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भारत का एकल-उपयोग प्लास्टिक संकट

Lokesh Pal March 06, 2024 06:33 147 0

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) में छठी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA-6) के दौरान लॉन्च की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत में स्ट्रीट फूड सेक्टर एकल-उपयोग प्लास्टिक (Single-Use Plastics) पर बहुत अधिक निर्भर है।

UNEA-6 ने जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता ह्रास और प्रदूषण से निपटने के लिए प्रभावी, समावेशी तथा टिकाऊ बहुपक्षीय कार्रवाईविषय पर ध्यान केंद्रित किया।

एकल-उपयोग प्लास्टिक (Single-Use Plastics) के बारे में

  • परिभाषा: यह एक प्लास्टिक वस्तु को संदर्भित करता है, जिसका निपटान या पुनर्चक्रण से पहले एक ही उद्देश्य के लिए एक बार उपयोग किया जाता है।
  • स्थिति: प्रतिबंधित एकल उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं की वार्षिक हिस्सेदारी लगभग 0.6 मिलियन टन प्रति वर्ष है।
    • रिपोर्ट ‘प्लास्टिक वेस्ट मेकर्स इंडेक्स 2019’ (Plastic Waste Makers Index 2019) के अनुसार, भारत विश्व स्तर पर एकल उपयोग प्लास्टिक पॉलिमर उत्पादन में 13वाँ सबसे बड़ा निवेशक था।
    • 5 मिलियन टन एकल उपयोग प्लास्टिक कचरे का योगदान करते हुए भारत विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है और प्रति व्यक्ति 4 किलोग्राम प्रति वर्ष एकल-उपयोग प्लास्टिक कचरे के साथ 94वें स्थान पर है, जो दर्शाता है कि भारत लगभग 11% एकल-उपयोग प्लास्टिक कचरे का निपटान करता है।

एकल उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं की पहचान

  • विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर: केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय के निर्देश के तहत रसायन और पेट्रोकेमिकल्स विभाग (Department of Chemicals and Petrochemicals- DCPC) द्वारा गठित एकल-उपयोग प्लास्टिक पर एक विशेषज्ञ समिति की एक रिपोर्ट के आधार पर चरणबद्ध तरीके से समाप्त की जाने वाली एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं की पहचान की गई थी।
  • मूल्यांकन के लिए पैरामीटर: यह मूल्यांकन दो स्तंभों की तुलना करके किया गया था-
    • एक विशिष्ट प्रकार के एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोगिता सूचकांक
    • इसका पर्यावरणीय प्रभाव

भारत में एकल उपयोग-प्लास्टिक से जुड़ी चुनौतियाँ

  • कानूनों और विनियमों से संबंधित
    • अतिसरलीकृत परिभाषा: यह परिभाषा आवश्यक और अनावश्यक प्लास्टिक या पुनर्चक्रण योग्य और गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक के बीच अंतर नहीं करती है। 
    • सीमित वस्तुओं पर प्रतिबंध: भारत ने 19 चयनित एकल उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया था, हालाँकि बहुत-सी वस्तुएँ अभी भी प्रचलन में हैं।
      • हानिकारक गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक की एक बड़ी मात्रा को अभी भी इस आधार पर जारी रखने की अनुमति दी गई है कि भारत के पास उन प्लास्टिक के विकल्प मौजूद नहीं हैं। 
    • पहचान के लिए अस्पष्ट मानदंड: कुछ प्लास्टिक वस्तुएँ, जो उपयोगिता सूचकांक में कम और पर्यावरणीय प्रभाव में उच्च हैं, उन्हें चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर विचार नहीं किया गया है। इससे बड़े निगम सबसे कम प्रभावित होते हैं।
      • यह स्पष्ट नहीं है कि चरणबद्ध तरीके से बाहर करने के लिए सूचीबद्ध वस्तुओं के लिए वास्तव में किस मानदंड पर विचार किया गया था।
    • विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (EPR)  नीति में खामियाँ: यह नीति संग्रह और पुनर्चक्रण को निर्दिष्ट करता है। इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि कुछ एकल-उपयोग प्लास्टिक जो प्रतिबंधित नहीं हैं (बहुस्तरीय पैकेजिंग) गैर-पुनर्चक्रण योग्य हैं।
      • EPR: यह एक नीतिगत रणनीति है, जो उत्पादकों को उनके माल के अंतिम अवधि परिणामों के लिए जिम्मेदार ठहराती है और उपयोग के बाद वस्तुओं के उचित संग्रह और निपटान को सक्षम बनाती है।
  • जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के राष्ट्र आधारित प्लास्टिक डेटा से पता चला है कि भारत अपने प्लास्टिक कचरे का 85% कुप्रबंधन करता है। 
    • समुद्री जीवन में: मुख्य रूप से एकल उपयोग वाला यह कचरा सड़कों के किनारे फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है, जो वर्षा के दौरान बहकर नदियों में पहुँच जाता है, जहाँ से यह समुद्र में फैल जाता है, जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समुद्री जीवों और पारितंत्र को नुकसान पहुँचता है। 
      • जैसे-जैसे महीनों, वर्षों और दशकों का समय बीतता है यह कचरा सूक्ष्म और नैनो-आकार के कणों में विघटित हो जाता है।
    • पृथ्वी की सतह पर: एकल उपयोग प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और निपटान से होने वाला उत्सर्जन देश के पर्यावरण को खराब करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
      • यह वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 5-10% हिस्सा हो सकता है।
    • विश्व वन्यजीव कोष के अनुसार, प्लास्टिक पर्यावरण के लिए हानिकारक है क्योंकि यह बायोडिग्रेडेबल नहीं है और इसे विघटित होने में वर्षों लग जाते हैं। लेकिन एकल उपयोग प्लास्टिक अत्यंत हानिकारक है, कभी भी पूरी तरह से नष्ट नहीं होता है, माइक्रोप्लास्टिक बन जाता है और पर्यावरण को प्रदूषित करता रहता है।
  • आर्थिक प्रभाव: एकल उपयोग प्लास्टिक प्रदूषण को साफ करने और इसके परिणामों से निपटने में स्थानीय समुदायों, नगर पालिकाओं और सरकारों को महत्त्वपूर्ण लागत का वहन करना पड़ता है।
    • वर्ष 2021 वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की रिपोर्ट, प्लास्टिक: द कॉस्ट्स टू सोसायटी, द एनवायरनमेंट एंड द इकोनॉमी के अनुसार, ‘वर्ष 2019 में उत्पादित प्लास्टिक की आवधिक लागत कम-से-कम 3.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होगी, जो भारत की जीडीपी से अधिक है।’
      • संपूर्ण जीवनकाल की लागत: इसमें अपशिष्ट प्रबंधन की लागत, पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान के कारण होने वाली लागत, स्वास्थ्य संबंधी लागत और प्लास्टिक प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए शमन उपाय शामिल हैं। 
    • पर्यटन क्षेत्र पर प्रभाव: ऐसा प्लास्टिक कचरा पर्यटन स्थलों को नुकसान पहुँचाता है और पर्यटन क्षेत्र एवं अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • विकल्पों का अभाव: बड़ी मात्रा में विकल्पों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए कोई सहायक बुनियादी ढाँचा या प्रोत्साहन प्रदान नहीं किए जाने के कारण बाजार में एकल-उपयोग प्लास्टिक के विकल्पों की कमी है।

केस स्टडी- हिमालय पर प्रभाव

  • माइक्रोप्लास्टिक का जमाव एवं संचय: माइक्रोप्लास्टिक के कण हिमालय के पहाड़ों, नदियों, झीलों और झरनों में पाए गए हैं। ये माइक्रोप्लास्टिक लंबे समय तक ग्लेशियरों में फँसे रह सकते हैं और बर्फ पिघलने के दौरान नदियों में प्रवाहित हो सकते हैं। 
    • माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण अनुचित तरीके से निपटाए गए प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के क्षरण एवं विखंडन से होता है।
  • प्लास्टिक संचय के कारण: तीव्र एवं अनियोजित शहरीकरण, बदलते उत्पादन एवं उपभोग पैटर्न और पर्यटकों की संख्या में तीव्र वृद्धि के कारण प्लास्टिक संचय में वृद्धि हो रही है।
  • चिंता के एक कारण के रूप में: अवैज्ञानिक प्लास्टिक निपटान से भारतीय हिमालय क्षेत्र में मृदा एवं जल प्रदूषण हो रहा है और इसकी जैव विविधता पर असर पड़ रहा है, जिससे ताजे पानी के स्रोतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिन पर निचले इलाकों के समुदाय निर्भर हैं।
    • हिमालय क्षेत्र जल का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जो भारत की कई प्रमुख नदियों को जल प्रदान करता है, जिसमें सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी प्रणालियाँ शामिल हैं।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (Centre For Science And Environment- CSE) द्वारा आयोजित सर्वेक्षण

परिचय: CSE ने भारत में एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध के कार्यान्वयन और प्रवर्तन की सीमा को समझने के लिए (डिजिटल साधनों के संयुग्मन के साथ और नागरिकों जैसे हितधारकों के साथ बातचीत, खुदरा विक्रेता एवं स्ट्रीट वेंडर) तीन अलग-अलग सर्वेक्षण किए।

CSE सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष

  • कानून प्रवर्तन पर: SPCBs और स्थानीय सरकारों द्वारा एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध का कमजोर कार्यान्वयन है।
  • पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति: शहरी स्थानीय निकायों के अधिकारियों द्वारा खुदरा विक्रेताओं और स्ट्रीट वेंडरों से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति वसूलना जारी है, हालाँकि एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं का उत्पादन और बिक्री करने वाली इकाइयाँ, उनका निर्माण निर्बाध रूप से जारी रखती हैं।
  • प्रगति पर: व्यापक कार्य योजना के प्रावधानों, विशेषकर डिलिवरेबल्स, जिन्हें जमीनी स्तर पर लागू किया जाना था, का पालन नहीं किया गया है और सौंपे गए कार्य पर जिम्मेदार प्राधिकारी की ओर से कोई अद्यतन जानकारी नहीं है।
    • प्रतिबंध के शुरुआती महीनों के दौरान ही जागरूकता अभियान सघन थे और अगस्त 2022 के बाद इसमें गिरावट आई है।
  • व्यापक डेटा पर: ऐसे निर्माताओं और/या उत्पादकों की संख्या पर कोई डेटा नहीं है, जिन पर SPCB/PCC या CPCB द्वारा जुर्माना लगाया गया था।
    • इसके अलावा, इस बात की भी कोई सूची नहीं है कि जुर्माना लगाने वाले निर्माताओं में से कौन-सा अभी भी चालू है।
    • समेकित डेटा अनुरोध पर उपलब्ध है लेकिन सार्वजनिक डोमेन में आसानी से उपलब्ध नहीं है।
  • जुर्माने पर: हालाँकि CPCB द्वारा जारी पर्यावरणीय मुआवजा मौद्रिक और कानूनी कार्रवाई के संदर्भ में स्पष्ट संकेत देता है, उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ की गई कार्रवाई पर CPCB द्वारा ऐसा कोई अपडेट जारी नहीं किया गया है।
  • प्रचलन पर: कैरी बैग (120 माइक्रोन से कम) सबसे व्यापक रूप से प्रसारित प्रतिबंधित एकल-उपयोग प्लास्टिक आइटम बना हुआ है। उपलब्ध कराए गए सभी प्रतिबंधित एकल-उपयोग प्लास्टिक में से लगभग एक-तिहाई कैरी बैग हैं।
  • विकल्पों पर: प्लास्टिक विकल्पों का बाजार गंभीर रूप से अविकसित है और इसे आगे बढ़ाने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

एकल-उपयोग प्लास्टिक पर भारत की कार्रवाई

  • चिह्नित एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध
    • वर्ष 2018: 5 जून, 2018 को, विश्व पर्यावरण दिवस को चिह्नित करने के लिए, भारतीय प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि भारत वर्ष 2022 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर देगा।
    • वर्ष 2021: 12 अगस्त, 2021 को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MOEFCC) द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 (Plastic Waste Management Amendment Rules, 2021) के माध्यम से पहचानी गई एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध अधिसूचित किया गया (1 जुलाई, 2022 को लागू हुआ)।
      • भारत ने पहली बार एकल-उपयोग प्लास्टिक को परिभाषित किया।
      • शेष एकल-उपयोग प्लास्टिक आइटम, जिनमें ज्यादातर पैकेजिंग उत्पाद शामिल हैं, वर्ष 2022 में MOEFCC द्वारा शुरू की गई विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (Extended Producer Responsibility- EPR) नीति के तहत कवर किए गए हैं।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016: इसमें कहा गया है कि शहरी स्थानीय निकायों को 50 माइक्रोन से कम मोटे प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और भोजन, पेय पदार्थ या किसी अन्य खाद्य पदार्थ की पैकिंग के लिए पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक के उपयोग की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
    • इसने भारत में प्लास्टिक के प्रबंधन के लिए विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (Extended Producer Responsibility- EPR) की अवधारणा पेश की।

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022: EPR पर दिशा-निर्देश चिह्नित एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं के निषेध के साथ जुड़े हुए हैं।
    • इसने 75 माइक्रोन से कम के नवीन या पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से बने कैरी बैग के निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • स्वच्छ भारत मिशन – शहरी 2.0: प्रत्येक शहरी स्थानीय निकाय को कचरे के 100% स्रोत पृथक्करण को अपनाने की आवश्यकता है एवं पुनर्चक्रण और/या मूल्य वर्द्धित उत्पादों में प्रसंस्करण के लिए सूखे कचरे (प्लास्टिक कचरे सहित) को आगे के अंशों में छाँटने के लिए सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधा तक पहुँच होनी चाहिए।
    • इसका उद्देश्य डंपसाइटों या जलाशयों में जाने वाले प्लास्टिक एवं सूखे कचरे को कम करना है।
    • इसने प्लास्टिक विकल्पों की पहचान करने और जागरूकता उत्पन्न करने पर भी ध्यान केंद्रित किया।
  • विशेष कार्य बलों की स्थापना: एकल-उपयोग प्लास्टिक को खत्म करने और प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में इनका गठन किया गया था।
    • राष्ट्रव्यापी प्रयासों के समन्वय के लिए एक राष्ट्रीय स्तरीय कार्यबल की स्थापना की गई थी।
  • उत्पादों पर प्रतिबंध: प्रतिबंधित वस्तुओं के लिए प्लास्टिक के कच्चे माल की आपूर्ति रोकने, प्रतिबंधित प्लास्टिक उत्पादकों के लाइसेंस रद्द करने और प्रतिबंधित वस्तुओं के आयात को रोकने के लिए विभिन्न निर्देश जारी किए गए।
  • निवारण प्लेटफॉर्म: निगरानी और शिकायत निवारण के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाए गए।
  • जागरूकता अभियान: पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों में परिवर्तन के लिए MSMEs को सहायता और जागरूकता कार्यक्रम प्रदान किए गए।
    • पूरे भारत में प्रवर्तन अभियान चलाए गए।

व्यापक कार्य योजना (Comprehensive Action Plan) के बारे में

  • जारीकर्ता: फरवरी 2022 में, इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (State Pollution Control Boards- SPCBs) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (Pollution Control Committees- PCCs) को जारी किया गया था।
  • उद्देश्य: एकल-उपयोग प्लास्टिक के मुद्दे से निपटना और इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना।
  • घटक: कार्य योजना में निम्नलिखित चार भाग शामिल हैं-

घटक/भाग

कार्य

आपूर्ति-पक्ष हस्तक्षेप
  • प्लास्टिक के कच्चे माल की आपूर्ति रोकना।
  • प्रतिबंधित एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) वस्तुओं का निर्माण बंद करना।
  • प्रतिबंधित SUP वस्तुओं की बिक्री रोकना।

(*SMS- आपूर्ति (Supply), विनिर्माण (Manufacturing) और बिक्री (Sale) रोकें)

माँग-पक्ष हस्तक्षेप
  • प्रतिबंधित SUP वस्तुओं का उपयोग रोकना।
  • CPCB द्वारा जारी निर्देश
    • 18 प्लास्टिक कच्चे माल निर्माताओं, एकल-उपयोग प्लास्टिक के 9 विक्रेताओं और 30 ई-कॉमर्स कंपनियों को SUP को चरणबद्ध तरीके से बाहर करने के लिए।
    • आयात को विनियमित करने/रोकने के लिए सभी SPCB और PCC, सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और सीमा शुल्क अधिकारियों को पत्र जारी किए गए थे।
एकल-उपयोग प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना
  • एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUPs) के विकल्पों (Alternatives) को बढ़ावा देना।
  • SUP को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के बारे में जागरूकता (Awareness) पैदा करना।

(*AA- Alternatives & Awareness)

एसयूपी लीगेसी वेस्ट (SUP Legacy Waste) का प्रबंधन 
  • इसने भारतीय बाजार में उपलब्ध विभिन्न प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों के लिए मार्गदर्शन दस्तावेज विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया।
  • उपलब्ध प्लेटफॉर्म: भारत में चिह्नित SUP और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन पर प्रतिबंध की प्रभावी निगरानी के लिए, निम्नलिखित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म संचालन में हैं:-
    • SUP के उन्मूलन पर अनुपालन के लिए CPCB निगरानी मॉड्यूल।
    • CPCB शिकायत निवारण ऐप।

भारत द्वारा की गई अन्य कार्रवाइयाँ

  • कानूनी बाध्यकारी संधि (Legal Binding Treaty) का एक हिस्सा: वर्ष 2022 में, भारत सहित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के 124 देशों ने एक समझौता तैयार करने के लिए एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, जो भविष्य में प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए उत्पादन से निपटान तक प्लास्टिक की पूर्ण अवधि को संबोधित करने हेतु हस्ताक्षरकर्ताओं के लिए इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बना देगा।
  • जहाजों से प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (The International Convention for the Prevention of Pollution from Ships- MARPOL): भारत MARPOL का सदस्य है।
    • यह परिचालन या आकस्मिक कारणों से जहाजों द्वारा समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण की रोकथाम को कवर करने वाला मुख्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है।
    • MARPOL कन्वेंशन को 2 नवंबर, 1973 को अंतरराष्ट्रीय मैरीटाइम संगठन (IMO) में अपनाया गया था।
  • भारत प्लास्टिक समझौता (India Plastics Pact): इसे सितंबर 2021 में लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य अपने हस्ताक्षरकर्ताओं को चार महत्त्वाकांक्षी और समयबद्ध लक्ष्यों तक पहुँचाकर भारत में प्लास्टिक के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था बनाना है।
  • प्रोजेक्ट रिप्लान (Project REPLAN): इसका मतलब प्राकृतिक वातावरण में प्लास्टिक को कम करना है। इसका लक्ष्य प्रसंस्कृत और उपचारित प्लास्टिक कचरे को 20:80 के अनुपात में कपास रेशों के साथ मिलाकर कैरी बैग बनाना है।
  • अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective): यह भारतीय उद्योग परिसंघ, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और WWF-इंडिया द्वारा सह-स्थापित है, जो एकल-उपयोग प्लास्टिक को कम करने के लिए एक आंदोलन है।
  • ग्लोलिटर साझेदारी परियोजना (GloLitter Partnerships Project): इसे शिपिंग और मत्स्यपालन से समुद्री प्लास्टिक कूड़े को रोकने और कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा शुरू किया गया है।
    • ग्लोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट के तहत एक प्रमुख भागीदार देश (Lead Partner Country- LPC) भारत ने अब समुद्र आधारित समुद्री प्लास्टिक कचरे  के प्रबंधन और रोकथाम के लिए अपनी राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan- NAP) प्रकाशित की है।

प्लास्टिक ओवरशूट डे (Plastic Overshoot Day) के बारे में

  • प्रत्येक वर्ष, एक दिन ऐसा आता है जब प्लास्टिक कचरे की मात्रा, कचरा प्रबंधन प्रणालियों की इसे प्रबंधित करने की क्षमता से अधिक हो जाती है।
  • स्विस स्थित संगठन एनवायरनमेंट एक्शन इसे प्लास्टिक ओवरशूट डे (Plastic Overshoot Day) कहता है।

आगे की राह

  • क्षमता निर्माण का उन्नयन: संरचित क्षेत्र निरीक्षण के संबंध में सरकारी अधिकारियों की क्षमता निर्माण को उन्नत करने की आवश्यकता है। निरीक्षण टीमों को आवश्यक उपकरणों से भी सुसज्जित किया जाना चाहिए।
  • अनिवार्य सार्वजनिक प्रकटीकरण: CPCB और MOEFCC द्वारा स्थानीय सरकारों और राज्यों को सभी SPCB/PCCs के अध्यक्षों को प्रदान किए गए प्रारूप में अपनी वेबसाइटों पर त्रैमासिक अपडेट देने का आदेश दिया जाना चाहिए।
  • जवाबदेही पर ध्यान: CPCB के लिए आवश्यक है कि राज्य हर आवधिक प्रवर्तन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, CPCB द्वारा प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट में माँगी गई जानकारी को शामिल करने का प्रावधान होना चाहिए।
  • पारदर्शिता पर काम: CPCB को उस डेटा को साझा करना शुरू करना होगा, जो वह EPR के माध्यम से निजी खिलाड़ियों से और SUP निगरानी मॉड्यूल के माध्यम से राज्य अधिकारियों से एकत्र करता है।
  • प्लास्टिक बैग पर सख्त प्रतिबंध: मोटाई की परवाह किए बिना कैरी बैग पर पूर्वी अफ्रीकी देशों (तंजानिया और रवांडा) और हिमाचल प्रदेश में सफल प्रतिबंध के समान प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

    • हिमाचल प्रदेश ने अपने गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरा नियंत्रण अधिनियम 1998 के माध्यम से कैरी बैग के उत्पादन, वितरण, भंडारण और उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है।
  • SUP विकल्पों में निवेश करना: लागत प्रभावी और सुविधाजनक विकल्प प्रदान करके SUP विकल्पों में निवेश करना। सहायक बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है और बड़ी मात्रा में विकल्पों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए।
  • पुन: प्रयोज्य पैकेजिंग प्रणाली को अपनाना: भारत को पुन: प्रयोज्य पैकेजिंग प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो आर्थिक एवं पर्यावरणीय स्थिरता दोनों में मदद करेगी।
    • पुन: उपयोग प्रणालियों ने आवश्यक सामग्रियों की मात्रा कम कर दी और 2 से 3 वर्ष की भुगतान अवधि के साथ निवेश पर 21% रिटर्न मिला।
  • प्राथमिकता के आधार पर चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: अनावश्यक और गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक को प्राथमिकता के आधार पर चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की आवश्यकता है।
  • कानूनों और विनियमों का सख्त प्रवर्तन: एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध का कार्यान्वयन ठीक तरीके से नहीं हुआ है और इसे मजबूत करने की आवश्यकता है।

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