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भारत के परमाणु ऊर्जा कानून

Lokesh Pal June 07, 2025 02:39 76 0

संदर्भ

भारत में परमाणु दायित्व ढाँचे में संशोधन करने के लिए चर्चा चल रही है, ताकि निजी कंपनियों को भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन सुविधाओं के निर्माण और संचालन की अनुमति मिल सके।

परमाणु दायित्व कानून क्या है?

  • परमाणु दायित्व कानून एक कानूनी ढाँचा है, जो परमाणु दुर्घटना के मामले में जिम्मेदारियों, मुआवजा तंत्र और वित्तीय सुरक्षा आवश्यकताओं को परिभाषित करता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों को मुआवजा मिले और यह स्पष्ट करता है कि नुकसान के लिए कौन उत्तरदायी है।

भारत में वर्तमान परमाणु दायित्व ढाँचा

  • परमाणवीय नुकसान के लिए सिविल दायित्व अधिनियम ( CLNDA), 2010
    • भारत में वर्ष 2010 में परमाणु क्षति के लिए परमाणवीय नुकसान के लिए सिविल दायित्व अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damages Act- CLNDA) लागू किया गया था।
      • यह परमाणु दुर्घटनाओं के लिए दायित्व स्थापित करता है और पीड़ितों के लिए मुआवजा सुनिश्चित करता है।
    • संचालन दायित्व: CLNDA, परमाणु संयंत्रों के संचालकों को ‘कठोर और दोषरहित दायित्व’ प्रदान करता है, जिसके अंतर्गत वे किसी भी दुर्घटना या नुकसान के लिए उत्तरदायी होंगे — चाहे गलती उनकी हो या नहीं।
      • संचालक 1,500 करोड़ रुपये तक की परमाणु आपदाओं के लिए उत्तरदायी है, जिसके लिए बीमा या वित्तीय सुरक्षा की आवश्यकता होती है। 
      • यदि क्षति का दावा 1,500 करोड़ रुपये से अधिक है, तो सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ता है।
    • आपूर्तिकर्ता दायित्व: अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के विपरीत, जहाँ केवल ऑपरेटरों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है, CLNDA ने पहली बार ऑपरेटर के दायित्व के अलावा आपूर्तिकर्ता दायित्व की अवधारणा पेश की।
    • समय सीमा: CLNDA वर्ष 2010 ने मुआवजा दावा दायर करने के लिए संपत्ति की क्षति के लिए 10 वर्ष और व्यक्तिगत दुर्घटना के लिए 20 वर्ष की समय सीमा निर्धारित की।
    • इसे भोपाल गैस त्रासदी (वर्ष 1984) पर संसद में उठाई गई चिंताओं के बाद अधिनियमित किया गया था।
    • दायित्व प्रावधानों के बारे में चिंतित परमाणु आपूर्तिकर्ताओं की ओर से अधिनियम की कुछ आलोचना की गई।
    • प्रस्तावित संशोधन: आपूर्तिकर्ताओं के विरुद्ध मुआवजा दावों को अनुबंध मूल्य तक सीमित करना (असीमित दायित्व के बजाय)।
      •  विदेशी रिएक्टर विक्रेताओं को आकर्षित करने के लिए वैश्विक मानदंडों (जैसे- परमाणु क्षति के लिए पूरक मुआवजे पर कन्वेंशन) के साथ संरेखित करना।
  • परमाणु ऊर्जा अधिनियम (AEA), 1962
    • परमाणु ऊर्जा अधिनियम भारत में परमाणु ऊर्जा विकास को नियंत्रित करता है, जो सीमित निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ केवल सरकार द्वारा नियंत्रित संचालन की अनुमति देता है।
    • वर्ष 2019 में, देयता जोखिमों को शामिल करने के लिए 1,500 करोड़ रुपये का बीमा पूल स्थापित किया गया था, लेकिन यह विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में विफल रहा।
    • प्रस्तावित संशोधन
      • निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देना: निजी कंपनियाँ परमाणु रिएक्टरों का निर्माण, स्वामित्व और संचालन कर सकती हैं, परंतु वर्तमान में यह NPCIL/BHAVINI जैसी कंपनियों तक सीमित हैं।
      • स्वतंत्र नियामक: स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) से अलग परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board)।
  • राज्य का एकाधिकार: केवल सरकारी स्वामित्व वाली NPCIL (भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड) ही परमाणु संयंत्रों का संचालन कर सकती है।

परमाणु ऊर्जा कानूनों में सुधार की आवश्यकता

  • स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य: बढ़ती माँग (जैसे- एआई/डेटा सेंटर के लिए) को पूरा करने के लिए वर्ष 2047 तक परमाणु ऊर्जा को 8 गीगावाट से बढ़ाकर 100 गीगावाट करने का लक्ष्य
  • परमाणु विस्तार में धीमी प्रगति: वर्ष 2005 के भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बावजूद, भारत के परमाणु क्षेत्र ने अपेक्षित विदेशी निवेश आकर्षित नहीं किया है।
  • सख्त दायित्व कानून: आपूर्तिकर्ता दायित्व जोखिमों के कारण अंतरराष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं (वेस्टिंगहाउस, अरेवा, रोसाटॉम) को हतोत्साहित किया।
  • सरकारी एकाधिकार: निजी क्षेत्र की भागीदारी प्रतिबंधित, परमाणु ऊर्जा क्षमता में वृद्धि को सीमित करना।

भारत के परमाणु दायित्व कानून में प्रस्तावित संशोधनों के विरुद्ध तर्क

  • आत्मनिर्भरता को कमजोर करना: विदेशी निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम (AEA) और CLNDA को कमजोर करना परमाणु प्रौद्योगिकी में भारत की दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता को कमजोर करता है।
    • स्वदेशी विकास (जैसे- PHWRs, थोरियम अनुसंधान) से आयातित रिएक्टरों (यू.एस., फ्राँस) की ओर बदलाव भारत को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर बनाता है।
  • आपूर्तिकर्ता दायित्व का क्षरण: वर्तमान कानून आपूर्तिकर्ताओं को दोष, घटिया सामग्री या लापरवाही के लिए उत्तरदायी ठहराता है, जो सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रस्तावित परिवर्तन अनुबंध मूल्य पर देयता को सीमित करते हैं, जिससे विदेशी फर्म दुर्घटनाओं के लिए पूरी जिम्मेदारी से बच जाती हैं।
  • परमाणु सुरक्षा और विनियमन में समझौता: परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board- AERB) में स्वतंत्रता का अभाव है, यह DAE के अधीन कार्य करता है, जिससे हितों का टकराव होता है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की कोई गारंटी नहीं: निजी फर्म (जैसे- वेस्टिंगहाउस, अरेवा) रिएक्टर बेचती हैं, लेकिन मुख्य तकनीक को बनाए रखती हैं, भारत को स्वदेशी क्षमता में बहुत कम लाभ होता है।
  • नैतिक और कानूनी चिंताएँ: कमजोर देयता कानून का तात्पर्य है परमाणु दुर्घटना पीड़ितों के लिए कम भुगतान।

परमाणु दायित्व पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व पर वियना कन्वेंशन (1963)

  • अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ढाँचे के तहत वर्ष 1963 में अधिनियमित।
  • परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व स्थापित करता है तथा परमाणु दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिए मुआवजा सुनिश्चित करता है।
  • परमाणु ऑपरेटरों पर विशेष दायित्व डालता है, जिससे त्वरित मुआवजा सुनिश्चित होता है।
  • परमाणु ऑपरेटरों के लिए अनिवार्य वित्तीय सुरक्षा (जैसे, बीमा) की आवश्यकता होती है।
  • भारत इस पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।

परमाणु क्षति के लिए पूरक मुआवजे पर कन्वेंशन (CSC) (1997)

  • वैश्विक परमाणु दायित्व को बढ़ाने के लिए वर्ष 1997 में अपनाया गया, जो वर्ष 2015 से प्रभावी है।
  • राष्ट्रीय सीमाओं से परे अतिरिक्त मुआवजा निधि की स्थापना करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समान दायित्व नियमों को मजबूत करता है।
  • भारत ने वर्ष 2016 में CSC की पुष्टि की, परमाणु क्षति अधिनियम, 2010 के लिए अपने नागरिक दायित्व को वैश्विक मानदंडों के साथ संरेखित किया।

परमाणु ऊर्जा क्षेत्र पर संशोधन का प्रभाव

  • विदेशी निवेश को बढ़ावा: CLNDA को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने से अमेरिकी और फ्राँसीसी कंपनियों को भारत की परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
  • लंबे समय से लंबित सौदों में सफलता: एक दशक से अधिक समय पहले हस्ताक्षरित रुके हुए अनुबंधों को पुनर्जीवित किया जाएगा, जिससे परमाणु ऊर्जा विस्तार में तेजी आएगी।
  • परमाणु क्षमता का विस्तार: भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को मजबूत करने से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि: परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निजी अभिकर्ताओं की अधिक भागीदारी हो सकती है।

परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board- AERB)

  • परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (AERB) का गठन वर्ष 1983 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के तहत किया गया था।
  • इसकी स्थापना परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विनियामक और सुरक्षा कार्यों को पूरा करने के लिए की गई थी।
  • AERB का प्राथमिक मिशन यह सुनिश्चित करना है कि भारत में आयनकारी विकिरण और परमाणु ऊर्जा का उपयोग मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए अनुचित जोखिम पैदा किए बिना किया जाए।
  • यह परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के तहत परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy- DAE) इकाइयों में औद्योगिक सुरक्षा को नियंत्रित करता है।
  • यह परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठानों के लिए कारखाना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों को भी प्रशासित करता है।

निष्कर्ष

भारत के परमाणु कानूनों में संशोधन से निजी और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन उत्तरदायित्व संरचनाओं, तकनीक हस्तांतरण और आर्थिक व्यवहार्यता में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इस बदलाव के लिए ऊर्जा लक्ष्यों, सुरक्षा और रणनीतिक नियंत्रण में संतुलन की आवश्यकता है।

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