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भारत की जनसंख्या अनुमानित 1.4 बिलियन: UNFPA

Lokesh Pal April 20, 2024 05:52 500 0

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आबादी 1.44 अरब तक पहुँचने का अनुमान है, जिसमें 24 प्रतिशत आबादी 0-14 आयु वर्ग की होगी।

संबंधित तथ्य

  • UNFPA की विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2024 ‘इंटरवॉवन लाइव्स, थ्रेड्स ऑफ होप: यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा अधिकारों में असमानताओं को समाप्त करना’ (Interwoven Lives, Threads of Hope: Ending Inequalities in Sexual and Reproductive Health and Rights) से पता चला कि भारत की जनसंख्या 77 वर्षों में दोगुनी होने का अनुमान है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • जनसंख्या: रिपोर्ट के अनुसार, भारत 1.44 अरब की अनुमानित आबादी के साथ विश्व स्तर पर सबसे आगे है, इसके बाद चीन 1.425 अरब के साथ दूसरे स्थान पर है।
    • वर्ष 2011 में हुई पिछली जनगणना के दौरान भारत की जनसंख्या 1.21 अरब दर्ज की गई थी।
  • जनसांख्यिकी प्रोफाइल: रिपोर्ट में एक जनसांख्यिकीय विवरण दिया गया है, जो दर्शाता है कि लगभग 24% आबादी 0-14 आयु वर्ग की है, 17% जनसंख्या 10-19 आयु वर्ग की है और 26% जनसंख्या 10-24 आयु सीमा वर्ग में आती है।
    • सबसे बड़े जनसांख्यिकीय के रूप में भारतीय आबादी का 68%, 15-64 का कामकाजी आयु समूह है, जबकि 65 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के वरिष्ठजनों की जनसंख्या का 7% हैं।
    • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा पुरुषों के लिए 71 वर्ष एवं महिलाओं के लिए 74 वर्ष है।
  • सामाजिक मुद्दे: वर्ष 2006-2023 के बीच 23% विवाहों में कम उम्र के व्यक्तियों के साथ बाल विवाह का प्रचलन उच्च बना हुआ है।
  • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: रिपोर्ट विशेष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर प्रकाश डालती है।  
    • मातृ स्वास्थ्य: मातृ मृत्यु दर में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है, लेकिन अभी भी विभिन्न क्षेत्रों में भारी असमानताएँ मौजूद हैं।
      • रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के 640 जिलों में से लगभग एक-तिहाई ने मातृ मृत्यु अनुपात को प्रति 1,00,000 जीवित शिशु जन्मों पर 70 से कम करने का सतत् विकास लक्ष्य हासिल कर लिया है, हालाँकि 114 जिलों में अभी भी अनुपात 210 या उससे अधिक है।
      • प्रति 1,00,000 शिशु जन्मों पर 1,671 का उच्चतम MMR अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले में देखा जाता है, जो एक ग्रामीण क्षेत्र है, जहाँ देशज लोगों का अनुपात अधिक है।
    • स्वास्थ्य देखभाल पहुँच: विकलांग महिलाओं, प्रवासियों एवं शरणार्थियों, जातीय अल्पसंख्यकों, LGBTQIA+ तथा दलितों जैसी निचली जातियों सहित हाशिए पर रहने वाले समूहों की अक्सर आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच होती है।
      • उदाहरण के लिए, लगभग आधी दलित महिलाओं को प्रसवपूर्व देखभाल नहीं मिलती है।
  • सामाजिक आर्थिक चुनौतियाँ
    • लिंग आधारित हिंसा: दिव्यांग महिलाओं के साथ लिंग आधारित हिंसा की अधिक संभावना होती है, जो दिव्यांग महिलाओं की तुलना में 10 गुना तक अधिक होती है।
      • इसके अलावा, जाति आधारित भेदभाव से हिंसा बढ़ गई है। दलित महिलाओं में लिंग आधारित हिंसा की उच्च दर को उत्पीड़न एवं नियंत्रण का साधन माना जाता है।
  • आर्थिक निर्भरता: आर्थिक बाधाएँ कई महिलाओं को गरीबी के चक्र में धकेल देती हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी परिणाम खराब हो जाते हैं एवं अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल पर निर्भरता बनी रहती है।
  • बढ़ी हुई असुरक्षा: जलवायु परिवर्तन, मानवीय संकट, वार्डों एवं बड़े पैमाने पर प्रवासन से महिलाओं की असुरक्षा और भी बढ़ गई है, जिसका महिलाओं पर असंगत प्रभाव पड़ता है।
  • कानूनी और सामाजिक सुरक्षा: रिपोर्ट कार्यस्थलों एवं शैक्षणिक संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव से निपटने के लिए कानूनी सुरक्षा की सिफारिश करती है, ऐसी नीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है, जो विशेष रूप से संवेदनशील महिलाओं को प्रणालीगत अन्याय से बचाती हैं।
  • वैश्विक स्वास्थ्य रुझान: विश्व स्तर पर, महिलाओं के लिए प्रमुख स्वास्थ्य उपायों पर प्रगति धीमी हो रही है या पूरी तरह से रुकी हुई है, अभी भी प्रसव संबंधी कारणों से प्रतिदिन 800 महिलाओं की मृत्यु हो रही है एवं कई महिलाओं को अपने यौन तथा प्रजनन संबंधी निर्णयों पर स्वायत्तता का अभाव है।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि डेटा वाले 40 प्रतिशत देशों में महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता कम हो रही है।
  • भारत में असमान स्वास्थ्य लाभ: भारत ने स्वास्थ्य देखभाल की पहुँच एवं गुणवत्ता में प्रगति की है। हालाँकि इन लाभों पर धनी महिलाओं तथा जातीय समूहों से संबंधित लोगों ने कब्जा कर लिया है, जिनके पास पहले से ही स्वास्थ्य देखभाल तक बेहतर पहुँच थी।

निष्कर्ष

भारत ने महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक एवं स्वास्थ्य स्थिति में सुधार के मामले में काफी प्रगति की है, हालाँकि भारतीय समाज तथा स्वास्थ्य प्रणालियों में असमानताएँ अभी भी मौजूद हैं। मुख्यधारा में पिछड़ गए सबसे संवेदनशील वर्गों की पहुँच, सामर्थ्य एवं समावेशन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

UNFPA के बारे में

  • यह संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक सहायक अंग है एवं यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1967 में एक ट्रस्ट फंड के रूप में की गई थी एवं वर्ष 1969 में इसका संचालन शुरू हुआ।
  • वर्ष 1987 में, इसे आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष का नाम दिया गया था लेकिन जनसंख्या गतिविधियों के लिए संयुक्त राष्ट्र कोष के मूल संक्षिप्त नाम, UNFPA को बरकरार रखा गया था।
  • उद्देश्य: UNFPA स्वास्थ्य (SDG3), शिक्षा (SDG4) एवं लैंगिक समानता (SDG5) पर सतत् विकास लक्ष्यों से निपटने के लिए सीधे कार्य करता है।
  • फंडिंग: UNFPA पूरी तरह से सरकारों, अंतरसरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र एवं फाउंडेशनों तथा व्यक्तियों के स्वैच्छिक योगदान से समर्थित है, न कि संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट द्वारा।

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