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भारत में लगातार बढ़ता स्टंटिंग का संकट

Lokesh Pal August 21, 2025 04:28 5 0

संदर्भ

पोषण (POSHAN) अभियान के सात वर्ष पूर्ण होने के बावजूद, भारत ने स्टंटिंग को कम करने में अल्प सुधार ही दिखाया है और बच्चों में स्टंटिंग को कम करने के अपने लक्ष्य से पीछे रह गया है।

स्टंटिंग क्या है?

  • परिभाषा: एक अविकसित बालक में दीर्घकालिक या आवर्ती कुपोषण के कारण अपनी आयु के अनुसार से लंबाई बहुत कम होती है।
    • यह बाल स्वास्थ्य और पोषण परिणामों का एक प्रमुख संकेतक है।

पोषण ट्रैकर (POSHAN Tracker)

  • पोषण ट्रैकर एक मोबाइल-आधारित एप्लिकेशन है, जिसे पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन) के तहत 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में सुधार के लिए विकसित किया गया है।
  • यह आंगनवाड़ी केंद्रों (AWC), आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (AWW) और लाभार्थियों की रियल टाइम निगरानी और ट्रैकिंग के लिए एक महत्त्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है, जिससे कुशल सेवा वितरण और पोषण सहायता की अंतिम-स्तरीय ट्रैकिंग सुनिश्चित होती है।

स्टंटिंग का प्रभाव

  • प्रारंभिक जीवन में स्टंटिंग से बच्चे पर प्रतिकूल कार्यात्मक परिणाम प्रदर्शित होते हैं।
  • इन परिणामों में संज्ञानात्मक और शैक्षिक का खराब प्रदर्शन, उत्पादकता में कमी आदि शामिल हैं।
  • जब बचपन में अत्यधिक वजन बढ़ जाता है, तो इससे वयस्क जीवन में पोषण संबंधी दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
  • भारत की स्थिति
    • वर्ष 2016 में, पाँच वर्ष से कम आयु के 38.4% बच्चे स्टंटिंग के शिकार थे।
    • हालाँकि, पोषण ट्रैकर डेटा (जून 2025) के अनुसार, 37% बच्चे स्टंटिंग से ग्रसित हैं, जो न्यूनतम प्रगति दर्शाता है।

पोषण (POSHAN) अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन)

  • पोषण (POSHAN) अभियान बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण संबंधी परिणामों में सुधार लाने के लिए भारत का प्रमुख कार्यक्रम है।
  • इसे अभिसरण और प्रौद्योगिकी-संचालित निगरानी के माध्यम से कुपोषण, बौनेपन, रक्ताल्पता और कम जन्म-वजन की समस्या से निपटने के लिए शुरू किया गया था।
  • शुभारंभ: मार्च 2018
  • पोषण (POSHAN) अभियान के अंतर्गत लक्ष्य
    • प्रति वर्ष न्यूनतम 2% तक स्टंटिंग में कमी।
    • प्रति वर्ष 2% तक कुपोषण में कमी।
    • प्रति वर्ष 3% तक एनीमिया में कमी।
    • प्रति वर्ष कम वजन वाले बच्चों में 2% की कमी।
  • ‘मिशन 25 बाय 2022’ के तहत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य वर्ष 2022 तक स्टंटिंग को 38.4% (NFHS-4) से घटाकर 25% करना था।

कार्यान्वयन के चरण

  • इस मिशन को वर्ष 2017-18 से वर्ष 2019-20 तक तीन चरणों में क्रियान्वित करने के लिए डिजाइन किया गया था।
  • इसमें वर्ष 2022 तक विश्व बैंक द्वारा सहायता प्राप्त ICDS प्रणाली सुदृढ़ीकरण एवं पोषण सुधार परियोजना (ICDS Systems Strengthening and Nutrition Improvement Project- ISSNIP) द्वारा समर्थित हस्तक्षेपों को सभी जिलों में धीरे-धीरे बढ़ाना शामिल था।

मिशन पोषण (POSHAN) 2.0

  • वर्ष 2021 में, सरकार ने पोषण अभियान, आंगनवाड़ी सेवाओं और किशोरियों के लिए योजना को मिशन सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 (मिशन पोषण 2.0) में मिला दिया।

पोषण (POSHAN) 2.0 के उद्देश्य

  • बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण की समस्या का समाधान करना।
  • मातृ पोषण, शिशु एवं छोटे बच्चों के आहार संबंधी प्रथाओं में सुधार लाना, तथा मध्यम एवं गंभीर तीव्र कुपोषण (MAM/SAM) के उपचार में सुधार लाना।
  • आयुष, आहार विविधता, खाद्य सुदृढ़ीकरण और मोटे अनाजों के उपयोग के माध्यम से स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
  • सामुदायिक जागरूकता और स्थानीय खाद्य-आधारित प्रथाओं के माध्यम से स्वास्थ्य एवं पोषण की एक स्थायी प्रणाली का निर्माण करना।

मुख्य भाग

  • पोषण संबंधी हस्तक्षेप: फोर्टिफाइड चावल के माध्यम से पूरक पोषण (वित्त वर्ष 2021-22 से सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू)।
    • आंगनवाड़ी भोजन में सप्ताह में न्यूनतम एक बार बाजरा शामिल करना अनिवार्य।
    • हरे पत्तेदार सब्जियों, दालों और विटामिन-C से भरपूर फलों के साथ आहार विविधीकरण को बढ़ावा देना।
  • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी एवं शासन: पोषण सेवा वितरण की वास्तविक समय निगरानी के लिए पोषण ट्रैकर (1 मार्च 2021) की शुरुआत।
    • लाभार्थी प्रतिक्रिया के लिए शिकायत निवारण प्रकोष्ठ और राष्ट्रीय पोषण हेल्पलाइन।
    • 90% से अधिक पंजीकृत लाभार्थियों का आधार सत्यापन।
  • सामुदायिक आउटरीच: बड़े पैमाने पर सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (SBCC) अभियान।
    • सामुदायिक संवेदीकरण के लिए राष्ट्रीय पोषण माह (सितंबर) और पोषण पखवाड़ा (मार्च) का आयोजन।

उपलब्धियाँ

  • यह मिशन 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और 730 जिलों में लागू किया गया, जिनमें 112 आकांक्षी जिले शामिल हैं।
  • पूरे भारत में 4 लाख से अधिक पोषण वाटिकाओं (पोषण उद्यानों) की स्थापना।
  • बेहतर समन्वय के लिए प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (Reproductive and Child Health- RCH) पोर्टल के साथ पोषण ट्रैकर का एकीकरण।
  • मिशन संपूर्ण पोषण (तेलंगाना), मेरा बच्चा अभियान (मध्य प्रदेश) और प्रोजेक्ट संपूर्ण (असम) जैसी सर्वोत्तम प्रथाओं को मान्यता।

पोषण संकेतकों में प्रगति (NFHS-5, 2019-21)

  • स्टंटिंग 38.4% (NFHS-4) से घटकर 35.5% (NFHS-5) हो गई है।
  • दुबलापन 21% से घटकर 19.3% हो गया है।
  • कम वजन की व्यापकता 35.7% से घटकर 32.1% हो गई।

लगातार स्टंटिंग की समस्या के कारण

  • मातृ स्वास्थ्य और किशोर गर्भावस्था: लगभग आधे अविकसित बच्चे जन्म के समय वजन के मानक को पूरा नहीं कर पाते हैं, जो मातृ स्वास्थ्य से सीधा संबंध दर्शाता है।
    • वर्ष 2019-21 तक, 15-19 वर्ष की आयु की 7% महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया था।
    • किशोर माताओं को अक्सर उचित मात्रा में पोषण न मिलने और शिशुओं की देखभाल करने की अपर्याप्त क्षमता का सामना करना पड़ता है।
  • शिक्षा का अंतर: आँकड़े दर्शाते हैं कि जिन माताओं ने स्कूली शिक्षा नहीं ली, उनके 46% बच्चे अविकसित थे, जबकि 12+ वर्ष की स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली माताओं में यह संख्या 26% थी।
    • शिक्षित माताओं के स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचने, समय से पूर्व गर्भधारण में देरी और बेहतर पोषण सुनिश्चित करने की संभावना अधिक होती है।
  • सिजेरियन डिलीवरी में वृद्धि और स्तनपान में कमी: C-सेक्शन डिलीवरी वर्ष 2005-06 में 9% से बढ़कर वर्ष 2021 में 22% हो गई।
    • सर्जिकल डिलीवरी से तत्काल स्तनपान बाधित होता है और शिशुओं को कोलोस्ट्रम से वंचित किया जाता है।
    • छह महीने से कम आयु के केवल 64% शिशुओं को ही विशेष रूप से स्तनपान कराया जाता है, जिसमें कामकाजी वर्ग और वेतनभोगी महिलाओं के बीच तीव्र अंतर है।
  • आहार की खराब विविधता: भारतीय आहार, विशेष रूप से गरीब परिवारों में, कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है और प्रोटीन या सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा सीमित होती है। 
    • उदाहरण के लिए, आदिवासी समुदायों में, आहार में चावल का प्रभुत्व होता है जबकि दाल की आवृत्ति सीमित होती है।
    • दो वर्ष से कम आयु के केवल 11% बच्चे ही न्यूनतम स्वीकार्य आहार (वर्ष 2019-21) के मानक को पूरा करते हैं।
  • मातृ एवं शिशु रक्ताल्पता: वर्ष 2019-21 में, 15-49 वर्ष की आयु की 57% महिलाएँ और पाँच वर्ष से कम आयु के 67% बच्चे रक्ताल्पता से ग्रस्त थे।
    • माताओं में रक्ताल्पता बच्चों के जन्म के समय कम वजन और अल्प विकास का कारण बनती है।
  • खराब स्वच्छता और असुरक्षित जल: वर्ष 2019-21 में 19% भारतीय परिवार अभी भी खुले में शौच करते हैं।
    • असुरक्षित जल और अस्वच्छता के संपर्क में आने से बार-बार संक्रमण होता है, जिससे कुपोषण की स्थिति और अधिक बिगडती है।
    • कुपोषित बच्चे अधिक बार बीमार पड़ते हैं, जिससे पोषक तत्त्वों का अवशोषण और कम हो जाता है, जिससे संक्रमण और कुपोषण का एक दुष्चक्र बन जाता है।

आगे की राह

  • मातृ स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाना: किशोरावस्था में गर्भधारण में विलंब और मातृ एनीमिया की समस्या का समाधान करने पर ध्यान केंद्रित करना। प्रसवपूर्व देखभाल और पोषण पूरकता का दायरा बढ़ाना।
  • बालिकाओं के लिए शिक्षा को बढ़ावा देना: अभाव के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए महिलाओं में उच्च शिक्षा सुनिश्चित करना।
  • पोषण विविधता और पहुँच: सार्वजनिक पोषण योजनाओं में प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों तक पहुँच बढ़ाना।
    • दो वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए न्यूनतम स्वीकार्य आहार कवरेज में सुधार करना।
  • स्तनपान कराने वाली माताओं का समर्थन: मातृत्व अवकाश और कार्यस्थल पर स्तनपान सहायता का विस्तार करना, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों के लिए।
    • केवल स्तनपान के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • स्वच्छता और जल उपलब्धता: खुले में शौच को समाप्त करने और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के प्रयासों में तेजी लाना। आँत के स्वास्थ्य और संक्रमण की रोकथाम पर केंद्रित हस्तक्षेपों में सुधार करना।
  • बहु-क्षेत्रीय रणनीति: स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और पोषण से जुड़ी बहुआयामी समस्या के रूप में स्टंटिंग का समाधान करना।
  • बेहतर कार्यान्वयन: जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पोषण अभियान और पोषण ट्रैकर के अंतर्गत निगरानी को मजबूत करना।

निष्कर्ष

भारत में स्टंटिंग मातृ स्वास्थ्य और शिक्षा के अंतराल से लेकर खराब स्वच्छता और पोषण तक, गहरी जड़ें जमाए हुए प्रणालीगत अभावों को दर्शाता है। इन बहु-क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटे बिना, भारत कुपोषण, गरीबी और सीमित मानव पूँजी विकास के एक पीढ़ी-दर-पीढ़ी चक्र को जारी रखने का जोखिम उठाता है।

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