर अत्यधिक निर्भर है।
    • यह निर्भरता भू-राजनीतिक संवेदनशीलता में परिवर्तित हो सकती है, विशेषकर तब जब भविष्य में रूस एवं अमेरिका या भारत एवं कनाडा जैसे आपूर्तिकर्ता देशों के साथ राजनयिक संबंध खराब हो जाएँ।
  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) की सदस्यता संबंधी मुद्दे: भारत द्वारा NPT पर हस्ताक्षर न करने की स्थिति ने NSG में उसकी पूर्ण सदस्यता को अवरुद्ध कर दिया है।
    • NSG की सदस्यता हासिल करने के भारत के प्रयासों को चीन जैसे देशों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।
  • विलंबित परियोजनाएँ एवं लागत में वृद्धि: भारत की कई परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं को विलंब एवं लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए जैतापुर परमाणु विद्युत परियोजना को स्थानीय विरोध, नियामक अनुमोदन और वित्तीय चुनौतियों के कारण देरी का सामना करना पड़ा है।
  • परमाणु दायित्व संबंधी कानून: भारत का परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damage Act), 2010 किसी दुर्घटना की स्थिति में परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को मुआवजे के लिए उत्तरदायी बनाता है, जो वैश्विक परमाणु उद्योग में असामान्य है, जहाँ ऑपरेटर आमतौर पर प्राथमिक दायित्व वहन करते हैं।
    • कई विदेशी परमाणु आपूर्तिकर्ताओं, विशेषकर अमेरिका जैसे देशों ने उत्तरदायित्व कानून पर चिंताओं के कारण भारतीय बाजार में प्रवेश करने में अनिच्छा व्यक्त की है।

आगे की राह

  • परमाणु रिएक्टर निर्माण में तेजी: इन परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने से भारत को अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ाने एवं अपनी बढ़ती ऊर्जा माँग को पूरा करने में मदद मिलेगी।
    • भारत को परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण में तेजी लानी होगी, क्योंकि जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र जैसी कई नियोजित परियोजनाओं में देरी हो रही है।
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास: हालाँकि अंतरराष्ट्रीय सहयोग उन्नत प्रौद्योगिकी प्रदान करता है, भारत को स्वदेशी परमाणु रिएक्टर डिजाइन, जैसे कि दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (Pressurized Heavy Water Reactor- PHWR) और उन्नत भारी जल रिएक्टर (Advanced Heavy Water Reactor- AHWR) का विकास जारी रखना चाहिए।
    • भारत को छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (Small Modular Reactor- SMRs) के विकास की संभावनाएँ तलाशनी चाहिए, जो बड़े परमाणु रिएक्टरों की तुलना में अधिक सुरक्षित, लचीले और स्थापित करने में आसान हैं।
  • ईंधन स्रोतों में विविधता लाना: यद्यपि भारत ने यूरेनियम आपूर्ति के लिए कई देशों के साथ समझौते किए हैं, फिर भी व्यवधानों से बचने के लिए आगे विविधीकरण महत्त्वपूर्ण है।
    • नामीबिया, उज्बेकिस्तान या ब्राजील जैसे अन्य देशों के साथ सहयोग करने से दीर्घकालिक ईंधन आपूर्ति सुनिश्चित हो सकती है तथा परमाणु रिएक्टरों का स्थिर संचालन सुनिश्चित हो सकता है।
  • विकल्प के रूप में थोरियम का उपयोग: भारत के पास दुनिया के सबसे बड़े थोरियम भंडारों में से एक है। प्रस्तावित AHWR जैसे थोरियम-आधारित रिएक्टरों का विकास, परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लिए अधिक सतत् समाधान प्रदान करेगा।
  • वैश्विक परमाणु शासन में भागीदारी: भारत को वैश्विक परमाणु शासन ढाँचे को आकार देने में मदद करने के लिए अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) जैसे वैश्विक परमाणु ऊर्जा मंचों में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए।
  • व्यापक अपशिष्ट प्रबंधन समाधान विकसित करना: परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन में अनुभवी देशों (जैसे फिनलैंड या स्वीडन) के साथ साझेदारी करने से भारत को दीर्घकालिक भंडारण एवं निपटान सुविधाएँ विकसित करने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष

उन्नत अनुसंधान, थोरियम उपयोग, सार्वजनिक सहभागिता और नियामक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत आने वाले दशकों में अपने ऊर्जा, पर्यावरण और आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा की पूरी क्षमता का दोहन कर सकता है।

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