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भू-राजनीतिक परिवर्तनों के बीच भारत की रणनीतिक प्रतिक्रियाएँ

Lokesh Pal August 11, 2025 03:28 5 0

संदर्भ

भारत की वैश्विक स्थिति और भू-राजनीतिक जुड़ाव को नया रूप दिया जा रहा है क्योंकि यह एक विकसित विश्व व्यवस्था की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

भू-राजनीतिक पुनर्निर्धारण और भारत की वैश्विक उपस्थिति

  • वैश्विक भू-राजनीति का पुनर्निर्धारण: वैश्विक भू-राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव हो रहा है, जिसके लिए भारत को अपनी वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • रणनीतिक चुनौती: भारत की वैश्विक रणनीतियाँ विरोधाभासों और दोहरे मानदंडों, विशेष रूप से उसके रणनीतिक साझेदारों (जैसे- अमेरिका और यूरोपीय संघ) के कारण बाधित हैं।

ऑपरेशन सिंदूर और वैश्विक प्रतिक्रिया

  • 22 अप्रैल 2025 को लश्कर-ए-तैयबा (LeT) द्वारा पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों को निशाना बनाते हुए सख्त जवाबी कार्रवाई की, जिसका उद्देश्य आतंकी ढाँचों को कमजोर करना और भविष्य के हमलों को रोकना था।
  • वैश्विक प्रतिक्रिया
    • अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे रणनीतिक साझेदार, संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों को आश्रय देने के मुद्दे पर पाकिस्तान पर स्पष्ट आरोप लगाने से बचते रहे।
    • अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने व्यापार के बल पर युद्धविराम का श्रेय लिया, जिसका भारत ने संसदीय बहसों में खंडन किया।
    • ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर को ट्रम्प के साथ लंच पर आमंत्रित किया गया।
  • सकारात्मक विकास
    • अमेरिका ने पहलगाम हमले के लिए जिम्मेदार ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) को एक विदेशी आतंकवादी संगठन (FTO) और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी (Specially Designated Global Terrorist- SDGT) घोषित किया है।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की निगरानी टीम ने हमले के लिए TRF को जिम्मेदार ठहराया है।
  • निहितार्थ: आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के बावजूद भारत वैश्विक आख्यानों को आकार देने में संघर्ष कर रहा है।

अमेरिका-भारत संबंध

  • व्यापार और शुल्क
    • अमेरिका ने निसार उपग्रह प्रक्षेपण (भारत-अमेरिका सहयोग) के दिन भारत पर 25% टैरिफ लगाया।
    • ट्रंप ने टैरिफ को भारत के रूसी तेल आयात से जोड़ा और अमेरिका-रूस संबंधों में सुधार का समर्थन करने के बावजूद भारत पररूसी युद्ध मशीन’ का समर्थन करने का आरोप लगाया।
    • अमेरिका ने कंपनियों को भारत में नहीं, बल्कि घरेलू स्तर पर निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • सुरक्षा चिंताएँ
    • अमेरिका-पाकिस्तान संबंध मजबूत हुए हैं, जहाँ अमेरिका ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान के आतंकवाद-रोधी प्रयासों की सराहना की है।
    • बांग्लादेश में शेख हसीना-विरोधी शक्तियों और म्यांमार में सैन्य-विरोधी ताकतों को अमेरिका का समर्थन भारत के हितों को अस्थिर करता है।
  • प्रभाव: गलवान और पहलगाम के बाद आपसी विश्वास में कमी और क्षेत्रीय सुरक्षा समन्वय में तनाव।

यूरोपीय संघ के दोहरे मापदंड

  • भारत पर प्रतिबंध: यूरोपीय संघ ने भारत की वाडिनार रिफाइनरी (जो रूसी रोजनेफ्ट से जुड़ी है) को निशाना बनाया, जिससे ऊर्जा सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया।
  • पाखंड: यूरोपीय संघ के देश (जैसे- हंगरी, स्लोवाकिया) रूसी तेल और LNG (यूरोप को रूसी LNG निर्यात का 51%) का आयात करते हैं, जबकि भारत की आलोचना करते हैं।
  • व्यापार बाधाएँ: यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा कर और डिजिटल व्यापार बाधाएँ भारत की व्यापार संभावनाओं में बाधा डालती हैं।
  • भारत की प्रतिक्रिया: उम्मीद है कि भारत-UK CETA (व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता) यूरोपीय संघ पर व्यापार माँगों को कम करने के लिए दबाव डालेगा।

चीन का क्षेत्रीय प्रभाव

  • पड़ोसी कूटनीति: चीन ने पाकिस्तान और बांग्लादेश (चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में) के साथ एक त्रिपक्षीय पहल का प्रस्ताव रखा; बांग्लादेश ने अस्वीकार कर दिया।
    • चीन, भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास, लालमोनिरहाट (बांग्लादेश) में द्वितीय विश्व युद्ध के एक एयरबेस के पुनरुद्धार का समर्थन करता है।
    • ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को व्यापक समर्थन।
  • उत्तेजनात्मक कार्रवाइयाँ:
    • अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के लिए मानकीकृत ‘मंदारिन’ नाम देना।
    • दलाई लामा संस्था पर नियंत्रण की योजनाएँ।
    • भारतीय सीमा के पास यारलुंग ज़ंग्बो (ब्रह्मपुत्र) पर एक विशाल बाँध का निर्माण।
  • आर्थिक लाभ: भारत के साथ चीन का व्यापार अधिशेष आपूर्ति श्रृंखलाओं (दुर्लभ मृदा, उर्वरक, API, सुरंग खोदने वाली मशीनें) को संकुचित करता है।
  • भारत की प्रतिक्रिया: चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव यात्रा; सीमा पर तनाव कम न होने के बावजूद गलवान के बाद चीन के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने के प्रयास।

हालिया भू-राजनीतिक घटनाक्रमों पर भारत की प्रमुख रणनीतिक प्रतिक्रियाएँ

  • आतंकवाद के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई: पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया, जिसमें पाकिस्तान समर्थितलश्कर-ए-तैयबा’ से जुड़े आतंकवादियों का सफाया किया गया।
    • इस ऑपरेशन की सफलता के बावजूद, भारत को वैश्विक मान्यता प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा, क्योंकि अमेरिका और अन्य सहयोगियों ने आतंकवादियों को पनाह देने के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार नहीं ठहराया।
  • अमेरिका-भारत संबंध
    • आर्थिक दबाव: अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारतीय वस्तुओं (25%) पर टैरिफ लगाया और भारत के रूसी तेल आयात को निशाना बनाया, तथा भारत पर रूसी संघर्ष पर अमेरिकी दृष्टिकोण को कमजोर करने का आरोप लगाया।
    • भारत ने अपने कदमों का बचाव करते हुए अमेरिकी दबाव की अनुचित प्रकृति का हवाला दिया, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय संघ यूरेनियम और तेल जैसे अन्य क्षेत्रों में रूस के साथ वार्ता जारी रखे हुए हैं।
  • यूरोपीय संघ के प्रतिबंध और ऊर्जा सुरक्षा: यूरोपीय संघ ने भारत की वाडिनार रिफाइनरी पर प्रतिबंध लगा दिए, जिससे तेल की बढ़ती कीमतों के बीच भारत की ऊर्जा सुरक्षा बाधित हुई, जबकि यूरोपीय संघ को अपनी छूट और रूस के साथ व्यापार जारी रखने का अधिकार था।
    • भारत, यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का मुकाबला करने के लिएभारत-यू.के. व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते’ (CETA) जैसे व्यापार सौदों पर सक्रिय रूप से बातचीत कर रहा है।
  • दक्षिण एशिया में चीन का सामरिक प्रभाव: पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ पहल सहित भारत के पड़ोस में चीन की बढ़ती उपस्थिति ने रणनीतिक चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं।
    • भारत मालदीव सहित क्षेत्रीय भागीदारों के साथ संबंधों को मजबूत करके चीन के प्रभाव का मुकाबला कर रहा है।
  • चीन-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता के बीच भारत की रक्षा रणनीति में बदलाव: पहलगाम हमले और उसके बाद की सैन्य प्रतिक्रिया ने भारत को अपनी रक्षा रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया, विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान सहयोग के संदर्भ में।
    • भारत, चीन-पाकिस्तान गठबंधन का मुकाबला करने के लिए उन्नत तकनीक को एकीकृत कर रहा है और रक्षा प्रणालियों का आधुनिकीकरण कर रहा है, जिसमें एयरोस्पेस श्रेष्ठता और बहु-क्षेत्रीय संचालन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • वैश्विक संघर्षों के बीच रणनीतिक स्वायत्तता: भारत ने इजराइल-गाजा युद्ध पर तटस्थ रुख बनाए रखा, जिससे उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए वैश्विक संघर्षों के प्रति उसके सतर्क रुख का संकेत मिलता है।
    • भारत की प्रतिक्रिया किसी भी एक शक्ति के साथ पूरी तरह से जुड़े बिना अंतरराष्ट्रीय संबंधों को संतुलित करने की उसकी व्यापक रणनीति को दर्शाती है, जिससे उसे अपनी विदेश नीति में लचीलापन बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • भू-राजनीतिक दृढ़ता: भारत अमेरिका और यूरोपीय संघ के दोहरे मानदंडों की आलोचना कर रहा है और स्वतंत्र आर्थिक एवं ऊर्जा सुरक्षा नीतियों को अपनाने के अपने अधिकार पर जोर दे रहा है।
    • यह दृढ़ता वैश्विक मामलों में भारत के बढ़ते आत्मविश्वास को उजागर करती है।

भारत के विकास के लिए भू-राजनीतिक जुड़ाव का महत्त्व

  • व्यापार साझेदारी में विविधता: ब्रिक्स और क्वाड जैसे बहुपक्षीय मंचों में भारत की भागीदारी उसे व्यापार संबंधों में विविधता लाने और किसी एक देश पर निर्भरता कम करने में सक्षम बनाती है।
    • यह विविधता वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों को कम करती है और वैश्विक बाजार में भारत की लचीलापन को बढ़ाती है।
  • रणनीतिक अवसंरचना पहल: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) और एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा (AAGC) जैसी परियोजनाएँ कनेक्टिविटी और व्यापार मार्गों को बढ़ाने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
    • ये पहल व्यापार प्रवाह को सुगम बनाती हैं, परिवहन लागत को कम करती हैं और भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिए नए बाजार खोलती हैं।
  • राजनयिक जुड़ाव के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा: रूस जैसे देशों के साथ भारत के राजनयिक संबंध ऊर्जा संसाधनों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, वैश्विक प्रतिबंधों के बावजूद, भारत रियायती दरों पर रूसी तेल का आयात जारी रखता है, जिससे उसकी विदेश नीति में ऊर्जा सुरक्षा के महत्त्व पर बल मिलता है।
  • वैश्विक शासन में प्रभाव: G20 जैसे संगठनों में भारत की सक्रिय भागीदारी और वैश्विक दक्षिण में इसका नेतृत्व वैश्विक आर्थिक शासन में इसकी भूमिका को बढ़ाता है।
    • यह प्रभाव भारत को विकासशील देशों के पक्ष में और उसके राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नीतियों का समर्थन करने में सक्षम बनाता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा: पड़ोसी देशों और क्षेत्रीय संगठनों के साथ जुड़ाव आर्थिक गतिविधियों के लिए अनुकूल एक स्थिर वातावरण सुनिश्चित करता है।
    • जापान, जर्मनी और ईरान जैसे देशों के साथ रक्षा, व्यापार और बुनियादी ढाँचे में सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ाता है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार साझेदारी: उन्नत तकनीकी क्षमताओं वाले देशों के साथ सहयोग ज्ञान हस्तांतरण और नवाचार को सुगम बनाता है।
    • अंतरिक्ष अनुसंधान, नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में साझेदारी भारत में तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देती है।
  • सांस्कृतिक कूटनीति और सॉफ्ट पावर: भारत की सांस्कृतिक कूटनीति, जिसे उसके विशाल प्रवासी समुदाय का समर्थन प्राप्त है, उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को मजबूत करती है।
    • अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जैसी पहल और शांति अभियानों में भारत की भूमिका, उसकी सॉफ्ट पावर को मजबूत करती है और वैश्विक मामलों में उसके प्रभाव को बढ़ाती है।

भारत के लिए आगे की चुनौतियाँ

  • अमेरिका के साथ व्यापार तनाव: हाल ही में अमेरिका ने भारतीय आयातों पर 25% टैरिफ लगाया, जिसे 27 अगस्त तक बढ़ाकर 50% कर दिया गया, जिससे द्विपक्षीय व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
    • भारत द्वारा रूसी तेल की निरंतर खरीद का हवाला देते हुए, यह कदम भारत के निर्यात-संचालित क्षेत्रों के लिए ख़तरा है।
    • विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि इससे अगले वर्ष भारत की GDP वृद्धि दर में 80 आधार अंकों तक की कमी आ सकती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा चुनौतियाँ: वैश्विक प्रतिबंधों के बावजूद, भारत रूस से रियायती दरों पर तेल आयात करना जारी रखे हुए है, जो उसके तेल आयात का लगभग 36-40% है।
    • यह निर्भरता भारत को भू-राजनीतिक दबावों और संभावित आपूर्ति व्यवधानों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
  • भू-राजनीतिक अस्थिरता: भारत एक तेजी से अस्थिर वैश्विक परिवेश का सामना कर रहा है, जिसमें दक्षिण चीन सागर और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा है, जिससे व्यापार मार्ग बाधित हो सकते हैं और क्षेत्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
  • आर्थिक संरक्षणवाद: संरक्षणवाद में वृद्धि, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ की ओर से, भारत का निर्यात-संचालित विकास मॉडल खतरे में है।
    • शुल्क, व्यापार बाधाएँ और प्रतिबंध वैश्विक बाजारों तक भारत की पहुँच को सीमित कर सकते हैं।
  • चीन के प्रभाव में वृद्धि: भारत के पड़ोस में चीन का बढ़ता प्रभाव और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसका आक्रामक रुख गंभीर चुनौतियाँ पेश कर रहा है।
  • आंतरिक सुरक्षा खतरे: भारत आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है, खासकर आतंकवाद, जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद और नक्सली आंदोलनों से, जो राष्ट्रीय स्थिरता और विकास को बाधित करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय जोखिम: जलवायु परिवर्तन भारत के लिए अस्तित्व का खतरा बन गया है, बाढ़, सूखे और चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि के कारण कृषि, जल संसाधन और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहे हैं।
  • मानव पूंजी और रोजगार: युवा और बढ़ती आबादी के साथ, भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को पूरा करने और बढ़ती बेरोजगारी और असमानता को रोकने के लिए रोजगार सृजन, कौशल विकास और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारत के लिए आगे की राह

  • बहुपक्षीय संबंधों को मजबूत करना: भारत को अपने विकास और सुरक्षा के लिए विविध समर्थन सुनिश्चित करने हेतु BRICS, क्वाड और G20 जैसे वैश्विक मंचों पर रणनीतिक साझेदारियाँ बनाना जारी रखना चाहिए।
  • व्यापार और आर्थिक सुधारों पर ध्यान देना: भारत को व्यापक व्यापार समझौतों पर जोर देना चाहिए और घरेलू नियमों को सुव्यवस्थित करना चाहिए।
    • संरक्षणवाद का मुकाबला करने और सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए व्यापार सुगमता में सुधार के प्रयास करने चाहिए।
  • क्षेत्रीय कूटनीति को बढ़ावा देना: पड़ोसियों और क्षेत्रीय संगठनों के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर, भारत क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में कार्य कर सकता है और चीन के बढ़ते प्रभाव, विशेष रूप से हिंद महासागर और दक्षिण एशिया में, का प्रतिकार कर सकता है।
  • रक्षा और सुरक्षा को बढ़ावा देना: भारत को साइबर और अंतरिक्ष रक्षा सहित अपनी रक्षा क्षमताओं के आधुनिकीकरण में निवेश करना चाहिए और आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा खतरों का मुकाबला करने के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ खुफिया जानकारी साझा करना बढ़ाना चाहिए।
  • नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण में तेजी लाना: भारत को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और भू-राजनीतिक व्यवधानों के जोखिमों को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ाने, ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और ऊर्जा आपूर्ति विविधीकरण सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, भारत का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट और वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करना है।
  • जलवायु लचीलेपन में निवेश करना: आपदा प्रबंधन ढाँचे को मजबूत करना, सतत् कृषि में निवेश करना, तथा जल संरक्षण तकनीकों को बढ़ाना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • कौशल विकास पहलों को बढ़ावा देना: व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार और शिक्षा को उद्योग जगत की जरूरतों के अनुरूप बनाने से कौशल अंतराल कम होगा और रोजगार क्षमता बढ़ेगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता का पूरा उपयोग हो।

निष्कर्ष 

भारत की भू-राजनीतिक रणनीति को तटस्थता से आगे बढ़कर, अपने आर्थिक और तकनीकी विकास को सुरक्षित करने के लिए मुखर जुड़ाव की ओर बढ़ना होगा। बहुपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ कर, क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करते हुए और आंतरिक कमजोरियों को दूर करके, भारत भू-राजनीति के विखंडित ढाँचे को पार कर एक वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में उभर सकता है।

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