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भारत का पवन ऊर्जा क्षेत्र

Lokesh Pal June 10, 2025 03:12 60 0

संदर्भ

भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म आधारित विद्युत ऊर्जा स्थापित क्षमता प्राप्त करना है, जिसमें पवन ऊर्जा से 100 गीगावाट ऊर्जा प्राप्त करना शामिल है।

  • यद्यपि विस्तार आवश्यक है, लेकिन बड़ी चुनौतियाँ पवन ऊर्जा क्षेत्र में साइबर सुरक्षा, स्थानीयकरण और नवाचार में हैं।

पवन ऊर्जा के बारे में

  • पवन ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा का एक रूप है जो पवन टर्बाइन नामक उपकरणों का उपयोग करके पवन की गतिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके उत्पन्न की जाती है।
    • जैसे ही पवन टरबाइन के ब्लेडों को घुमाती है, यह विद्युत उत्पन्न करने के लिए जनरेटर शाफ्ट को घुमाती है।
  • पवन ऊर्जा के प्रकार
    • तटीय पवन ऊर्जा: भूमि पर स्थापित टर्बाइन के माध्यम से प्राप्त की जाती है।
    • अपतटीय पवन ऊर्जा: समुद्र या महासागर के जल में स्थापित टर्बाइन के माध्यम से प्राप्त की जाती है जो आमतौर पर मजबूत, स्थिर पवनों के कारण अधिक कुशल होते हैं।

भारत में पवन ऊर्जा की वर्तमान स्थिति

  • स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता: 50.04 गीगावाट (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, 2025 अप्रैल डेटा के अनुसार)।
  • भारत के ऊर्जा उत्पादन में हिस्सा: पवन ऊर्जा भारत की कुल स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का लगभग 10% है।
  • भारत की रैंक (वैश्विक): स्थापित पवन क्षमता में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी के बाद भारत चौथा सबसे बड़ा देश है।
  • राज्यवार पवन क्षमता वृद्धि: भारत ने वर्ष 2024 में 3.4 गीगावाट की नई पवन क्षमता जोड़ी है, जिसमें गुजरात (1,250 मेगावाट), कर्नाटक (1,135 मेगावाट) और तमिलनाडु (980 मेगावाट) सबसे आगे हैं।
    • इन राज्यों में नई पवन ऊर्जा क्षमता में 98% वृद्धि हुई है।
  • COP-26 (ग्लासगो, 2021)- पंचामृत प्रतिबद्धता: भारत वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म आधारित विद्युत क्षमता हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है।
    • इसमें से 100 गीगावाट से अधिक पवन ऊर्जा (ऑनशोर + ऑफशोर) से हासिल करने का लक्ष्य है।

पवन ऊर्जा के लाभ

  • स्वच्छ और नवीकरणीय: कार्बन उत्सर्जन को कम करता है, जिससे पेरिस समझौते के तहत भारत के NDC को प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  • उच्च क्षमता: भारत में अनुमानित पवन ऊर्जा क्षमता 300 गीगावाट से अधिक है।
  • ग्रामीण विकास: पवन फार्म रोजगार उत्पन्न करते हैं, स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हैं और गैर-कृषि योग्य भूमि का उपयोग करते हैं।

पवन ऊर्जा क्षेत्र में चुनौतियाँ

  • भूमि और ट्रांसमिशन मुद्दे: उच्च पवन क्षेत्रों में सन्निहित भूमि अधिग्रहण में कठिनाइयाँ और ट्रांसमिशन अवसंरचना का अभाव।
  • ग्रिड एकीकरण: पवन पैटर्न में परिवर्तनशीलता ग्रिड स्थिरता और ऊर्जा पूर्वानुमान के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
  • पुरानी अवसंरचना और कम क्षमता वाली टर्बाइनें: तमिलनाडु में, एक प्रमुख पवन ऊर्जा केंद्र है, कई टर्बाइन, जिनमें से कुछ 30 वर्ष से अधिक पुरानी हैं, अभी भी चालू हैं और अपनी समाप्ति के करीब हैं।
    • राज्य में लगभग 20,000 टर्बाइनों में से लगभग 10,000 लघु टर्बाइन हैं, जिनकी क्षमता 1 मेगावाट से कम है, जिससे उत्पादकता में काफी कमी आ रही है।
  • साइबर सुरक्षा जोखिम: पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (Supervisory Control and Data Acquisition-SCADA) प्रणाली और पवन फर्मों की ‘रिमोट-कंट्रोल सुविधाएँ’ हैकिंग के प्रति संवेदनशील हैं।
  • विदेशी नियंत्रण जोखिम: विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (OEM) द्वारा रिमोट एक्सेस रणनीतिक जोखिम उत्पन्न करता है। भारत के बाहर डेटा भंडारण राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ उत्पन्न करता है।
  • आयात निर्भरता: आयातित टर्बाइन घटकों पर अत्यधिक निर्भरता आत्मनिर्भरता को कम करती है और लागत बढ़ाती है।
    • आयातित मॉडल, हीट वेव (> 45 डिग्री सेल्सियस), तटीय पवन, मानसून, ग्रिड वोल्टेज में उतार-चढ़ाव आदि जैसी स्थितियों का सामना करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।
  • स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास का अभाव: अधिकांश मूल उपकरण निर्माता (OEM) यहाँ केवल असेंबली तक सीमित हैं, जबकि नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास में उनकी भागीदारी न्यूनतम है। स्थानीय अनुसंधान एवं विकास के इस अभाव के कारण भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलित प्रौद्योगिकियों का विकास बाधित होता है।

पवन ऊर्जा क्षेत्र के विकास और विस्तार के लिए प्रस्तावित नीतिगत उपाय

  • अनिवार्य डेटा स्थानीयकरण: विदेशी निगरानी या साइबर हमलों को रोकने के लिए सभी परिचालन पवन टर्बाइन डेटा को भारतीय क्षेत्र में संग्रहीत किया जाना चाहिए।
  • विदेशी दूरस्थ पहुँच पर प्रतिबंध: OEM सहित विदेशी संस्थाओं को अब भारतीय पवन फार्मों तक दूरस्थ रूप से पहुँचने या उन्हें नियंत्रित करने की अनुमति नहीं होगी।
  • स्थानीय नवाचार: भारत की विविध जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप अनिवार्य अनुसंधान एवं विकास सुविधाएँ और प्रोटोटाइप परीक्षण लागू किए जाने चाहिए।
    • पवन टर्बाइन के डिजाइन को ‘भारत के लिए इंजीनियर’ दृष्टिकोण के तहत भारतीय परिचालन चुनौतियों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
  • भारतीय प्राधिकारियों द्वारा प्रमाणन: सभी विक्रेताओं और OEM को देश में परिचालन की अनुमति देने से पहले भारतीय नियामक निकायों से सुरक्षा और परिचालन मंजूरी प्राप्त करनी होगी।

भारत में पवन ऊर्जा के विकास के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018: पवन और सौर उत्पादन को मिलाकर इष्टतम भूमि उपयोग को प्रोत्साहित करती है।
  • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति: भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में 7600 किलोमीटर की भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करना।
  • अपतटीय पवन परियोजनाओं के लिए VGF योजना: सरकार ने भारत की पहली अपतटीय पवन परियोजनाओं के 1 गीगावाट-गुजरात और तमिलनाडु में 500 मेगावाट को विकसित करने के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) योजना के तहत 7,453 करोड़ रुपये मंजूर किए।
  • राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE) द्वारा पवन एटलस: राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE) ने ऑनलाइन भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) प्लेटफॉर्म पर जमीनी स्तर से 100 मीटर ऊपर भारत का पवन ऊर्जा संसाधन मानचित्र और जमीनी स्तर पर सौर विकिरण मानचित्र लॉन्च किया है।

आगे की राह 

  • भारत-विशिष्ट डिजाइन अनुकूलन: भारत की विविध पवन व्यवस्थाओं, विशेष रूप से कम से मध्यम पवन गति वाले क्षेत्रों के लिए अनुकूलित पवन टर्बाइन प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • हाइब्रिड एकीकरण: पवन प्रणालियों को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि उन्हें सौर और भंडारण प्रणालियों के साथ आसानी से एकीकृत किया जा सके, जिससे हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा पार्कों के लिए भारत के प्रयासों को समर्थन मिले।
  • स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास: स्थानीय भूभाग और सामाजिक-आर्थिक संदर्भों के अनुकूल लागत प्रभावी, मॉड्यूलर पवन समाधान विकसित करने के लिए भारतीय अनुसंधान संस्थानों और उद्योग के बीच सहयोग को मजबूत करना।

निष्कर्ष 

भारत का पवन ऊर्जा भविष्य सिर्फ पैमाने पर ही नहीं, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि यह क्षेत्र कितना सुरक्षित, लचीला और आत्मनिर्भर है। भारत के स्वच्छ ऊर्जा दृष्टिकोण की रक्षा के लिए निष्क्रिय असेंबली प्रक्रिया से सक्रिय नवाचार और साइबर सुरक्षा की ओर परिवर्तन आवश्यक है।

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