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भारत का क्विक काॅमर्स मार्केट

Lokesh Pal July 12, 2025 02:30 52 0

संदर्भ 

केयरएज एडवाइजरी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का क्यू-कॉमर्स क्षेत्र तेजी से विस्तार कर रहा है, इसके सकल व्यापारिक मूल्य (GMV) के वित्त वर्ष 2025 में 64,000 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2028 तक लगभग 2 ट्रिलियन रुपये होने की उम्मीद है।

  • सकल व्यापारिक मूल्य (GMV) किसी ग्राहक-से-ग्राहक या ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक निश्चित अवधि में बेचे गए माल का कुल मूल्य है।
  • चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) किसी विशिष्ट अवधि में किसी निवेश की वार्षिक वृद्धि को दर्शाती है।

संबंधित तथ्य

  • क्विक काॅमर्स मार्केट, जो वर्तमान में भारत के विशाल किराना क्षेत्र का सिर्फ 1% है, ने वित्त वर्ष 2022 और वित्त वर्ष 2025 के बीच 142% CAGR दर्ज किया, जो उपभोक्ता अपेक्षाओं में बदलाव, हाइपरलोकल डिलीवरी मॉडल और डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विस्तार से प्रेरित है।

क्यू-कॉमर्स क्या है?

  • क्विक कॉमर्स, या क्यू-कॉमर्स, ई-कॉमर्स की एक उपश्रेणी है, जो उच्च-माँग वाली वस्तुओं, जैसे किराना, दवाइयाँ और दैनिक आवश्यक वस्तुओं को ऑर्डर करने के 10 से 30 मिनट के भीतर पहुँचा देती है।
  • इसे ‘ऑन-डिमांड डिलीवरी’ भी कहा जाता है।
  • उदाहरण: ब्लिंकिट, जेप्टो, स्विगी इंस्टामार्ट, डंजो डेली, बिगबास्केट नाउ आदि।

क्विक कॉमर्स

ई-कॉमर्स

  • स्थानीय डार्क स्टोर्स के माध्यम से 10 से 30 मिनट में डिलीवरी सुनिश्चित की जाती है। हालाँकि कीमतें अब ई-कॉमर्स के बराबर हैं।
  • मूल रूप से किराने के सामान पर केंद्रित, अब इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, खिलौने और परिधान भी शामिल हैं।
  • शहरी उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रिय है।
  • केंद्रीकृत गोदामों के माध्यम से एक ही दिन से लेकर 2-3 दिनों में डिलीवरी सुनिश्चित की जाती है।
  • ऐतिहासिक रूप से सस्ता; अब क्विक कॉमर्स मूल्य निर्धारण के अनुरूप होने का दबाव बना रहता है।
  • शुरुआत से ही सभी श्रेणियों में व्यापक चयन प्रदान करता है।
  • मूल्य-सचेत मानसिकता के साथ व्यापक ग्राहक आधार की सेवा करता है।

यह कैसे कार्य करता है?

  • डार्क स्टोर्स और पूर्ति: तीव्र डिस्पैच के लिए उच्च-माँग वाले क्षेत्रों में रणनीतिक रूप से स्थित स्थानीय गोदामों (डार्क स्टोर्स) के माध्यम से संचालित होता है।
    • माँग का पूर्वानुमान लगाने, इन्वेंट्री प्रबंधित करने और सुझावों को वैययक्तिकृत करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करता है।
  • तत्काल डिलीवरी: ऑर्डर निकटता-आधारित एल्गोरिदम का उपयोग करके रूट किए जाते हैं, जिससे डिलीवरी पर्सन के सघन नेटवर्क के माध्यम से डिलीवरी संभव हो पाती है।
  • 24/7 उपलब्धता: पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं के विपरीत, क्यू-कॉमर्स प्लेटफॉर्म चौबीसों घंटे कार्य करते हैं, और सामान्य घंटों के बाद भी जरूरी ऑर्डर पूरे करते हैं।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

क्यू-कॉमर्स की वृद्धि के प्रमुख चालक

  • डिजिटल अवसंरचना: भारत में वर्ष 2025 के आरंभ में 806 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता (वर्ष दर वर्ष 6.5% की वृद्धि) थे, जिसमें 1.12 बिलियन मोबाइल कनेक्शन और ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्यापक रूप से स्मार्टफोन का उपयोग शामिल है।

निजी अंतिम उपभोग व्यय (Private final consumption expenditure- PFCE) को निवासी परिवारों एवं परिवारों की सेवा करने वाली गैर-लाभकारी संस्थाओं (NPISH) द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं के अंतिम उपभोग पर किए गए व्यय के रूप में परिभाषित किया जाता है, चाहे वह आर्थिक क्षेत्र के भीतर या बाहर किया गया हो।

  • उपभोक्ता खर्च में वृद्धि: वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2025 तक, प्रति व्यक्ति निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) 9.68% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा, जो उच्च प्रयोज्य आय और विकसित होते क्रय व्यवहार को दर्शाता है।
  • शहरी और क्षेत्रीय पहुँच: महानगरों से परे भी माँग बढ़ रही है, और टियर II और III शहर प्रमुख बाजारों के रूप में उभर रहे हैं।
  • परिचालन आधार: डार्क स्टोर्स (छोटे डिलीवरी हब) की संख्या 70.7% बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 1,800 से वित्त वर्ष 2025 में 3,072 हो गई। ये स्टोर तीव्र डिलीवरी का समर्थन करते हैं, प्रति स्टोर औसत राजस्व में 25% की वृद्धि हुई है, जो मजबूत अपनाने का संकेत है।
  • ई-कॉमर्स गति: भारत का समग्र ई-कॉमर्स बाजार वर्ष 2024 में वार्षिक आधार पर 23.8% बढ़ा और वर्ष 2030 तक 21.5% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) बनाए रखने की उम्मीद है, जिससे क्यू-कॉमर्स एकीकरण के लिए एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होगा।

चुनौतियाँ 

  • लाभप्रदता का दबाव: यह क्षेत्र तेजी से विस्तार के दौर से लागत नियंत्रण और टिकाऊ मार्जिन पर केंद्रित दौर की ओर बढ़ रहा है। परिचालन अक्षमताएँ, उच्च बर्न रेट और लॉजिस्टिक्स लागत चिंता का विषय बनी हुई हैं।
  • परिचालन दक्षता: बढ़ते भौगोलिक क्षेत्र में लागत को नियंत्रित करते हुए तेज डिलीवरी बनाए रखना एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
  • सीमित बाजार हिस्सेदारी: तीव्र विकास के बावजूद, क्यू-कॉमर्स अभी भी भारत के किराना बाजार का एक छोटा-सा हिस्सा है, जिससे यह व्यापक आर्थिक परिवर्तनों और उपभोक्ता खर्च में मंदी के प्रति संवेदनशील है।
  • टियर II और III विस्तार की जटिलता: गहरे बाजारों तक पहुँचने से आपूर्ति शृंखला और लागत संबंधी चुनौतियाँ आती हैं, जिसके लिए सेवा की गुणवत्ता और वित्तीय व्यवहार्यता के बीच संतुलन बनाने के लिए लक्षित रणनीतियों की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष

  • केयरएज का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2028 में क्यू-कॉमर्स क्षेत्र में मजबूत दोहरे अंकों की वृद्धि होगी, जो डिजिटल अपनाने, क्षेत्रीय विस्तार और उपभोक्ताओं की बदलती अपेक्षाओं के कारण संभव होगी।
  • केयरएज के अनुसार, भारत में क्यू-कॉमर्स विकास के दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है, जिसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं:-
    • टियर II और III शहरों में गहन पहुँच।
    • पूर्ति, वैयक्तिकरण और अंतिम-मील वितरण में तकनीक-आधारित नवाचार।
    • अधिक परिचालन दक्षता और मुद्रीकरण।

आगे की राह 

  • गिग वर्कर सुरक्षा को मजबूत बनाना: डिलीवरी पार्टनर्स की स्थिति में सुधार के लिए न्यूनतम आय, बीमा और कार्य घंटों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करना।
  • डार्क स्टोर्स के लिए शहरी जोनिंग मानदंड निर्धारित करना: शहरों को डार्क स्टोर्स के स्थान और घनत्व को विनियमित करने के लिए स्पष्ट नीतियों की आवश्यकता है, जो सुविधा तथा सामुदायिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखना।
  • एक राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति विकसित करना: एक केंद्रीय ढाँचा त्वरित वाणिज्य को व्यापक लक्ष्यों, उपभोक्ता संरक्षण, श्रम अधिकार और सतत् शहरी नियोजन के साथ संरेखित करने में मदद कर सकता है।
  • स्थानीय खुदरा विक्रेताओं को सशक्त बनाना: समान अवसर प्रदान करने के लिए, आस-पड़ोस के किराना स्टोरों को ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म में डिजिटल रूप से एकीकृत किया जाना चाहिए।

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