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घर के अंदर का वायु प्रदूषण

Lokesh Pal April 12, 2025 02:46 11 0

संदर्भ

भारत में इनडोर वायु प्रदूषण एक गंभीर और बढ़ती हुई चिंता का विषय बन गया है, जो इस बात को देखते हुए चिंताजनक है कि भारत में शहरी निवासी अपना 70% से 90% समय घर के अंदर बिताते हैं।

इनडोर वायु प्रदूषण का परिमाण 

  • दुनिया भर में लगभग 2.1 बिलियन लोग (वैश्विक आबादी का लगभग एक-तिहाई) खुली आग या केरोसिन, बायोमास (लकड़ी, पशुओं का गोबर और फसल अपशिष्ट) और कोयला आधारित अकुशल स्टोव का उपयोग करके खाना बनाते हैं, जिससे हानिकारक घरेलू वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है।
  • घरेलू वायु प्रदूषण 2020 में प्रति वर्ष अनुमानित 3.2 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार था, जिसमें 5 वर्ष से कम आयु के 2,37, 000 से अधिक बच्चों की मौतें शामिल हैं।
  • परिवेशी वायु प्रदूषण और घरेलू वायु प्रदूषण के संयुक्त प्रभाव से वार्षिक 6.7 मिलियन असामयिक मौतें होती हैं।

इनडोर वायु प्रदूषण के बारे में 

  • इनडोर वायु प्रदूषण हानिकारक प्रदूषकों के अंदर निकलने से होता है। इनमें सूक्ष्म पार्टिकुलेट मैटर (PM), कार्बन मोनोऑक्साइड और कई अन्य विषाक्त पदार्थ शामिल हो सकते हैं। 
  • इनडोर वायु गुणवत्ता (Indoor Air Quality-IAQ) इमारतों के अंदर और आसपास की वायु की गुणवत्ता को संदर्भित करता है और यह निवासियों के स्वास्थ्य को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। 
  • भारत में, इनडोर प्रदूषण के स्रोत आंतरिक (इमारतों के अंदर उत्पन्न होने वाले) और बाहरी (बाहरी प्रदूषक घर के अंदर घुसने वाले) दोनों हैं। 
  • इमारतों में खराब इन्सुलेशन बाहरी प्रदूषकों को इनडोर स्थानों में घुसने की अनुमति देता है और इमारतों के अंदर की गतिविधियाँ भी इनडोर वायु गुणवत्ता (IAQ) के बिगड़ने में योगदान करती हैं। 
  • हालाँकि बाहरी वायु प्रदूषण पर काफी ध्यान दिया गया है, उसी तात्कालिकता को इनडोर वातावरण तक नहीं बढ़ाया गया है।

इनडोर वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोत

स्रोत प्रकार प्रदूषक/रसायन स्वास्थ्य पर प्रभाव
दहन कार्बन मोनोऑक्साइड, धुआँ सिरदर्द, चक्कर आना, श्वसन संबंधी समस्याएँ, हृदय रोग
निर्माण सामग्री एस्बेस्टस, फॉर्मेल्डिहाइड, सीसा कैंसर, विकासात्मक विकार, श्वसन संबंधी समस्याएँ
जैविक कवक, एलर्जी एलर्जी, अस्थमा, श्वसन संक्रमण
घरेलू गतिविधियाँ कीटनाशक, रासायनिक क्लीनर, धूपबत्ती का धुआँ विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना, आँखों/नाक/गले में जलन, कैंसर
बाह्य प्रवेश पार्टिकुलेट मैटर, परिवेशी वायु प्रदूषक श्वसन और हृदय संबंधी रोग, कैंसर
प्राकृतिक विकिरण रेडॉन गैस फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ गया
फर्नीचर और सजावट बेंजीन, पेंट, वार्निश, चिपकाने वाले पदार्थों से निकलने वाले वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (Volatile Organic Compounds-VOC) आँख, त्वचा और श्वसन तंत्र में जलन, दीर्घकालिक कैंसर का खतरा

इनडोर वायु प्रदूषण का प्रभाव

तत्काल स्वास्थ्य प्रभाव

  • आँखों, नाक और गले में जलन: प्रदूषकों के संपर्क में आने से असुविधा और जलन हो सकती है।
  • सिरदर्द, चक्कर आना और थकान: खराब इनडोर वायु से वायरल बीमारियों जैसे अल्पकालिक लक्षण हो सकते हैं।

दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव

  • श्वसन संबंधी रोग: लगातार संपर्क से अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic Obstructive Pulmonary Disease-COPD) और फेफड़ों में संक्रमण जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
  • हृदय रोग: प्रदूषक हृदय संबंधी तनाव और संबंधित बीमारियों में योगदान करते हैं।
  • कैंसर: एस्बेस्टस, रेडॉन और फॉर्मेल्डिहाइड जैसे कार्सिनोजेनिक पदार्थों के संपर्क में आने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  • संज्ञानात्मक हानि: अध्ययनों से पता चलता है कि खराब IAQ संज्ञानात्मक कार्य और उत्पादकता को काफी कम कर सकता है।

इनडोर वायु गुणवत्ता पर नीति और विनियमन

  • विनियामक निकाय: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS), राष्ट्रीय भवन संहिता (National Building Code-NBC) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) जैसी प्रमुख एजेंसियाँ IAQ मानकों को विनियमित करती हैं, जिससे स्वच्छ और स्वस्थ इनडोर वातावरण सुनिश्चित होता है।
  • भवन संहिता और अनुपालन: निर्माण में IAQ के लिए राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC) का पालन करना चाहिए, जिसमें नियमित वायु गुणवत्ता निगरानी और कम-VOC सामग्रियों का उपयोग शामिल है।
  • प्रवर्तन: IAQ मानकों को निरीक्षण, दंड, जागरूकता अभियान और गंभीर मामलों में गैर-अनुपालन इमारतों को सील करने जैसी कानूनी कार्रवाई के माध्यम से लागू किया जाता है।

भारत में इनडोर वायु गुणवत्ता के मानक स्तर

पैरामीटर

मानक सीमा

अवधि

PM2.5 40 µg/m³ 24-घंटे का औसत
PM10 60 µg/m³ 24-घंटे का औसत
कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) 2.0 mg/m³ 8-घंटे का औसत
फॉर्मेल्डिहाइड  0.05 ppm 30-मिनट औसत
कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) कोई विशिष्ट सीमा नहीं (1000 PPM से कम अनुशंसित) निरंतर
तापमान 24°C – 30°C
सापेक्षिक आर्द्रता 30% – 60%

इनडोर प्रदूषण से निपटने में चुनौतियाँ

  • फोकस की कमी: घर के अंदर वायु प्रदूषण पर अक्सर बाहरी प्रदूषण की तुलना में कम ध्यान दिया जाता है, जबकि लोग अपना लगभग 90% समय घर के अंदर ही बिताते हैं।
  • पुरानी इमारतें: भारत में कई मौजूदा इमारतों में इन्सुलेशन और वेंटिलेशन सिस्टम खराब है, जिससे रेट्रोफिटिंग महँगी और तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाती है।
  • भीड़भाड़ वाले शहर: शहरी आबादी का उच्च घनत्व अपर्याप्त वायु परिसंचरण के साथ निवास स्थानों को प्रभावित करता है, जिससे घर के अंदर प्रदूषक जमा हो जाते हैं।
  • सीमित सार्वजनिक जागरूकता: लोग अक्सर घर के अंदर फॉर्मेल्डिहाइड या रेडॉन जैसे वायु आधारित खतरों से अनजान होते हैं, जिससे निवारक उपायों या समय पर हस्तक्षेप में देरी होती है।
  • आर्थिक बाधाएं: स्वस्थ निर्माण प्रथाओं को लागू करना अभी भी महंगा माना जा सकता है, जिससे व्यापक रूप से अपनाने में बाधा उत्पन्न होती है, विशेष रूप से निम्न आय वाले आवासों में।

इनडोर वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय

  • बिल्डिंग वेंटिलेशन में सुधार: क्रॉस-वेंटिलेशन के लिए डिजाइन करना, HEPA (उच्च दक्षता वाले पार्टिकुलेट एयर) फिल्टर का उपयोग करना, और एयरफ्लो एवं प्रकाश को बढ़ावा देने के लिए स्काईलाइट्स और खुले गलियारे शामिल करना।
    • HEPA फिल्टर सैद्धांतिक रूप से कम-से-कम 99.97% धूल, पराग, मोल्ड, बैक्टीरिया और 0.3 माइक्रोन (µm) के आकार वाले कणों को हटा सकता है।
  • सामग्री और साज-सज्जा के विकल्प: कम-VOC सामग्री चुनना और स्वस्थ इनडोर वातावरण के लिए एस्बेस्टस और सीसा-आधारित उत्पादों से सख्ती से बचना।
  • बिल्डिंग और रेट्रोफिटिंग रणनीतियाँ: नए डिजाइन में वायु गुणवत्ता को प्राथमिकता देना और बेहतर इन्सुलेशन और विष-मुक्त सामग्री के साथ मौजूदा इमारतों को रेट्रोफिट करना।
  • इनडोर पर्यावरण प्रबंधन: इनडोर प्रदूषकों को कम करना, घर में पौधे लगाना और स्वच्छ इनडोर वायु बनाए रखने के लिए प्रभावी अपशिष्ट निपटान सुनिश्चित करना।
  • वातानुकूलित स्थानों के लिए विशेष विचार: अलग-अलग क्षेत्र निर्माण करना, वायु परिसंचरण बढ़ाना और स्वस्थ वायु बनाए रखने के लिए आसानी से साफ होने वाली सतहों का उपयोग करना।
  • घरों के लिए सरल अभ्यास: नियमित रूप से खुली खिड़कियों के साथ हवादार और इनडोर स्थानों को प्राकृतिक रूप से कीटाणुरहित और शुद्ध वातावरण के लिए सूर्य के प्रकाश को अंदर आने देना।

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