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भारत की पवन ऊर्जा क्षमता

Lokesh Pal November 13, 2024 03:35 4 0

संदर्भ

अगस्त 2024 में, तमिलनाडु सरकार ने पुरानी हो रही पवन टर्बाइनों की समस्या से निपटने के लिए ‘पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए तमिलनाडु पुनर्शक्तीकरण, नवीनीकरण और जीवन विस्तार नीति – 2024’  (Tamil Nadu Repowering, Refurbishment and Life Extension Policy for Wind Power Projects – 2024) पेश की।

संबंधित तथ्य

  • इस नीति को पवन ऊर्जा उत्पादकों की ओर से विरोध का सामना करना पड़ा है, उनका तर्क है कि यह पवन ऊर्जा उत्पादन को पर्याप्त रूप से बढ़ावा नहीं देती है।
  • पवन ऊर्जा उत्पादकों ने इस मामले को मद्रास उच्च न्यायालय में ले जाया, जिसने नीति पर रोक लगा दी है।
  • उत्पादक ऐसी नीति संशोधन की माँग कर रहे हैं, जो पवन ऊर्जा के विकास और व्यवहार्यता का बेहतर समर्थन करें।
  • इस वर्ष की शुरुआत में, गुजरात ने स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता में तमिलनाडु को पीछे छोड़ दिया, जिससे तमिलनाडु कई वर्षों तक शीर्ष स्थान पर रहने के बाद दूसरे स्थान पर आ गया।

पवन ऊर्जा (Wind Energy) के बारे में 

  • पवन ऊर्जा एक अक्षय ऊर्जा स्रोत है, जो विद्युत उत्पन्न करने के लिए पवन ऊर्जा का उपयोग करता है।
  • यह हमारी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने का एक स्वच्छ और सतत् तरीका है।

पवन ऊर्जा संयंत्रों के प्रकार

  • ‘हॉरिजॉन्टल एक्सिस विंड टर्बाइन’ (Horizontal Axis Wind Turbines- HAWTs): ये सबसे आम प्रकार हैं, जिनमें ब्लेड क्षैतिज अक्ष के चारों ओर घूमते हैं। वे अत्यधिक कुशल हैं और बड़ी मात्रा में विद्युत उत्पन्न कर सकते हैं।
  • ‘वर्टिकल एक्सिस विंड टर्बाइन’ (Vertical Axis Wind Turbines- VAWTs): इन टर्बाइनों में ब्लेड होते हैं, जो एक ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घूमते हैं। वे किसी भी दिशा से हवा को पकड़ सकते हैं और अक्सर शहरी क्षेत्रों में उपयोग किए जाते हैं।

  • अपतटीय पवन फार्म (Offshore Wind Farms): ये पवन फार्म जल निकायों, जैसे महासागरों और बड़ी झीलों में स्थित हैं। वे मजबूत और अधिक सुसंगत हवाओं के कारण तटवर्ती पवन फार्मों की तुलना में अधिक विद्युत उत्पन्न कर सकते हैं।
  • तटवर्ती पवन फार्म (Onshore Wind Farms): ये पवन फार्म भूमि पर स्थित हैं, अक्सर उच्च हवा की गति वाले ग्रामीण क्षेत्रों में। यह तकनीक दुनिया भर में व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं।

भारत की पवन ऊर्जा क्षमता

  • वैश्विक रैंकिंग: भारत स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता के मामले में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर है।
    • भारत की कुल स्थापित उपयोगिता विद्युत उत्पादन क्षमता में पवन ऊर्जा का योगदान लगभग 10% है और वित्तीय वर्ष 2022-23 में इसने 71.814 TWh का उत्पादन किया, जो कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 4.43% है।
  • पवन ऊर्जा क्षमता: भारत में जमीन से 150 मीटर की ऊँचाई पर 1,163.86 GW की पवन ऊर्जा क्षमता है।
  • पवन ऊर्जा क्षमता के आधार पर शीर्ष राज्य (150 मीटर पर)
    • राजस्थान: 284.25 गीगावाट
    • गुजरात: 180.79 गीगावाट
    • महाराष्ट्र: 173.86 गीगावाट
    • कर्नाटक: 169.25 गीगावाट
    • आंध्र प्रदेश: 123.33 गीगावाट
  • उच्चतम स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता (मई 2024 तक)
    • गुजरात: 11,823 मेगावाट
    • तमिलनाडु (दूसरा सबसे अधिक)
    • कर्नाटक: 6,312 मेगावाट

ग्लोबल ऑफशोर विंड अलायंस (GOWA)

  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य अपतटीय पवन उद्योग के विकास में तेजी लाना।
    • अपतटीय पवन उद्योग के लिए एक केंद्रीकृत मंच प्रदान करना, जो वैश्विक घटनाओं एवं विकास का व्यापक अवलोकन प्रदान करता हो।
  • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक कम-से-कम 380 गीगावाट अपतटीय पवन क्षमता की स्थापना में योगदान देना।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य: अपतटीय पवन उद्योग को वर्ष 2050 तक 2000 गीगावाट से अधिक की क्षमता तक पहुँचने में मदद करके वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण का समर्थन करना।

राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति- 2015 (National Offshore Wind Energy Policy- 2015)

  • उद्देश्य: भारत में अपतटीय पवन क्षेत्र के विकास के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करना।
  • विकास का दायरा: नीति भारत के आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं की अनुमति देती है, जो देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) को कवर करती है।
  • नोडल मंत्रालय और एजेंसी: केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) प्राथमिक मंत्रालय के रूप में कार्य करता है, जबकि राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (National Institute of Wind Energy- NIWE) को अपतटीय पवन ऊर्जा विकास के लिए प्रमुख एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
  • दीर्घकालिक क्षमता लक्ष्य: नीति वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता तक पहुँचने का लक्ष्य निर्धारित करती है, जो भारत की नवीकरणीय ऊर्जा महत्त्वाकांक्षाओं का समर्थन करती है।
  • नवीकरणीय खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligation-RPO) के लिए रोड मैप: पवन नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO) के लिए एक रोडमैप घोषित किया गया है, जिसमें अपतटीय पवन ऊर्जा अपनाने को बढ़ाने के लिए वर्ष 2030 तक लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।

वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (Global Wind Energy Council- GWEC) 

  • GWEC पवन ऊर्जा उद्योग के लिए एक वैश्विक मंच है, जो अनुसंधान, बाजार संबंधी जानकारी और नीतिगत सिफारिशें प्रदान करता है, जिसका मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में है।
  • मिशन: पवन ऊर्जा के विकास और उपयोग को एक स्थायी तथा लागत प्रभावी ऊर्जा स्रोत के रूप में बढ़ावा देना।
  • सदस्यता: 80 से अधिक देशों की 1,500 से अधिक कंपनियों और संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है।
    • इसमें निर्माता, डेवलपर्स, आपूर्तिकर्ता, अनुसंधान संस्थान और वित्तीय संस्थान शामिल हैं।
  • GWEC की प्रमुख गतिविधियाँ
    • अनुसंधान और विश्लेषण: वैश्विक पवन रिपोर्ट और अन्य उद्योग अंतर्दृष्टि प्रकाशित करता है।
    • नीति वकालत: पवन ऊर्जा के विकास का समर्थन करने वाली नीतियों की वकालत करता है।
    • उद्योग नेटवर्किंग: उद्योग हितधारकों को जोड़ने के लिए कार्यक्रम और सम्मेलन आयोजित करता है।

पवन टर्बाइनों का पुनरुद्धार

  • पुनःशक्तिकरण (Repowering): पुरानी टर्बाइनों (विशेष रूप से 2 मेगावाट से कम) को नई, अधिक कुशल टर्बाइनों से बदलना। इससे उच्च शक्ति उत्पादन वाली बड़ी टर्बाइनों का उपयोग करके क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
    • छोटी टर्बाइनों को पुनः शक्ति प्रदान करने से तमिलनाडु के पवन ऊर्जा उत्पादन में अधिकतम पवन मौसम के दौरान 25% तक की वृद्धि हो सकती है।
  • नवीनीकरण: इसमें प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए मौजूदा टर्बाइनों की ऊँचाई, ब्लेड या गियरबॉक्स को संशोधित करना शामिल है।
  • अवधि विस्तार: इसमें परिचालन अवधि को बढ़ाने के लिए पुरानी टर्बाइनों का रखरखाव और उन्नयन करना शामिल है।

भारत में पवन ऊर्जा पुनःशक्तीकरण की चुनौतियाँ

  • पुराना बुनियादी ढाँचा और कम क्षमता वाली टर्बाइनें: भारत में कई पवन टर्बाइन, जैसे कि तमिलनाडु में, वर्ष 2000 से पहले स्थापित की गई थीं और उनकी क्षमता 1 मेगावाट से कम है।
    • ये पुरानी टर्बाइन अकुशल हैं और इन्हें आधुनिक, उच्च क्षमता वाले मॉडल के साथ संरेखित करने के लिए अपग्रेड की आवश्यकता है।
  • भूमि संबंधी बाधाएँ: नई, बड़ी टर्बाइन (2 मेगावाट से अधिक) के साथ पुनः विद्युतीकरण के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता होती है। सीमित भूमि उपलब्धता उन्नत टर्बाइनों की स्थापना को प्रतिबंधित करती है, जिससे क्षमता विस्तार सीमित होता है।
  • बैंकिंग प्रतिबंध: पवन टर्बाइनों के लिए वित्तीय सहायता की कमी भी पवन टर्बाइनों को पुनः शक्ति प्रदान करने में एक सीमित कारक है।
    • तमिलनाडु में वर्ष 2018 के बाद की स्थापनाओं में बैंकिंग सुविधाओं का अभाव है, जिससे पुनर्शक्तीकरण की वित्तीय व्यवहार्यता प्रभावित हो रही है, क्योंकि पुनर्शक्तिकृत टर्बाइन बैंकिंग लाभों के लिए अयोग्य हैं।
  • ट्रांसमिशन सीमाएँ: पुरानी ट्रांसमिशन प्रणालियाँ आधुनिक टर्बाइनों से बढ़े हुए आउटपुट को प्रबंधित नहीं कर पातीं हैं, जिससे संभावित व्यवधान उत्पन्न होते हैं।
  • प्रोत्साहनों का अभाव: अपर्याप्त नीतिगत प्रोत्साहनों के कारण डेवलपरों की पुनर्शक्तीकरण में रुचि कम हो जाती है, क्योंकि लागत और जटिलताएँ मौजूदा पवन फार्मों में निवेश को रोकती हैं।

आगे की राह

  • नीतिगत प्रोत्साहन: पुनःशक्तीकरण परियोजनाओं के लिए वित्तीय प्रोत्साहन, जैसे कर लाभ, अनुदान या सब्सिडी, परियोजना व्यवहार्यता में सुधार के लिए लागू करना।
  • बैंकिंग सुविधा विस्तार: पवन ऊर्जा जनरेटर के लिए वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए पुनःशक्तीकरण टर्बाइनों के लिए ऊर्जा बैंकिंग की अनुमति देना।
  • भूमि उपयोग लचीलापन: भूमि आवंटन को सुव्यवस्थित करना और जहाँ संभव हो, उच्च क्षमता वाली टर्बाइन स्थापनाओं के लिए साझा या अतिरिक्त भूमि पर विचार करना।
  • बुनियादी ढाँचे का उन्नयन: नई टर्बाइनों से बढ़ी हुई ऊर्जा उत्पादन को सँभालने के लिए ट्रांसमिशन और निकासी बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
  • सुव्यवस्थित अनुमोदन: परियोजना समयसीमा में तेजी लाने और प्रशासनिक बाधाओं को कम करने के लिए पुनःशक्तीकरण तथा नवीनीकरण के लिए अनुमोदन प्रक्रियाओं को सरल बनाएँ।

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