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भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र

Lokesh Pal January 20, 2025 03:01 21 0

संदर्भ

इसरो ने कक्षा में डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन करने के लिए अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग (Space Docking Experiment- SPADEX) का सफलतापूर्वक प्रयोग किया, जो ईंधन भरने, उपग्रह सेवा और भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशन मिशनों के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षमता है।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र 

  • वर्तमान मूल्य: भारत के अंतरिक्ष उद्योग का मूल्य $8 बिलियन है, जो वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2% का योगदान देता है।
  • सरकारी खर्च: अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर वार्षिक खर्च लगभग $2 बिलियन है।
  • उपग्रह प्रक्षेपण और राजस्व: वर्ष 1999 से, भारत ने 34 देशों के लिए 381 उपग्रह लॉन्च किए हैं, जिससे $279 मिलियन का राजस्व प्राप्त हुआ है।
  • वैश्विक स्थिति: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) विश्व की छठी सबसे बड़ी राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है।
  • भविष्य की संभावना: IN-SPACe के अनुसार, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2033 तक ₹35,200 करोड़ ($44 बिलियन) तक बढ़ सकती है, जो वैश्विक हिस्सेदारी का 8% हिस्सा होगी।

ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की हालिया उपलब्धियाँ

  • चंद्रयान-3 मिशन: इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास विक्रम लैंडर को सफलतापूर्वक उतारा, जिससे भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला पहला देश बन गया।
    • इस मिशन में प्रज्ञान रोवर को भी तैनात किया गया, जिसने साइट पर सल्फर तथा अन्य तत्त्वों का पता लगाने सहित कई प्रयोग किए।
  • ISRO का अंतरिक्ष खेती परीक्षण: ISRO ने अपने जैव-पुनर्जननकारी जीवन समर्थन प्रणाली प्रयोगों के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष में लोबिया (काउपिया) के बीजों की वृद्धि का परीक्षण किया, जिससे अंतरिक्ष मिशनों में स्थायी खाद्य उत्पादन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • आदित्य-L1 मिशन: सूर्य के वायुमंडल, जिसमें कोरोना, सौर पवन तथा चुंबकीय तूफान शामिल हैं, का अध्ययन करने के लिए भारत की पहली सौर वेधशाला, आदित्य-L1 को लॉन्च किया गया। इसने अंतरिक्ष-आधारित सौर अनुसंधान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया।
  • एक्सपोसैट: यह वर्ष 2021 में लॉन्च किए गए नासा के इमेजिंग एक्स-रे पोलारिमेट्री एक्सप्लोरर (IPEX) के बाद दूसरी ऐसी अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है। एक्सपोसैट पर संलग्न दो उपकरण, जिन्हें ‘एक्सस्पेक्ट’ और ‘पोलिक्स’ कहा जाता है, ने लॉन्च के बाद कार्य करना शुरू कर दिया।
  • सिंगापुर के DS-SAR उपग्रह का PSLV-C57/कक्षीय प्रक्षेपण: PSLV-C57 मिशन ने सिंगापुर के लिए DS-SAR उपग्रह और छह सह-यात्री उपग्रहों को प्रक्षेपित किया, जिससे लागत-प्रभावी वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपणों के लिए ISRO की प्रतिष्ठा की पुष्टि हुई।
  • गगनयान की तैयारियाँ: ISRO ने गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिए महत्त्वपूर्ण परीक्षण पूर्ण कर लिए हैं, जिसमें ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ परीक्षण भी शामिल है। यह मिशन वर्ष 2025 के लिए निर्धारित है, जिसका लक्ष्य भारत को अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बनाना है।
  • LVM3-M3 वनवेब इंडिया-2 मिशन: ISRO ने वनवेब के 36 उपग्रहों को पृथ्वी की निम्न कक्षा में प्रक्षेपित किया, जिससे वनवेब का पहली पीढ़ी का वैश्विक उपग्रह समूह चक्र पूर्ण हो गया। इसने वैश्विक उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में ISRO की स्थिति को और मजबूत किया।

अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की भूमिका

  • उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण: स्काईरूट का विक्रम-एस नवंबर, 2022 में भारत में लॉन्च होने वाला पहला निजी तौर पर निर्मित रॉकेट बन गया।
  • अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोग: ‘पिक्सेल’ जैसे स्टार्टअप पृथ्वी इमेजिंग तथा डेटा एनालिटिक्स के लिए उपग्रहों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे कृषि, आपदा प्रबंधन तथा शहरी नियोजन में सेवाएँ सक्षम हो रही हैं।
  • ISRO के साथ सहयोग: L&T तथा HAL ने गगनयान मिशन के लिए ISRO के साथ भागीदारी की।
  • नवाचार को बढ़ावा देना: अग्निकुल कॉसमॉस लॉन्च सिस्टम में क्रांति लाने के लिए 3D-प्रिंटेड रॉकेट इंजन पर कार्य कर रहा है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की संभावनाएँ

  • बाजार के आकार में वृद्धि: अनुमान है कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2040 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगी और भारत की हिस्सेदारी, जो वर्तमान में केवल 2% है, में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की संभावना है।
  • उपग्रह प्रक्षेपण सेवाएँ: PSLV ने 36 देशों के 400 से अधिक विदेशी उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है, जिससे ISRO को पर्याप्त राजस्व प्राप्त हुआ है।
    • पिछले 10 वर्षों में ISRO ने 34 प्रक्षेपण किए हैं, जिनमें 121 उपग्रह सफलतापूर्वक भेजे गए हैं, जिनमें से 75 विदेशी थे: 18 (24%) अमेरिका के, 11 (15%) कनाडा के, 8 (11%) सिंगापुर और जर्मनी के, तथा 6 (8%) ब्रिटेन के थे।
  • वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्यम: स्काईरूट एयरोस्पेस और पिक्सल जैसे निजी अभिकर्ताओं के आगमन के साथ, भारत छोटे उपग्रह प्रक्षेपण, अंतरिक्ष-आधारित इमेजिंग और डेटा एनालिटिक्स में विविधता ला रहा है।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण पर ध्यान केंद्रित: चंद्रयान-3 की सफलता, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट-लैंड करने वाले पहले मिशन के रूप में।
  • वैश्विक भागीदारी: ISRO-नासा का निसार उपग्रह जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन करेगा।

ISRO का स्पेस फार्मिंग परीक्षण (वर्ष 2023)

  • ISRO ने अंतरिक्ष में लोबिया (काउपिया) के बीजों की वृद्धि का परीक्षण करके एक अभूतपूर्व प्रयोग किया।
  • यह परीक्षण बायो-रीजेनरेटिव लाइफ सपोर्ट सिस्टम (BLSS) विकसित करने के प्रयासों का हिस्सा था।
  • यह लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशनों के लिए टिकाऊ खाद्य उत्पादन पर केंद्रित है।
  • यह प्रयोग भविष्य के अंतरग्रहीय मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को ताजा भोजन उपलब्ध कराने, पहले से पैक किए गए भोजन पर निर्भरता कम करने तथा मिशन आत्मनिर्भरता बढ़ाने का वादा करता है।
  • यह पहल अंतरिक्ष कृषि को आगे बढ़ाने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
    • उदाहरण: नासा का वेजी कार्यक्रम और चीन के अंतरिक्ष खेती प्रयोग।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • बजट की कमी: वैश्विक मान्यता के बावजूद, ISRO नासा जैसी एजेंसियों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे बजट पर काम करता है।
  • उदाहरण: नासा का वर्ष 2023 का बजट $25 बिलियन था, जबकि ISRO का लगभग $1.6 बिलियन था।
  • तकनीकी अंतर: भारी-भरकम रॉकेट और उन्नत पुन: प्रयोज्य प्रौद्योगिकियों में सीमित विशेषज्ञता महत्त्वाकांक्षी मिशनों में देरी करती है।
  • अंतरिक्ष अपशिष्ट का प्रबंधन: बढ़ते उपग्रह प्रक्षेपण अंतरिक्ष अपशिष्ट में वृद्धि करते हैं, जिससे कक्षीय स्थिरता के लिए दीर्घकालिक चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
  • प्रतिभा पलायन: भारत में सीमित फंडिंग और प्रोत्साहन के कारण कई शीर्ष वैज्ञानिक विदेशों में बेहतर अवसरों की तलाश करते हैं।
  • भू-राजनीतिक बाधाएँ: अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और MTCR (मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था) जैसी प्रौद्योगिकी प्रतिबंध व्यवस्थाओं के कारण वैश्विक सहयोग चुनौतियों का सामना करते हैं।

अंतरिक्ष तथा ISRO के लिए सरकारी पहल

  • IN-SPACe का गठन: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुगम बनाता है, नीति और विनियामक समर्थन सुनिश्चित करता है।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023: नीति में ISRO, IN-SPACe और निजी खिलाड़ियों के लिए भूमिकाएँ परिभाषित की गई हैं, जो व्यावसायीकरण और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जबकि ISRO रणनीतिक मिशनों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • बजट आवंटन: भारत ने बजट वर्ष 2023-24 में अंतरिक्ष विभाग को लगभग 12000 करोड़ रुपये आवंटित किए।
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का शुभारंभ: NSIL ISRO की तकनीकों और उपग्रह प्रक्षेपणों का व्यावसायीकरण करता है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की उपस्थिति का विस्तार होता है।
  • शिक्षा और नवाचार पर ध्यान: युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम (YUVIKA) जैसे कार्यक्रम तथा IIT और IISc के साथ सहयोग भारत में अंतरिक्ष शिक्षा तथा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देते हैं।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए आगे की राह

  • बजट आवंटन में वृद्धि: अंतरिक्ष अनुसंधान निधि को प्राथमिकता दी जाए ताकि अंतरिक्ष कार्यक्रम निवेश के वैश्विक औसत से समानता स्थापित हो सके।
  • सहयोगात्मक नवाचार: तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) के तहत निजी अभिकर्ताओं के साथ साझेदारी करना।
  • स्वदेशी नवाचार: GSLV Mk-III और उन्नत प्रणोदन प्रणालियों जैसी भारी-भरकम रॉकेट प्रौद्योगिकियों में निवेश करना।
  • मानव संसाधनों पर ध्यान देना: शीर्ष प्रतिभाओं को बनाए रखने के लिए आकर्षक प्रोत्साहन, वैश्विक प्रदर्शन तथा कौशल-निर्माण कार्यक्रम शुरू करना।
    • उदाहरण: कौशल भारत मिशन (अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए)
  • अंतरिक्ष मलबे का शमन: उपग्रह डी-ऑर्बिटिंग सिस्टम जैसी अंतरिक्ष मलबे शमन प्रौद्योगिकियों का विकास करें और कक्षीय स्थिरता के लिए वैश्विक प्रयासों में भाग लेना।

निष्कर्ष

चंद्रयान-3, आदित्य-L1, स्पैडेक्स तथा स्पेस फार्मिंग ट्रायल सहित ISRO की हालिया उपलब्धियाँ अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की बढ़ती क्षमता को दर्शाती हैं। बढ़ी हुई फंडिंग, तकनीकी नवाचार और वैश्विक सहयोग के जरिए चुनौतियों का समाधान करके, ISRO वैज्ञानिक खोज, आर्थिक विकास और वैश्विक स्थिरता में अपने योगदान को और बढ़ा सकता है।

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