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भारत में अंतर्देशीय जल परिवहन (IWT): जलवाहक योजना

Lokesh Pal December 19, 2024 02:56 20 0

संदर्भ

हाल ही में सरकार ने गंगा, ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के किनारे राष्ट्रीय जलमार्गों (National Waterways- NW) पर अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से वस्तुओं की आवाजाही को बढ़ावा देने के लिए ‘जलवाहक’ नामक एक प्रमुख योजना शुरू की है।

जलवाहक योजना 

  • जलवाहक योजना, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) और अंतर्देशीय और तटीय शिपिंग लिमिटेड (ICSL), शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SCIL) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी की एक संयुक्त पहल है।
  • मंत्रालय: बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय (Ministry of Ports, Shipping & Waterways- MoPSW)
  • उद्देश्य: अंतर्देशीय जलमार्गों की व्यापार क्षमता का विस्तार करना, रसद लागत को कम करना, सड़क और रेल नेटवर्क को कम करना एवं सतत परिवहन को बढ़ावा देना।
  • पात्रता: जलमार्गों के माध्यम से 300 किमी. से अधिक दूरी तक माल परिवहन करने वाले कार्गो मालिक।
  • लाभ: कुल परिचालन लागत की 35% प्रतिपूर्ति प्रदान करना।
  • शामिल जलमार्ग: भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल (Indo-Bangladesh Protocol- IBP) मार्ग के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्ग 1 (गंगा नदी), राष्ट्रीय जलमार्ग 2 (ब्रह्मपुत्र नदी), और राष्ट्रीय जलमार्ग 16 (बराक नदी)।
  • वैधता: योजना शुरू में तीन वर्ष के लिए वैध है।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI)

  • भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterways Authority of India- IWAI) की स्थापना भारत सरकार द्वारा वर्ष 1986 में नौवहन के लिए अंतर्देशीय जलमार्गों को विनियमित तथा विकसित करने के लिए की गई थी।
  • यह राष्ट्रीय जलमार्गों पर अंतर्देशीय जल परिवहन (IWT) बुनियादी ढाँचे के विकास और प्रबंधन का कार्य करता है।
  • इन परियोजनाओं को शिपिंग मंत्रालय द्वारा प्रदान किए गए अनुदानों के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।
  • IWAI का मुख्यालय नोएडा में है।

राष्ट्रीय जलमार्ग 

  • अंतर्देशीय जलमार्ग नौगम्य नदियाँ, झीलें, नहरें तथा बैकवाटर के रूप में होते हैं जिनका उपयोग माल, सामग्री और यात्रियों के परिवहन के लिए किया जाता है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 ने कुल 111 अंतर्देशीय जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया, जिसमें पाँच जलमार्गों को पहले राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया था।
  • 111 राष्ट्रीय जलमार्गों में से वर्तमान में 13 जलमार्ग नौवहन, मालवाहक और यात्री जहाजों की आवाजाही के लिए क्रियान्वित हैं।

राष्ट्रीय जलमार्ग (NW 1, NW 2, तथा NW 16)

राष्ट्रीय जलमार्ग

मार्ग

नदी प्रणाली

प्रमुख स्थान

लंबाई

NW 1 इलाहाबाद (प्रयागराज) से हल्दिया तक गंगा, भागीरथी, हुगली फिक्स्ड टर्मिनल: हल्दिया, फरक्का, पटना। फ्लोटिंग टर्मिनल: कोलकाता, भागलपुर, वाराणसी, इलाहाबाद भारत का सबसे लंबा जलमार्ग (1,620 किमी.)
NW 2 सादिया से धुबरी (असम) ब्रह्मपुत्र नदी इस विस्तार के प्रमुख शहरों में सादिया, डिब्रूगढ़, तेजपुर और धुबरी शामिल हैं। 891 किमी.
NW 16 लखीपुर से भांगा (असम) बराक नदी प्रमुख स्थानों में लखीपुर, सिलचर तथा भांगा शामिल हैं।

WAI के पास NW-16 पर दो स्थायी टर्मिनल हैं, जिनमें से एक बदरपुर (NW-14 पर) और एक करीमगंज में है।

121 किमी.

भारत में अंतर्देशीय जल परिवहन (Inland Water Transport- IWT) का महत्त्व

  • ईंधन दक्षता और लागत प्रभावशीलता: सड़क और रेल की तुलना में IWT परिवहन का अत्यधिक ईंधन कुशल और लागत प्रभावी तरीका है।
    • एक लीटर ईंधन से IWT के माध्यम से 1 किलोमीटर से अधिक 24 टन माल ले जाया जा सकता है, जबकि रेल से 20 किलोमीटर और सड़क से 16 किलोमीटर माल ले जाया जा सकता है।
    • IWT से रसद लागत कम होती है, जो वर्तमान में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23) का 14% है, जो वैश्विक औसत 8-10% से अधिक है।
  • पर्यावरण अनुकूल परिवहन: IWT का पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है, तथा अन्य परिवहन साधनों की तुलना में इससे उत्सर्जन भी कम होता है।
    • अंतर्देशीय जल परिवहन (IWT) का बढ़ता उपयोग पेरिस जलवायु समझौते और जलवायु कार्रवाई से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का समर्थन करता है।
  • सड़कों और रेलवे पर भीड़भाड़ को कम करना: IWT सड़क तथा रेल नेटवर्क के लिए एक व्यवहार्य विकल्प प्रदान करता है, जिससे भीड़भाड़ कम होती है और बुनियादी ढाँचे को क्षति नहीं पहुँचती है।
    • सरकार का लक्ष्य जलवाहक योजना के माध्यम से वर्ष 2027 तक 800 मिलियन टन-किलोमीटर कार्गो को जलमार्गों पर स्थानांतरित करना है।
    • कोलकाता-वाराणसी खंड (NW-1) अब कार्गो आवागमन की सुविधा प्रदान करता है, जिससे सड़क पर निर्भरता कम होती है।
  • क्षेत्रीय और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना: IWT कोयला, सीमेंट और उर्वरक जैसे थोक सामान के लिए वहनीय परिवहन विकल्प प्रदान करके क्षेत्रीय उद्योगों और व्यापार का समर्थन करता है।
    • राष्ट्रीय जलमार्गों पर माल की आवाजाही 18.07 MMT (वर्ष 2013-14) से बढ़कर 132.89 MMT (वर्ष 2023-24) हो गई है।
  • सुदूर और पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए बेहतर कनेक्टिविटी: अंतरराष्ट्रीय जल परिवहन परियोजना असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे सुदूर क्षेत्रों तक पहुँच को बेहतर बनाती है, तथा उन्हें प्रमुख व्यापार मार्गों से जोड़ती है।
    • NW-2 (ब्रह्मपुत्र) गुवाहाटी तथा अन्य पूर्वोत्तर शहरों में कार्गो परिवहन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • पर्यटन और रोजगार सृजन: अंतर्देशीय जलमार्ग पर्यटन के लिए केंद्र के रूप में कार्य करते हैं और जहाज संचालन, रसद तथा संबंधित क्षेत्रों में रोजगार पैदा करते हैं।
    • केरल का NW-3 बैकवाटर क्रूज के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा देता है और आतिथ्य तथा परिवहन में स्थानीय आजीविका का समर्थन करता है।
  • आर्थिक व्यवहार्यता और व्यापार को बढ़ावा: भारत-बांग्लादेश जलमार्ग समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल के माध्यम से व्यापार को बढ़ावा देने और अंतर-देशीय कार्गो आवागमन को बढ़ाने के लिए IWT महत्त्वपूर्ण है।
    • बांग्लादेश के रास्ते कोलकाता-पांडु मार्ग, फ्लाई ऐश तथा उर्वरक जैसे सामानों को बांग्लादेश तक भेजने में सुविधा प्रदान करता है।

सफल अंतर्देशीय जलमार्गों के वैश्विक उदाहरण

  • मिसिसिपी नदी प्रणाली (संयुक्त राज्य अमेरिका): 3,700 किलोमीटर से अधिक में प्रवाहित होने वाली यह नदी विश्व की सबसे व्यापक अंतर्देशीय जलमार्ग प्रणालियों में से एक है।
    • इसका उपयोग अनाज, कोयला और पेट्रोलियम उत्पादों जैसी थोक वस्तुओं के परिवहन के लिए किया जाता है।
    • यह प्रत्येक वर्ष 500 मिलियन टन से अधिक कार्गो का संचालन करता है, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • राइन नदी (यूरोप): स्विटजरलैंड, जर्मनी और नीदरलैंड से होकर बहने वाला एक प्रमुख जलमार्ग, जो उत्तरी सागर से जुड़ता है।
    • रॉटरडैम (यूरोप का सबसे बड़ा बंदरगाह) जैसे औद्योगिक केंद्रों को जोड़कर व्यापार को बढ़ावा देता है।
    • प्रत्येक वर्ष 300 मिलियन टन से अधिक कार्गो का परिवहन करता है, जिसमें रसायन, कोयला और कृषि उत्पाद शामिल हैं।
  • यांगत्जी नदी (चीन): एशिया की सबसे लंबी नदी, जो दुनिया के सबसे बड़े विनिर्माण केंद्रों में से एक में माल परिवहन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • चीन के अंतर्देशीय जलमार्ग यातायात का 40% से अधिक हिस्सा यहीं से गुजरता है, जिसमें इस्पात और कंटेनर जैसे सामान की ढुलाई होती है।
  • डेन्यूब नदी (यूरोप): यह नदी 10 यूरोपीय देशों से होकर बहती है तथा मध्य यूरोप को काला सागर से जोड़ती है।
    • माल और यात्री परिवहन दोनों का समर्थन करता है तथा व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देता है।
    • 19 बंदरगाहों पर व्यापार को सुगम बनाता है, अनाज, लौह अयस्क और तेल जैसे थोक माल को परिवहित करता है।
  • वोल्गा नदी (रूस): यूरोप की सबसे लंबी नदी, जो रूस के अंतर्देशीय जलमार्ग नेटवर्क का आधार है।
    • वोल्गा और इससे संबंधित नहरों के माध्यम से प्रतिवर्ष 200 मिलियन टन से अधिक माल की आवाजाही होती है।
  • मेकांग नदी (दक्षिण-पूर्व एशिया): चीन, वियतनाम तथा थाईलैंड सहित छह देशों से होकर बहती है, जो एक महत्त्वपूर्ण व्यापार गलियारे के रूप में कार्य करती है।
    • चावल और मत्स्य पालन जैसे कृषि निर्यात मदों को सहायता प्रदान करता है, विशेष रूप से वियतनाम के मेकांग डेल्टा में।
    • लगभग 60 मिलियन टन की वार्षिक कार्गो मात्रा के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाता है।
  • नीदरलैंड का अंतर्देशीय जलमार्ग नेटवर्क: नीदरलैंड में 6,228 किलोमीटर का अंतर्देशीय जलमार्ग नेटवर्क है, जिसमें 3,310 किलोमीटर छोटे जलमार्ग शामिल हैं।
    • वर्ष 2019 में अंतर्देशीय जहाजों ने नीदरलैंड में 349 मिलियन टन का परिवहन किया।

भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों की चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त गहराई और नौगम्यता संबंधी मुद्दे: भारत के जलमार्गों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से की गहराई अपर्याप्त  है, जो उन्हें बड़े जहाजों के लिए अनुपयुक्त बनाता है।
    • गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में मौसमी गाद जमने से उथला हो जाता है, जिससे प्रत्येक वर्ष नौवहन बाधित होता है। प्रत्येक वर्ष रख-रखाव के लिए ‘ड्रेजिंग’ की आवश्यकता होती है, लेकिन यह अपर्याप्त है, जिससे माल की निरंतर आवाजाही प्रभावित होती है।
    • प्रायद्वीपीय नदियों की मौसमी प्रकृति।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: आधुनिक टर्मिनलों, रात्रि नेविगेशन सहायता और जहाज मरम्मत सुविधाओं की कमी है।
    • भारत में केवल कुछ ही कार्यात्मक ‘इंटरमॉडल टर्मिनल’ हैं (जैसे- हल्दिया, साहिबगंज, वाराणसी), जिससे कनेक्टिविटी सीमित हो जाती है।
    • DGPS तथा RIS जैसी रात्रि नेविगेशन प्रणालियों की अनुपस्थिति निर्बाध संचालन में बाधा डालती है।
  • अंतर्देशीय जलमार्ग क्षेत्र में कम निवेश: सड़क तथा रेल अवसंरचना की तुलना में अंतर्देशीय जलमार्गों में सार्वजनिक निवेश बहुत कम है।
    • भारत के कुल परिवहन हिस्से में IWT का हिस्सा केवल 0.4% है, जबकि सड़क तथा रेल का हिस्सा क्रमशः 60% और 25% है।
    • जल मार्ग विकास परियोजना (NW-1) जैसी परियोजनाओं को वित्त पोषण में देरी का सामना करना पड़ रहा है।
  • विनियामक और नीतिगत अंतराल: राज्य तथा केंद्र की नीतियों के बीच एकीकरण की कमी है, जिसके कारण विकास खंडित हो रहा है।
    • राज्य के नियमों में अंतर IWT गलियारों के एकसमान विकास में बाधा डालता है।
    • सड़क तथा रेल के साथ मॉडल एकीकरण अपर्याप्त बना हुआ है, जिससे कनेक्टिविटी प्रभावित हो रही है।
  • निजी क्षेत्र की कम भागीदारी: जहाज निर्माण तथा कार्गो हैंडलिंग में निजी निवेश उच्च पूंजी लागत और दीर्घकालिक कार्गो प्रतिबद्धताओं की कमी के कारण सीमित है।
    • कंपनियाँ, यातायात सुनिश्चित किए बिना बजरा निर्माण में निवेश करने से संकोच करती हैं।
    • जहाज निर्माण लागत में सब्सिडी प्रदान नहीं की जाती, जिससे निजी भागीदारी कम व्यवहार्य हो जाती है।
  • पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: नदियाँ प्रदूषण और सिंचाई तथा औद्योगिक गतिविधियों के कारण जल प्रवाह में कमी जैसे पारिस्थितिक खतरों का सामना करती हैं।
    • बांग्लादेश के माध्यम से सीमा पार मार्ग (भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल) परिचालन अक्षमताओं के कारण देरी का सामना करते हैं।
    • जलमार्गों की ऊर्जा दक्षता अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर अधिक ‘टर्नअराउंड’ समय होती है।
  • कुशल कार्यबल की कमी: जहाज संचालन तथा बुनियादी ढाँचे के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित कर्मियों की कमी है।
    • भारत के IWT क्षेत्र में पर्याप्त अनुसंधान और प्रशिक्षण सुविधाओं का अभाव है, जिससे आधुनिकीकरण के प्रयास धीमे हो रहे हैं।

भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • जल मार्ग विकास परियोजना (JMVP) (वर्ष 2014-15)
    • उद्देश्य: हल्दिया (पश्चिम बंगाल) से प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) तक गंगा नदी पर राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (NW-1) विकसित करना।
    • विशेषताएँ
      • हल्दिया, वाराणसी तथा साहिबगंज में मल्टीमॉडल टर्मिनलों का निर्माण।
      • डिजिटल ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (DGPS) तथा नदी सूचना प्रणाली (RIS) की स्थापना।
      • निर्बाध नेविगेशन के लिए 3 मीटर की न्यूनतम उपलब्ध गहराई (LAD) बनाए रखने के लिए ड्रेजिंग।
    • तथ्य: इस परियोजना को विश्व बैंक से ₹4,633 करोड़ का ऋण प्राप्त हुआ है।
  • अंतर्देशीय जलमार्ग विकास परिषद (Inland Waterways Development Council- IWDC): इसकी स्थापना अक्टूबर 2023 में भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग तथा अंतर्देशीय जल परिवहन (IWT) पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने के लिए की गई थी। 
    • उद्देश्य: कार्गो दक्षता में सुधार, यात्री आवागमन में सुधार तथा नदी क्रूज पर्यटन का विकास।
    • अध्यक्षता: केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री तथा इसमें राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों की भागीदारी शामिल है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016: 24 राज्यों में 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग (NW) घोषित किया गया।
    • महत्त्व: यह IWT अवसंरचना के विकास तथा भारत के रसद नेटवर्क में जलमार्गों को एकीकृत करने के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल (Indo-Bangladesh Protocol- IBP) मार्ग: भारत तथा बांग्लादेश को जोड़ने वाले अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से व्यापार और माल की आवाजाही बढ़ाने के लिए समझौता।
    • कोलकाता-पांडु (असम) तथा कोलकाता-ढाका मार्ग सीमापार व्यापार को सुविधाजनक बनाते हैं और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ते हैं।
    • IBP मार्ग, पूर्वोत्तर से कनेक्टिविटी के लिए व्यस्ततम ‘चिकन नेक’ कॉरिडोर के अलावा अन्य विकल्प प्रदान करता है।
  • सागरमाला परियोजना (वर्ष 2015)
    • फोकस: बंदरगाह आधारित बुनियादी ढाँचे का विकास करना और अंतर्देशीय जलमार्गों को तटीय शिपिंग के साथ एकीकृत करना।
    • पहल
      • जलमार्गों के पास ‘लॉजिस्टिक विलेज’ और ‘लॉजिस्टिक्स पार्क’ स्थापित करना।
      • अंतर्देशीय टर्मिनलों और प्रमुख बंदरगाहों के बीच अंतिम संपर्क को मजबूत करना।
  • मैरीटाइम इंडिया विजन, 2030: बंदरगाह, जहाजरानी तथा जलमार्ग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2021 में जारी किया गया।
    • इसका उद्देश्य भारत के समुद्री क्षेत्र का समग्र विकास करना है, जिसमें बंदरगाह, नौवहन तथा जलमार्ग शामिल हैं।
  • टर्मिनलों तथा नेविगेशन सहायता का विकास
    • कार्गो हैंडलिंग को सुविधाजनक बनाने के लिए मल्टीमॉडल टर्मिनलों का निर्माण।
    • NW पर सुरक्षित और कुशल नेविगेशन के लिए RIS (रियल-टाइम इंफॉर्मेशन सिस्टम) और DGPS (डिफरेंशियल ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) की तैनाती।
    • साहिबगंज और वाराणसी में स्थित टर्मिनल कोयला और उर्वरक परिवहन की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • कर तथा सब्सिडी सहायता
    • भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, जहाज संचालकों की परिचालन लागत को कम करने के लिए सब्सिडी प्रदान करता है।
    • तुलनात्मक लाभ: रेल (₹1.41) और सड़क (₹2.58) की तुलना में IWT ₹1.06/टन-किमी. पर अधिक लागत प्रभावी है।
  • कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना: भारत और म्यांमार द्वारा संयुक्त रूप से वर्ष 2008 में परिकल्पित।
    • उद्देश्य: पूर्वी भारतीय राज्य मिजोरम को जलमार्ग और सड़कों के माध्यम से म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह से जोड़ना।
    • महत्त्व: भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए व्यापार और संपर्क को बढ़ाता है।
  • हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण तथा ड्रेजिंग परियोजनाएँ
    • नौगम्य चैनलों की पहचान करने के लिए नियमित सर्वेक्षण और वाणिज्यिक नौवहन के लिए पर्याप्त गहराई बनाए रखने के लिए ड्रेजिंग।
    • केंद्रित नदियाँ: गंगा, ब्रह्मपुत्र, बराक और गोदावरी

भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास की आगे की राह

  • उन्नत अवसंरचना विकास: टर्मिनलों, रात्रि नेविगेशन प्रणालियों और पोत मरम्मत सुविधाओं के निर्माण और उन्नयन पर ध्यान केन्द्रित करना।
    • NW-1 और NW-2 जैसे प्रमुख जलमार्गों पर वर्ष भर चलने के लिए पर्याप्त गहराई बनाए रखने के लिए ड्रेजिंग गतिविधियों में तेज़ी लाना।
    • बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण से निजी क्षेत्र के निवेश आकर्षित हो सकते हैं और मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिल सकता है।
  • नीति और विनियामक सुधार: निर्बाध नेविगेशन सुनिश्चित करने के लिए सभी राज्यों में एक समान विनियम बनाना।
    • राष्ट्रीय एकीकृत परिवहन नीति के माध्यम से अंतर्देशीय जलमार्गों को सड़क, रेल और तटीय शिपिंग के साथ एकीकृत करना।
    • अंतरराष्ट्रीय व्यापार में देरी और लागत को कम करने के लिए भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल के तहत परिचालन को सुव्यवस्थित करना।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: जहाज निर्माण और संचालन में निजी निवेश के लिए कर लाभ, सब्सिडी और वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
    • यातायात को सुरक्षित करने और निजी परिचालनों की आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए उद्योगों के साथ दीर्घकालिक कार्गो समझौते करना।
  • क्षेत्रीय संपर्क पर ध्यान केंद्रित करना: व्यापार और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पूर्वोत्तर और प्रायद्वीपीय भारत जैसे कम उपयोग वाले क्षेत्रों में जलमार्ग विकसित करना।
    • NW-16 (बराक नदी) पर कनेक्टिविटी को मजबूत करना और इसे मल्टीमॉडल नेटवर्क के साथ एकीकृत करना।
  • हरित प्रौद्योगिकी को अपनाना: जलमार्ग संचालन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा और ईंधन-कुशल जहाजों के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • भारत के जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड जहाजों को प्रस्तुत करना।
  • क्षमता निर्माण और कौशल विकास: जहाज संचालन और रखरखाव के लिए कुशल जनशक्ति विकसित करने के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना।
    • नौवहन और रसद चुनौतियों के लिए अभिनव समाधान के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।

निष्कर्ष

अंतर्देशीय जलमार्गों में सड़क और रेल परिवहन के लिए लागत प्रभावी, पर्यावरण अनुकूल विकल्प प्रदान करके भारत के ‘लॉजिस्टिक’ संबंधी परिदृश्य को बदलने की अपार क्षमता है। अंतर्देशीय जलमार्गों के लाभों का पूरी तरह से दोहन करने और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए रणनीतिक निवेश, नीतिगत सुधार और निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है।

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