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भारत का सेवा क्षेत्र

Lokesh Pal October 30, 2025 02:00 18 0

संदर्भ

नीति आयोग ने अपनी सेवा विषयक शृंखला के अंतर्गत दो प्रारंभिक रिपोर्ट जारी कीं, जिनमें उत्पादन और रोजगार दोनों के परिप्रेक्ष्य में भारत के सेवा क्षेत्र का व्यापक मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है।

संबंधित तथ्य 

  • इसकी सेवा विषयक शृंखला के अंतर्गत निम्नलिखित शीर्षक से दो रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती हैं:
    1. भारत का सेवा क्षेत्र: GVA प्रवृत्तियाँ और राज्य-स्तरीय गतिशीलता से अंतर्दृष्टि।
    2. भारत का सेवा क्षेत्र: रोजगार प्रवृत्तियाँ और राज्य-स्तरीय गतिशीलता से अंतर्दृष्टि।
  • ये रिपोर्टें भारत के सेवा क्षेत्र के प्रथम विस्तृत आकलनों में से एक हैं, जो समग्र गणनाओं से आगे बढ़कर, राज्य-स्तरीय अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करती हैं।
    • पहली रिपोर्ट: यह राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रवृत्तियों की जाँच करती है ताकि यह समझा जा सके कि राज्यों में सेवा-आधारित विकास कैसे हो रहा है और क्या कम विकसित राज्य उन राज्यों की बराबरी कर पा रहे हैं, जिनका सेवा आधार पहले से ही मजबूत है (संतुलित क्षेत्रीय विकास का एक प्रमुख संकेतक)।
    • दूसरी रिपोर्ट: यह सेवा क्षेत्र में रोजगार की गतिशीलता का विश्लेषण करती है और उप-क्षेत्रों, लैंगिक, शिक्षा और व्यवसायों के संदर्भ में एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है।
  • ये रिपोर्ट विकसित भारत @2047 के विजन को प्राप्त करने में इस क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती हैं।

भारत में सेवा क्षेत्र

  • संदर्भ: सेवा क्षेत्र को तृतीयक क्षेत्र भी कहा जाता है।
    • यह अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों में से एक है, अन्य दो क्षेत्र, प्राथमिक क्षेत्र (जिसमें कृषि, वानिकी, खनन और मत्स्यपालन शामिल हैं) और द्वितीयक क्षेत्र (जिसमें विनिर्माण और निर्माण शामिल हैं) हैं।
  • इसमें शामिल हैं: भारत का सेवा क्षेत्र व्यापार, होटल और रेस्तराँ, परिवहन, भंडारण और संचार, वित्तपोषण, बीमा, रियल एस्टेट, व्यावसायिक सेवाएँ, सामुदायिक, सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाएँ और निर्माण से जुड़ी सेवाओं जैसी विविध गतिविधियों को शामिल करता है।
  • विकास और प्रगति: 1990 के दशक के सुधार भारत में सेवा क्षेत्र के विस्तार से जुड़े रहे हैं।
    • 1980 के दशक के मध्य में सेवा क्षेत्र का विस्तार होना शुरू हुआ, लेकिन 1990 के दशक में इसमें तेजी आई, जब भारत ने भुगतान संतुलन के गंभीर मुद्दे के जवाब में आर्थिक सुधारों की एक शृंखला शुरू की।
  • क्षेत्राधिकार
    • संघ सूची: दूरसंचार, डाक, प्रसारण, वित्तीय सेवाएँ (बीमा और बैंकिंग सहित), राष्ट्रीय राजमार्ग और खनन सेवाएँ।
    • राज्य सूची: स्वास्थ्य सेवा और संबंधित सेवाएँ, अचल संपत्ति सेवाएँ, खुदरा व्यापार, कृषि और वानिकी से संबंधित सेवाएँ।
    • समवर्ती सूची: व्यावसायिक सेवाएँ, शिक्षा, मुद्रण और प्रकाशन, बिजली।

  • योगदान: सेवा क्षेत्र अब भारत के राष्ट्रीय सकल मूल्यवर्द्धन (2024-25) में 55% का योगदान देता है, जो आर्थिक विकास की आधारशिला के रूप में इसकी भूमिका को रेखांकित करता है।
    • यह लगभग 188 मिलियन श्रमिकों (वर्ष 2023-24) को रोजगार देता है, जिससे यह कृषि के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता बन जाता है।
    • FDI अंतर्वाह: वित्त वर्ष 2024-25 में सेवा क्षेत्र FDI इक्विटी का शीर्ष प्राप्तकर्ता बनकर उभरा, जिसने कुल अंतर्वाह का 19% आकर्षित किया, इसके बाद कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर (16%) और व्यापार (8%) का स्थान रहा।
    • सेवा निर्यात: अप्रैल-अगस्त 2025 में इसका हिस्सा 46.91% था।

नीति आयोग की रिपोर्ट में उठाई गई प्रमुख अंतर्दृष्टियाँ और चिंताएँ

  • क्षेत्रीय अभिसरण: इस रिपोर्टें इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि जहाँ राज्यों के बीच सेवा क्षेत्र के हिस्से में असमानताएँ मामूली रूप से बढ़ी हैं, वहीं संरचनात्मक रूप से पिछड़े राज्य भी बराबरी पर आ रहे हैं, जिससे अभिसरण और संतुलित क्षेत्रीय विकास के संकेत मिल रहे हैं।
  • सेवाओं की प्रमुख भूमिका: सेवा क्षेत्र वर्ष 2024-25 में भारत के सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) में लगभग 55% का योगदान देता है, जिससे भारत के आर्थिक विकास की आधारशिला के रूप में इसकी स्थिति मजबूत होती है।
  • असमान रोजगार वृद्धि: उप-क्षेत्रों में रोजगार सृजन असमान बना हुआ है।
    • उच्च-मूल्य वाली आधुनिक सेवाएँ (IT, वित्त, स्वास्थ्य सेवा, व्यावसायिक सेवाएँ) उत्पादकता-समृद्ध हैं, लेकिन रोजगार की तीव्रता सीमित है, जबकि व्यापार, परिवहन और आतिथ्य जैसे पारंपरिक क्षेत्र कार्यबल में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, लेकिन कम वेतन वाले और अनौपचारिक हैं।
    • संरचनात्मक विरोधाभास: राष्ट्रीय उत्पादन में आधे से अधिक का योगदान देने के बावजूद, सेवा क्षेत्र कुल रोजगार का एक-तिहाई से भी कम प्रदान करता है, जो विकास और रोजगार की तीव्रता के बीच के अंतर को दर्शाता है।
  • अनौपचारिकता संबंधी चुनौती: यह क्षेत्र अभी भी अत्यधिक अनौपचारिक है, जिसमें लगभग 56% श्रमिक स्व-नियोजित हैं, 29% सामाजिक सुरक्षा के बिना नियमित वेतनभोगी हैं और 15% आकस्मिक या अवैतनिक सहायक हैं।
    • वेतनभोगी कर्मचारियों में भी, पाँच में से दो के पास बुनियादी सामाजिक सुरक्षा का अभाव है, जो ‘प्रछन्न अनौपचारिकता’ को प्रदर्शित करता है।
  • कम वेतन:  नीति आयोग के अनुसार, औपचारिकीकरण के अभाव में सेवा क्षेत्र, यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था का सर्वाधिक तीव्र विकासशील एवं गतिशील घटक है, तथापि ‘निम्न-वेतन’ के कारण अवरुद्ध हो जाने के संरचनात्मक जोखिम से ग्रस्त है। लगातार अनौपचारिकता उपभोग को सीमित करती है, माँग को कमजोर करती है और समावेशी परिवर्तन को बाधित करती है।
  • लैंगिक असमानताएँ: रोजगार रिपोर्ट में लैंगिक असमानताओं पर प्रकाश डाला गया है और समावेशन और डिजिटल सशक्तीकरण के लिए एक लक्षित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
    • सेवा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी वर्ष 2017-18 में 25.2% से घटकर वर्ष 2023-24 में 20.1% हो गई।
    • महिलाओं का रोजगार शिक्षा, स्वास्थ्य और खुदरा क्षेत्र में केंद्रित है, जबकि उच्च-मूल्य वाली डिजिटल और वित्तीय सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व न्यूनतम है।
    • ग्रामीण महिलाएँ सेवा क्षेत्र के कार्यबल का केवल 10.5% हिस्सा हैं, जो ग्रामीण पुरुषों (24%) के आधे से भी कम है।
    • वेतन अंतराल: ग्रामीण महिलाएँ पुरुषों के वेतन का 50% से कम कमाती हैं, जो सभी क्षेत्रों में सबसे कम समानता है, जबकि शहरी महिलाएँ औसतन पुरुषों के वेतन का 84% कमाती हैं।
  • ग्रामीण-शहरी विभाजन: सेवा क्षेत्र में 61% शहरी श्रमिक कार्यरत हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 19% श्रमिक कार्यरत हैं।
    • वर्ष 2017-18 और वर्ष 2023-24 के बीच, सेवा रोजगार में ग्रामीण हिस्सेदारी 19.9% ​​से घटकर 18.9% हो गई, जबकि शहरी भागीदारी में वृद्धि हुई।
  • क्षेत्रीय असंतुलन: चंडीगढ़ (77.9%), दिल्ली (71%), गोवा (59.1%), और पुडुचेरी (59.6%) जैसे राज्य सबसे अधिक सेवा-उन्मुख अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
    • इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश में 2.21 करोड़ सेवाकर्मियों को रोजगार देने के बावजूद, सेवाओं में हिस्सेदारी 22.7% के निम्न स्तर पर है, जो भौगोलिक असमानता को दर्शाता है।
  • युवा प्रतिनिधित्व में कमी: 15-29 आयु वर्ग के व्यक्तियों का नियमित वेतन आधारित नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व है और उन्हें अपर्याप्त कौशल, शिक्षालय से श्रम-बाजार की ओर संक्रमण की दुर्बल प्रक्रिया तथा रोजगारोपयुक्त तैयारी के सीमित अवसरों जैसी संरचनात्मक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • 55 वर्ष की आयु के बाद वृद्ध श्रमिकों की भागीदारी में तेजी से गिरावट आती है, जो उन्हें नौकरी पर बनाए रखने या पुनः कौशल प्राप्त करने के सीमित अवसरों को दर्शाती है।
  • कौशल की कमी: औपचारिक शिक्षा और उद्योग की जरूरतों के बीच लगातार कौशल का अंतर रोजगार क्षमता में बाधा डालता है, विशेषतः डिजिटल सेवाओं और हरित प्रौद्योगिकियों जैसे उभरते क्षेत्रों में।
  • असमान रोजगार सृजन: सभी उप-क्षेत्रों में रोजगार सृजन असमान है, आधुनिक सेवाओं का मूल्य तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन कार्यबल उपयुक्त क्षमता में उपस्थित नहीं है।

कार्रवाई-उन्मुख सिफारिशें

  • रोजगार परिवर्तन के लिए ‘चार-भागीय नीति रोडमैप’: रोजगार की गुणवत्ता, समावेशन और उत्पादकता में लगातार अंतराल को पाटने के लिए, रिपोर्ट में चार-भागीय नीति रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है:
    • औपचारिकीकरण और सामाजिक सुरक्षा: गिग, प्लेटफॉर्म, MSME और स्व-नियोजित श्रमिकों तक सामाजिक सुरक्षा और श्रम सुरक्षा का विस्तार करना। साथ ही संचालन संबंधी लाभ और पेंशन कवरेज के लिए ढाँचा तैयार करना।
    • लक्षित कौशल और डिजिटल पहुँच: विशेष रूप से महिलाओं और ग्रामीण युवाओं के लिए, डिजिटल कौशल और रोजगार प्लेटफॉर्म तक पहुँच का विस्तार करना। हाइब्रिड और दूरस्थ कार्य के अवसरों को बढ़ावा देना।
    • उभरती और हरित अर्थव्यवस्था कौशल में निवेश: नवीकरणीय ऊर्जा, चक्रीय अर्थव्यवस्था, अपशिष्ट प्रबंधन और हरित रसद जैसी स्थिरता से जुड़ी नौकरियों के लिए प्रशिक्षण शृंखला का निर्माण करना।
    • संतुलित क्षेत्रीय विकास: क्षेत्रीय संतुलन और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए कौशल केंद्रों, नवाचार क्षेत्रों और रसद बुनियादी ढाँचे को एकीकृत करते हुए, टियर-II और टियर-III शहरों में सेवा केंद्र विकसित करना।
  • राज्य-स्तरीय अनुकूलन: रिपोर्ट में अनुशंसा की गई है कि प्रत्येक राज्य अपने तुलनात्मक लाभों के अनुरूप एक अनुकूलित सेवा क्षेत्र रणनीति तैयार करे।
    • राज्यों को सेवा उप-क्षेत्रों (जैसे- पर्यटन, वित्त, स्वास्थ्य सेवा, IT, लॉजिस्टिक्स, शिक्षा) का मानचित्रण करना चाहिए, जहाँ उनकी मौजूदा क्षमताएँ या विकास की संभावनाएँ मौजूद हैं।
    • क्षेत्रीय विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करना, जैसे- गुजरात में लॉजिस्टिक्स, केरल में पर्यटन, तमिलनाडु में शिक्षा और महाराष्ट्र में वित्तीय सेवाएँ।
    • राज्य-स्तरीय सेवा नीतियों को व्यापक आर्थिक नियोजन और औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र विकास में एकीकृत करना।
  • वित्त पोषण और निवेश सुविधा: सेवाओं में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और घरेलू निवेश आकर्षित करने के लिए राज्य निवेश प्रोत्साहन एजेंसियों को सुदृढ़ बनाना।
    • सेवा क्षेत्र में स्टार्ट-अप्स और MSMEs के लिए नियामक ढाँचे को सरल बनाना।
    • वित्तीय समावेशन और डिजिटल ऋण उपकरणों के माध्यम से ऋण पहुँच बढ़ाना।
    • लॉजिस्टिक्स, शिक्षा और डिजिटल सेवा वितरण में PPP-आधारित बुनियादी ढाँचा मॉडल को बढ़ावा देना।
  • क्षेत्रीय सेवा केंद्र: स्थानीय औद्योगिक शक्तियों (विशेष रूप से रसद, पर्यटन और डिजिटल व्यापार) से जुड़े राज्य-स्तरीय सेवा क्लस्टर विकसित करना।
  • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: राज्य सरकारों में नीतियों के समन्वय, परिणामों की निगरानी और उद्योग संघों के साथ जुड़ने के लिए समर्पित सेवा क्षेत्र प्रकोष्ठ स्थापित करना।
    • राज्य-स्तरीय सेवा सकल मूल्य संवर्द्धन (GVA) एवं रोजगार सूचकांकों हेतु आँकड़ा-संवितरण तंत्र तथा डैशबोर्ड संरचना का संस्थागत परिष्कार एवं सुदृढ़ीकरण सुनिश्चित करना।
    • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय को मजबूत करना, जिससे IT, शिक्षा, पर्यटन और वित्त जैसे क्षेत्रों में नीतिगत सुसंगतता सुनिश्चित हो।
  • बुनियादी ढाँचा और रसद: प्रतिस्पर्द्धा को बनाए रखने के लिए, रिपोर्ट डिजिटल बुनियादी ढाँचे, रसद नेटवर्क और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश की सिफारिश करती है।
  • डेटा और निगरानी: राज्यवार GVA प्रदर्शन, रोजगार औपचारिकता और गुणवत्ता, उत्पादकता और वेतन संबंधी प्रवृत्तियों की नियमित रूप से निगरानी करने के लिए एक राष्ट्रीय सेवा क्षेत्र डेटा ढाँचा तैयार करना।
    • हस्तक्षेपों का मार्गदर्शन करने के लिए वास्तविक समय आधारित श्रम और उद्यम डेटा का उपयोग करके साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को संस्थागत बनाना।

रणनीतिक समूह विशेषताएँ क्षेत्रक उदाहरण आगे की राह
वृद्धि के इंजन उच्च GVA हिस्सेदारी और उच्च वृद्धि
  • कंप्यूटर एवं सूचना सेवाएँ
  • व्यापार एवं मरम्मत
  • पेशेवर, वैज्ञानिक
  • अन्य व्यवसाय
  • शिक्षा
  • अग्रणी प्रौद्योगिकियों (AI, फिनटेक, अनुसंधान एवं विकास) को प्रोत्साहित करना।
  • वैश्विक बाजार पहुँच का विस्तार करना, डिजिटल निर्यात को बढ़ावा देना।
परिपक्व हितधारक उच्च GVA हिस्सेदारी लेकिन धीमी वृद्धि
  • परिवहन
  • वित्तीय सेवाएँ
  • सरकारी सेवाएँ 
  • व्यक्तिगत सांस्कृतिक एवं मनोरंजक सेवाएँ
  • नवाचार को प्रोत्साहित करना।
  • डिजिटलीकरण
  • नियामक सरलीकरण
  • सतत शहरी एकीकरण।
उभरते उद्योग कम GVA हिस्सेदारी लेकिन उच्च वृद्धि
  • दृश्य-श्रव्य एवं संबंधित सेवाएँ
  • स्वास्थ्य
  • दूरसंचार
  • यात्रा
  • कौशल विकास में निवेश करना।
  • क्षेत्र-विशिष्ट मिशन शुरू करना।
  • PPP-आधारित सेवा अवसंरचना का विस्तार करना।
  • क्लस्टरों को सक्षम बनाना।
संघर्षरत क्षेत्र कम GVA हिस्सेदारी और कम वृद्धि
  • बीमा एवं पेंशन सेवाएँ
  • डाक एवं कूरियर
  • अन्य
  • तकनीकी समावेशन के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाना।
  • उद्यमिता को बढ़ावा देना।

सेवा क्षेत्र में वृद्धि के कारण

  • संरचनात्मक परिवर्तन: LPG सुधारों ने सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से बैंकिंग, बीमा, दूरसंचार, विमानन, परिवहन आदि के क्षेत्र में, के विकास के लिए और अधिक अवसर प्रदान किए हैं।
  • तकनीकी प्रगति: तकनीकी प्रगति के कारण ‘आउटसोर्सिंग’ में परिवर्तन आया है, जिससे सेवा उद्योग का विस्तार हुआ है।
    • इसके अलावा, कृषि और औद्योगिक क्षेत्र के विकास ने परिवहन, भंडारण और व्यापार जैसी सेवाओं की आवश्यकता को बढ़ाया है।
  • माँग में वृद्धि: विदेशी बाजारों में भारतीय सेवा क्षेत्र की माँग बहुत अधिक है, घरेलू जनसंख्या में वृद्धि हो रही है और साथ ही अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों, बैंकिंग सेवाओं आदि जैसी बुनियादी सेवाओं की भी आवश्यकता है।
  • आकर्षक पारिस्थितिकी तंत्र: स्टार्ट-अप इंडिया, डिजिटल इंडिया कार्यक्रम, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसी विभिन्न सरकारी नीतियों ने भारत में इस क्षेत्र की संभावनाओं को बढ़ाया है।
    • कम स्थापना लागत इस क्षेत्र को एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनाती है।
    • भारत में एक उचित रूप से विकसित वित्तीय बाजार भी है।
  • कुशल कार्यबल: कुशल IT जनशक्ति के विशाल भंडार ने भारत को एक वैश्विक आउटसोर्सिंग केंद्र बना दिया है।
  • उत्कृष्ट उत्पादकता: बेहतर तकनीक और बेहतर श्रम उत्पादकता के कारण, कम श्रम से वस्तुओं के निर्माण और कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
  • वैश्विक प्रौद्योगिकी केंद्र: भारत दुनिया का डिजिटल क्षमताओं का केंद्र है, जहाँ वैश्विक डिजिटल प्रतिभाओं का लगभग 75% हिस्सा मौजूद है।
    • अगले पाँच वर्षों में, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय डिजिटल अर्थव्यवस्था के योगदान को सकल घरेलू उत्पाद में 20% तक बढ़ाने के लिए कार्य कर रहा है।
    • सरकार सहयोगी नेटवर्क के लिए क्लाउड-आधारित बुनियादी ढाँचा बनाने पर कार्य कर रही है, जिसका उपयोग उद्यमियों और स्टार्ट-अप्स द्वारा नवीन समाधान तैयार करने के लिए किया जा सकता है।

सेवा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • चैंपियन सेवा क्षेत्र पहल (CSSI): 12 चिह्नित ‘चैंपियन’ सेवा क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन (NSDM) और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): इसका उद्देश्य कौशल विकास को सेवा क्षेत्र की माँगों (IT, स्वास्थ्य सेवा, लॉजिस्टिक्स, पर्यटन, खुदरा) के अनुरूप बनाना है।
    • कौशल भारत मिशन रोजगार क्षमता में वृद्धि करता है और नीति आयोग की रोजगार प्रवृत्ति रिपोर्ट में उल्लिखित ‘विद्यालय-से-कार्य’ संक्रमण का समर्थन करता है।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप (MGNF): अक्टूबर 2021 में, सरकार ने छात्रों को सशक्त बनाने और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए MGNF के दूसरे चरण का शुभारंभ किया।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020): शिक्षा वितरण प्रणालियों का आधुनिकीकरण, एडटेक सेवाओं, कौशल-आधारित शिक्षा और डिजिटल विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देना।
    • शिक्षा सेवाओं के निर्यात में निजी और वैश्विक भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।

  • प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन: अगले चार से पाँच वर्षों में पूरे भारत में महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क को मजबूत करने के लिए इसे अक्टूबर 2021 में लॉन्च किया गया था।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) उदारीकरण: बीमा कंपनियों के लिए FDI सीमा 49% से बढ़ाकर 74% और बीमा मध्यस्थों के लिए 100% कर दी गई है।
    • दूरसंचार, ई-कॉमर्स, बीमा मध्यस्थों और IT सेवाओं जैसे प्रमुख सेवा क्षेत्रों में 100% FDI की अनुमति है।
  • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM): इसे वर्ष 2020 में प्रत्येक भारतीय को एक विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान-पत्र प्रदान करने और देश में सभी के लिए इसे आसानी से सुलभ बनाकर स्वास्थ्य सेवा उद्योग में क्रांति लाने के लिए लॉन्च किया गया था।
    • अगले 10 वर्षों में, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य ब्लूप्रिंट भारत में स्वास्थ्य सेवा उद्योग के लिए 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का वृद्धिशील आर्थिक मूल्य प्राप्त कर सकता है।
  • राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक सभी गाँवों में ब्रॉडबैंड पहुँच प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन शुरू किया है।

निष्कर्ष

भारत का सेवा क्षेत्र देश के आर्थिक परिवर्तन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, जो विकास, नवाचार और रोजगार को बढ़ावा दे रहा है। डिजिटल बुनियादी ढाँचे, औपचारिकता और कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में केंद्रित सुधारों के साथ, यह क्षेत्र वर्ष 2047 तक विकसित भारत की दिशा में भारत की यात्रा को गति प्रदान कर सकता है।

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