100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारत का रेशम उद्योग

Lokesh Pal April 16, 2025 03:41 38 0

संदर्भ

वस्त्र मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2023-24 में देश में 38,913 मीट्रिक टन कच्चे रेशम का उत्पादन और 2,027.56 करोड़ रुपये मूल्य के रेशम उत्पादों का निर्यात किया, जिससे विश्व के दूसरे सबसे बड़े रेशम उत्पादक और शीर्ष उपभोक्ता के रूप में इसकी स्थिति मजबूत हुई है।

भारत का रेशम बाजार

  • भारत के कच्चे रेशम उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-18 में 31,906 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 38,913 मीट्रिक टन हो गया है।
  • इस वृद्धि को शहतूत के बागानों के विस्तार से समर्थन मिला है, जो वर्ष 2017-18 में 2,23,926 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 2,63,352 हेक्टेयर हो गया है, जिससे शहतूत रेशम उत्पादन वर्ष 2017-18 में 22,066 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 29,892 मीट्रिक टन हो गया है।
  • कुल कच्चे रेशम का उत्पादन वर्ष 2017-18 में 31,906 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 38,913 मीट्रिक टन हो गया।
  • रेशम और रेशम वस्तुओं का निर्यात वर्ष 2017-18 में ₹1,649.48 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2023-24 में ₹2,027.56 करोड़ हो गया। वाणिज्यिक जानकारी और सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCIS) की रिपोर्ट के अनुसार, देश ने वर्ष 2023-24 में 3348 मीट्रिक टन रेशम अपशिष्ट का निर्यात किया।

सिल्क (रेशम) के बारे में

  • रेशम एक कीट रेशा है, जिसमें चमक और मजबूती होती है।
  • इन अनूठी विशेषताओं के कारण, रेशम को विश्व भर में ‘वस्त्रों की रानी’ के रूप में जाना जाता है।

  • रेशम एक कैटरपिलर द्वारा तरल अवस्था में स्रावित प्रोटीन से बना होता है, जिसे लोकप्रिय रूप से ‘रेशम कीट‘ के रूप में जाना जाता है।
  • ये रेशम कीट चुने हुए खाद्य पौधों पर आश्रित होते हैं और जीवन को बनाए रखने के लिए ‘सुरक्षात्मक कवच’ के रूप में कोकून का निर्माण करते हैं।
  • जीवन चक्र: रेशम कीट के जीवन चक्र में चार चरण होते हैं: अंडा → लार्वा (कैटरपिलर) → प्यूपा → कीट।
    • मनुष्य, कोकून अवस्था में इस जीवन चक्र में हस्तक्षेप करके रेशम प्राप्त करता है, जो वाणिज्यिक महत्त्व का एक सतत् रेशा है, जिसका उपयोग कपड़े की बुनाई में किया जाता है।

रेशम उत्पादन

  • विश्व 
    • चीन वर्ष  का सबसे बड़ा रेशम उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 80% हिस्सा है।
    • भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसकी वैश्विक हिस्सेदारी लगभग 18% है और खपत में यह पहले स्थान पर है।
    • अन्य महत्त्वपूर्ण रेशम उत्पादकों में उज्बेकिस्तान, थाईलैंड, वियतनाम और ब्राजील शामिल हैं।
  • भारत
    • वित्त वर्ष 2024 के दौरान देश में कुल रेशम उत्पादन में कर्नाटक का योगदान लगभग 32.3% रहा।
    • अन्य प्रमुख रेशम उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, जम्मू और कश्मीर, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं।

रेशम के प्रकार

  • शहतूत रेशम: यह रेशम के कीड़ों से प्राप्त होता है, जो केवल शहतूत के पत्ते खाते हैं।
    • यह मुलायम, चिकना और चमकदार होता है, यह साड़ियों और अंतिम वस्त्रों के लिए सही विकल्प है।
    • देश के कुल कच्चे रेशम उत्पादन का 92% शहतूत से आता (वैश्विक रेशम उत्पादन का 95%) है।
    • किस्में
      • मल्टीवोल्टाइन (कई पीढ़ियाँ/वर्ष) – अधिक उपज लेकिन कीट-प्रवण।
      • बिवोल्टाइन (दो पीढ़ियाँ/वर्ष) – बेहतर गुणवत्ता, निर्यात के लिए पसंद किया जाता है।
  • गैर-शहतूत रेशम (जिसे वान्या रेशम भी कहा जाता है): यह जंगली रेशम के कीटों से प्राप्त होता है, जो ओक, अरंडी और अर्जुन जैसे पेड़ों की पत्तियों से भोजन प्राप्त करते हैं।
    • इस रेशम में प्राकृतिक मृदा जैसा अनुभव होता है और इसकी चमक कम होती है, लेकिन यह मजबूत, सतत् और पर्यावरण के अनुकूल है।
    • इसमें टसर, एरी और मूंगा रेशम शामिल हैं।

भारत में रेशम के प्रकार: भारत विश्व का एकमात्र देश है, जो सभी चार प्रमुख प्रकार के रेशम का उत्पादन करता है।
प्रकार  रेशमकीट प्रजातियाँ खाद्य पौधा मुख्य राज्य विशेषताएँ
शहतूत बॉम्बिक्स मोरी शहतूत के पत्ते कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर मुलायम, चमकदार, सबसे सामान्य (92% हिस्सा)।
टसर  एन्थेरिया माइलिटा अर्जुन, आसन झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल मोटा, ताँबे जैसा, साज-सज्जा में प्रयुक्त।
एरी  फिलोसामिया रिकिनी अरंडी के पत्ते असम, मेघालय, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा  स्पन सिल्क, गर्म, पर्यावरण अनुकूल (शांति रेशम)।
मुगा एन्थेरिया असामेंसिस सोम, सुआलु असम (अनन्य), पूर्वोत्तर राज्य सुनहरा-पीला, चमकदार, विरासत रेशम।

रेशम की उत्पत्ति

  • प्राचीन खोज: रेशम की उत्पत्ति चीन में 5,000 वर्ष पूर्व हुई थी।
  • प्रारंभिक उपयोग और विकास: चीनियों ने रेशम उत्पादन (रेशम के कीड़ों का पालन) और बुनाई की तकनीकों में महारत हासिल की, इसे सदियों तक एक राजकीय रहस्य बनाए रखा।
    • रेशम का उपयोग निम्नलिखित में किया जाता था: शाही वस्त्र; धार्मिक समारोह; मुद्रा और राजनयिक उपहार के रूप में।
  • चीन के अलावा प्रसार: रेशम उत्पादन का रहस्य लगभग 3,000 वर्षों तक चीन तक ही सीमित रहा।
    • बाद में यह निम्नलिखित स्थानों पर फैल गया
      • कोरिया और जापान (प्रवासियों और भिक्षुओं के माध्यम से)।
      • भारत सिल्क रूट व्यापार के माध्यम से।
      • यूरोप बहुत बाद में बीजान्टिन और फारसी वार्ता के माध्यम से।
  • सिल्क रोड: सिल्क रोड (एशिया, यूरोप और अफ्रीका में फैला एक व्यापार नेटवर्क) का नाम इसके नाम पर रखा गया था।
    • रेशम धन और कूटनीति का प्रतीक बन गया, जिसने पूर्व और पश्चिम के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान में योगदान दिया।
  • भारत में रेशम: भारत में रेशम के उपयोग के साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता (लगभग 2450-2000 ईसा पूर्व) से मिलते हैं।
    • भारत ने अपनी स्वदेशी रेशम किस्में (टसर, एरी, मूंगा) विकसित कीं।
    • समय के साथ, भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा रेशम उत्पादक बन गया और सभी चार प्रमुख प्रकार के रेशम का उत्पादन करने वाला एकमात्र देश बन गया।

रेशम उत्पादन क्या है?

  • रेशम उत्पादन एक कृषि आधारित उद्योग है।
  • इसमें कच्चे रेशम के उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन-पोषण शामिल है, जो कि कुछ विशेष प्रकार के कीड़ों द्वारा निर्मित कोकून से प्राप्त किया गया धागा है।
  • रेशम उत्पादन की प्रमुख गतिविधियों में खाद्य-पौधों की खेती शामिल है, जो रेशम के कोकून बनाने वाले रेशम के कीड़ों को खाद्य आश्रय प्रदान करती है और प्रसंस्करण तथा बुनाई जैसे मूल्य वर्द्धित लाभों के लिए रेशम के कोकून का प्रयोग करती है।

रेशम उत्पादन प्रक्रिया

  • पालन: रेशम के कीड़ों को मेजबान पौधों (शहतूत, ओक, अरंडी) पर खाद्य आश्रय प्रदान किया जाता है।
  • कोकून निर्माण: लार्वा 3-4 सप्ताह में कोकून बनाते हैं।
  • रीलिंग: कोकून को उबालकर रेशम के रेशे (फाइब्रोइन+सेरिसिन) निकाले जाते हैं।
  • बुनाई: रेशे को सूत में काता जाता है और कपड़े में बुना जाता है।

भारत के लिए रेशम उत्पादन क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • उच्च रोजगार संभावना: रेशम उद्योग भारत में 60 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है, कच्चे रेशम के प्रति किलोग्राम (खेत पर और खेत से बाहर) उत्पादन से 11 मानव-दिवस का सृजन होता है।
    • ग्रामीण पुनर्निर्माण के लिए आदर्श।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है: रेशम कपड़े का 57% मूल्य गाँवों में वापस जाता है।
    • शहरी संपदा को ग्रामीण क्षेत्रों में पुनर्वितरित करके गाँव की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करता है।
  • कम निवेश, उच्च रिटर्न: केवल ₹12,000-15,000/एकड़ (भूमि लागत को छोड़कर) की आवश्यकता होती है।
  • त्वरित रिटर्न: शहतूत 6 महीने में उगता है और 15-20 वर्ष तक रेशम कीट का पालन-पोषण करता है।
  • वार्षिक आय: उचित प्रथाओं के साथ ₹30,000/एकड़ तक।
  • महिला सशक्तीकरण: 60% श्रमिक महिलाएँ हैं, जो शहतूत की खेती, पालन और बुनाई में प्रमुख हैं।
    • गृह-आधारित कार्य ग्रामीण आजीविका में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाता है।
  • कमजोर वर्गों का समर्थन: लघु/सीमांत किसानों और भूमिहीन मजदूरों (जैसे, टसर रेशम के अंतर्गत आदिवासी) के लिए उपयुक्त।

पर्यावरण के अनुकूल अभ्यास

  • मृदा संरक्षण: शहतूत की गहरी जड़ें कटाव को रोकती हैं।
  • अपशिष्ट पुनर्चक्रण: रेशम के कीट अपशिष्ट मिट्टी को समृद्ध करते हैं; सूखी टहनियाँ जलाऊ लकड़ी की जगह लेती हैं।
  • कम कार्बन पदचिह्न: न्यूनतम मशीनरी उपयोग प्रदूषण को कम करता है।
  • समानता संबंधी चिंताओं को संतुष्ट करता है: शहरी अभिजात वर्ग (रेशम खरीदार) से पैसा ग्रामीण गरीबों (किसानों/बुनकरों) को हस्तांतरित करता है।
    • भूमिहीन श्रमिकों को अनुबंधित शहतूत की खेती से लाभ होता है।
  • अप्रयुक्त क्षमता का उपयोग करता है: भारत की कृषि योग्य भूमि का केवल 0.1% शहतूत की खेती के अंतर्गत है – जो विस्तार की बहुत बड़ी संभावना को दर्शाता है।
    • वन आधारित ‘वान्या’ रेशम (टसर, एरी, मूंगा) वनों को नुकसान पहुँचाए बिना जनजातीय आय में वृद्धि कर सकते हैं।

रेशम विकास में सरकारी योजनाएँ

  • रेशम समग्र योजना: यह वर्ष (2017-20) के दौरान भारत में रेशम उद्योग में सुधार के लिए एक महत्त्वपूर्ण केंद्रीय क्षेत्र योजना है।
    • कार्यान्वयन: वस्त्र मंत्रालय के तहत केंद्रीय रेशम बोर्ड द्वारा कार्यान्वित की जा रही है।
    • उद्देश्य: गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार करके उत्पादन को बढ़ाना और देश में रेशम उत्पादन की विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से दलित, गरीब और पिछड़े परिवारों को सशक्त बनाना।
    • इस योजना में चार (4) प्रमुख घटक शामिल हैं:
      • अनुसंधान एवं विकास, प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और आई.टी. पहल।
      • बीज संगठन।
      • समन्वय और बाजार विकास।
      • गुणवत्ता प्रमाणन प्रणाली (Quality Certification Systems-QCS)/ निर्यात ब्रांड संवर्द्धन और प्रौद्योगिकी उन्नयन।
  • रेशम समग्र-2: यह वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 की अवधि के लिए 4,679.85 करोड़ रुपये के बजट के साथ इस प्रयास का विस्तार है। ये कार्यक्रम रेशम के कीड़ों को पालने से लेकर गुणवत्तापूर्ण रेशमी कपड़े बनाने तक, संपूर्ण रेशम उत्पादन प्रक्रिया को बेहतर बनाने में सहायता करते हैं।
    • अब तक 1,075.58 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता प्रदान की गई है, जिससे 78,000 से अधिक लोगों को लाभ मिला है।
    • रेशम समग्र-2 घटकों की सहायता के लिए पिछले तीन वर्षों में आंध्र प्रदेश (72.50 करोड़ रुपये) और तेलंगाना (40.66 करोड़ रुपये) को वित्तीय सहायता दी गई है।
  • कच्चा माल आपूर्ति योजना (Raw Material Supply Scheme-RMSS): ‘यार्न’ आपूर्ति योजना (Yarn Supply Scheme-YSS) को आंशिक संशोधन के साथ, जिसका नाम बदलकर कच्चा माल आपूर्ति योजना (Raw Material Supply Scheme-RMSS) कर दिया गया है, को वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 की अवधि के दौरान कार्यान्वयन के लिए अनुमोदित किया गया है।
    • पात्र हथकरघा बुनकरों को रियायती दरों पर गुणवत्तायुक्त ‘यार्न’ एवं उनके मिश्रण उपलब्ध कराना।
      • इस योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2023-2024 के दौरान कुल 340 लाख किलोग्राम यार्न की आपूर्ति की गई है।
  • राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (National Handloom Development Programme-NHDP): राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (NHDP), वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 तक संचालित होगा।
    • उद्देश्य: रेशमी कपड़ा उत्पादकों सहित हथकरघा क्षेत्र में बुनकरों को सहायता प्रदान करना।
    • यह योजना हथकरघा के एकीकृत विकास को बढ़ावा देने और हथकरघा बुनकरों के कल्याण में सुधार करने के लिए आवश्यकता-आधारित दृष्टिकोण अपनाती है।
    • यह कच्चे माल, डिजाइन, प्रौद्योगिकी उन्नयन और प्रदर्शनियों के माध्यम से विपणन के लिए सहायता प्रदान करती है।
    • यह शहरी हाट और विपणन परिसरों जैसे स्थायी बुनियादी ढाँचे को बनाने में सहायता करती है, जिससे सहकारी समितियों और स्वयं सहायता समूहों दोनों में बुनकरों को लाभ मिलता है।
  • वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण योजना (Scheme for Capacity Building in Textile Sector Scheme- SAMARTH): वस्त्र मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया यह कार्यक्रम माँग-संचालित और रोजगार-उन्मुख कार्यक्रम है।
    • 3 लाख लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए 495 करोड़ रुपये के बजट के साथ 2 वर्ष (वित्त वर्ष 2024-25 और 2025-26) के लिए विस्तारित।
    • योजना प्रवेश स्तर के प्रशिक्षण के साथ-साथ परिधान, हथकरघा, हस्तशिल्प, रेशम और जूट उद्योग में कौशल उन्नयन पर केंद्रित है।

भारत में रेशम के लिए शासी निकाय

  • केंद्रीय रेशम बोर्ड (Central Silk Board-CSB) 
    • केंद्रीय रेशम बोर्ड (CSB) भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना वर्ष 1948 में हुई थी।
    • उद्देश्य: देश में रेशम उत्पादन और रेशम उद्योग के विकास को बढ़ावा देना।
    • इसका मुख्यालय बंगलूरू में है।
    • CSB रेशम उत्पादन, गुणवत्ता में सुधार लाने और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय रेशम को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • भारतीय रेशम निर्यात संवर्द्धन परिषद (Indian Silk Export Promotion Council- ISEPC) 
    • भारतीय रेशम निर्यात संवर्द्धन परिषद (Indian Silk Export Promotion Council-ISEPC) का गठन वर्ष 1983 में किया गया था।
    • यह केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय द्वारा प्रायोजित है और केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समर्थित है।
    • ISEPC वस्त्र निर्यातकों, निर्माताओं और व्यापारियों का एक शीर्ष और गैर-लाभकारी निकाय है।

भारत में रेशम उत्पादन की चुनौतियाँ

  • खंडित भूमि जोत: अधिकांश रेशम उत्पादक किसान लघु या सीमांत हैं, जिससे मापनीयता सीमित हो जाती है।
    • रेशम उत्पादन केवल एक एकड़ पर किया जा सकता है, लेकिन कम भूमि उपलब्धता वाणिज्यिक क्षमता और प्रौद्योगिकी अपनाने को सीमित करती है।
  • मौसम और ऋतु पर भारी निर्भरता: रेशम के कीड़ों को तापमान में उतार-चढ़ाव, आर्द्रता और पेब्राइन (माइक्रोस्पोरिडिया के कारण) जैसी बीमारियों का अत्यधिक खतरा होता है।
    • मौसमी परिवर्तन  रेशम के कीड़ों के प्रजनन चक्र को प्रभावित करते हैं।
  • चीनी आयात पर निर्भरता: वर्ष 2015 में, भारत ने स्थानीय उत्पादकों की सुरक्षा के लिए चीनी रेशम पर एंटी-डंपिंग शुल्क ($1.85/किग्रा) लगाया।
    • चीनी रेशम भारत की मांग का 15-20% पूरा करता है।
  • ‘वान्या’ रेशम के लिए संगठित बाजार का अभाव: टसर, मूंगा और एरी रेशम के कोकून अक्सर बिचौलियों (महाजनों) के माध्यम से बेचे जाते हैं, जिससे उत्पादकों का शोषण होता है।
    • शहतूत रेशम जैसी मजबूत विपणन प्रणाली का अभाव; राज्य संघों और गैर-सरकारी संगठनों को इस समस्या से निपटने में आंशिक सफलता ही मिली है।
  • तकनीकी अंतराल और पुरानी प्रथाएँ: कई क्षेत्रों में आधुनिक पालन उपकरण, स्वचालित रीलिंग मशीन और डिजाइन नवाचारों तक सीमित पहुँच।
    • सिल्क समग्र ने 3A-4A ग्रेड रेशम का उत्पादन करने के लिए स्वचालित रीलिंग मशीन (ARM) की शुरुआत की, लेकिन दूरदराज के क्षेत्रों में इसकी पहुँच कम है।
  • वैश्विक मानकों की तुलना में कम उत्पादकता: प्रति हेक्टेयर रेशम की पैदावार और कोकून उत्पादकता में भारत पिछड़ा हुआ है।
    • वर्ष 2023-24 में 29,892 मीट्रिक टन शहतूत रेशम के बावजूद, उत्पादकता अभी भी वैश्विक नेतृत्वकर्ता चीन जैसे देशों की तुलना में कम है।
  • विशाल संभावनाओं के बावजूद सीमित विस्तार: भारत की कृषि योग्य भूमि का केवल 0.1% हिस्सा शहतूत की खेती के अंतर्गत आता है, जो संसाधनों के कम उपयोग को दर्शाता है।
    • जनजातीय आजीविका को बेहतर बनाने के लिए, बंजर भूमि और वन आधारित रेशम पालन (टसर) उद्योग का विस्तार किया जा सकता है, लेकिन अभी तक इसका बड़े पैमाने पर दोहन नहीं हुआ है।

भारत में रेशम उत्पादन के लिए आगे की राह

  • ‘वान्या’ रेशम के लिए बाजार संपर्क को मजबूत करना: राज्य संघों, ट्राइफेड और वान्या रेशम बाजार संवर्धन सेल (Vanya Silk Market Promotion Cell-VSMPC) के माध्यम से टसर, एरी और मूंगा रेशम  के लिए संगठित विपणन प्रणाली बनाना।
    • बिचौलियों (महाजनों) पर निर्भरता कम करने के लिए प्रत्यक्ष-से-उपभोक्ता प्लेटफॉर्म, वान्या सिल्क शॉपीज और ई-मार्केटिंग पोर्टल को बढ़ावा देना।
  • शहतूत और गैर-शहतूत रेशम खेती का विस्तार करना: टसर रेशम से संबंधित शहतूत और वन आधारित खाद्य पौधों के लिए अप्रयुक्त ऊपरी भूमि, पहाड़ी ढलानों और जलग्रहण क्षेत्रों का उपयोग करना।
    • मनरेगा और RKVY जैसी सरकारी योजनाओं का उपयोग करके आदिवासी और वर्षा आधारित क्षेत्रों में अंतर-फसल को प्रोत्साहित करना और रेशम कीट पालन को बढ़ावा देना।
  • प्रौद्योगिकी को अपनाने पर जोर देना: रेशम समग्र-2 के अंतर्गत स्वचालित रीलिंग मशीनों (ARMs) और बेहतर ‘चॉकी पालन केंद्रों’ तक पहुँच बढ़ाना।
    • समर्थ और अन्य कौशल कार्यक्रमों के माध्यम से विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं को आधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • उत्पादक सहकारी समितियों को मजबूत करना: सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाने और शोषण को कम करने के लिए सहकारी मॉडल और स्वयं सहायता समूहों (जैसा कि काँचीपुरम् में देखा गया) को बढ़ावा देना।
    • समुदाय आधारित पालन, बीज उत्पादन इकाइयों और सामूहिक प्रसंस्करण केंद्रों को प्रोत्साहित करना।
  • स्थायी और पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना: शहतूत के पर्यावरणीय लाभों (मृदा संरक्षण, हरित आवरण) पर प्रकाश डालना और जैविक रेशम उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
    • रेशम कीट के कचरे को बगीचे की खाद और सूखी टहनियों को ईंधन के रूप में पुनर्चक्रित करने को प्रोत्साहित करना।
  • अनुसंधान और विकास का समर्थन करना: जलवायु अनुकूल रेशम कीट नस्लों और रोग-प्रतिरोधी वृक्षारोपण विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश करना।

निष्कर्ष 

भारत का रेशम उद्योग परंपरा और आर्थिक विकास का मिश्रण है, जिसे सिल्क समग्र (Silk Samagra) जैसी सरकारी योजनाओं से समर्थन मिलता है। कौशल विकास, गुणवत्ता सुधार और बाजार विस्तार पर ध्यान केंद्रित करने से सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करके भारत अपनी वैश्विक रेशम व्यापार स्थिति में वृद्धि कर सकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.