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भारत में वर्ष 1991 जैसी स्थिति: ट्रंप के टैरिफ एवं आर्थिक सुधार

Lokesh Pal April 14, 2025 03:16 70 0

संदर्भ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन (125%) और अन्य (10%) को लक्षित करके लगाए गए रेसीप्रोकल टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था के लिए वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों के समान एक संभावित स्थिति उत्पन्न कर रहे है।

ट्रंप टैरिफ (Trump Tariffs)

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल, 2025 को चीन (125%) एवं अन्य (10%) देशों के लिए रेसीप्रोकल टैरिफ की घोषणा की।
  • उद्देश्य: चीन की व्यापारिक नीतियों (निर्यात-आधारित विकास, आयात प्रतिबंध, रिजर्व संचय) का मुकाबला करना।
  • इन टैरिफ का उद्देश्य अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना है, जो वर्तमान में 1.2 ट्रिलियन डॉलर है।
  • 10% का आधार टैरिफ सभी देशों पर लागू होता है, हालाँकि देश-विशिष्ट टैरिफ 9 अप्रैल से लगाए गए।
  • अमेरिका ने 9 जुलाई, 2025 तक 90 दिनों के लिए भारत पर अतिरिक्त टैरिफ को निलंबित करने की घोषणा की है।

चीन का वाणिज्यवाद (Mercantilism)

  • वाणिज्यवाद (Mercantilism), 16वीं से 18वीं शताब्दी तक प्रचलित एक आर्थिक प्रणाली थी, जिसका उद्देश्य सरकारी विनियमन एवं संरक्षणवादी व्यापार नीतियों के संयोजन के माध्यम से राष्ट्रीय धन एवं शक्ति को बढ़ाना था, जिसमें आयात पर निर्यात पर जोर दिया जाता था।
  • निर्यात-आधारित विकास मॉडल: चीन ने वर्ष 2010 में घरेलू माँग पर निर्यात को प्राथमिकता देते हुए उपभोग-से-जीडीपी अनुपात को केवल 35% बनाए रखा।
  • विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक: चीन का वैश्विक निर्मित वस्तुओं के निर्यात में हिस्सा वर्ष 1996 में 4% से बढ़कर वर्तमान में 30% हो गया है, जो इसकी आक्रामक निर्यात रणनीति को दर्शाता है।
  • सतत् व्यापार अधिशेष: चीन ने दशकों तक भारी व्यापार अधिशेष बनाए रखा है, विदेशी भंडार जमा (एक पारंपरिक व्यापारिक निर्णय) किया है।
  • आयात के लिए सीमित बाजार पहुँच: चीन घरेलू स्तर पर चैंपियन उद्योगों को बढ़ावा देते हुए आयात को प्रतिबंधित करने के लिए गैर-टैरिफ बाधाएँ तथा सब्सिडी लगाता है।
  • रणनीतिक मुद्रा नीति: वर्षों तक युआन के प्रबंधित अवमूल्यन ने निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दिया तथा आयात को हतोत्साहित किया।

अमेरिकी टैरिफ पर भू-राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

  • चीन का दृढ़ विरोध: चीन, अमेरिकी वस्तुओं पर 125 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा।
    • यह तब हुआ, जब अमेरिका ने कई देशों पर 90 दिनों के लिए टैरिफ रोकने का फैसला किया, लेकिन चल रहे व्यापार युद्धों के मध्य चीन पर 145 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया।
  • जापान ने बातचीत के जरिए समाधान का विकल्प चुना: जापान ने कूटनीतिक रास्ता अपनाते हुए अमेरिका के साथ वार्ता प्रक्रिया की शुरुआत की।
    • इसका लक्ष्य शांतिपूर्ण वार्ता के जरिए आर्थिक हितों की रक्षा करना था।
  • यूरोपीय संघ दोनों विकल्पों पर विचार कर रहा है: यूरोपीय संघ ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है जिसके तहत उसने दोनों विकल्पों (जवाबी उपायों की तैयारी एवं वार्ता) को खुला रखा है।
    • इसने अपने €1.5 ट्रिलियन ट्रांस-अटलांटिक व्यापार संबंधों की सुरक्षा के महत्त्व पर जोर दिया।

अमेरिकी टैरिफ पर भारत का रुख

  • रणनीतिक संतुलन: भारत ने अमेरिकी टैरिफ के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई नहीं की; इसके बजाय, उसने संवाद एवं वार्ता का विकल्प चुना।
  • द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA): वर्ष 2030 तक व्यापार को 191 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 500 बिलियन डॉलर करने के लिए अमेरिका के साथ BTA पर सक्रिय रूप से वार्ता कर रहा है।
  • सरकार की प्रतिक्रिया: वाणिज्य मंत्री ने निर्यातकों से धैर्य रखने का आग्रह किया और एक विश्वसनीय एवं स्थिर व्यापार भागीदार के रूप में भारत की छवि पर जोर दिया।
  • टैरिफ विराम संबंधी लाभ: अमेरिका ने भारत के सहयोगात्मक दृष्टिकोण को मान्यता देते हुए 90 दिनों (9 जुलाई, 2025 तक) के लिए भारत पर 26% रेसीप्रोकल टैरिफ रोक दिया।
  • अवसर पर फोकस: भारत इस स्थिति को विनिर्माण को बढ़ावा देने, निवेश को आकर्षित करने और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करने के अवसर के रूप में देखता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव: टैरिफ की घोषणा के बाद 7 अप्रैल, 2025 को सेंसेक्स में 2,000 से अधिक अंकों की गिरावट आई।
    • भारतीय बाजारों में अन्य बाजारों की तुलना में कम गिरावट आई, लेकिन वैश्विक व्यापार तनाव की संवेदनशीलता को दर्शाया गया।
  • निर्यात क्षेत्र में व्यवधान: भारत को 26% रेसीप्रोकल टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है; ऑटो (निर्यात का 3%) और आईटी जैसे क्षेत्रों पर असर पड़ा है।
    • अमेरिका में विवेकाधीन खर्च में कमी की आशंकाओं के कारण निफ्टी आईटी में 3% से अधिक की गिरावट आई।
    • हालाँकि अस्थायी रूप से छूट दी गई है, लेकिन अमेरिका को भारत के $12.2 बिलियन फार्मा निर्यात भविष्य में टैरिफ बढोतरी के प्रति संवेदनशील हैं।
  • कम निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: उच्च टैरिफ विदेशों में उत्पाद की कीमतों में वृद्धि करते हैं, जिससे भारतीय निर्यात कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाता है, विशेषकर धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायनों में।
  • मौद्रिक नीति पर दबाव: RBI ने वैश्विक अनिश्चितता और निर्यात पर प्रभाव का हवाला देते हुए 9 अप्रैल को रेपो दर में 25 BPS की कटौती करके इसे 6% कर दिया।
  • मुद्रास्फीति का जोखिम: टैरिफ-प्रेरित वैश्विक मुद्रास्फीति, आयातित वस्तुओं के माध्यम से भारत में फैल सकती है, जिससे घरेलू बजट और इनपुट लागत प्रभावित हो सकते हैं।
  • FDI और निवेशक भावना में अनिश्चितता: अस्थिर वैश्विक वातावरण नए निवेश को रोक सकता है।

वर्ष 1991 के LPG सुधार (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण)

  • 24 जुलाई, 1991 को घोषित LPG सुधारों ने एक अत्यधिक विनियमित, समाजवाद-प्रेरित अर्थव्यवस्था से अधिक बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था में परिवर्तन को चिह्नित किया।
  • LPG सुधारों का प्राथमिक लक्ष्य आर्थिक संकट का समाधान करना, आर्थिक विकास को बढ़ाना और विदेशी मुद्रा भंडार का निर्माण करना था।
  • उदारीकरण: इसमें उद्योग, व्यापार और वित्त सहित विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण और विनियमन को कम करना शामिल था।
    • इसका अर्थ था टैरिफ कम करना, आयात प्रतिबंधों में ढील देना, तथा व्यवसायों को अधिक स्वतंत्रता देना।
  • निजीकरण: सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों का स्वामित्व निजी क्षेत्र को हस्तांतरित किया गया।
    • यह विनिवेश और विभिन्न उद्योगों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करके किया गया।
  • वैश्वीकरण: इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिए खोलना शामिल था।
    • इसमें व्यापार बाधाओं को कम करना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करना और भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के साथ एकीकृत करना शामिल था।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अवसर

  • वर्ष 1991 की तरह वर्तमान स्थिति- सुधारों के लिए उत्प्रेरक: व्यापार पर बाहरी दबाव, FDI और औद्योगिक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक राजनीतिक कवर प्रदान करता है।
  • विनिर्माण और PLI योजनाओं को बढ़ावा: अमेरिका-चीन के बीच अलगाव ‘चीन+1’ रणनीति को गति देता है, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और EV में वैश्विक फर्मों को आकर्षित कर सकता है।
    • एप्पल का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 25% iPhone उत्पादन भारत में स्थानांतरित करना है।
    • PLI योजनाओं का लक्ष्य वर्ष 2026 तक 520 बिलियन डॉलर का विनिर्माण उत्पादन है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला केंद्र के रूप में पुनः स्थापित होना: चीन का 125% अमेरिकी टैरिफ विनिर्माण में भारत के लिए स्थान बनाता है।
    • भारत को वैश्विक व्यापार में एक ‘विश्वसनीय और भरोसेमंद भागीदार’ के रूप में देखा जाता है।
  • अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ता को बढ़ावा: भारत-अमेरिका BTA प्रगति पर है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक व्यापार को $191B से $500B तक बढ़ाना है।
    • भारत की गैर-प्रतिशोधी कूटनीति ने 90 दिनों के लिए 26% टैरिफ को रोकने में मदद की।
  • FTA वार्ता में अधिक लाभ: EU, UK और CPTPP के साथ एक साथ FTA चर्चा की संभावना तलाशी जा रही है।
  • जनसांख्यिकी और कार्यबल बढ़त: भारत की प्राइम-एज (25-54), AI-सक्षम कार्यबल आने वाले वर्षों में चीन से आगे निकल जाएगा, जिससे भारत चीन से स्थानांतरित होने वाले उद्योगों के लिए अधिक आकर्षक बन जाएगा।
  • कपड़ा और MSME निर्यात में वृद्धि: भारतीय कपड़ा (संयुक्त राज्य अमेरिका को $9.6 बिलियन) नई टैरिफ व्यवस्था के तहत चीन (21%) और वियतनाम (19%) पर बढ़त हासिल कर सकता है।
  • रुपया व्यापार निपटान विस्तार: बढ़ती डॉलर की अस्थिरता और यूएस-केंद्रित जोखिम भारत को रूस, ईरान, यू.ए.ई., अफ्रीका के साथ रुपये के व्यापार का विस्तार करने का अवसर देता है।
    • डॉलर पर निर्भरता कम होती है और संप्रभु आर्थिक स्वायत्तता में सुधार होता है।
  • तकनीक, नवाचार और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में लाभ: भारत वेंचर कैपिटलिस्ट (Venture Capitalists) और चीन से दूर जाने वाले तकनीकी दिग्गजों को आकर्षित कर सकता है।
    • स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI), ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), UPI ने पहले ही वैश्विक रुचि उत्पन्न कर दी है।
  • कृषि बाजार तक पहुँच: द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) भारतीय चावल, मसालों तथा जैविक उत्पादों के लिए अमेरिकी कृषि बाजार खोल सकता है।
    • कृषि क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास और तकनीक समर्थित उत्पादकता वृद्धि को बढ़ावा देना​।

‘चीन+1’ रणनीति एक व्यापारिक दृष्टिकोण है, जिसमें कंपनियाँ केवल चीन पर निर्भर रहने के बजाय, अपने विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला परिचालन को चीन से बाहर भी विविधतापूर्ण बनाती हैं।

भारत के लिए आगे की राह तथा आवश्यक सुधार

  • व्यापार नीति आधुनिकीकरण: भारत के व्यापार-भारित आयात शुल्क (12%) विश्व स्तर पर सबसे अधिक (बनाम अमेरिका में 2.2%, चीन में 3%) हैं।
    • उच्च टैरिफ भारतीय वस्तुओं को कम प्रतिस्पर्द्धी बनाते हैं, घरेलू उद्योगों के लिए लागत बढ़ाते हैं, और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकरण में बाधा डालते हैं।
    • आगामी EU/UK समझौतों और अंततः CPTPP में प्रवेश के लिए एक आधार के रूप में भारत-अमेरिका BTA से शुरुआत करते हुए ‘शून्य-के-लिए-शून्य’ (Zero-for-Zero) औद्योगिक वस्तु समझौतों को आगे बढ़ाना।
  • FDI और BIT में सुधार और उदारीकरण: FDI प्रवाह पिछले दो दशकों में 2-2.5% से गिरकर जीडीपी के 1% से नीचे आ गया है।
    • वर्ष 2015 की ‘मॉडल” द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) विवाद समाधान के लिए भारतीय न्यायालयों को अनिवार्य बनाती है, जो विदेशी निवेशकों के लिए एक बड़ी बाधा है।
    • तटस्थ मध्यस्थता तंत्र को शामिल करने और दीर्घकालिक पूँजी निवेश को आकर्षित करने के लिए BIT में सुधार करना।
  • रणनीतिक FTA के माध्यम से व्यापार एकीकरण को गहरा करना: भारत का वैश्विक निर्यात हिस्सा कम (वर्ष 2023 में 1.8%) बना हुआ है, जो चीन (15.4%) से काफी नीचे है।
    • अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौतों में तेजी लाना तथा ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी के लिए व्यापक एवं प्रगतिशील समझौते (CPTPP) में शामिल होने पर विचार करना।
  • भूमि, श्रम और कृषि कानूनों में सुधार: पुराने कानून व्यापार करने में आसानी और औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धा को बाधित करते हैं।
    • राजनीतिक दबाव में वर्ष 2020-21 के कृषि कानूनों को वापस लेने से आवश्यक कृषि सुधार रुक गए।
    • बेहतर आम सहमति बनाने और कार्यान्वयन रणनीतियों के साथ इन सुधारों को पुनः लागू करना।
  • निर्यात-उन्मुख विनिर्माण को बढ़ावा देना: भारत में रोजगार सृजन विनिर्माण निर्यात को बढ़ाने पर निर्भर करता है, विशेषकर कपड़ा और खिलौने जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों में।
    • मेक इन इंडिया को संरक्षणवाद तथा ऐसे क्षेत्रों की उपेक्षा के कारण संघर्ष करना पड़ा है।
    • भारत के पास अमेरिकी कपड़ा बाजार का सिर्फ 6% हिस्सा है, जबकि वियतनाम (19%) और चीन (21%) के पास है। ट्रंप टैरिफ आपूर्ति शृंखलाओं को परिवर्तित सकता है, भारत को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
  • R&D और AI-सक्षम कार्यबल में निवेश करना: भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश चरम पर है; इसकी प्राइम-एज श्रम शक्ति जल्द ही चीन से आगे निकल जाएगी।
    • AI और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए कौशल, अनुसंधान एवं विकास तथा डिजिटल बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
    • पश्चिमी देश तेजी से भारत को चीन के प्रतिकार के रूप में देख रहे हैं; कुशल, निर्यात-सक्षम कार्यबल का निर्माण अब महत्त्वपूर्ण है।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार साझेदारी में विविधता लाना: यूरोप के 18 ट्रिलियन डॉलर के बाजार तक पहुँचने के लिए वर्ष 2026 तक लंबे समय से लंबित भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते हेतु वार्ता को पुनः शुरू करना और समाप्त करना, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, IT सेवाओं तथा ऑटोमोटिव निर्यात के लिए।
    • 50 से अधिक देशों में रुपये के व्यापार समझौतों का विस्तार करते हुए WTO सुधारों में विकासशील देशों का सक्रिय रूप से नेतृत्व करना, सफल रूस-यू.ए,ई, भुगतान तंत्र का निर्माण करना, जो डॉलर पर निर्भरता को दरकिनार करता है।

निष्कर्ष 

भारत को लंबे समय से लंबित सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका-चीन व्यापार तनाव का लाभ उठाना चाहिए। साथ ही यह पश्चिम के साथ रणनीतिक सामंजस्य विकास को 8% से अधिक तक बढ़ा सकता है। वर्ष 1991 जैसी दूसरी स्थिति साहसिक आर्थिक नीति परिवर्तनों पर निर्भर करती है।

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