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गरीबी उन्मूलन में भारत की हालिया प्रगति

Lokesh Pal April 30, 2025 03:21 12 0

संदर्भ

विश्व बैंक की स्प्रिंग, 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 171 मिलियन लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला है।

विश्व बैंक की गरीबी और समानता संबंधी रिपोर्ट (PEB) की संक्षिप्ति

  • PEB रिपोर्ट, 100 से अधिक विकासशील देशों में गरीबी, असमानता और साझा समृद्धि प्रवृत्तियों के बारे में अर्द्ध-वार्षिक जानकारी प्रदान करती है।
  • विश्व बैंक और IMF की मार्च और वार्षिक बैठकों के दौरान प्रकाशित किया जाता है।
  • प्रत्येक संक्षिप्त विवरण में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखाओं ($2.15, $3.65, और $6.85/दिन), बहुआयामी गरीबी एवं असमानता पर गिनी इंडेक्स का उपयोग करके अपडेट शामिल हैं।
  • वे गरीबी और समानता की वैश्विक और राष्ट्रीय निगरानी के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।

बहुआयामी गरीबी

  • बहुआयामी गरीबी से तात्पर्य ऐसी गरीबी से है, जो आय के स्तर से अतिरिक्त है। इसमें विभिन्न प्रकार के अभाव शामिल हैं, जिनका सामना लोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं, जो उनके कल्याण को प्रभावित करते हैं।
  • इसे विभिन्न गैर-आय-आधारित आयामों में मापा जाता है, जैसे:-
    • स्वास्थ्य: बाल मृत्यु दर, कुपोषण
    • शिक्षा: स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति
    • जीवन स्तर: स्वच्छ जल, स्वच्छता, बिजली, खाना पकाने के ईंधन, आवास की गुणवत्ता और बुनियादी संपत्तियों के स्वामित्व तक पहुँच।

भारत की 2025 गरीबी और समानता रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • अत्यधिक गरीबी: वर्ष 2011-12 में 16.2% से घटकर वर्ष 2022-23 में 2.3% हो गई।
  • निम्न-मध्यम आय वाली गरीबी: इसी अवधि के दौरान 61.8% से घटकर 28.1% हो गई, जिससे 378 मिलियन लोगों की आय में वृद्धि हुई।
  • ग्रामीण-शहरी अंतर: अत्यधिक गरीबी में 7.7 प्रतिशत अंक से घटकर 1.7 अंक हो गया।
  • बहुआयामी गरीबी: वर्ष 2005-06 में 53.8% से घटकर वर्ष 2019-21 तक 16.4% हो गई; और वर्ष 2022-23 में 15.5% पर आ गई।
  • गिनी सूचकांक: 28.8 (वर्ष 2011-12) से बढ़कर 25.5 (वर्ष 2022-23) हो गया, जो आय असमानता में कमी दर्शाता है।

गिनी सूचकांक

  • गिनी सूचकांक एक सांख्यिकीय माप है, जो किसी आबादी के भीतर आय या धन असमानता को मापता है, जो 0 (पूर्ण समानता) से लेकर 1 (पूर्ण असमानता) तक होती है।
  • इसकी गणना ‘लॉरेंज कर्व’ के आधार पर की जाती है, जिसमें वास्तविक आय वितरण की तुलना आदर्श समान वितरण से की जाती है।

गरीबी में कमी के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक

  • लक्षित कल्याणकारी योजनाएँ: SBM, PMAY, पोषण अभियान और समग्र शिक्षा जैसी योजनाओं ने स्वास्थ्य, आवास, पोषण और शिक्षा में सुधार किया, जिससे बहुआयामी गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई। 
  • आर्थिक सुधार और समावेशी विकास: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में व्यापक विकास के कारण निम्न-मध्यम आय वर्ग की गरीबी में भारी गिरावट आई।
  • बुनियादी सेवाओं तक पहुँच: JJM, सौभाग्य और PMJDY जैसी पहलों ने पेयजल, बिजली और बैंकिंग तक पहुँच को बढ़ाया, जिससे समावेशी विकास को बढ़ावा मिला।
  • रोजगार में वृद्धि: वर्ष 2021 के बाद, रोजगार वृद्धि ने कामकाजी आयु वर्ग की आबादी को पीछे छोड़ दिया, जिसमें महिला कार्यबल भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और शहरी बेरोजगारी में 6.6% की गिरावट आई।
  • कार्यबल में बदलाव: पुरुष श्रमिकों का शहरी नौकरियों की ओर स्थानांतरण और ग्रामीण महिलाओं के बीच स्व-रोजगार में वृद्धि ने आय सृजन तथा लचीलेपन को बढ़ावा दिया।

बहुआयामी गरीबी से निपटने के लिए सरकारी पहल

  • स्वच्छ भारत मिशन (SBM): स्वच्छता को बढ़ावा दिया और खुले में शौच संबंधी समस्या को समाप्त किया, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा स्वच्छता में सुधार हुआ।
  • जल जीवन मिशन (JJM): ग्रामीण घरों में पाइप से पेयजल तक पहुँच सुनिश्चित की गई, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ।
  • पोषण अभियान: बेहतर पोषण और जागरूकता के माध्यम से बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं में कुपोषण को दूर किया गया।
  • समग्र शिक्षा: स्कूली शिक्षा में पहुँच, गुणवत्ता और समानता में सुधार लाने वाला एकीकृत स्कूली शिक्षा कार्यक्रम।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): शहरी और ग्रामीण गरीबों को किफायती आवास उपलब्ध कराया गया, जिससे जीवन स्तर में सुधार हुआ।

भारत में गरीबी उन्मूलन की चुनौतियाँ

  • जनसंख्या वृद्धि: सार्वजनिक अवसंरचना और संसाधनों पर दबाव डालती है।
  • तीव्र शहरीकरण: झुग्गी-झोपड़ियों और अनौपचारिक बस्तियों में वृद्धि होती है।
    • विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2036 में भारत के कस्बों और शहरों में 600 मिलियन लोग या कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा होगा, जो वर्ष 2011 में 31 प्रतिशत था।
  • जलवायु परिवर्तन: आपदाओं और आजीविका के नुकसान के माध्यम से गरीब समुदायों को असमान रूप से प्रभावित करता है।
    • भारत के 80 प्रतिशत से अधिक लोग ऐसे जिलों में रहते हैं, जो जलवायु-जनित आपदाओं के जोखिम में हैं।
  • आर्थिक व्यवधान: वैश्विक मंदी और महामारी जैसी घटनाएँ भेद्यता को और गहरा करती हैं। 
  • नीति कार्यान्वयन अंतराल: भ्रष्टाचार, देरी और अकुशलता कार्यक्रम की प्रभावशीलता में बाधा डालती है।

आगे की राह

  • समावेशी आर्थिक विकास: औद्योगीकरण, उद्यमशीलता और माइक्रोफाइनेंस तक पहुँच को बढ़ावा देना।
  • सामाजिक हस्तक्षेप: गरीबों को सशक्त बनाने के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में निवेश करना।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: अविकसित क्षेत्रों में आवास, सड़क, स्वच्छता और कनेक्टिविटी का विस्तार करना।
  • शासन को मजबूत करना: नीति वितरण में पारदर्शिता, जवाबदेही और सामुदायिक भागीदारी में सुधार करना।
  • सतत् विकास: जलवायु अनुकूल बुनियादी ढाँचे और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने पर ध्यान केंद्रित करना।

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