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भारत में औद्योगिक नीति (industrial policy in india)

Samsul Ansari January 02, 2024 02:34 2313 0

संदर्भ

भारत सरकार ने नई औद्योगिक नीति (New Industrial Policy- NIP),  2023 के कार्यान्वयन को रोक दिया है, जिस पर दो साल से अधिक समय से काम चल रहा था।

संबंधित तथ्य 

  • तीसरी आर्थिक नीति: केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने वर्ष 1991 की नीति को बदलने के लिए औद्योगिक नीति का मसौदा जारी किया था।
    • वर्ष 1956 में पहली और 1991 में दूसरी औद्योगिक नीति के बाद यह तीसरी औद्योगिक नीति थी।
  • आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान: नई औद्योगिक नीति मुख्य रूप से COVID-19 महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान एवं आपूर्ति शृंखलाओं में अनिश्चितताओं एवं व्यवधानों के झटकों से प्रेरित हुई है।
  • NIP 2023 के उद्देश्य: बाह्य झटकों से निपटने के लिए औद्योगिक नीति के इस पुनरुत्थान के दो उद्देश्य हैं:
    • राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को तीव्र करना।
    • औद्योगिक क्षेत्र को लचीलापन प्रदान करने के लिए एक तंत्र तैयार करना।

भारत में औद्योगिक नीतियों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • औद्योगिक नीति संकल्प (Industrial Policy Resolution- IPR) 1948
  • औद्योगिक नीति संकल्प को चार व्यापक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है:
    • सामरिक उद्योग (सार्वजनिक क्षेत्र): इसमें तीन उद्योग शामिल थे जिनमें केंद्र सरकार का एकाधिकार था। इनमें हथियार और गोला-बारूद, परमाणु ऊर्जा और रेल परिवहन शामिल थे।
    • बुनियादी/प्रमुख उद्योग (सार्वजनिक-सह-निजी क्षेत्र): बुनियादी उद्योगों की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा की जानी थी। इसमें कोयला, लोहा और इस्पात, विमान निर्माण, जहाज निर्माण, टेलीफोन, टेलीग्राफ और वायरलेस उपकरण का निर्माण, और खनिज तेल को ‘प्रमुख उद्योग’ या ‘बुनियादी उद्योग’ के रूप में नामित किया गया था।
    • महत्त्वपूर्ण उद्योग (निजी क्षेत्र द्वारा नियंत्रित): इन उद्योगों में मौजूदा निजी उत्पादक निजी क्षेत्र के अधीन बने रह सकते हैं।
      • हालाँकि, राज्य सरकार के परामर्श से, केंद्र सरकार का इन पर सामान्य नियंत्रण था।
    • अन्य उद्योग (निजी और सहकारी क्षेत्र): उपर्युक्त सभी उद्योग, जो उपरोक्त तीन श्रेणियों में शामिल नहीं थे, उन्हें निजी क्षेत्र के लिए खुला छोड़ दिया गया था।

औद्योगिक नीति संकल्प (IPR) 1956: औद्योगिक नीति संकल्प नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की सूची को 14 उद्योगों को शामिल करने के लिए विस्तारित किया गया था, जिसमें नए प्रतिष्ठान केवल राज्य द्वारा स्थापित किए जाने थे।

इसने उद्योगों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया

  • अनुसूची A: इसमें 17 उद्योग शामिल थे, जो राज्य की विशेष जिम्मेदारी थे।
    • इन 17 उद्योगों में से चार उद्योगों, अर्थात् हथियार, गोला-बारूद, परमाणु ऊर्जा, रेलवे और हवाई परिवहन पर केंद्र सरकार का एकाधिकार था; राज्य सरकारों ने शेष उद्योगों में नई इकाइयाँ विकसित की हैं।
  • अनुसूची B: इसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों दोनों के लिए खुले हुए 12 उद्योग शामिल थे।
  • अनुसूची C: इन दो अनुसूचियों में शामिल नहीं किए गए अन्य सभी उद्योग तीसरी श्रेणी का गठन करते थे, जिसे निजी क्षेत्र के लिए खुला छोड़ दिया गया था। 
    • हालाँकि, राज्य ने औद्योगिक उत्पादन करने का अधिकार सुरक्षित रखा।

औद्योगिक नीति, 1977: इसका मुख्य फोकस कुटीर और लघु उद्योगों को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देना था।

  • इसके अंतर्गत लघु क्षेत्र को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया- कुटीर एवं घरेलू क्षेत्र, लघु क्षेत्र और लघु उद्योग।
  • इस नीति में बड़े पैमाने के औद्योगिक क्षेत्र के लिए अलग-अलग क्षेत्र निर्धारित किए-
    • बुनियादी उद्योग
    • पूँजीगत सामान उद्योग
    • उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग
    • लघु उद्योग क्षेत्र के लिए आरक्षित वस्तुओं की सूची से बाहर के अन्य उद्योग।
  • इस नीति ने  बाजार में प्रभुत्व और एकाधिकार की स्थिति को रोकने के लिए बड़े व्यवसायों के दायरे को सीमित कर दिया था।
  • 1980 की औद्योगिक नीति: इस औद्योगिक नीति ने औद्योगिक उत्पादन की प्रवृत्ति को उलटने और एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं अधिनियम (Monopolies and Restrictive Trade Practices- MRTP) और विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (Foreign Exchange Regulation Act- FERA) में अपने विश्वास की पुष्टि करने की माँग की थी।

1991 की औद्योगिक नीति के उद्देश्य

  • औद्योगिक लाइसेंसिंग
  • सार्वजनिक क्षेत्र का विनिवेश
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि
  • भारत में विदेशी प्रौद्योगिकी का आगमन
  • बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना।

1991 की औद्योगिक नीति की चुनौतियाँ

  • असंगत आर्थिक नीति: भारत की अर्थव्यवस्था पारंपरिक औद्योगिक विकास को दरकिनार कर मुख्य रूप से कृषि प्रधान समाज से सेवाओं द्वारा संचालित अर्थव्यवस्था में स्थानांतरित हो गई है।
    • इसे ‘मिसिंग मिडिल’ घटना के रूप में जाना जाता है, जहाँ बड़े पैमाने पर श्रम को अवशोषित करने की क्षमता के साथ विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि न के बराबर है।
    • इसके अलावा, नौकरियाँ या तो IT और वित्तीय सेवाओं जैसे अत्यधिक कुशल सेवा-संचालित उद्योगों में या बहुत कम उत्पादक कृषि और निर्माण-संबंधित क्षेत्रों में केंद्रित होती हैं।
      • पारंपरिक औद्योगिक विकास से चीन का विकास हुआ एवं एक गतिशील मध्यम वर्ग का निर्माण भी हुआ है।
  • स्थिर विनिर्माण क्षेत्र: 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध से पूर्वी एशियाई देशों में देखे गए विनिर्माण के महत्त्वपूर्ण विविधीकरण के बावजूद, भारत की विनिर्माण हिस्सेदारी सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 15% पर स्थिर बनी हुई है।
    • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2011-12 में सभी श्रमिकों में विनिर्माण का हिस्सा 12.6% था जो वर्ष 2021-22 में घटकर 11.6% हो गया।
  • बेरोजगारी का संकट: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आँकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2023 में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 8.11% हो गई।
    • इसके अलावा, भारत में 80% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में लगा हुआ है।
    • भारत में कुशल कर्मचारियों की भारी कमी है एवं स्वचालन में वृद्धि से कार्यबल में अधिक कमी आ सकती है, जिससे बेरोजगारी दर बढ़ सकती है।
  • पारंपरिक ‘ब्रिक एंड मोटर मॉडल’ को पछाड़ना: भारतीय उपभोक्ताओं ने विकसित अर्थव्यवस्थाओं में संगठित खुदरा मॉडल को दरकिनार कर स्थानीय स्टोर या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का विकल्प चुना है।
    • यह प्रवृत्ति बैक एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स में निवेश को हतोत्साहित करके क्षेत्र के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
    • निजी संगठित खुदरा बिक्री के विपरीत, जो संयुक्त राज्य जैसे देशों में एक प्रमुख रोजगार सृजनकर्ता है, बढ़ते स्वचालन और तकनीकी प्रगति के कारण ई-कॉमर्स में श्रम को अवशोषित करने की क्षमता सीमित है।
    • इससे भारत अनुमानित 10 मिलियन नई नौकरियों से वंचित हो सकता है।
  • सभी क्षेत्रों में असंतुलन: भारत के विकास पथ ने, महत्त्वपूर्ण विकासात्मक चरणों को छोड़कर, खुदरा, विनिर्माण, जीविका, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास सहित विभिन्न क्षेत्रों में असंतुलन और विभाजन को जन्म दिया है।
    • उदाहरण के लिए- शिक्षा के क्षेत्र में, IIT और IIM जैसे कुछ शीर्ष संस्थानों से प्रत्येक वर्ष स्नातक निकलते हैं, जबकि वहीँ देश में बच्चों का कुछ ऐसा भी वर्ग है जो कक्षा 5 में होकर भी कक्षा 2 के स्तर के पाठ नहीं पढ़ सकता है।
    • भारत के स्वास्थ्य पर्यटन स्थल के रूप में उभरने के बावजूद, ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2023 में भारत 125 देशों में से 111वें स्थान पर है एवं अपने पड़ोसियों पाकिस्तान (102), बांग्लादेश (81), नेपाल (69) और श्रीलंका (60) से पीछे है।
  • बढ़ती असमानताएँ: हालाँकि उच्च-कौशल सेवाओं के विस्तार से औसत आय में वृद्धि हो सकती है, लेकिन ये लाभ स्वाभाविक रूप से उन क्षेत्रों में सीधे तौर पर लगे श्रमिकों के बीच केंद्रित हैं।
    • नतीजतन, उच्च कौशल सेवाओं में उच्च वृद्धि वाले राज्यों में अक्सर असमानता में वृद्धि देखी जाती है।
    •  उदाहरण के लिए– कर्नाटक में, लगभग 5% कार्यबल सीधे IT/ITeS सहित व्यावसायिक सेवाओं में कार्यरत है, जो राज्य के सकल मूल्यवर्द्धित में लगभग एक-तिहाई का योगदान देता है।
    • ‘ग्रोइंग लाइक इंडिया-अनइक्वल इफेक्ट ऑफ सर्विस-लेड ग्रोथ’ शीर्षक वाले NBER  के  पेपर शीर्षक के अनुसार, सेवाओं में उत्पादकता वृद्धि वर्ष 1987 और 2011 के बीच देश में बढ़ते जीवन स्तर का एक महत्त्वपूर्ण चालक थी।
    • हालाँकि, कल्याणकारी लाभ उच्च आय वाली शहरी आबादी के पक्ष में बहुत अधिक झुके हुए थे।

आगे की राह

  • नई औद्योगिक नीति-2023 के मसौदे में आवश्यक सुधार
    • विकास वित्त संस्थान (DFI): इसे कम लागत वाले वित्त प्रदान करने के लिए भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करके एक विकास वित्त संस्थान और उन्नत प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रौद्योगिकी कोष बनाना चाहिए।
    • एक राष्ट्र-एक मानक: इसे गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना चाहिए एवं शहरी स्थानीय निकायों में नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए।
    • मेगा क्लस्टर: इसमें वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के साथ एकीकृत करने और छोटे व्यवसायों को कॉरपोरेट बॉण्ड बाजारों तक पहुँचने में मदद करने के लिए मेगा क्लस्टर विकसित करने की योजना भी शामिल थी।
    • वर्तमान वैश्विक गतिशीलता से निपटने की नीति: जलवायु परिवर्तन, हरित ऊर्जा प्रतिबद्धताओं एवं पश्चिम की चीन-प्लस-वन रणनीति से निपटना।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) के लिए यूनिवर्सल एंटरप्राइज ID: इससे उनका क्रेडिट रेटिंग तंत्र (Credit Rating Mechanism) एवं MSME क्लस्टर वित्तपोषण मॉडल मजबूत होगा।
  • अधिशेष कृषि श्रम: एक विस्तारित विनिर्माण क्षेत्र कृषि और अन्य “निर्वाह” क्षेत्रों से अधिकांश अधिशेष श्रम को अवशोषित कर सकता है।
    • इसलिए कपड़ा और परिधान और जूता विनिर्माण जैसे श्रम प्रधान विनिर्माण क्षेत्र के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
    • वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) के लिए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, देश की नियोजित श्रम शक्ति में वर्तमान कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़कर 45.8% हो गई है।
  • कर प्रोत्साहन: 17% की रियायती कर दर केवल उन विनिर्माण कंपनियों के लिए उपलब्ध है, जो मार्च 2024 से पहले शुरू होंगी।
    • विनिर्माण पर आवश्यक महत्त्व को देखते हुए, NIP-23 को 2-3 साल की अवधि के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।
  • अन्य क्षेत्रों में पीएलआई योजना का विस्तार: NIP-23 को चीन+1 अवसर को ध्यान में रखते हुए PLI के विस्तार के लिए क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए।
    • विनिर्मित निर्यात के लिए चीन पर दुनिया की अत्यधिक निर्भरता के साथ, यह संभव है कि वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ भारत जैसे किसी एक देश पर निर्भर रहने के बजाय सेवाओं के आयात में विविधीकरण का विकल्प चुनेंगी।
    • सरकार ने रणनीतिक विकास क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना लागू की, जहाँ भारत को तुलनात्मक लाभ है।

रेडीमेड परिधान (RMG) उद्योग के लिए बांग्लादेश मॉडल

  • यूरोस्टेट द्वारा हाल ही में जारी आँकड़ों के अनुसार, बांग्लादेश पहली बार जनवरी और सितंबर 2023 के बीच यूरोपीय संघ में शीर्ष बुना हुआ कपड़ा निर्यातक बनने के लिए चीन से आगे निकल गया।
  • यह चीन और वियतनाम के अलावा दुनिया के शीर्ष सूती परिधान आपूर्तिकर्ताओं में से एक है।
  • बांग्लादेश गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका बांग्लादेशी परिधानों के लिए सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
  • RMG और कपड़ा क्षेत्र में बांग्लादेश की सफलता का श्रेय उच्च मूल्य वर्द्धित वस्तुओं में निवेश और श्रम-गहन वस्तुओं के निर्यात को प्राथमिकता देने पर केंद्रित किया जा सकता है।
  • परिधान निर्माण की उभरती गतिशीलता के अनुकूल कौशल, पुन: कौशल और अपस्किलिंग के इसके प्रयासों ने इसके निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाया है।

  • विनिर्माण और सेवा क्षेत्र को संतुलित करना: विनिर्माण क्षेत्र में निवेश और सरकारी समर्थन से अकुशल और अर्द्धकुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने में मदद मिलेगी क्योंकि अधिकांश बड़े पैमाने पर विनिर्माण नौकरियों के लिए उच्च स्तर की शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती है।
    • सेवा क्षेत्र को कुशल और प्रशिक्षित जनशक्ति की आपूर्ति की आवश्यकता है, जो IT उद्योग सहित भारत के लिए एक लंबे समय से चुनौती रही है।
    • यह मुद्दा विनिर्माण में कम महत्त्वपूर्ण है, जहाँ नौकरी पर प्रशिक्षण अधिक महत्त्व रखता है।
    • उत्तर प्रदेश और बिहार, जो भारत की लगभग 30% आबादी का गठन करते हैं, शिक्षा गुणवत्ता के मामले में सबसे कमजोर राज्यों में से एक हैं।
  • अकुशल और कम कौशल वाले क्षेत्र के लिए हस्तक्षेप: भारत को नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जो बांग्लादेश की तर्ज पर कपड़ा, चमड़ा और जूते जैसे क्षेत्रों में उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा दे सके।

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