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अभियुक्त को गिरफ्तारी का आधार बताना: एक संवैधानिक आवश्यकता

Lokesh Pal February 11, 2025 03:00 14 0

संदर्भ

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि किसी अभियुक्त को गिरफ्तारी के आधार की जानकारी देना महज औपचारिकता नहीं बल्कि एक अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता है।

संबंधित तथ्य 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वित्तीय धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी विहान कुमार की गिरफ्तारी को असंवैधानिक करार देते हुए उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है।
  • अभियुक्त को गिरफ्तारी का कारण न बताना संविधान के अनुच्छेद-22(1) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या 

  • पुलिस पर साक्ष्य का भार: यदि कोई गिरफ्तार व्यक्ति अनुच्छेद-22(1) का अनुपालन न करने का दावा करता है, तो अनुपालन सिद्ध करने का भार पुलिस पर होगा।
    • पुलिस को यह साक्ष्य देना होगा कि अभियुक्त को गिरफ्तारी के आधार की जानकारी दी गई है।
  • मजिस्ट्रेट का कर्तव्य: जब किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो अनुच्छेद-22(1) के अनुपालन की पुष्टि करना मजिस्ट्रेट का कर्तव्य होगा।
    • यदि अनुच्छेद-22(1) का उल्लंघन पाया जाता है, तो मजिस्ट्रेट को अभियुक्त की रिहाई का आदेश देना होगा।
  • अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार अभियुक्त को गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित न करना भी अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है।
    • गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित करने में विफलता उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना स्वतंत्रता से वंचित करने के बराबर है।
    • न्यायालय ने पुन: पुष्टि की कि किसी भी व्यक्ति को निष्पक्ष तथा विधिक प्रक्रिया के अतिरिक्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 47 के तहत गिरफ्तारी का आधार

  • गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी: बिना वारंट के गिरफ्तारी करने वाले किसी भी पुलिस अधिकारी या अधिकृत व्यक्ति को गिरफ्तार किये गए व्यक्ति के अपराध के पूर्ण विवरण या गिरफ्तारी के अन्य आधारों के बारे में तुरंत सूचित करना चाहिए।
  •  गैर-जमानती अपराधों के लिए जमानत का अधिकार: यदि कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को बिना वारंट के ऐसे अपराध के लिए गिरफ्तार करता है, जो गैर-जमानती नहीं है, तो गिरफ्तार व्यक्ति को निम्नलिखित के बारे में सूचित किया जाना चाहिए: 
    • जमानत पर रिहा होने का उसका अधिकार। 
    • उसकी ओर से जमानतदारों की व्यवस्था करने का विकल्प। 
  • पुराने कानून के साथ संरेखण: यह प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 50 के समान है, जो गिरफ्तारी प्रक्रिया में कानूनी सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

अभियुक्त को सूचना देने के लिए संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद-22: कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण

  • अनुच्छेद-22(1)
    • गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को, यथाशीघ्र, गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किए बिना हिरासत में नहीं रखा जाएगा।
    • गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी कानूनी व्यवसायी से परामर्श करने और बचाव करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा।
  • अनुच्छेद-22(2)
    • गिरफ्तार किए गए तथा हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिसमें न्यायालय तक आने-जाने का समय शामिल नहीं है।
    • मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जाएगा।
  • अनुच्छेद-22(3)
    • खंड (1) और (2) उन मामलों में लागू नहीं होते जहाँ:-
      • तत्समय शत्रु किसी अन्य देश का नागरिक है या
      •  निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन गिरपतार या निरुद्ध किया गया है।
  • अनुच्छेद 22(5)
    • हिरासत में लिए गए व्यक्ति को हिरासत आदेश के आधार बताए जाने चाहिए तथा हिरासत के विरुद्ध अभ्यावेदन देने की अनुमति दी जानी चाहिए।

पिछले न्यायिक निर्णय 

  • सिद्धार्थ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्त्व पर बल दिया और कहा कि बिना उचित कारण के हिरासत में रखना गैर-कानूनी है।
  • पंकज बंसल बनाम भारत संघ मामले में, न्यायालय ने निर्णय दिया कि निवारक हिरासत का प्रयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में और सीमित अवधि के लिए ही किया जा सकता है।
  • प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) मामले में, न्यायालय ने हिरासत के मामलों में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के सख्त पालन की आवश्यकता पर जोर दिया।

निवारक निरोध कानून के मामले

  • हिरासत में लिए गए व्यक्ति को हिरासत के आधारों के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार है।
    • अपवाद: यदि ऐसा करना सार्वजनिक हित के विरुद्ध हो तो आधार का खुलासा नहीं किया जा सकता।
  • हिरासत में लिए गए व्यक्ति को हिरासत आदेश के विरुद्ध अपना पक्ष रखने का अधिकार है।
  • हिरासत में लिए गए व्यक्ति को तीन महीने के बाद रिहा किया जाना चाहिए, जब तक कि सलाहकार बोर्ड निरंतर हिरासत की सिफारिश न करे।

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