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सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2025

Lokesh Pal October 25, 2025 03:50 21 0

संदर्भ

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2025 अधिसूचित किए हैं, जिनके तहत सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियम, 2021 के नियम 3(1)(d) में संशोधन किया गया है।

सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियम, 2021

  • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियम, 2021 मूल रूप से वर्ष 2021 में अधिसूचित किए गए थे और बाद में वर्ष 2022 और वर्ष 2023 में इनमें परिवर्तन किए गए।
  • यह  नियम सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत मध्यस्थों (सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित) के लिए ऑनलाइन सुरक्षा, सिक्योरिटी और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सावधानियों का पालन करने की जिम्मेदारी तय करते हैं।
  • नियम 3(1)(d): इसके तहत मध्यस्थों को न्यायालय के आदेश या संबंधित सरकार से नोटिफिकेशन मिलने पर अवैध जानकारी को हटाना जरूरी है।

संशोधन का उद्देश्य 

  • सामग्री हटाने के सरकारी आदेशों में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और जवाबदेही को बढ़ाना।
  • पारदर्शिता, कानूनी निरंतरता और मनमाने ढंग से हटाए जाने से सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े हितों को नागरिकों के मौलिक अभिव्यक्ति अधिकार [अनुच्छेद-19(1)(a)] के साथ संतुलित करना।

 वर्ष 2025 के संशोधनों की प्रमुख विशेषताएँ

  • वरिष्ठ स्तर की स्वीकृति: केवल वरिष्ठ अधिकारी ही सामग्री हटाने के आदेश जारी कर सकेंगे —
    • केंद्र या राज्य सरकार में संयुक्त सचिव (Joint Secretary) या समकक्ष अधिकारी (या जहाँ यह पद न हो, वहाँ निदेशक स्तर)।
    • पुलिस प्राधिकरणों में केवल उप महानिरीक्षक (DIG) स्तर या उससे ऊपर के विशेष रूप से अधिकृत अधिकारी ही ऐसा आदेश दे सकेंगे।
  • कारणयुक्त सूचना के साथ विशिष्ट विवरण: प्रत्येक आदेश में निम्नलिखित बिंदु शामिल होना आवश्यक होगा —
    • आदेश जारी करने का कानूनी आधार और सांविधानिक प्रावधान
    • गैर-कानूनी कार्य की प्रकृति।
    • हटाए जाने वाली सामग्री का विशिष्ट URL, पहचानकर्ता या इलेक्ट्रॉनिक स्थान।
    • यह पहले के अस्पष्ट ‘सूचना’ (Notification) प्रावधान को ‘कारणयुक्त सूचना’ (Reasoned Intimation) से प्रतिस्थापित करता है, जिससे यह IT अधिनियम, 2000 की धारा 79(3)(b) में उल्लिखित ‘वास्तविक ज्ञान’ (Actual Knowledge) की अवधारणा के अनुरूप हो जाता है।
    • उद्देश्य: आदेशों की स्पष्टता, सटीकता, और मध्यस्थों के लिए अनुपालन में स्थिरता सुनिश्चित करना।
  •  आवधिक समीक्षा तंत्र
    • नियम 3(1)(d) के तहत जारी सभी आदेशों की प्रत्येक माह समीक्षा एक अधिकारी द्वारा की जाएगी, जो सचिव स्तर (Secretary Rank) से नीचे न हो।
    • यह सुनिश्चित करेगा कि सभी कार्रवाई आवश्यक, आनुपातिक और कानूनी रूप से सुसंगत बनी रहे।
  • अधिकार और उत्तरदायित्व का संतुलन
    • संशोधन नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों (विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और राज्य की नियामक शक्तियों के बीच जाँच और संतुलन को सुदृढ़ करता है।
    • इसका उद्देश्य ऑनलाइन सामग्री पर मनमाने या असंगत प्रतिबंधों के आरोपण को रोकना है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के बारे में

  • यह भारत का मुख्य साइबर कानून है, जो डिजिटल गतिविधियों और साइबर संचालन को नियंत्रित करता है।
  • इसमें वर्ष 2008 और वर्ष 2015 में संशोधन किए गए थे ताकि उभरते साइबर खतरों और तकनीकी विकास को संबोधित किया जा सके।

 मुख्य प्रावधान

  • धारा 69A 
    • केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सामग्री को अवरुद्ध कर सके, यदि यह अनुच्छेद-19(2) में सूचीबद्ध हितों — जैसे संप्रभुता, अखंडता, राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या नैतिकता की रक्षा के लिए आवश्यक हो।
    • धारा 69A के तहत सुरक्षा उपाय
      • आदेश केवल अनुच्छेद-19(2) के दायरे में ही जारी किए जा सकते हैं।
      • सरकार को प्रत्येक ब्लॉकिंग आदेश के कारण लिखित रूप में दर्ज करने होंगे।
  • धारा 79
    • धारा 79 तृतीय पक्ष सामग्री के लिए मध्यस्थों (सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, आईएसपी, ई-कॉमर्स संस्थाओं) को “सेफ हार्बर” प्रतिरक्षा प्रदान करती है, बशर्ते कि वे तटस्थ प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करें और उचित परिश्रम मानदंडों का पालन करें।
    • धारा 79(3)(b): यदि किसी मध्यस्थ को न्यायालय के आदेश या सरकारी अधिसूचना के माध्यम से वास्तविक जानकारी मिलती है और वह गैर-कानूनी सामग्री को समय पर नहीं हटाता, तो उसकी सुरक्षा समाप्त हो जाती है।
    • श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2015) मामले में, न्यायालय ने धारा 79(3)(b) की व्याख्या को सीमित कर दिया।
      • “वास्तविक जानकारी” केवल वैध न्यायालय के आदेश या आधिकारिक सरकारी निर्देश पर ही उत्पन्न होती है, न कि केवल उपयोगकर्ता की शिकायतों पर।

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