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दक्षिण-पूर्व एशिया निगरानी नेटवर्क के लिए भारत का प्रस्ताव

Lokesh Pal March 17, 2025 01:20 13 0

संदर्भ

भारत ने स्वास्थ्य आपातकालीन प्रतिक्रिया को मजबूत करने के लिए ट्रांसबाउंड्री सहयोगी निगरानी के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया नेटवर्क के निर्माण का प्रस्ताव रखा।

‘दक्षिण-पूर्व एशिया निगरानी नेटवर्क’ के प्रस्ताव के बारे में

  • यह प्रस्ताव WHO दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (SEARO) द्वारा आयोजित बहु-स्रोत सहयोगी निगरानी पर क्षेत्रीय बैठक में प्रस्तुत किया गया था।
  • लक्ष्य: बहु-स्रोत निगरानी को बढ़ाना तथा 11 SEARO सदस्य देशों के बीच सीमा-पार सहयोग को सुविधाजनक बनाना।
  • उद्देश्य
    • क्षेत्र में रियल टाइम स्वास्थ्य डेटा साझाकरण एवं बहु-क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना।
    • रोग का पता लगाना, निगरानी करना एवं महामारी तथा महामारियों के प्रति प्रतिक्रिया को बढ़ाना।
    • जटिल स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने को बढ़ावा देना।
  • कार्यान्वयन ढाँचा
    • चरण-दर-चरण दृष्टिकोण प्रदान करने वाले मल्टीसोर्स सहयोगी निगरानी के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य निर्णय लेने पर WHO के क्षेत्रीय मैनुअल का उपयोग करना।
      • इंडोनेशिया एवं नेपाल जैसे देशों ने पहले ही कार्यान्वयन प्रारंभ कर दिया है।
    • स्वास्थ्य सुरक्षा में सुधार के लिए प्रयोगशाला प्रणालियों एवं क्रॉस-सेक्टरल भागीदारी को मजबूत करना।
  • मुख्य फोकस क्षेत्र
    • महामारी की तैयारी: संक्रामक रोगों एवं उभरते स्वास्थ्य खतरों के प्रति प्रतिक्रियाओं में सुधार करना।
    • जूनोटिक एवं खाद्य जनित रोग: मानव-पशु-पारिस्थितिकी तंत्र इंटरफेस पर खतरों को संबोधित करना।
    • जलवायु-संचालित स्वास्थ्य आपात स्थिति: जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वेक्टर जनित एवं जल जनित बीमारियों से निपटना।
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR): दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से निपटने के लिए क्षेत्रीय प्रयासों को बढ़ाना।

क्षेत्र में WHO की चुनौतियाँ

  • डेटा साझाकरण एवं समन्वय के मुद्दे: विभिन्न क्षेत्रों में एकीकृत निगरानी प्रणाली की अनुपस्थिति एवं हितधारकों के बीच विखंडित डेटा स्वामित्व समय पर स्वास्थ्य डेटा साझाकरण तथा प्रतिक्रिया में बाधा डालते हैं।
  • अपर्याप्त प्रयोगशाला अवसंरचना: कई देशों को कमजोर नैदानिक एवं जीनोमिक निगरानी क्षमताओं के साथ-साथ स्थायी प्रयोगशाला प्रणालियों में सीमित निवेश के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • सीमा पार स्वास्थ्य खतरे: अंतरराष्ट्रीय  स्वास्थ्य विनियम (IHR) (2005) को लागू करने में अंतराल के कारण सीमा पार रोगों के लिए प्रभावी वैश्विक रिपोर्टिंग एवं समन्वित प्रतिक्रियाएँ मुश्किल बनी हुई हैं।
  • जलवायु एवं पर्यावरणीय कारक: जलवायु परिवर्तन वेक्टर-जनित एवं जलजनित रोगों में वृद्धि को बढ़ावा दे रहा है, जो अपशिष्ट जल निगरानी तथा प्रारंभिक प्रकोप का पता लगाने की आवश्यकता को उजागर करता है।

दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय (SEARO) के बारे में

  • SEARO विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के छह क्षेत्रीय कार्यालयों में से एक है, जो दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए उत्तरदायी है।
  • स्थापना: SEARO की स्थापना वर्ष 1948 में WHO के वैश्विक ढाँचे के हिस्से के रूप में सदस्य देशों को क्षेत्र-विशिष्ट स्वास्थ्य नीतियाँ, तकनीकी सहायता एवं क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करने के लिए की गई थी।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली, भारत में स्थित है।
  • सदस्य: SEARO में 11 सदस्य देश शामिल हैं:- बांग्लादेश, भूटान, उत्तर कोरिया, भारत, इंडोनेशिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड एवं तिमोर-लेस्ते।
    • ये देश स्वास्थ्य पहल, नीति-निर्माण एवं आपातकालीन प्रतिक्रिया पर सहयोग करते हैं।
  • उद्देश्य
    • SEARO का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना, रोग निगरानी को बढ़ाना, संचारी एवं गैर-संचारी रोगों से निपटना तथा सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करना है।
    • यह मातृ एवं बाल स्वास्थ्य में सुधार, टीकाकरण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने तथा उभरते स्वास्थ्य खतरों से निपटने पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
  • पहल: प्रमुख SEARO पहलों में विस्तारित टीकाकरण कार्यक्रम (Expanded Programme on Immunization), खसरा एवं रूबेला का उन्मूलन, रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी, ​​बहु-स्रोत सहयोगी निगरानी तथा महामारी एवं जलवायु संबंधी स्वास्थ्य जोखिमों से निपटने के लिए आपातकालीन तैयारी कार्यक्रम शामिल हैं।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना: एकीकृत स्वास्थ्य डेटा-साझाकरण तंत्र की स्थापना एवं SEARO देशों के बीच बहु-क्षेत्रीय भागीदारी को बढ़ावा देने से समन्वित रोग निगरानी तथा प्रतिक्रिया में वृद्धि होगी।
  • प्रयोगशाला एवं निगरानी प्रणालियों में निवेश: नैदानिक एवं जीनोमिक निगरानी बुनियादी ढाँचे के लिए बढ़ी हुई धनराशि, साथ ही उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, महामारी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • नीतिगत एवं शासन सुधार: राष्ट्रीय कार्य योजनाएँ विकसित करना एवं अंतरराष्ट्रीय  स्वास्थ्य विनियम (IHR) (2005) का पालन सुनिश्चित करना स्वास्थ्य खतरों के प्रबंधन में वैश्विक समन्वय को मजबूत करेगा।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य में नवाचार को अपनाना: AI-संचालित विश्लेषण का लाभ उठाना एवं अपशिष्ट जल तथा जीनोमिक निगरानी का विस्तार करना, रोग का शीघ्र पता लगाने एवं प्रकोप की प्रतिक्रिया में सुधार करेगा।

WHO एवं SEARO ने क्षेत्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ावा देने, समय पर स्वास्थ्य प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में बहु-स्रोत सहयोगी निगरानी को मजबूत करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है।

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